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वि�षय- वि�न्दी शब्द समू�
एक या एक से अधिक अक्षरों से सार्थ�क योग को हम शब्द कहते है। अर्थवा वर्णों� या अक्षरों का ऎसा समूह जि सका कोई अर्थ� हो, शब्द कहलाता है। प्रत्येक भाषा को अपना शब्द समूह होता है। इन शब्दों का प्रयोग बोलने एवं लिलखने में किकया ाता है।
शब्द
किहन्दी के शब्दों का वग2करर्णों मुख्य रूप में चार आारों पर किकया ाता है,अर्थ� के आार पर व्युत्पत्ति: के आार परउत्पत्ति: के आार परवाक्य के प्रयोग के आार पर
अर्थ� के दृधि> से वाचक शब्द,लाक्षत्तिर्णोंक शब्द और व्यं क शब्द ैसी तीन भेद हैं।
व्युत्पत्ति: के आार भी तीन भेद है, रूढ, यौकिगक और योगरूढ आदिद है।
उत्पत्ति: के आार पर तत्सम, तत्भव, देश एवं किवदेशी आदिद भेद हैं।
उत्पत्ति: के आार पर अर्था�त् तत्सम, तत्भव देश एवं किवदेशी शब्दों के बारे में किवस्तृत अध्ययन किकया ा रही है।
किहन्दी भाषा के शब्द- समूह को परंपरागत रूप से चार वग� में बाँटा ाता है।
तत्सम
तद्भव
किवदेशी
देश
तत्सम तत्सम से तत् का अर्थ� है वह अर्था�त् संस्कृत और सम का अर्थ� है समान। अर्था�त् तत्सम उन शब्दों तो कहते हैं ो संस्कृत के समान हों। उदाहरर्णों के लिलए किहन्दी में कृष्र्णों, गृह, कम�, हस्त, घर शब्द तत्सम है।
तद्भवतत्भव में भी तत् का अर्थ� है वह अर्था�त् संस्कृत और भव का अर्थ� है उत्पन्न। अर्था�त् तद्भव वे शब्द हैं ो संस्कृत शब्दों से उत्पन्न हुए हैं।
तत्सम तद्भवकम�आ>सप्तहस्तसप�इक्षु
कामआठसातहार्थसाँपईख
वि�देशीकिवदेशी शब्द का मूल अर्थ� है ‘अन्य देश की भाषा से आए हुए शब्द यों किकसी भी अन्य भाषा से आए हुए शब्द प्रायः किवदेशी माने ा सकते हैं। इन्हें आगत शब्द या गृकिहत शब्द (Loan word; वे शब्द ो किकसी अन्य भाषा से ग्रहर्णों किकए गए हो) कहना कदालिचत् अधिक उपयुक्त है। किहन्दी में किकताब (अरबी), क़ैं ची( तुकX), नमाज़(फ़ारसी), कोट(अग्रें ी), अनन्नास(पुत�गली) आदिद ऎसे ही शब्द हैं। किहन्दी में समय- समय पर पश्तो, तुकX, अरबी, फ़ारसी, पुत�गली, अग्रें ी, फ्रांसीसी, डच तर्था कई आुकिनक भारतीय भाषाओं के शब्द आए हैं।
देशज
देश का अर्थ� है (देश+ ) ो देश में ही न्में हों। ो शब्द न तो तत्सम हों, न तत्भव और न किवदेशी, उन्हें देश के कोटी में रख दिदया ाता है। देश कहलाने वाले शब्द को दो पक्ष में रख सकता है:
अज्ञातव्युत्पत्ति:क: जि नकी व्युत्पत्ति: का पता न हो। ैसे- टट्टू, तेंदुआ, कबड्डी, गडबड, घपला, चंपत, चूहा, झंझट, झगडा, टीस, ठेठ, र्थोर्था, पेड़, भुता� आदिद।
अनुकरर्णोंात्मक: ो तत्सम, तत्भव, किवदेशी नहीं हैं, तर्था किहन्दी काल के अनुकरर्णोंके आार पर बनाए गए हैं। इस वग� के अधिकांश शब्द ध्वन्यात्मक होते हैं।
ैसे- खड़खड़, भड़भड़, खटखट, मम, हड़हड़, ड़ड़, चटचट, भोंभों, फटफदिटया, टरा�ना आदिद।
धन्य�ाद