itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै...

58
1 Itihāsa of अʼाि yupa signifies धन, यो वै मेधः, सोमं धन˟ सोमनो म˨ं ददातु सोमनः (Śri Suktam) Thanks to Dr. Vipin Kumar who provided an understanding of 8 corners of Yupa with links to the following sources - अʼसखी Sukta 15.2 of Atharvaveda िसूम् See: मेधा = धन 'यो वै मेधः' इत ितेः yajna is medhā is wealth; Sarasvati civilization is Veda culture http://tinyurl.com/js8z7ta See: Octagonal, अʼाि yūpo bhavati (Satapatha Brahmana) for सोमः संथा,Vajapeya soma yajna evidenced in Binjor (ca. 2500 BCE) http://tinyurl.com/hvc2s38 Khilani (Sanskrit: खलान, Khilāni) are a collection of 98 rica-s of the Rigveda, recorded in the Bāṣkala, but not in the Śākala shakha. https://youtu.be/qvCXINjFKvs?list=RD0Vd6xbQDTYs िसू ( ऋेद) Sri Suktam (A Vedic Hymn Addressed to Goddess Lakshmi) Uploaded on Oct 26, 2011 िसूं Sri Suktam, मूलतः ऋेद के दू सरे अाय के छठे सू अनुटुप आनंदकद दम ऋि ारा िदेवता को समपदत काʩांश है See: Usha R. Bhise, The Khila Suktas of the Rgveda: A Study, Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona, 1995 I have posited the reason for the octagonal shape of Rudra bhāga of Śivalingas in Veda tradition. The key is in Śri Suktam (embedded) rica 21: वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृहा सोमं धन˟ सोपमनो म˨ं ददातु सोपमनः Vainateya Somam Piba Somam Pibatu Vrtrahaa | Somam Dhanasya Somino Mahyam Dadaatu Sominah ||21|| Meaning: 21.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Those who carry Sri Vishnu in their Heart (like Garuda, the son of Vinata carries Him on his back) always drink Soma (the Divine Bliss within); Let all Drink that Soma by Destroying their inner Enemies of desires (thus gaining nearness to Sri Vishnu). 21.2: That Soma originates from Sri Who is the embodiment of Soma (the Divine Bliss); O Mother, please Give that Soma to Me too, You Who are the possessor of that Soma.

Upload: letu

Post on 25-Jul-2018

213 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

Page 1: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

1

Itihāsa of अषटाशरि yupa signifies धन, यजञो व मधः, सोम धनसय

सोशरमनो महय ददात सोशरमनः (Śri Suktam)

Thanks to Dr. Vipin Kumar who provided an understanding of 8 corners of Yupa with links to

the following sources -

अषटसखी Sukta 15.2 of Atharvaveda

िीसकतम

See:

मधा = धन 'यजञो व मधः' इशरत ितः yajna is medhā is wealth; Sarasvati civilization is Veda

culture http://tinyurl.com/js8z7ta

See:

Octagonal, अषटाशरि yūpo bhavati (Satapatha Brahmana) for सोमः ससथा,Vajapeya soma yajna

evidenced in Binjor (ca. 2500 BCE) http://tinyurl.com/hvc2s38

Khilani (Sanskrit: खखलाशरन, Khilāni) are a collection of 98 rica-s of the Rigveda, recorded in

the Bāṣkala, but not in the Śākala shakha.

https://youtu.be/qvCXINjFKvs?list=RD0Vd6xbQDTYs

िी सकत ( ऋगवद) Sri Suktam (A Vedic Hymn Addressed to Goddess Lakshmi)

Uploaded on Oct 26, 2011

िी सकत Sri Suktam, मलतः ऋगवद क दसर अधयाय क छठ सकत अनषटप छनद म आनदकददम ऋशरि दवारा

िी दवता को समशरपदत कावाश ह। See: Usha R. Bhise, The Khila Suktas of the Rgveda: A Study, Bhandarkar Oriental Research

Institute, Poona, 1995

I have posited the reason for the octagonal shape of Rudra bhāga of Śivalingas in Veda tradition.

The key is in Śri Suktam (embedded) rica 21:

वनतय सोम पिब सोम पिबत वतरहा ।

सोम धनसय सोपमनो महय ददात सोपमनः ॥२१॥Vainateya Somam Piba Somam Pibatu Vrtrahaa |

Somam Dhanasya Somino Mahyam Dadaatu Sominah ||21||

Meaning: 21.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Those who carry Sri Vishnu in their Heart

(like Garuda, the son of Vinata carries Him on his back) always drink Soma (the Divine Bliss

within); Let all Drink that Soma by Destroying their inner Enemies of desires (thus gaining

nearness to Sri Vishnu).

21.2: That Soma originates from Sri Who is the embodiment of Soma (the Divine Bliss); O

Mother, please Give that Soma to Me too, You Who are the possessor of that Soma.

Page 2: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

2

अषटाशरिव वजरः Ait. Br.

SBr. 5.2.1.5 5. The sacrificial post is eight-cornered; for the Gâyatrî metre has eight syllables,

and the Gâyatrî is Agni's metre: he thereby wins the world of the gods. The post is either wrapt

up, or bound up, in seventeen cloths; for Pragâpati is seventeenfold: he thus wins

Pragâpati.http://sacred-texts.com/hin/sbr/sbe41/sbe4108.htm

Hence, vajrapani carries an octagonal hour-

glass shaped vajra.

Vajra

samghAta Varahamihira's Brhatsamhita

VajrapANi

anchipuram. Ashtabuja Vishnu

aSTabhuja Vishnu. Angkor Wat

Page 3: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

3

See: Ashta Bhairava - Wikipedia

I attach link to Youtube for your perusal and listening.

https://www.youtube.com/watch?v=h2sht7O3Hds (10:37) Published on Jan 29, 2017

Presentation made by Dr. S. Kalyanaraman of Sarasvati Research Center documents evidence for

Vedic culture and Hindu traditions in Harappa Script & Sarasvati Civilization. Intl. Conf. on

Sarasvati River held in Kurukshetra University on 30 Jan. 2017.

S. Kalyanaraman

Sarasvati Research Center February 5, 2017

अषटसखी

शरटपपणी : पराणो म राधा-कषण क पररतः खसथत सखखयो/गोशरपयो क नाम करमशः

शरवशाखा, शबया, पदमा, भदरा, लशरलता, शयामला, िीमती/धनया व हररशरिया आए ह। राधोपशरनिद क उललख स

इन गोशरपयो की शरवशरभनन शरदशाओ म

खसथशरत का शरनधादरण होता ह। राधोपशरनिद म

आगनय कोण म खसथत सखी का नाम िदधा िकट हआ ह, जबशरक पराणो म यह नाम शबया ह। यह मानवीय

तरशरट ह या यह पररवतदन जानबझ कर शरकया गया ह, यह आग वणदन स सपषट होगा। वनदावन म जो राधा-कषण

भखकत समपरदाय शरवकशरसत हए ह, उनम यह 8 नाम

लशरलता, शरवशाखा, चमपकलता, शरचतरा, तङगशरवदया, इनदलखा, सदवी और रगदवी क रप म िकट हए ह।

पहला िशन तो यह उठता ह शरक कया पराणो म िकट हए आठ नामो और वनदावन म

परचलित सखिय ो क आठ नाम ो म सामय ह या नह ो? और यलि सामय ह त उनक लिशाओो म खथिलत म भ

सामय ह या नह ो? जसा लक इस लिपपण म आग वणणन लकया गया ह, पराण ो और वनदावन क सखिय ो क

नाम ो म सामय ह, िलकन लिशाओो म खथिलत म नह ो। अभ यह जञात नह ो ह लक कया सखिय ो क लिशाओो म

खथिलत म समपरिाय-समपरिाय क अनसार अनतर आ जाता ह अिवा वह एक समान रहत ह? यह उललि कर

िना उपयकत ह गा लक राधा क सखिय ो स कया तातपयण ह सकता ह और इन सखिय ो का लिशाओो क

अनसार वगीकरण करन क आवशयकता कय ो पड ? सि स तातपयण हमार िलनक ज वन क लिया-किाप ो

स, िलनक ज वन क परवलिय ो स ह सकता ह। हमार सभ परवलियाो, सभ कायणकिाप कनदरथि साखिक

परकलत राधा क सवा कर , यह सि का उददशय ह सकता ह। वलिक सालहतय म सखिय ो क नह ो, अलपत

सिाओो क महततव लिया गया ह और उनह मरत नाम लिया गया ह। इनदर एक मरत क काि कर उस सात

भाग ो म लवभालजत करता ह और लिर सात िकड ो क काि-काि कर उनक 49 सोखया म लवभालजत करता

ह। तब जाकर मरत उसक सिा बनत ह। मरत ो क सात गण ो म स परतयक म सात मरत ह। यह सात गण

िमशः साखततवक, सकषम ह त चि जात ह और इनका लवकास ऊरधण लिशा म ह ता चिा जाता ह। सखिय ो क

सोिभण म वलिक सालहतय म बहत कम उललि ह। यह काम पराण ो न परा लकया ह। सखिय ो क आठ

लिशाओो म लवभालजत लकया गया ह लजसस परतयक लिशा क लवलशषट परकलत क अनसार अपन परवलिय ो का

लवभाजन लकया जा सक। यलि क ई साखततवक परकलत का परष ह त उस सखिय ो क चककर म पडन क

Page 4: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

4

क ई आवशयकता नह ो ह। वह स ध राधा क , कनदर य साखततवक परकलत क आराधना करगा।

शरवशाखा

लिपपण : पराण ो क अनसार राधा क 8 सखिय ो म लवशािा सि का थिान पवण लिशा म ह जबलक िलिता

सि का पलिम लिशा म। िलिता कषण क रच-रच कर तामबि/पान परसतत करत ह। तामबि शबद

तलब, षटलब आलि धातओो क आधार पर लनलमणत ह। तलब, षटलब धातएो मिणन अिण म परयकत ह त ह – पराण और

अपान क मिणन स वयान का जनम ह ता ह, ऐसा कहा जाता ह। वयान पराण िकषता उतपनन करता ह। यह

मियकत अवथिा ह। िसर शबद ो म मिणन क वयाखया इस परकार क जा सकत ह लक यह मतयण सतर पर

Page 5: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

5

अमत सतर क लमशरण स उतपनन खथिलत ह। तामबि िता का जनम भ अमत क भलम पर कषरण स हआ ह।

अिवणवि 8.7.4 म ओषलधय ो का वगीकरण उनक तन ो क अनसार लकया गया ह। एक ओषलध सतमभ/सकनध

अिाणत तन वाि ह, िसर काणड वाि , त सर लबना तन क अिाणत लवशािा, लजसक मि स ह शािाएो

लनकि रह ह, तना ह ह नह ो। यह सकनध उददशय-लवशष का परत क ह सकता ह। ह सकता ह लक तामबि

भ उददशय लवशष का परत क ह । पराण म उललि आता ह लक नाग-पतर िलिता न उियन क अमलान

तामबि मािा उियन क अलपणत क । इन उददशय ो क रच-रच कर कषण क अलपणत करना ह। इसक

लवपर त, लवशािा क खथिलत लनरददशय ह, सभ ओर लकरण िि रह ह। यह समालध स वयतथान क खथिलत

ह सकत ह। गगण सोलहता म लवशािायि क ग लपयाो कषण लवरह पर अपन परलतलिया इस परकार वयकत

करत ह लक ग चारण क समय अनचर ो सलहत जात हए मि हाि जस कषण अपन रव ो स सवपर क

परब लधत कर ित ह(ग चारणायानचररवणजोतो परब धयोतो सवपरो लवरावः)। यहाो ग चारण इखनदरय ो का लनयनतरण ह

सकता ह। वामन पराण म वामन क लवराि रप म लवशािा नकषतर क खथिलत भरमधय म कह गई ह।

अिवणवि 19.7.3 म लवशािा नकषतर क राधा बन जान क कामना क गई ह। वलिक सालहतय म अनयतर

लवशािा नकषतर नाम न िकर राधा कहकर ह काम चिा लिया गया ह कय ोलक लवशािा नकषतर स अगिा नकषतर

अनराधा ह।

लवशािा सि का वणण : लवियत जसा, वसत ो पर तार जड ह। राधा व कषण क ब च ित का कायण करत ह।

सि लबसािा अलत ह पयार । कबह न ह त सोगत नयार ॥

बह लवलध रोग बसन ज भाव। लहत स ो चलन क ि पलहराव॥

ज ो छाया ऐस सोग रहह । लहत क बात क वरर स ो कहह ॥

िालमलन सत िलत िह क , अलधक लपरया स ो हत।

तारा मोडि स बसन, पलहर अलत सि ित॥

माधव माित कञजर , हरन चपिा नन।

गोध रिा सभ आनना, स रभ कह मि बन॥ - शर धरविास-कत “बयाि स ि िा” स उिधत

Visakha is the second most important of the eight varistha-gopis. Her attributes, activities and

resolve are all much like those of her friend Lalita. Visakha was born at the exact same moment

as her dear friend, Srimati Radharani, appeared in this world. Visakha's garments are decorated

with stars and her complexion is like lightning, being cream-colored with a tinge of red

(gaurangi). She is 14 years, 2 months and 15 days in age. Her father is Pavana, the son of the

sister of Mukhara-gopi, and her mother is Daksina-devi, the daughter of the sister of Jatila. Her

husband is Bahuka (Vahika-gopa). Her residence is cloudlike in color. She appears in gaura-lila

as Sri Ramananda Raya.

Visakha-devi is the intimate friend of the Divine Couple. Although she is more exalted than the

younger gopis (the gopi messengers lead by Vrnda devi), she also takes up the work of carrying

messages between Radha and Krsna and she is the most intelligent and expert of all the gopi

messengers. Loquacious Visakha is expert at joking with Lord Govinda, and she is the perfect

counsellor of the Divine Couple. Being expert at all aspects of amorous diplomacy, she knows

all the arts of how to conciliate an angered lover, how to bribe him, and how to quarrel with him.

Visakha is very dear to Sri Krsna and has the bhava known as svadhina-bhartrka. Her seva is

dressing and decorating. In Sri Visakha’s yutha the chief sakhis are Malati, Madhavi,

Candrarekha, Subhanana, Kunjari, Harini, Surabhi and Capala.

Page 6: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

6

तङगलवदया

पराण ो म आगनय लिशा म शबया ग प क खथिलत का उललि ह जबलक राध पलनषि म शरदधा ग प का।

अिवणवि 15.2.8 म आगनय क ण म शरदधा पोिि क खथिलत का उललि ह लजसका लवजञान लमतर ह, भत और

भलवषय पररषकनद ह। पोिि शबद सोकत िता ह लक शरदधा अखथिर ह। इस किन क पराण ो म रान शबया क

किाओो क आधार पर समझा जा सकता ह। एक किा म शबया राजा सगर क पतन बनकर असमञजस पतर

क जनम ित ह। यह असमञजस वह शरदधा और अशरदधा क ब च क खथिलत ह। अनय किा म शबया राजा

शतधन क पतन ह। राजा शतधन का लकस पािणड स समपकण ह गया लजसक पररणामसवरप राजा क

मतय-पिात शवान, सगाि आलि क य लनयाो परापत ह त रह और परतयक बार शबया उन य लनय ो स अपन पवण

पलत का उदधार करत रह । राजा दवारा लवलभनन य लनयाो परापत करना यम क ओर स एक लनयत कमण

Page 7: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

7

िा, िलकन शबया न इतना कर लिया लक एक य लन म रहन का समय कवि एक लिन रह गया। इस परकार

शबया न काि सोकषप कर लिया। यह किा इोलगत करत ह लक अपन िकषय क पराखपत म मनषय सबस पहि

शरदधा क आधार पर ह अगरसर ह ता ह और यलि उसम क ई अजञान वयखकत अशरदधा, सोशय उतपनन कर िता

ह त यह शभ सोकत नह ो ह। एक अनय किा म शबया अपन कषठ पलत क ढ रह ह लजसक पिाघात स

शिार लपत माणडवय ऋलष क कषट पहोच जाता ह और वह सयोिय ह न स पहि कषठ पलत क मरन का

शाप ित ह। शबया सयोिय ह न का ह लनषध कर ित ह। शबया का कषठ पलत ह ना डा. ितहलसोह क

अनसार यह सोकत िता ह लक आतमा क ज लत का ज वन म अवतरण नह ो हआ ह। जस ह अवतरण

ह गा, सयोिय ह गा, कषठ समापत ह जाएगा। वनदावन म शबया/शरदधा क तङगलवदया नाम लिया गया ह, ऐसा

अनमान ह। तोगलवदया और शबया क परकलतय ो म सामय का अनमान पदम पराण क इस किा स िगाया जा

सकता ह लक आतमिव और धोधि का आखयान तङगभदरा नि क ति पर घलित हआ िा। इस किा म

धोधि वह धोधि बखदध ह लजस सपषट लिशा लनिश परापत नह ो ह रह ह। तङगलवदया ग प 18 विलवदयाओो क

जञाता ह, गान लवदया/नाटय शासत म कशि ह, रस शासत म कशि ह। उसक गान क परकलत क मागी सोग त

कहा गया ह। मागी का एक अिण त यह ह सकता ह लक इसस ज वन म मागण का लनधाणरण लकया जा सकता

ह। िसरा अिण यह ह सकता ह लक इसक दवारा हम माजणन करना ह, ि कभाषा म माोजना ह। त सरा अिण

यह ह सकता ह लक यह सोग त मग क अवथिा ह। यह मग इस सोसार म अपन लिए भ ग आलि क ि ज

करता रहता ह। तङग लशिर क कहत ह। ऐसा ह सकता ह लक तङगलवदया अपन सोशय क १८ विलवदयाओो

क जानन क पिात नषट करत ह । तङगलवदया क यलि तञजलवदया कहा जाए त वि ो क अनसार इसक

वयाखया करना सोभव ह जाता ह। वलिक लनघणट म तञज शबद का वगीकरण वजर नाम ो क अनतगणत लकया

गया ह। इसका अिण ह गा लक अपन लनिय क वजर जसा दढ सोकलप बनाना ह लजसम सोशय का क ई थिान

न ह । तञजलत शबद का वगीकरण िानकमाण शबद ो क अनतगणत लकया गया ह। यलि शर सकत स तिना क जाए

त शर सकत म आगनय क ण म लजस ऋचा का लवलनय ग ह, वह ह – उपत माो िवसिः क लतणि मलणना सह।

परािभणत ऽखि राषटर ऽखिन क लतणमखदधो ििात म॥ इसका शबदािण ह लक ज िवसिा ह, वह मर पास आए।

तिा क लतण मलण क साि आए। मन इस राषटर म जनम ि लिया ह। क लतण मझ ऋखदध परिान कर। इस ऋचा म

िवसि आतमा का वह रप ह सकता ह ज परमातमा स लनिश िन िगा ह, उसका सिा बन गया ह। तब

वह कलयाणकार रप म समपणण िह म, समपणण बरहमाणड म, राषटर म अपना लवसतार कर सकता ह। कया क लतण

का पवण रप धोधि बखदध ह, यह अनवषण य ह। पराण ो म त सचनदर व किावत का अवतार वषभान व

क लतण कह गए ह ज राधा क जनम ित ह।

तङग लवदया सब लवदया माह । अलत परव न न क अवगाह ॥

जहाो िलग बाज सब बजाव। रागरालगन परगि लििाव॥

गन क अवलध कहत नलहो आव। लछन-लछन िालडि िाि िडाव॥

ग र बरन छलब हरन मन, पोडर बसन अनप।

कस बरनय जात ह, यह रसना करर रप॥

मोज मधा अर मलधका, तन मधया मि बन।

गनचडा बारो गिा, मधरा मधमय ऐोन॥

मध असपनदा अलत सिि, मधरचछना परव न।

लनलस लिन त य सब सि , रहत परम रस ि न॥ - “बयाि स ि िा” स साभार

Tungavidya is the fifth of the varistha gopis. Her complexion is the color of kunkuma and the

fragrance of her body is like sandalwood mixed with camphor. Her dress is pandu-mandana (pale

yellow). She is fifteen days younger than Srimati Radharani, and her age is 14 years, 2 months

and 22 days. She wears white garments. Her parents are Puskara and Medha-devi and her

husband is Balisa. On the western petal of Madana-sukhada Kunja lies the extremely beautiful

Page 8: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

8

crimson-colored Tungavidyanandada Kunja, where Sri Tungavidya Sakhi always resides. In

gaura-lila she appears as Sri Vakresvara Pandita.

She loves Sri Krsna very much and, filled with eagerness for that prema, she exhibits the bhava

known as vipralabdhatva. She is very devoted to her seva of dancing and singing, and is a

celebrated music teacher who is expert at playing the vina and singing in the style known as

marga. She has full faith in Krsna. She is very expert at arranging the meetings of the Divine

Couple. She is learned in rasa-sastra (transcendental mellows), is learned in the eighteen

branches of knowledge, in niti-sastra (morality), dancing, drama, literature and all other arts and

sciences.

Being hot-tempered and expert at dissimulation, Tungavidya is one of the leaders of the gopis.

Some of the sakhis in Tungavidya’s yutha are Manjumedha, Sumadhura, Sumadhya,

Madhureksana, Tanu madhya, Madhusyanda, Gunacuda and Varangada. These gopis are the best

of dancers. They are musicians expert at playing the mrdanga and singing in recital halls. They

are especially engaged in fetching water from the streams in Vrndavana. Eight gopi messengers

headed by Manjumedha-devi are especially expert at arranging political alliances (sandhi) the

first of diplomatic maneuvers in the art of politics between Radha and Krsna.

Page 9: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

9

लचतरा

पराण ो म िलकषण लिशा म पदमा ग प क खथिलत कह गई ह जबलक वनदावन परमपरा म इस लिशा म लचतरा

सि क थिान लिया गया ह। तलिर य बराहमण म कहा गया ह लक आकाश म जस नकषतर ह, वस ह इस

पलिव पर लचतर-लवलचतर रप ह। क ई अचछा रप ह, क ई िराब रप ह। आवशयकता इस बात क ह इन

लचतर रप ो क लवकलसत करक इनह पनः आकाश क नकषतर ो का रप लिया जाए। िलकषण लिशा यम

क , लपतर ो क और िकषता परापत करन क लिशा ह। पहि हम पराण ो क माधयम स यह समझन का परयतन

करत ह लक िलकषण लिशा म पदमा सि क नामकरण स कया तातपयण लसदध ह ता ह? पराण ो म सावणलतरक रप

स एक किा म पदमा क राजा अनरणय क कनया कहा गया ह। हमार आतमा अरणय ह, जोगि ह लजसस

ऊपर क खथिलत अन-अरणय क , परमातमा क ह(िकषम नारायण सोलहता)। इस अनरणय क पदम म खथित

Page 10: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

10

अङगषठ परष क बहत चाह ह, िलकन वह कवि कनया रप म पदमा क , परकलत क ह परापत कर पाता ह।

लिर इस पदमा क पतन रप म पान वािा पपपिाि बनता ह। पपपिाि ऋलष वह ह लजसका पािन लपपपि ो

क भकषण स, इस पलिव क भ ग ो क सवन दवारा हआ ह। इस पदमा क धमण भ पतन रप म परापत करना

चाहता ह, िलकन उस पदमा क शाप स चार यग ो म चार पाि वािा बनना पडा। पदमा शबद क लनरखकत इस

आधार पर क जा सकत ह लक जगत म परालणय ो क पाि परिान कर, उनम चिन क शखकत ि, जस

सयोिय पर सार पराण चिन िगत ह। िकषम नारायण सोलहता म उललि आता ह लक पदमा ग प कषण क

पाियगि म अिकतक िगात ह। िसर ओर पदमा ग प दवारा कषण क भािलतिक लबनद िगान का भ

उललि ह। इसक वयाखया कस क जा सकत ह, यह भलवषय म अपलकषत ह। लचतरा का लचतरण पराण ो म यम-

पतन क रप म लकया गया ह। एक वशया क रप म भ लचतरा का लचतरण लकया गया ह ज अपन लकनह ो

सतकायो क कारण अगि जनम म लिवया िव बनत ह। पराण ो म लपङगिा क भ वशया कहा जाता ह ज

सिा इस आशा म ज त ह लक उस उसका लपरयतम लमिगा। जब वह आशा का तयाग कर ित ह, तभ उस

चन लमिता ह। शर सकत म िलकषण लिशा म लजस ऋचा का लवलनय ग ह, वह ह – काो स खिताो

लहरणयपराकारामादराा जविनत ो तपताो तपणयनत म। पदम खथिताो पदमवणाा तालमह पहवय लशरयम॥ अिाणत म उस शर

का आहवान करता हो ज काो, कामनाओो क पलतण करत ह, स खिता अिाणत मसकरान वाि ह, लजसक चार ो

ओर लहरणय का घरा ह, ज आदराण ह, करणा स आदरण ह, जविनत ह, पाप ो क जिा डाित ह, तपत

ह, लपङगिा वशया क तरह अतपत नह ो ह, तपत करन वाि ह, इतयालि।

लचतरा सि िहलन मन भाव। जि सगोध ि आलन लपवाव॥

जहाो िलग रस प व क आह । मलि सगोध बनाव ताह ॥

जलह लछन जस रलच पलहचान। तब ह आलन करावत पान॥

को कम क स बरन तन, कनक बसन पररधान।

रप चतरई कहा कह ो, नालहन क ऊ समान॥

सि रसालिका लतिकन , अर सगोलधका नाम।

स र सन अर नागर , रालमिका अलभराम॥

नागबलनका नागर , पर सब सि रोग।

लहत स ो य सवा कर , शर लचतरा क सोग॥ - शर धरविास-कत बयाि स ि िा, पषठ 149 Citra is the fourth of

the varistha gopis. Her beautiful saffron complexion resembles the color of kunkuma, and her

garments are the color of crystal. She is 26 days younger than Srimati Radharani, being 14 years,

7 months and 14 days of age. Her father is Catura, the paternal uncle of Suryamitra. Her mother

is Carcika-devi and her husband is Pithara. She is an adhika-mrdvinayika, and her home is in

Yavata. In gaura-lila she appears as Sri Govindananda.

She and Sri Krsna are very affectionate toward each other, and she is very devoted to her seva of

bringing cloves and garlands. She is especially expert in the lover's quarrel between Radha and

Krsna (the third of the six definitions of the word abhisarana). When Lord Madhava is full of

bliss, she becomes satisfied.

Citra-devi can read between the lines of books and letters written in many different languages,

perceiving the hidden intentions of the author. She is a skilled gourmet and can understand the

tastes of various foods made with honey, milk, and other ingredients simply by glancing at them.

She can nicely make various kinds of nectarean beverages. (There are also eight other gopi

maidservants, headed by Rasalika-devi, who are expert at making various nectarean beverages.)

Citra-devi is expert in playing music on pots filled with varying degrees of water. She is learned

in the literature describing astronomy and astrology, and she is well versed in the theoretical and

practical activities of protecting domestic animals. She is especially expert at gardening. There

are other gopis who mostly collect transcendental herbs and medicinal creepers from the forest

Page 11: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

11

and do not collect flowers or anything else. Citra-devi is the leader of these gopis. The chief

gopis in Sri Citra’s yutha are Rasalika, Tilakini, Saurasen, Sugandhika, Vamani, Vamanayana,

Nagari and Nagavallika.

इनिििा

नऋण त क ण म भदरा ग प क खथिलत कह गई ह। भदर स तातपयण ह लक हमार ज वन म ज भ घिना र दरता

उतपनन करत ह, जस भि, पयास आलि, उनक भदर खथिलत म रपानतररत करना ह(कषखतपपासामिाो जषठाो

अिकषम ो नाशयामयहम – शर सकत)। अिवणवि 15.2.16 म नऋण त लिशा म उषा पोिि क खथिलत कह गई ह

Page 12: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

12

लजसका लवजञान मनतर कहा गया ह और अमावासया व प णणमास पररषकनद कह गए ह। यह सोकत िता ह लक

भि, पयास आलि लजतन अलगन स उतपनन उपदरव ह, उनका लवकास उषा तक ह ना चालहए, कषधा का परभाव

लसर तक ह ना चालहए(उषा व अशवसय मधयसय लशरः - शतपि बराहमण), तभ वह भदर बन सकत ह। पराण ो म

उषा क अलनरदध क पतन कहा गया ह। यह किा उषा क समझन क को ज ह। ज भ कछ लनरदध

ह – सवपन, कषधा, शकन इतयालि, वह सब लनऋण लत क अनतगणत आता ह। जब वह अलनरदध बन जात ह त वह

उषा क अनतगणत आत ह। लनऋण लत का अखसति ह न पर वह शकन मातर रहत ह, उषा का अखसति ह न पर

वह मनतर बन जात ह। और अमावासया व प णणमास पररषकनद कहन स यह सोकत ि लिया गया ह लक उषा

कवि सयोिय तक ह स लमत नह ो रहन चालहए, अलपत उसका लवसतार चनदरमा तक ह ना चालहए। अनमान

ह लक भदरा ग प वनदावन क इनिरिा/इनिििा ग प क तलय ह। इनिििा ग प नागवश करण लवदया क

जञाता ह और उस नाग ो क वश म करन वाि मनतर ो पर लसखदध परापत ह। वह सामलदरक/िहिकषण शासत क

और रतन लवजञान क जञाता ह तिा राधा-कषण क कणठ आभषण परसतत करत ह। उसक मखय सवा चोवर

डिाना ह। वह राधा और कषण क ब च परम सोिश ो का आिान-परिान करत ह लजस सोभवतः क क लवदया

नाम लिया गया ह। नऋण त लिशा अवचतन मन क लिशा ह। ह सकता ह लक अवचतन मन म बस सोसकार ो

क नाग नाम ि लिया गया ह लजनक इनिििा मनतर दवारा वश म करना जानत ह। जब सोसकार अवचतन स

बाहर लनकि कर परकि ह जाएो ग त वह मनतर कहिाएो ग।

इनिििा अलत चतर सयान । लहत क रालस िहोन मनमान ॥

क क किा घातन सब जान। काम कहान सरस बिान॥

बस करन लनज परम क मोतरा। म हन लवलध क जानत जोतरा॥

लछनलछन त सब लपयलह लसिाव। तात अलधक लपरया मन भाव॥

िह परभा हरताि रोग, बसन िालडम िि।

अलधकाररन सब क स क , नालहन क ऊ सम ति॥

लचतरििा अर म लिन , मनदािसा परव न।

भदरतङगा अर रसतङगा, गान किा रस ि न॥

स लभत सि समोगिा, लचतराोग रस िन।

य त रह सब बात म, सावधान लिन रन॥

शर धरविास ज क उपर कत किन म क क किा क वयाखया कक – आिान धात क आधार पर तिा

क लकि शबद क आधार पर क जा सकत ह। ज कछ कह ो सनाई पड गया ह, शकन क रप म परकि

हआ ह, उसक चतना क बाहयतम सतर पर िाना ह, अपन ज वन म उतारना ह, यह क क का अिण ह

सकता ह ज नऋण त लिशा क िकषण ो स मि िाता ह।

Indulekha is the sixth of the varistha gopis. She has a lemon-yellow (tan) complexion and wears

garments the color of a pomegranate flower. She is three days younger than Srimati Radharani,

being 14 years, 2 months and 10 1/2 days of age. Her parents are Sagara and Vela-devi and her

husband is Durbala. On the southeastern petal of Madana-sukhada Kunja lies the golden-colored

Purnendu Kunja, where Sri Indulekha lives. In gaura-lila she appears as Vasu Ramananda.

Indulekha-devi has a deep love for Sri Krsna and possesses the prosita-bhartrka-bhava. She often

serves Krsna by bringing Him nectar-like delicious meals. She is vama-prakhara and her

principal seva is fanning with a camara.

Indulekha is contrary and hot-tempered by nature. She is learned in the science and mantras of

the Naga-sastra, which describes various methods of charming snakes. She is also learned in the

Samudraka-sastra, which describes the science of palmistry. She is expert at stringing various

kinds of wonderful necklaces, decorating the teeth with red substances, gemology and weaving

various kinds of cloth.

Page 13: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

13

In her hand she carries the auspicious messages of the Divine Couple. In this way she creates the

good fortune of Radha and Krsna by creating Their mutual love and attraction. Indulekha-devi is

fully aware of the confidential secrets of the Divine Couple. Some of her friends are engaged in

providing ornaments for the Divine Couple, others provide exquisite garments, and others guard

their treasury.

In Sri Indulekha’s yutha the chief gopis are Tungabhadra, Citralekha, Surangi, Rangavatika,

Mangala, Suvicitrangi, Modini and Madana. The group of gopis headed by Tungabhadra-devi

are the friends and neighours of Indulekha. Among these gopis is a group, headed by Palindhika-

devi, which acts as messengers for the Divine Couple.

िलिता

लिपपण : पराण ो म िलिता ग प राधा-कषण क पररतः लवदयमान 8 ग लपय ो म स एक ह। बरहमाणड पराण म

िलिता दवारा भणडासर क वध क किा का लवसतार स वणणन ह। भणडासर क उतपलि लशव दवारा कामिव क

भि करन क पिात कामिव क भि स हई ह। चोलक लशव म उगरता लवदयमान ि , अतः भणडासर म भ

उगरता लवदयमान ह। भणडासर क कया अिण ह सकत ह, इस सोिभण म भलड धात कतसा/लननदा अिण

म, पररभाषण/लवकत हासय अिण म और कलयाण/भणडार अिण म परयकत ह त ह। ि क म धानय क भनन क

उपकरण क भाड कहत ह। भणडासर क पर का नाम शनयक पर ह। पराण ो म िलिता ग प का नयास

पलिम लिशा म लकया जाता ह। पलिम लिशा पाप नाश क , शमशान क लिशा ह। लशव न भ कामिव क

भि कर लिया। िगता ह पराण ो म इस भणडासर क शनयक पर नाम लिया गया ह। िलकन शनय खथिलत

पयाणपत नह ो ह। इस शनय म रस उतपनन ह ना चालहए। यह कायण िलिता िव का ह। सकनद पराण म धतराषटर

नाग क पतर िलिता उियन क घ षवत व णा व अमलान तामबि सरज भि करत ह। उियन पवण लिशा

क , उिय क खथिलत ह सकत ह। व णा सोग त का, रस का पररचायक ह सकत ह। राधावललभ समपरिाय

म शर धरविास ज न अपन पसतक “बयाि स ि िा” म िलिता क लवषय म लििा ह लक यह रलच उपजात

ह, रच-रच कर पान/तामबि खििात ह(िलिता परम चतर सब बातन। जानत ह लनज नह क घातन। पानन

ब र रलचर बनाव। रलच ि रलच रलच रलच स ो खवाव॥ मि त बचन स ई त काढ। जात िहो म अलत रलच

बाढ॥

ग र चन सम तन परभा, अिभत कह न जाइ।

म र लपचछक भाोलत क, पलहर बसन बनाइ॥

रतन परभा अर रलत किा, सभा लनपन सब अोग।

किहोस र किापन , भदर स रभा सोग॥

मनमि म िा म ि स ो, समि ह सि रास।

Page 14: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

14

लनलस लिन य आठ सि , रह िलिता क पास॥ – शर धरविास-कत बयाि स ि िा क अनतगणत िस

मकतावि ि िा, परकाशक – बाबा तिस िास, ग पाि भवन, िसायत वनदावन, लविम सोवत 2028, पषठ

148)। इस परकार िलिता िव क साि तामबि का क ई अलभनन समबनध ह। तामबि क लवषय म कहा गया ह

लक अमत क पलिव पर कषरण स तामबि क उतपलि हई ह। तामबि शबद क लनरखकत तलब, षटलब इतयालि

धातओो क आधार पर क जा सकत ह लजनका अिण मिण न लकया गया ह। यह मिणन पराण और अपान वायओो

क ब च ह सकता ह लजसस वयान पराण क उतपलि सोभव ह। वयान पराण स िकषता उतपनन ह त ह। सवयो

िलिता सि क खथिलत पलिम लिशा म ह ज अपान का पर कहा जाता ह। सतमभन का िािन करन क

सोिभण म भ तामबि का अिण ह सकता ह। यह सतमभ ओषलध-वनसपलतय ो का सकनध ह सकता ह। और

अधयातम म यह उददशय ो का परत क ह सकता ह। कछ ओषलधयाो ऐस ह त ह ज सकनध स यकत ह त ह।

कछ ऐस ह त ह ज सकनध स रलहत ह त ह। ऐस ओषलधय ो का परत क लवशािा ह – लजसक मि स ह

शािाएो लनकिन िगत ह।

पराण ो म िलिता िव का उदभव विानसार कहा गया ह। वि ो म परत त ह ता ह लक रर शबद िलिता का

पररचायक ह। िलिता क रररता कह सकत ह। रर शबद क मि धात कया ह, यह जञात नह ो ह सका ह। ह

सकता ह लक रर का मि ऋ ह । ऋगवि क सायण भाषय म रर शबद का अिण िान लकया गया ह। ऋगवि

3,32.2, 3.35.1 व 5.43.3 म रररम मिाय शबद परकि हए ह, अिाणत मि उतपनन करन क लिए स म इतयालि

का ररण लकया जा रहा ह।

िलिता सि का वणण – प िा चमकिार, वसत : मयर लपचछ जस वणण वाि, राधा व कषण क झगड ो क ब च

सिह करान वाि ।

Of the varistha gopis, Lalita is the most important, being the leader and controller. She and the

other eight principal gopis, the other gopis and the manjari have forms that are for the most part

like the transcendental form of Srimati Radharani, the queen of Vrndavana.

Lalita is famous as Srimati Radharani's constant companion. Her complexion is like the yellow

pigment gorocana and her garments are like peacock feathers. Her mother is Saradi-devi and her

father is Visoka. Her husband is named Bhairava. He is a close friend of Govardhana-gopa. Her

age is 14 years, 8 months and 27 days. Her home is in Yavata and her nature is vama-prakhara.

In gaura-lila, she has assumed the form of Sri Svarupa Damodara Gosvami.

The beauty of all the other gopis appears to be conserved in the form of Lalita-devi. She is

contrary and hot-tempered by nature. In an argument, her mouth becomes bent with ferocious

anger and she expertly speaks the most outrageous and arrogant replies. When the arrogant gopis

pick a quarrel with Krsna, she is at the forefront of the conflict. When Radha and Krsna meet,

she audaciously remains standing a little away from them.

Lalita-devi is full of ecstatic love for the Divine Couple. She is expert at arranging both Their

meetings and Their conjugal struggles. Sometimes, for Radha's sake, she offends Lord Madhava.

With the help of Purnamasi-devi and the other gopis Lalita arranges for the meetings of Radha

and Krsna. She carries the parasol for the Divine Couple, she decorates Them with flowers, and

she decorates the cottage where They rest at night and rise in the morning.

On the northern petal of Ananga-sukhada Kunja, there is a beautiful kunja covered with various

kinds of flowers and trees. This place is known as Lalitanandada Kunja and it is the color of

lightning. The lovely Lalita Sakhi always lives here. She has a beautiful bright yellow (gorocana)

complexion and wears a dress the color of peacock feathers. She is adorned with celestial

ornaments and personifies the type of bhava known as khandita. She and Sri Krsna are very, very

dear to each other and her seva is to bring camphor and tambula to Him.

The chief sakhis in Lalita’s group are Ratnarekha (Ratnaprabha), Ratikala, Subhadra,

Candrarekhika (Bhadrarekhika), Sumukhi, Dhanistha, Kalahamsi and Kalapini.

Page 15: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

15

रङगिव

वायवय लिशा म पराण ो म शयामिा ग प क खथिलत कह गई ह। पराण ो म शयामिा का नाम कलि-

भायाण, यम-भायाण आलि क रप म आता ह। शयामिा का अवतरण अलनरदध-भायाण उषा क रप म तिा

िवक , दर पि , र लहण आलि क रप म हआ ह। वनदावन म इस लिशा म रङगिव ग प क थिान लिया गया

ह, ऐसा अनमान ह। पराण ो क शयामिा नाम और वनदावन क रङगिव नाम म क ई अनतर नह ो ह। शयामिा

का अिण ह शयाम वणण का िािन करन वाि , उसम रोग िन वाि । रङगिव ग प क सवा राधा-कषण क

चनदन अलपणत करना ह। वह सगनध क जञाता ह। वह मनतर दवारा कषण क आकषट कर सकत ह।

रोग िव अलत रोग बढाव। नि लसि ि ो भषन पलहराव॥

भाोलत भाोलत क भषन जत। सावधान हव राित तत॥

Page 16: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

16

कमि कसर आभा तन क । बड सखकत ह लचतर लिखिन क ॥

तन पर सार िलब रह , जपा पहप क रोग।

ठाढ सब अभरन लिय, लजनक परम अभोग॥

किको ठ अर सलस किा, कमिा अलत ह अनप।

मधररोिा अर सनदर , को िपाण ज सरप॥

परम मोजर स कह, क मिता गन गाि।

एत सब रस म पग , रोग िव क साि॥

अिवणवि म इस लिशा म इरा पोिि क खथिलत कह गई ह लजसका लवजञान “हस” ह। अह और रालतर

पररषकनद ह। इरा स तातपयण ह ता ह पलिव पर उतपनन ह न वाि ओषलध-वनसपलतय ो स। हसत इस इरा का

लवशषजञ माना जाता ह, अतः उस ऐरावत कहत ह। पराण ो म त इरा हखसतय ो क माता ह। वि ो म इरा क

अनय रप इळा और इिा ह। स मयाग म इळा क परत क रप म िलकषण भारत य इडि वयञजन बनाया जाता

ह लजसका सवन यजञ क सबस अनत म लकया जा सकता ह। कहा गया ह लक इळा पाकयलजञया ह, अिाणत

उसक यजञ क दवारा पकाना ह। पकन क पिात ह उसका सवन लकया जा सकता ह। इरा क लवजञान क रप

म “हस” शबद का उललि ह। सामवि क गायन म ि शबद आत ह – अस और हस। सोभवतः अस

अनतमणि खथिलत ह और हस बलहमणि । अिवा हस होस स, न र-कष र लववक स समबखनधत ह सकता ह।

िलकन हस क सोिभण म यह तकण सोत षजनक नह ो ह। सोभावना यह ह लक हस का पर कष रप “घस” ह। घस

शबद का परय ग िान क लिए ह ता ह। इस धात स घास बना ह। यलि वि म इरा/इळा क भकषण का लनषध ह

त लिर उसका लवजञान यह ह सकता ह लक उसका भकषण लकस परकार लकया जाए। भ लतक पलिव क ज

इरा ह, उसका सवन हम अपन भ जन क रप म कर ह रह ह। िलकन वि का सोिश ह लक पहि उसक

पाकयलजञया बनाओ, तब भकषण करना। इडा क पाकयलजञया बनान स कया तातपयण ह सकता ह, इसक इस

तथय स समझ सकत ह लक वायवय लिशा क लवशषता कया ह। जसा लक वाय शबद क लिपपण म सपषट लकया

जा चका ह, वाय एक ऐस खथिलत ह जहाो जड पिािण क कारण गरिाकषणण िगभग समापत ह जाता ह।

यह कारण ह लक वाय का परवाह मकत रप स ह ता रहता ह। यलि गरिाकषणण लवदयमान रहता ह त

वनसपलत जगत गरिाकषणण क लवपर त लिशा म वखदध करन क लिए परलतलिया काषठ का लनमाणण करता ह

और इस कायण म ह उसक अलधकाोश ऊजाण का वयय ह जाता ह। ऊजाण क चरम पररणलत – पयः क

सरलकषत रिन क लिए यह आवशयक ह लक उस गरिाकषणण स बचाया जाए। यह कारण ह लक वनसपलतयाो

अपन ब ज क चार ो ओर काषठ का आवरण बनात ह ज परलतलिया काषठ का ह रप ह। इस आधार पर यह

लवचार लकया जा सकता ह लक जब वनसपलत जगत क गरिाकषणण शखकत जस लकस शखकत का सामना

करना नह ो पडगा त उसक पयः का और ब ज का सवरप कया ह गा। वह इरा पाकयलजञया कहिान य गय

ह ग ।

शर सकत म इस लिशा म पलिव क गनध क परमिता ि गई ह(गनधदवाराो िराधषाा लनतयपषटाो

कर लषण म। ईशवर ो सवणभतानाो तालमह पहवय लशरयम॥)। इरा, पलिव क गनध आलि किन यह सोकत करत ह

लक लकस परकार स जड भत ो स सकषम भत परकि करन ह, जड स चतन भत उतपनन करन ह। वह पलिव

आलि तततव ो क गनध ह। कर लषण शबद क सोिभण म, कर ष सि ग बर क कहत ह लजस जिान क काम म

लिया जाता ह। लवषणधमोिर पराण म कर लषण क घमण/धमण? क पतन कहा गया ह। यलि कर लषण क धमण

क बिि घमण क पतन माना जाए त अलधक उपयकत परत त ह ता ह। घमण शर र क पररतः परकि हई गमी क

कहत ह। महापरष ो क लचतर ो क मि क पररतः एक आभामणडि लििाया जाता ह। वह भ घमण का रप ह।

इस घमण का मि कर लषण क कहा गया ह। जब वायवय लिशा म शयामिा ग प या रङगिव ग प क खथिलत

कह जात ह त साधना क सतर पर उसस यह तातपयण लनकािा जा सकता ह लक अब साधक क िह का

Page 17: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

17

आभामणडि शयाम, कािा नह ो रह गया ह, अब वह रङग वािा ह। यलि भ लतक पलिव क लिए उसक

ओषलध-वनसपलतयाो इरा ह त साधक क पलिव क लिए उसका आभामणडि इरा ह।

Rangadevi

Rangadevi is the seventh of the varistha gopis. Her complexion is the color of a lotus filament

and her garments are red like a jaba flower. She is seven days younger than Srimati Radharani,

and is 14 years, 2 months and 4 1/2 days of age. Her parents are Karuna-devi and Rangasara, and

her husband is Vakreksana.

On the southwest petal of Madana-sukhada Kunja lies the dark blue, cloudlike Sukhada Kunja,

where Sri Krsna’s beloved Sri Rangadevi always resides. She possesses the utkanthita-bhava,

and in every way she is very attached to Sri Krsna. Her seva is offering candana, and her nature

is vama-madhya. In Kali-yuga she appears in gaura-lila as Govindananda Ghosa.

Rangadevi's personal qualities are much like those of Campakalata. She is always like a great

ocean of coquettish words and gestures. She is very fond of joking with her friend Srimati

Radharani in the presence of Lord Krishna.

Among the six activities of diplomacy she is especially expert in the fourth: patiently waiting for

the enemy to make the next move. She is an expert logician and because of previous austerities

she has attained a mantra by which she can attract Lord Krsna.

The chief gopis in Sri Rangadevi’s yutha are Kalakanthi, Sasikala, Kamala, Prema Manjari,

Madhavi, Madhura, Kamalata and Kandarpa-sundari. Kalakanti-devi is the leader of the eight

most important friends of Ranga-devi. These friends are all expert in the use of perfumes and

cosmetics and burning aromatic incense, carrying coal during the winter and fanning the Divine

Couple in the summer. Ranga-devi's friends are able to control the lions, deer and other wild

animals in the forest.

Page 18: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

18

चमपकिता

पराण ो म उिर लिशा म धनया/शर मत सि क खथिलत कह गई ह जबलक वनदावन क परमपरा म

अनमान ह लक उिर लिशा म चमपकिता का खथिलत ह। अिवणवि 15.2.26 म उिर लिशा म स म व

सपतलषणय ो क खथिलत का उललि ह। जब पराण ो म उिर लिशा म धनया सि क खथिलत कह जात ह त

धनया स तातपयण ह वह परकलत लजस ऋणातमक स धनातमक बनाना समभव ह। आधलनक लवजञान क अनसार त

सार परकलत ऋणातमकता क ओर ह अगरसर ह रह ह, उस धनातमकता क ओर ि जान का क ई उपाय

नह ो ह। िलकन वलिक व प रालणक सालहतय धनातमकता क ओर अगरसर ह न क सोभावना परसतत कर रहा

ह। हररवोश पराण २.११० म आखयान आता ह लक नारि ज सबस पहि कमण क कहत ह लक त धनय ह।

कमण कहता ह लक धनय त गोगा ह लजसम मर जस अगलणत पराण ह। गोगा कहत ह लक धनय त समदर ह

Page 19: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

19

लजसम मर जस लकतन नलियाो समा जात ह। समदर कहता ह लक धनय त पलिव ह लजस पर म खथित हो

और न जान लकतन ज व खथित ह। पलिव न कहा लक पवणत धनय ह ज काञचन और रतन ो क धारण करत ह।

पवणत ो न कहा लक परजापलत धनय ह। परजापलत न कहा लक वि धनय ह। वि ो न कहा लक यजञ धनय ह ज हम

धारण करत ह। यजञ ो न कहा लक लवषण धनय ह। लवषण न कहा लक म िलकषणाओो सलहत धनय हो। लवषण दवारा

धनयता म िलकषणा क ज डना यह सोकत िता ह लक िकषता पराखपत धनयता क लिए आवशयक ह और िकषता

पराखपत क लिशा उिर लिशा नह ो, अलपत िलकषण लिशा ह। अतः उिर और िलकषण ि न ो लिशाएो लमिकर तब

धनयता क ओर ि जाएो ग । स मयाग म भ ऐसा ह ता ह लक सामानय रप स ज कायण िलकषण लिशा म लकया

जाता ह, साधना क उचचतर खथिलत म वह उिर लिशा म थिानतररत कर लिया जाता ह(आगन धर ऋखिज)।

पराण ो म धनया लपतर ो क कनया ह ज तप स स ररधज जनक क पतन बनकर स ता क पतर रप म परापत

करत ह। इतन सचना हम धनया शबद स परापत ह जात ह। यलि वनदावन क चमपकिता सि पराण ो क

धनया सि क तलय ह त चमपक शबद स हम और सचनाएो परापत ह न चालहएो । पराण ो म अङग िश व चमपा

नगर पयाणयवाच शबद ह। महाभारत वनपवण 113 तिा वालम लक रामायण म चमपा नगर क राजा ि मपाि

का आखयान ह लजनक राज म वषाण नह ो ह रह ि । वषाण करान क लिए उनह ोन तपसव ऋषयशङग क अपन

राज म आकषट लकया और लिर अपन पतर शानता का लववाह ऋषयशङग स कर लिया। यहाो शानता का पवण

रप कषानता ह। चमपक या चमपा शबद चलप धात स बना ह और चलप धात का अिण कषानत लकया गया ह। जब

वषाण नह ो ह ग त कषानत खथिलत, कलानत खथिलत, घबरान क खथिलत ह उतपनन ह ग । जब ऋषयशङग रप

लवजञानमय क श क शखकत स समपकण थिालपत ह जाएगा त कषानत खथिलत शानत खथिलत म रपानतररत ह

जाएग । शबदकलपदरम शबदक श म चमपक शबद क सोिभण म साोखयशासत क लसखदध लवशष क रप म

चमपक क उिधत लकया गया ह और कहा गया ह लक नयाय दवारा सवयो पर लकषत अिण भ तब तक शरदधा य गय

नह ो बनता ह जब तक गरलशषय बरहमचाररय ो सलहत सोवाि न ह जाए। अतः सहि ो क साि, गरलशषय व

बरहमचाररय ो क साि सोवाि ो क पराखपत चतिी लसखदध चमपक ह। डा. ितहलसोह कहा करत ि लक गर

लवजञानमय क श ह, लशषय मन मय क श ह। महाभारत आलि म उललि आता ह लक चमपा नगर क राजा

अलधरि सत न गङगा स एक मञजषा परापत क लजसम सयण का अोश कणण िा। अलधरि सत व उसक पतन

राधा न कणण क पतर रप म पािा और कणण चमपा नगर का राजा बना। इस आखयान म यह उललिन य ह

लक कणण आलितय का अोश ह जबलक उिर लिशा स म क लिशा ह। अनय आखयान म राजा वन अङग िश का

राजा िा। ऋलषय ो न वन क मार कर उसक िह का मनथन करक लवषण क अवतार पि क उतपनन लकया।

वन शबद क लिपपण म वन क वनण, पकष क सदश कहा गया ह। वन स उतपनन पि स म का, लवषण का अोश

ह। गगण सोलहता म एक किा आत ह लक अलनरदध न चमपा नगर पर लवजय परापत करन क लिए आिमण

लकया त चमपा नगर क सना न अलनरदध क सना पर शतलिय ो दवारा आिमण लकया लजसस अलनरदध क

सना जिन िग । तब अलनरदध न पजणनयासत छ डा लजसस शतलिय ो क अलगन शानत ह गई। यह किा भ

सोकत ित ह लक चमपा नगर म अलगन या आलितय रप कषाखनत लवदयमान ह। शर सकत म लजस ऋचा का उिर

लिशा म लवलनय ग लकया गया ह, वह ह –आलितयवण तपस ऽलध जाता वनसपलतसतव वकष ऽि लबलवः। तसय

ििालन तपसा निनत मायानतरा याि बाहया अिकषम ः। इस ऋचा म चनदरमा का त परतयकष रप स क ई

उललि नह ो ह, अलपत आलितय का ह। ऐसा कय ो ह, यह अनवषण य ह। लबलव िि अखथिय ो म मजजा का

परत क ह सकता ह। लबलव िि क तिना कणण क मञजषा स भ क जा सकत ह। और जसा लक ऊपर

क किन सोकत ित ह, लबलव िि लवजञानमय क श का परत क भ ह सकता ह। वनदावन क सालहतय म

चमपकिता सि क वयञजन बनान म लनपण, पातर लनमाणण म लनपण, तकण दवारा राधा क लवर लधय ो क तषट

करन वाि कहा गया ह। वलिक दलषटक ण स सोभवतः अनन त िलकषण लिशा म परापत ह ता ह और

अननादय, अनन ो म सवणशरषठ घत, िलध, मध आलि उिर लिशा म परापत ह त ह। अनन पाक का कायण वयान वाय दवारा

लकया जाता ह। स मयाग म अननपाक का कायण िलकषणालगन पर लकया जाता ह। चमपकिता सि क लपता का

Page 20: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

20

नाम चणडाकष कहा गया ह। यह चनदराकष का पवण रप ह सकता ह। पराण ो म चमपा नगर क खथिलत पवण

लिशा म भ कह गई ह(अङग िश क रप म) और पलिम म भ (गगण सोलहता म लसनध परानत म खथित चमपा

नगर का उललि आता ह लजसका राजा लवमि ह ज अपन कनयाओो क शर कषण क अलपणत कर िता ह)।

उिर व िलकषण लिशाओो क तयाग कर चमपा क खथिलत पवण व पलिम म कय ो कह गई ह, यह अनवषण य ह।

चोपकिता चतर सब जान। बहत भाोलत क लबोजन बान॥

जलहजलह लछन जस रलच पाव। तस लबोजन तरत बनाव॥

चोपकिता चमपक बरन, उपमा क ो रहय ज लह।

न िामबर लिय िालडि , तन पर रहय अलत स लह॥

करोगा छ मन को डिा, चखनदरका अलत सि िन।

सि सचररता मोडन , चनदरिता रलत ऐोन॥

राजत सि समखनदरा, कलि काछन समत।

लबलबध भाोलत लबोजन कर, नवि जगि क हत॥

Campakalata is the third of the varistha-gopis. Her complexion is the color of a blossoming

yellow campaka flower and her garments are the color of a blue-jay's. She is one day younger

than Srimati Radharani, and her age is 14 years, 2 months and 13 1/2 days. Her father is Arama,

her mother is Vatika-devi and her husband is Candaksa. Her qualities are much like those of

Visakha. In gaura-lila she appears as Sri Sivananda.

Campakalata veils her activities in great secrecy. She is expert at the art of logical persuasion,

and she is a skilled diplomat who knows how to thwart Srimati Radharani's rivals.

Campakalata is expert at collecting fruits, flowers, and roots from the forest. Of all the gopis who

are appointed as protectoresses of the trees, creepers, and bushes of Vrndavana, the leader is

Campakalata-devi. She is an expert cook who knows all the literatures describing the six flavors

of gourmet cooking. She is so expert at making various kinds of candy that she has become

famous by the name Mistahasta (sweet hands). Using only the skill of her hands, she can

artistically fashion things from clay.

On the southern petal of Madana-sukhada Kunja lies Kamalata Kunja, the home of Sri Krsna’s

beloved Sri Campakalata. This extremely blissful kunja is the color of molten gold.

Campakalata, who loves Krsna very much, personifies the stage of a nayika known as vasaka-

sajja. Her nature is vama-madhya, and her seva is to offer jewelled necklaces and to fan with a

camara. The chief gopis in Campakalata’s yutha are Kurangaksi, Suracita, Mandali,

Manimandana, Candika, Candralatika, Kandukaksi and Sumandira.

Page 21: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

21

सिव

ईशान क ण म पराण ो म हररलपरया ग प क खथिलत का उललि ह। हरर खथिलत वह ह त ह जहाो सार पाप

नषट ह चक ह त ह, वतर मर चका ह ता ह। लपरय खथिलत क न स ह त ह, इस लवषय म बराहमण गरनथ ो म उललि

आत ह लक चकष, पराण, शर तर, नालसका आलि िह क परतयक अोग स लपरय बनना ह। अिवणवि म इस लिशा म

लवियत पोिि क खथिलत का उललि ह लजसका लवजञान सतनलयतन ह और शरत व लवशरत पररषकनद ह। वनदावन

म हररलपरया ग प क तलय सिव ग प ह सकत ह लजसक लवषय म परतयकष रप स उललि लकया गया ह लक

वह हररलपरया ह। सिव ग प क सवा राधा क कश लवनयास करना, आोि ो म अोजन िगाना, गातर मिणन

करना आलि ह। सिव शक ो क परलशकषण ित ह, शकन लवदया म लनपण ह, बागवान म लनपण ह। शक कया

ह ता ह, यह सामरहसय पलनषि म एक किा क माधयम स सपषट लकया गया ह। एक विपाठ बराहमण मतय क

Page 22: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

22

पिात शक बनता ह और एक कायथि मतय क पिात भरमर बनता ह। भरमर/अलि क रलच कवि रस गरहण

करन म ह त ह। शक क त रस और लवरस, ि न ो क समान रप स अपनाना ह। सि क आलि भ

कहत ह। अतः सखियाो भरमर ो का रप ह। यह कहा जा सकता ह लक सिव क खथिलत म मनषय यह लनणणय

कर सकता ह लक वि ो का वासतलवक अिण कया ह। शकन कभ -कभ उतपनन ह त ह। इस लवषय म अिवणवि

का यह किन उपय ग ह सकता ह लक यह लिशा लवियत क ह। यलि लवियत क खथिलत ह ग त शकन

शकन नह ो रह जाएो ग, वह ज वन क धारा बन जाएो ग। शर सकत म ईशान क ण म लनमनलिखित ऋचा का

लवलनय ग ह – मनसः काममाकलतो वाचः सतयमश मलह। पशनाो रपमननसय मलय शर ः शरयताो यशः॥ इस ऋचा

म वाचः सतयो का उललि शकन लवदया क ओर इोलगत करता परत त ह ता ह। साधना म यश स पवण क खथिलत

यकष कह जा सकत ह, जहाो सोशय लवदयमान रहता ह। महाभारत म यकष-यलधलषठर सोवाि परलसदध ह। आकलत

का अिण डा. ितहलसोह न अिवणवि 19.4.2 क लिए इस परकार िगाया ह लक आ-समनतात, चार ो तरि

स, क-शबद, अलभवयखकत करना। चार ो तरि लजसका शबद एक साि ह न िग, बाढ क तरह, वह आकलत

ह। हमार अनदर त न परकार क शखकतयाो ह – भावना शखकत, जञान शखकत और लिया शखकत। लिया शखकत क

कारण लिया कवि एक-ि अङग ो म ह ह सकत ह, सारा शर र एकिम लियाश ि नह ो ह सकता। इस

तरह जञान भ थिालनक ह। िलकन भावना शखकत पर वयखकति क परभालवत करत ह, बाढ क तरह। इसका

मि ह काम – वह काम नह ो ज वासना म परकि ह ता ह, अलपत काम का िसरा रप – धमण क अलवरदध

काम। लचिवलिय ो का माता क समान पािन करन वाि , उनह शदध करन वाि आकलत ह। हरक नर नार

क लिए यह सिभ नह ो ह। यह सिभ तभ ह ग जब हम बाहय वलिय ो स, काम-ि ध-ि भ आलि स ऊपर

उठ । यह परमातमा क आहलालिन शखकत ह, राधा। आकलत क ग ता म बखदध कहा गया ह, ऐस बखदध जहाो

सार सोशय लमि जात ह।

सि सिव अलतलह सि न । काह अोग नालहन औोन ॥

सठ सरप म हन मन भाव। रलच स ो सब लसोगार बनाव॥

कच कवर गित ह न क । अलत परव न सवा कर ज क ॥

अोजन रि बनाइ सोवार। र लझ मकर ि लपरया लनहार॥

सार सवा पढावत न क। सलनसलन म ि ह त सब ह क॥

अलत परव न सब अङग म, जानत रस क र लत।

पलहर तन सार सह , बढवत पि पि पर लत॥

कावर र मन हरा, चार कवरर अलभराम।

मोज कश अर कलसका, हार ह रा छलब धाम॥

महा ह रा अलत ह बन , ह रा को ठ अनप।

उपमा कछ नलह कलह सकत, ऐस सब सरप॥

कह ग तम तोतर म, इन सखियन क नाम।

परिम बोलि इनक चरन, सवह सयामा सयाम॥ - शर धरविास-कत “बयाि स ि िा”, पषठ 151

Sudevi

Sudevi is the eighth of the varistha gopis. She is sweet and charming by nature. She is the sister

of Rangadevi. Her husband is Vakreksana, the younger brother of Bhairava. Her marriage with

Vakreksana was arranged by his younger brother. Her form and other qualities are so similar to

those of her sister Rangadevi that they are often mistaken for one another. Like Rangadevi, she

has a complexion the color of a lotus stamen and wears a dress the color of a red jaba flower.

Being slightly older than her sister, her age is 14 years, 2 months and 4 days. On the northwest

petal of Madanananda Kunja lies the beautiful emerald-colored Vasanta-sukhada Kunja, the

residence of Sri Sudevi. In gaura-lila she appeared as Sri Vasudeva Ghosa.

Page 23: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

23

She is very loving toward Sri Hari, and possesses the bhava known as kalahantarita. Her seva is

to bring water. Sudevi always remains at the side of her dear friend Srimati Radharani, and

arranges Radharani's hair, decorates Her eyes with mascara, and massages Her body.

She is expert in training male and female parrots and she is also expert in the pastimes of

roosters. She is an expert sailor and she is fully aware of the auspicious and inauspicious omens

described in the Sakuna-sastra. She is expert at massaging the body with scented oils, she knows

how to start fires and keep them burning and she knows which flowers blossom with the rising of

the moon.

The principal gopis in Sri Sudevi’s yutha are Kaveri, Carukavari, Sukesi, Manjukesika, Harahira,

Harakanthi, Haravalli and Manohara. Kaveri-devi and the other friends of Sudevi are expert at

constructing leaf-spitoons, playing music on bells and decorating couches in various ways.

Sudevi's friends are also entrusted with the decoration of the Divine Couple's sitting place.

Sudevi's friends act as clever spies, disguising themselves in various ways and moving among

Radharani's rivals (Candravali and her friends) to discover their secrets. Sudevi's friends are the

deities of Vrndavana forest and they are charged with the protection of the forest birds and bees.

इस लिपपण म परयकत सखिय ो क लचतर http://icskondesiretree.buzznet.com/photos/default/list/

वबसाईि स तिा अोगरज का लववरण http://www.vrindavan.de/varistha.htm

वबसाईि स साभार गरहण लकए गए ह।

अनय चार मखय लिशाओो म िलिता, चमपकिता, लवशािा व लचतरा क नाम परकि ह त ह। यह िम

िलिता, लवशािा, चमपकिता और लचतरा भ ह। अतः इनक लिशा लवनयास ो म भरम क खथिलत ह। शर धरविास-

कत “बयाि स ि िा” पसतक( परकाशक : सोत तिस िास, वनदावन, पषठ 148, िस मकतावि ि िा) म

िलिता रलच उतपनन करत ह, रच-रच कर पान खििात ह, लवशािा वसत पहनात ह, चमपकिता वयञजन

पर सत ह, लचतरा पय परसतत करत ह, तङगलवदया गानलवदया म लनपण ह, इनिििा क कलवदया म लनपण

ह, रोगिव जपापषप सदश वसत धारण करत ह और सिव िालडम पषप सदश वसत धारण करत ह ।

परिम ििन : 9-12-2012ई.(मागणश षण कषण एकािश , लविम सोवत 2069)

सोिभण

*(कषणसय) पाशव रालधका चलत। - - - -पलिम सममि िलिता। वायवय शयामिा। उिरखिन शर मत । ऐशानयाो

हररलपरया। पवणखिन लवशािा। अगनयाो शरदधा। यामयाो पदमा। नऋण तया भदरा। - राध पलनषि(तिन य : सकनद

पराण 7.4.12.25, पदम पराण 5.70.5) 1

*शरदधा पिि लमतर मागध लवजञानो वास ऽहरषण षो रातर कशा हररत परवतौ क लमलिमणलणः। भतो च भलवषयचच

पररषकनद मन लवपिम। मातररशवा च पवमानि लवपिवाह वातः सारि रषमा परत िः। क लतणि यशि

परःसरावनो क लतणगण चछतया यश गचछलत य एवो वि॥(आगनय लिशा?) - श .अ. 15.2.8

*उषाः पो िि मनतर मागध लवजञानो वास ऽहरषण षो रातर कशा हररत परवतौ क लमलिमणलणः। अमावासया च

प णणमास च पररषकनद मन लवपिम। मातररशवा च पवमानि लवपिवाह वातः सारि रषमा परत िः। क लतणि

यशि परःसरावनो क लतणगण चछतया यश गचछलत य एवो वि॥ (नऋण त लिशा?) - श .अ. 15.2.16

*इरा पो िि हस मागध लवजञानो वास ऽहरषण षो रातर कशा हररत परवतौ क लमलिमणलणः। अहि रातर च

पररषकनद मन लवपिम। मातररशवा च पवमानि लवपिवाह वातः सारि रषमा परत िः। क लतणि यशि

परःसरावनो क लतणगण चछतया यश गचछलत य एवो वि॥(वायवय लिशा?) - श .अ. 15.2.24

*स उि लतषठत स उि च ो लिशमन वयचित। तो शयतो च न धसो च सपतषणयि स मि राजानवयचिन।– श .अ.

15.2.26

Page 24: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

24

*लवियत पोिि सतनलयतनमाण गध लवजञानो वास ऽहरषण षो रातर कशा हररत परवतौ क लमलिमणलणः। शरतो च

लवशरतो च पररषकनद मन लवपिम। मातररशवा च पवमानि लवपिवाह वातः सारि रषमा परत िः। क लतणि

यशि परःसरावनो क लतणगण चछतया यश गचछलत य एवो वि॥ (ईशान लिशा?) – श .अ. 15.2.32

*नयायन सवयो पर लकषतमपयिा तावनन शरददधत याविगरलशषयसबरहमचाररलभः सह न सोवादयत। अतः सहिाो

गरलशषयसबरहमचाररणाो सोवािकानाो पराखपतः सहतपराखपतः सा लसखदधितिी चमपकमचयत। - शबदकलपदरम म

उखललखित साोखय शासत

http://puranastudy.angelfire.com/pur_index2/ashta_sakhi1.htm

शर सकत

लिपपण : अलगन पराण ६२ म िकषम परलतषठा लवलध क अनतगणत शर सकत का लवलनय ग लनमनलिखित परकार स लिया

गया ह –

लहरणयवणाा हररण ो इलत ऋचा दवारा शर क नतर ो का उनम िन

ताो म आवह इलत दवारा मधरतरय परिान

अशवपवाा इलत दवारा पवण म कमभ दवारा अलभषक

काोस ऽखि इलत दवारा यामय लिशा म अलभषक

चनदराो परभासाो इलत दवारा पलिम लिशा म अलभषक

आलितयवण इलत दवारा उिर लिशा म अलभषक

उपत माो इलत दवारा आगनय लिशा म अलभषक

कषखतपपासामिा इलत दवारा नऋण त लिशा म अलभषक

गनधदवाराो इलत दवारा वायवय लिशा म अलभषक

मनसः काममाकलतो इलत दवारा ईशान लिशा म अलभषक

किणमन परजा इलत दवारा लशर? का अलभषक

आपः सरवनत इलत दवारा ८१ घि ो दवारा सनान

आदराा पषकररण ो इलत दवारा गनध दवारा उपचार

ताम म आवह इलत दवारा पषप ो दवारा उपचार

य आननदो इलत दवारा अखिि उपचार

Page 25: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

25

प रालणक और वलिक सालहतय म लिशाओो स कया तातपयण ह, इसका सरितम लववरण डा. ितहलसोह न इस

परकार लिया ह लक पवण लिशा सयण क उिय क , जञान पराखपत क लिशा ह, िलकषण लिशा िकषता पराखपत क , पलिम

लिशा सतयानत लववक, शमशान या अपन पाप ो क जिा डािन क और उिर लिशा आननद पराखपत क लिशा

ह। िलकन लिशाओो क वासतलवक तातपयण क और लवसतार स समझन क आवशयकता ह। लशव पराण

७.२.३०.६६ म लवलभनन लिशाओो म असत ो का लवलनय ग लिया गया ह ज न च रिा लचतर म लििाया गया ह।

पवण लिशा म वजर स तातपयण, डा. ितहलसोह क शबद ो म, वजर जस दढ सोकलप स ह। परश स तातपयण सपशण

मलण स, काोि चभन वाि र माोच स ह सकता ह। सायक या त र स तातपयण त रव अभ पसा स, अपन िकषय क

साधन स ह सकता ह। ज सोकलप लकया जाए, वह कलप वकष दवारा परा ह । नऋण त लिशा म िडग स तातपयण

अपन पाप ो क जञान रप िडग दवारा कािन स ह सकता ह। पलिम लिशा म पाश स तातपयण अपन पाप ो क

बाोधन स ह। वायवय लिशा म अोकश स तातपयण ? उिर लिशा म धनष स तातपयण अपन िकषय क पराखपत स ह

सकता ह। ईशान लिशा म लतरशि स तातपयण?

Page 26: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

26

शर सकत पर परसतत वतणमान लिपपण म लजन लचतर ो का उपय ग लकया गया ह, वह पर िसर एस.क. रामचनदर

राव दवारा लिखित पसतक SHRI SUKTA(कलपतर ररसचण एकडम , बोगि र, १९८५) स साभार गरहण लकए

गए ह। और इस पसतक क ििक न बताया ह लक यह लचतर १०० स अलधक वषण पवण परकालशत एक तिग

पसतक स लिए गए ह।

समलषट सकत क िवता व यनतर :

परिम ऋचा :

ऋलष : जातविस, छनद : अनषिप, िवता : शर महािकषम , ब ज : लहरणयवणाणम, शखकत : सवाहा, क िक :

शर म, ह ो, कल ो

लहरणयवणाा हररण ो सवणणरजतसरजाम। चनदराो लहरणमय ो िकषम ो जातवि ममा वह॥१।

सवरलिलप भि :

शरहरणयवणाण ा हररणी सावणदरजातसरजाम । चानदा शरहारणमयी लाकषी जातवदो मा आवह ॥

पाठानतर :

लहरणयवणाा हररण ो लहरणयरजताखतमकाम। चानदर ो सवणणमय ो िकषम ो नारायण म आवह॥ - ि.ना.सो. १.११७.४०

लहरणयवणाा हररण ो सवणणरजतः सरजाम। चनदराो लहरणमय ो िकषम ो लवषण रनपगालमन म॥ - पदम.प.

उपर कत पाठानतर ो म स कछ म जातविा अलगन का थिान नारायण न ि लिया ह। यह लकतना नयाय लचत

ह, इसका सपषट करण जातविा शबद क समझन क पिात लकया जा सकता ह। शर सकत क पहि

ऋचा “लहरणयवणाा हररण ो इतयालि का लवलनय ग महािकषम क नतर उनम िन क लिए कहा गया ह। य ग क

भाषा म नतर नम िन क समालध स वयतथान क खथिलत कहा जा सकता ह। समालध स वयतथान पर जगत का

ब ध ह ता ह। सरसवत रहसय पलनषि म इस परलिया क अखसत, भालत, लपरय, नाम और रप इन पाोच

अवथिाओो दवारा िशाणया गया ह लजनम स पहि त न अनतजणगत स समबखनधत ह और अखनतम ि बाहय जगत

स। ऋगवि ३.२०.३ व ८.११.५ म जातविा क साि नाम का उललि ह जबलक ऋगवि ४.४३.१० म रप का।

अनमान िगाया जा सकता ह लक जातविा भ समालध स वयतथान पर जगत क परत लत ह न क खथिलत ह।

लवषण क लवषय म कहा जाता ह लक वह स ए रहत ह। जब वह जागत ह त यजञ आरमभ ह जाता ह, अिवा

लक लवषण ह यजञ ह। वयवहार म यह भ कहा जा सकता ह लक सोसार म ज भ वसत हमार आोि ो क सामन

परकि ह त ह, हमार चतना लजस परकार स उस वसत का सोजञान ित ह, वह जातविा ह। सामन परकि हई

वसत स हम घणा भ उतपनन ह सकत ह, शतरता भ ह सकत ह, िलकन अगि ऋचा माोग करत ह लक

जातविा ऐस ह न चालहए लक हम मध ह मध क अनभलत ह । पहि ऋचा क माोग ह लक लहरणय स पहि

ज खथिलतयाो ह, वह हमार जातविा चतना क सामन परकि ह न ह ो। लहरणय स पहि खथिलतयाो

सलिि, िन, बिबि, मिा, शकण रा, अयः आलि ह(शतपि बराहमण)

परिम ऋचा क लचतर म ि न ो पाशवो म ि -ि हाि महािकषम का अलभषक करत लििाए गए ह। हालिय ो

क परायः शोि और पदम लनलधय ो का परत क माना गया ह। चार हाि क न स लनलधय ो क परत क ह, यह अभ

सपषट नह ो ह।

परिम ऋचा क यनतर म सबस अनदर खथित ग ि क बाहर एक अध मि लतरभज बना हआ ह। डा.

ितहलसोह क अनसार यह समन चतना का परत क ह। एक उनमन चतना ह, एक समन । उनमन अिाणत

समालध क ओर उनमि। समन अिाणत समालध स वयतथान क खथिलत। इस अध मि लतरभज क बाहर ज

लतरभजाकार आकलतयाो बन हई ह, उनम लतयणक गलत और ऊरधणमि गलत का ब ध ह ता परत त ह ता ह।

ऋलष : जातविस, छनद : अनषिप, िवता : शर राजिकषम

ताो म आ वह जातवि िकषम मनपगालमन म। यसयाो लहरणयो लवनदयो गामशवो परषानहम॥२॥

Page 27: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

27

ता मा आवहा जातवदो लाकषीमनपगा ाशरमनी ीम । यसया ा शरहरणय शरवानदया गामशा परिानाहम ॥

धनाो धानयाो ग सवरपाो वाहन ो परषाखतमकाम। नारायण म आवह िकषम मनपगालमन म॥ - ि.ना.सो.

१.११७.४१

उपर कत ऋचा क िवता शर राजिकषम कह गई ह। पराण ो म उललि आता ह लक कषलतरय क िकषम चञचिा

ह त ह जबलक वशय क खथिरा। ऋचा म जातविा स परािणना क गई ह लक वह ऐस िकषम क िाए ज एक

बार आकर वापस न जाए। जब भ हमार लजहवा सवालिषट पिािण का सपशण करत ह, वह िकषम का आना ह

त ह। िलकन कछ ह कषण ो म वह आननद लतर लहत ह जाता ह। आचायण रजन श का कहना ह लक एक बार

लिवयता का ज अनभव हम ह जाए, उसक सरलकषत करन का परयतन लकया जाना चालहए। हमार अनदर लचलत

अिवा वयवथिा लजतन परबि ह ग , अनभव क उतना ह अलधक हम सहज सक ग। अलगन पराण ६२ म

उपर कत ऋचा का लवलनय ग महािकषम हत मधर-तरय परसतत करन क लिए ह। यह मधरतरय क न स

ह, शबदकलपदरप शबदक श म मधरतरय क रप म लसता-मालकषकमध-सलपण का उललि ह। एक परलसदध लतरमध

सकत(ऋगवि १.९०.६-८) ह ज लनमनलिखित ह:

मध वाता ऋतायत मध कषरखनत लसनधवः। मारध नणः सनि षध ः॥

मध नकतमत षस मधमत पालिण वो रजः। मध दय र सत नः लपता॥

मधमानन वनसपलतमणधमा असत सयणः। मारध गाणव भवनत नः॥

भ लतक जगत म यह अनिररत परशन ह लक कय ो कछ ओषलधयाो कि ह त ह, कछ मधर। और आधलनक

लवजञान क अनसार वह क न सा घिक ह ज मधरता और किता क लिए उिरिाय ह।

इस ऋचा क लचतर म महािकषम क अशवारढ खथिलत म परिलशणत लकया गया ह। अशव खथिलत क शवः, भलवषय

क कि स रलहत क रप म, काि स पर क खथिलत क रप म समझा जा सकता ह। मध लवदया का उपिश

िध लच अशवमि दवारा ह ित ह। बहिारणयक उपलनषि म मध लवदया का सपषट करण इस परकार लकया गया ह

लक “रपो रपो परलतरप बभव”, अिाणत जगत म परतयक भत म उस परमातमा क छाया लििाई पड, यह

मध लवदया ह। इसक लवपर त ग खथिलत अकष क , ियत क खथिलत ह। ऋचा म उललि क गई त सर खथिलत

परष क ह। ह सकता ह लक परष स तातपयण प रषि स ह । सोग त म छठ सवर का नाम धवत ह ज अशव

का सवर ह। सातव सवर का नाम लनषाि ह ज हसत का सवर ह। धवत का पर कष रप िवत ह सकता

ह – जब हमार लियाएो िव दवारा समपनन ह त ह, परषािण दवारा नह ो। इसस अगि खथिलत लनषाि सवर क ह

सकत ह जहाो हमार लियाएो परषािण दवारा समपनन ह न चालहएो । िकषम नारायण सोलहता म िकषम का

लवभाजन चार वणो म लकया गया ह – बराहमण क िकषम गजरपा ह, कषलतरय क अशवरपा, वशय क

सयनदनारढा/रिारढा और शदर क लमलशरत। पर प रालणक सालहतय म गजमि िकषम का सवरप कया

ह, इसका क ई सपषट करण नह ो लिया गया ह। कहा गया ह लक गजमि िकषम ह चार भजाओो वाि

महािकषम बन । ऐसा अनमान िगाया जा सकता ह लक परषािण स समपनन िकषम गज सवरपा ह।

उपर कत लवलनय ग पराण ो म माधव और िकषम क किह क किा क हि करन म सहायक ह

सकता ह। िकषम नारायण सोलहता क अनसार माधव न लवषण क वामपाि सोवाहन का कायण सोभािा और

िकषम न िकष पाि का। िलकन बाि म िकषम न वाम पाि सोवाहन का काम िना चाहा त किह ह गई और

िकषम शाप स गजमि बन गई और माधव अशवमि ।

Page 28: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

28

ऋलष : आननद, छनद : अनषिप, िवता :

शर िकषम , ब ज : उ, शखकत : त, क िक : शर

अशवपवाा रिमधयाो हखसतनािपरम लिन म। लशरयो िव मपहवय शर माण िव जषताम॥३॥

अाशाप ावाण रथमाधया हाखिनाद-िाबोशरधनीम । शरिय दावीमपहवया िीमाद दावीजदिताम ॥

Page 29: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

29

उपर कत ऋचा का लवलनय ग पवण लिशा म महािकषम क अलभषक हत लकया गया ह। ऋचा म महािकषम क

अशवपवाण कहा जा रहा ह। इसका अिण ह गा लक यह काि स मकत खथिलत नह ो ह, अलपत भत, वतणमान और

भलवषय म बोध हई खथिलत ह। रिमधया स लनषकषण लनकािा जा सकता ह लक यह वशय क खथिरा िकषम का

सोकत ह। हखसतनाि परम लिन स लनषकषण लनकिता ह लक यह बराहमण क गजमि िकषम का सोकतक ह। पवण

लिशा जञान पराखपत क , सयोिय क , बराहमणि क लिशा ह। बराहमण क िकषम क गजमि कहा गया ह।

िलकन पर प रालणक सालहतय म कह ो भ सपषट नह ो लकया गया ह लक िकषम क गज मि का कया रहसय ह।

सोग त म लनषाि सवर क हखसत नाि कहा जाता ह, जबलक धवत/िवत सवर क अशव का सवर कहा जाता ह।

यह परषािण स समबखनधत ह सकता ह। िव परषािण क आग कष ण ह जाता ह।

स मयाग म ह ता नामक ऋखिज सयोिय स पवण जब लचलडय ो का चहचहाना भ आरमभ न हआ ह , तब

सकषम अनतः वाक क शरवण का परयतन करता ह। वतणमान ऋचा म हखसतनाि का उललि ह। ि न ो खथिलतय ो क

तिना अपलकषत ह।

पराण ो म सावणलतरक रप स एक किा आत ह लक ऐरावत पर आरढ इनदर न िवाणसा- परिि मािा

का लतरसकार कर उस ऐरावत पर डाि लिया लजसक कारण शर न इनदर का तयाग कर लिया और ऐरावत का

लसर काि कर गणश स ज डा गया।

इस ऋचा क यनतर म एक लतरभज ऊरधणमि ह त िसरा अध मि । डा. ितहलसोह न इसक वयाखया

उनमन व समन खथिलतय ो दवारा क ह, अिाणत समालध क ओर उनमि खथिलत और समालध स वयतथान क

खथिलत।

Page 30: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

30

ऋलष : आननद, छनद : बहत , िवता : शर िकषम , ब ज : काो, शखकत : ह ो, क िक : ह ो

काोसयखि ताो लहरणयपरावारामादराा जविनत ो तपताो तपण यनत म। पदमखथिताो पदमवणाा तालमह प हवय लशरयम॥४॥

का ा सो ीखमाता शरहरणयिा ाकारामा ादराण जवलती त ापा तापदयतीम । पादमा खसथाता पादमवणाण ा ताशरमाहोपहवया शरियम ॥

उपर कत ऋचा का लवलनय ग िलकषण लिशा म महािकषम क अलभषक हत लकया गया ह। िलकषण लिशा िकषता

पराखपत क लिशा ह। लवलभनन सतर ो पर िकषता पराखपत क लवलभनन परकार ह। िलकषण लिशा म खथित िङका म रावण

िश मि ो दवारा िकषता परापत करता ह। इस ऋगवि क िकषता कहा जा सकता ह। इसस आग सामवि क

िकषता आत ह ज हजार सोखया दवारा परापत ह सकत ह। अलधकतम िकषता तभ परापत ह सकत ह जब

लकस कायण क समपनन करन म शरम न करना पड। इधर क ई कामना हई लक कलप वकष दवारा उसक पलतण

Page 31: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

31

हई। उपर कत ऋचा म काो शबद स यह सोकत लमिता ह लक यह कामना पलतण हत ह। भागवत पराण 5.16 म

उललि आता ह लक कतमाि वषण म िकषम काम रप लवषण क अचणना करत ह। लशव पराण म िलकषण

लिशा म सायक/त र का लवलनय ग लकया गया ह। यह त र िकषय क पराखपत क अभ पसा ह सकता ह।

ऋलष : आननद, छनद : लतरषिप, िवता : सवशवयणपरिालयन िकषम , ब ज : चो, शखकत : नो, क िक : शर ो

चनदराो परभासाो यशसा जविनत ो लशरयो ि क िवजषटामिाराम। ताो पदमनलमो शरणो पर पदय अिकषम म नशयताो िाो

वण लम॥५॥

चानदा िभा ासा याशसा ा जवलती ा शरिय लो ाक दावजषटामदा ाराम । ता पाशरदमनीमी ा शरणमाह िपदय

ऽलाकषीमम नशयता ा ता वण ॥

उपर कत ऋचा का लवलनय ग पलिम लिशा म महािकषम क अलभषक हत लकया गया ह। इस ऋचा क यनतर औ

र अगि ऋचा क यनतर म क ई अनतर परत त नह ो ह ता।यह पता नह ो ह लक यह परकाशक क तरलि ह या वा

सतलवकता। पलिम लिशा वरण क , सतयानत लववक क , अपन पाप ो क जिा िन, शमशान बना िन क

लिशा ह। इस लिशा का असत पाश कहा गया ह। पाश वह थििता, गरिाकषणण शखकत ह सकत ह लजसन

सब ज व ो क इस पलिव स बाोध रिा ह। इस पाश का अलतिमण कस लकया जा सकता ह, इस लवषय म

वलिक सालहतय म एक वयः क कलपना क गई ह लजसका श षण गायतर लजतना हलका ह। इस वयः/पकष क

अोग अनय परकार स बन ह। ऋचा म परभास शबद परकि हआ ह। भ लतक रप म परभास त िण क खथिलत भ

पलिम लिशा म ह ह।

ऋलष : आननद, छनद : लतरषिप, िवता : शर महािकषम , ब ज : अो, शखकत : शर ो, क िक : ह ो

*आलितयवण तपस ऽलध जात वनसपलतसतव वकष ऽि लबलवः। तसय ि िालन तपसा निनत मायानतरा याि

बाहया अिकषम ः॥६॥

Page 32: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

32

आाशरदातयवणम तपासोऽशरधजा ातो वनासपशरतािव व ाकषो

ऽथ शरबालवः । तसया फलाशरना तपासा नदनत मा ायानतरा ायाशच बा ाहया अलाकषीः ॥

उपर कत ऋचा का लवलनय ग अलगन पराण 62 म उिर लिशा म महािकषम क अलभषक हत लकया गया ह।

उिर लिशा का सवाम कबर ह लजसका वाहन नरवाहन कहा गया ह। लचतर म गरड क नर क आकलत म

लििाया गया ह लजसक ऊपर महािकषम लवराजमान ह। ऋचा म महािकषम क वनसपलत क रप म लबलव

वकष का उललि ह। लबलव वकष क परकलत क शतपि बराहमण 13.4.4.8, य गवालसषठ 6.1.45 इतयालि क किन

स समझा जा सकता ह जहाो लिवय लबलव वकष क लवशषताओो का किन ह। ि लकक लबलव िि क अनदर

ब ज ह त ह तिा बाहर कडा लछिका ह ता ह। लिवय लबलव िि इन ि न ो स रलहत ह ता ह। वह छह रस ो स

यकत ह ता ह। सामानय वकष म सकनध ह ता ह ता ह लजसस शािाएो लनकित ह। िलकन लिवय लबलव वकष म

क ई सकनध नह ो ह ता, मि स ह शािाएो लनकित ह। उसक मजजा या गिा ज व क मजजा का परत क ह।

मजजा दवारा ज व क सार शर र का लनयनतरण ह ता ह। य गवालसषठ म कहा गया ह लक आतमा लबलव िि का

रप ह। ऋचा म कहा गया ह लक तप दवारा लबलव िि अनतः और बाहय अिकषम का अपन िन कर सकत

ह, उस काोिा चभा सकत ह, िर भगा सकत ह। थिि रप म यह उललि परष क मजजा क सामथयण स

समबखनधत ह सकता ह। लबलव िि का उपय ग करन क लिए तप क आवशयकता बताई गई ह लजसस

मजजा बाहर लनकि कर शर र क अवयवथिाओो क िर कर सक।

Page 33: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

33

ऋलष : कबर, छनद : अनषिप, िवता : मलणमालिन महािकषम , ब ज : उो , शर ो, शखकत : मो, बो, क िक : शर ो

उपत माो िवसिः क लतण ि मलणना सह। पराि भणत ऽखि राषटर ऽखिन क लता वखदधो ििात म॥७॥

उपता मा दावसाखः की ाशरतदशचा मशरणना साह । िा ादाभदातोऽखम राषटाऽखमन की ाशरतदमखदध दादात म ॥

उपर कत ऋचा का लवलनय ग आगनय लिशा म महािकषम क अलभषक क लिए ह। िकषम नारायण सोलहता 3.25

.4 म त िवसि, क लतण, लचकल त, किणम व जातविा क िव क 5 लवपर भकत ो का रप ि लिया गया ह ज ि

Page 34: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

34

व स कछ भ परापत करन म समिण ह। एक बार परसलवषण/परसरलवषण असर न इन पाोच भकत ो स महािकषम क

भायाणरप म माोग लिया और िव क भकत ो क मयाणिा क रकषा क लिए इस असर क भायाण बनना पडा।

िलकन असर िकषम का सपशण नह ो कर सका कय ोलक िकषम न बरहमचयण रवत धारण लकया हआ िा। असर न

िकषम क चञचिा बनान क लिए काम, रलत, वसनत आलि क सहायता ि िलकन तब असर समत वह सब

भि ह गए। यह उललिन य ह लक आगनय लिशा का असत परश ह। परश शबद क लिपपण म परश क

वयाखया सपशण मलण क रप म, पारस पतथर क रप म क गई ह। िलकन साधक क पास बहत स सपशण

मलणयाो रहत ह। साधना म ज कछ भ र माोच उतपनन करता ह, वह सब सपशण मलणयाो ह। मतयण सतर क सपशण

मलण वह ह ज परसलवषण असर िकषम क भायाण बनाकर परापत करना चाहता ह।

इस ऋचा क िवता मलणमालिन िकषम ह। डा. ितहलसोह मलण क वयाखया मन क उचच खथिलत क

रप म लकया करत ि। अनमान ह लक इस ऋचा म िवसिपराण ो का परत क ह, वस ह जस मरत पराण इनदर

क सिा बन सकत ह। वस ह हमार सार पराण िव ो क सिा बन सकत ह। क लतण स तातपयण वि ो क वाक स

ह सकताह। तब यह ऋचा पराण, मन और वाक क तरय बन जात ह।

इस ऋचा क यनतर म 5x5=25 क षठक ह।

Page 35: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

35

ऋलष : महालवषण, छनद : अनषिप, िवता : सवशवयणकाररण महािकषम , ब ज : कषो, शखकत : हो, क िक : शर ो

कषखतपपासामिा जषठामिकषम ो नाशयामयहम। अभलतमसमखदधो च सवाा लनणणि म गहात॥८॥

कषखपपा ासामला जाषठामलाकषी नाशया ामयहम । अभशरतामसमखदधा च सवाण ा शरनणदद मा गहात ॥

इस ऋचा म कषधा, लपपासा आलि क जषठा अिकषम कहा गया ह। इस ऋचा का लवलनय ग नऋण त लिशा म

महािकषम क अलभषक क लिए ह। इस ऋचा क लचतर म ि िलवयाो महािकषम क चोवर डिा रह ह।

Page 36: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

36

स त पलनषि 37/8 म चोवर/चामर डिान वाि िलवय ो क हालिन व माया कहा गया ह। शर मत राधा क

अनसार सामानय ज व आहलाि व माया क वश म रहता ह िलकन महािकषम क खथिलत म यह िलवयाो

महािकषम क सवा कर रह ह, उसक वश म ह। नऋण त लिशा म िडग असत का लवलनय ग ह।

ऋचा 9 :

ऋलष : महालवषण, छनद : अनषिप, िवता : शर महािकषम , ब ज : गो, शखकत : ह ो, क िक : शर ो

गनधदवाराो िराधषाा लनतयपषटाो कर लषण म। ई शवर ो सवणभतानाो तालमह प हवय लशरयम॥९॥

गानधादवा ारा दराधािाण ा शरनातयपषटा करी ाशरिण म । ईाशर सवदभता ाना ा ताशरमाहोपहवया शरियम ॥ - त.आ. 10.1.10

सगनधाढयामनाधषयाो लनतयपषटाो कर लषण म। सवशवर ो महािकषम ो नारायण म आवह॥ - ि.ना.सो. 1.117.43

ऋगवि पररलशषट म उपिबध ऋचा तिा तलिर य आरणयक म उपिबध यज क पाठ ो म ईशवर ो शबद म उिाि-

अनिाि का अनतर दरषटवय ह। यह अनतर परमािवश ह या सकारण ह,

यह अनवषण य ह। उपर कत उपर कत ऋचा का लवलनय ग अलगनपराण 62 म वायवय लिशा म

महािकषम क अलभषक क लिए लकया गया ह। कर लषण क वाय क पतन कहा गया ह(सोिभण?)।

सामानय मनषय क शर र स िगणनध उतपनन ह त ह। पराण ो म ऋषभ आलि क लवषठा आलि क भ सगखनधत बन

जान का उललि ह। गनध क पलिव क तनमातरा कहा जाता ह। अिाणत पलिव क िनन स गनध उतपनन ह न

चालहए।

महािकषम क कर लषण म लवशषण क सोिभण म,

कमणकाणड म आि कर ष का गरहण लकया जाता ह। आि चह क कहत ह और कहा गया ह लक आि

पलिव क रस क जानता ह, अतः वह मिा क गरहण कर उस बाहर लनकािता रहता ह, उसका लवकषप

करता रहता ह(शतपि बराहमण 2. )। कर ष शबद क लनरखकत क – लवकषप + ईषन दवारा क जात ह। इतना

Page 37: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

37

ह नह ो, ऋचा क अगि पाि म महािकषम क सार भत ो क ईशवर कहा गया ह, कवि पलिव महाभत क ह

नह ो। वह सब भत ो स उनक तनमातराओो क लवकलसत कर सकत ह – आकाश स शबद क , वाय स सपशण

क , अलगन स रप क , जि स रस क और पलिव स गनध क ।

लशव पराण म वायवय लिशा म अोकश असत का लवलनय ग ह। य गवालसषठ १.२१.१० म मनषय रप

हाि क अजञान रप लनदरा स जगान क लिए शम रप अङकश क परय ग का लनिश ह। ऋगवि क

ऋचाओो स सोकत लमिता ह लक अोकश ि घण का आको चन कर सकता ह, िि हए अखसतततव स सार का गरहण

कर सकता ह, अकष बन सकता ह(ग पि बराहमण 2.6.11)।

उपर कत ऋचा क यनतर म 8x4=32 क षठक ह।

Page 38: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

38

ऋलष : काम, छनद : अनषिप, िवता : शर महािकषम , ब ज : मो, शखकत : सो, क िक : शर ो

मनसः काममाकलतो वाचः सतयमश मलह। पशनाो रपमननसय मलय शर ः शरयताो यशः॥१०॥

मनसःा कामामाकशरत वा ाचः सातयमशीमशरह । पाश ाना रा पमनयसय मशरया िीः ियता ा यशः ॥

आकलतलचलतसोकलपलसखदधो हररमण आवह। लहरणयिासिास िाो तालमह पहवय लशरयम॥

Page 39: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

39

ऋलष : किणम, छनद : अनषिप, िवता : महािकषम , ब ज : को , शखकत : वो, क िक : शर ो

किणमन परजा भता मलय सो भव क िणम। लशरयो वासय म कि मातरो पदममालिन म॥११॥

का ददमन िजाभ ाता ा माशरया समभव का ददम । शरिय वा ासय म का ल मा ातर पदमामाशरलनीम ॥

किणम का अिण अपन पाप ो क नाश क कारण उतपनन हआ पोक माना जाता ह। उपर कत ऋचा का लवलनय ग

महािकषम क लशर क अलभषक हत लनलिणषट ह। इस ऋचा का यनतर लतरभज ो स रलहत ह ज सहसरार चि क

खथिलत परत त ह त ह।

ऋलष : चनदर/लचकल त, छनद : अनषिप, िवता : लचकल त-मात शर िकषम , ब ज : अो, शखकत : िो, क िक : शर ो

आपः सरवनत लसनगधालन लचकल त वस म गह। लन च िव ो मातरो लशरयो वासय म कि॥१२॥

पाठानतर:

आपः सजनत लसनगधालन लचकल त वस म गह । लन च िव ो मातरो लशरयो वासय म कि ॥

उपर कत ऋचा म आपः क सरवण का उललि ह। िकषम नारायण सोलहता म परसलवषण/परसरलवषण असर का

उललि आया ह ज महािकषम क अपन भायाण बनाना चाहता ह। उपर कत

ऋचा म िव क माता कहा गया ह। यलि असर का नाम परसलवषण मान त उसका गण सलवता िव क भाोलत

परसव करना, लकस कायण क करन क मि

पररणा िना ह ना चालहए लजसम क ई तरलि असरि क जनम ि सकत ह। वलिक अिवा प रालणक सालहतय म

लचकल त शबद अनयतर नह ो लमि पाया ह। लचकल त का लनकितम शबद

लचि ड ह सकता ह। वलिक सालहतय म इनदर क सिा बन मरत नामक पराण ो क एक गण का नाम ि लडनः

ह।

उपर कत ऋचा का लवलनय ग 81 घि ो दवारा िव क अलभषक हत लनलिणषट ह।

Page 40: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

40

ऋलष : जातविस, छनद : अनषिप, िवता : शर महािकषम , ब ज : ?, शखकत : ? क िक : ?

पकाो पषक ररण ो पषटाो लपङग िाो पदममालिन म। सयाा लहरणमय ो िकषम ो जातवि ममा वह॥१३॥

उपर कत ऋचा क यनतर म 7x5=35 क षठक ह।

Page 41: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

41

ऋलष : जातविस, छनद : अनषिप, िवता : शर राजिकषम , ब ज : शर ो, शखकत : हो, क िक : ह ो

आदराा पषक ररण ो यषट ो सवणाा हममालिन म। चनदराो लहरणमय ो िकषम ो जातवि ममा वह॥१४॥

पाठानतर : आदराा पषकररण ो पलषटो सवणाणम हममालिन म । सयाा लहरणमय ो िकषम ो जातवि म आवह ॥

Page 42: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

42

ऋलष : कबर, छनद : परसतारपोखकत, िवता : महािकषम , ब ज : ह ो, शखकत : शर ो, क िक : ह ो

ताो म आ वह जातवि िकषम मनपगालमन म। यसयाो लहरणयो परभतो गाव िासय लवनदयो परषानहम॥१५॥

पाठानतर : ता मा आवहा जातवदो लाकषीमनपगा ाशरमनी ीम । यसया ा शरहरणया िभता गावो दा ासयो

ऽशाीन, शरवानदया परिानाहम ॥

इस ऋचा क लचतर म महािकषम क हाि म अोकश या लतरशि जसा असत ह। लशव पराण म ईशान लिशा म

लतरशि असत का लवलनय ग ह। लशव न अनधकासर क अपन लतरशि पर ििका लिया िा लजसस उसका सारा

रकत बह गया और वह शदध ह गया। तब लशव न उस अपना गण भलङगररलि बना लिया।

य आननदो समालवशिपाधावन लवभावसम। लशरयः सवाण उपालसषव लचकल त वस म गह॥१६॥

किणमन परजा सषटा सोभलतो गमयामलस। अिधािपागादय षाो कामान ससजमह॥१७॥

जातविः पन लह मा रायसप षो च धारय। अलगनमाण तिािनस लवशवानमञचिो हसः॥१८॥

अचछा न लमतरमह िव िवानगन व चः समलतो र िसय ः। व लह सवखसत सलकषलतो लिव नन लदवष अो हाोलस िररता

तरम ता तरम तवावसा तरम॥१९॥

Page 43: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

43

- - - - -

लवषणपतन ो कषमाो िव ो माधव ो माधवलपरयाम। िकषम ो लपरयसि ो िव ो नमामयचयतवललभाम॥२५॥

महािकषम ो च लवदमह लवषणपतन च ध मलह। तनन िकषम ः परच ियात॥२६॥

आननदः किणमः शर तलिकल त इव लवलशरतः। ऋषयः लशरयः पतराि शर िव िविवता॥२८॥

िकषम ो कष रसमदरराजतनयाो शर रङगधामशवर ो िास भतसमसतिववलनताो तरि कयि पाङकराम।- - - - ॥२७॥

लसदधिकषम मोकषिकषम जणयिकषम ः सरसवत । शर िणकषम वणरिकषम ि परसनना मम सवणिा॥२८॥ - खिि २.६

Page 44: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

44

उपर कत सकत म अकषर ो क ऊपर लचहन उिाि रधलन क लिए ह।

लवषणधमोिर पराण २.१२८ म उललि ह लक सामवि का शर सकत शरायनत यम साम ह, अिवणवि का शर सकत

लशरयो िातमणलय धलह ह। यजवि का शर सकत क न सा ह, इसका उललि अलगन पराण २६३ म ह।

- सामवि उिरालचणक १०.११.१४.१/उ.पर. ५.२.१४.१

Page 45: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

45

*शरायनत इव सया लवशवलिनदरसय भकषत। वसलन जात जलनमानय जसा परलत भागो न ि लधमः॥ - सामवि

उिरालचणक १०.११.१४.१/उ.पर. ५.२.१४.१

Page 46: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

46

ह अिि या जनाः। “शरायनत इव सया” यिा समालशरता रशमयः सया भजनत तिा “इनदरसय लवशवत” लवशवानयव

धनालन “भकषत” भजत। स च यालन “वसलन” धनालन “जात” उतपनन “जलनमालन” जायमान जलनषयमाण

च “ओजसा” बिन कर लत अत “भागो न” लपतरयो भागलमव तालन धनालन “परलति लधमः”

परलतधारयमलत।[यदवा। “शरायनत इव सया” यिा समालशरता

रशमयः सयणमपलतषठनत तिा “इनदरसय” “लवशवा” लवशवालन धनालन लवभकतलमचछनतः समालशरता मरतः

इनदरमपलतषठत इलत शषः। उपथिाय च मरत “वसलन” उिक िकषणालन

धनालन “जात” जायमानाय “जलनमालन” जलनषयमाणाय मनषयाय “ओजसा” बिन “भकषत” लवभजनत। ततर

चािाको य भागः तो “भागो”

(नलत समपरतयि) परत तयषः अनइतयतसय थिान।

“अन ि लधमः” वयमनधयायम। [तिा च यासकः(न. ६.८) “ समालशरताः सयणमपलतषठनत ऽलपव पमाि

सयातसयणलमवनदरमपलतषठनत इलत सवाणण नदरसय धनालन लवभकषयमाणाः स यिा धनालन लवभजलत जात जलनषयमाण

च तो वयो भागमनधयायाम जसा बिनलत। “जलनमालन” “जलनमानः” इलत च पाठ ।

*अिलषण रालतो वसिामप सतलह भदरा इनदरसय रातयः। य असय कामो लवधत न र षलत मन िानाय च ियन॥ -

सामवि उिरालचणक १०.११.१४.२/उ.पर. ५.२.१४.२

ह सत तः! “अिलषणरालतम” अपापक-िानम अपालपषठसय िातार इतयिण[ अिलषण-पि-समानािणमनशण – पिो

यासकन वयाखयातम – “अनशणरालतमनशल ि – िानमशल िो पापकम” इलत(लनरकत न. ६.२३)]

“वसिा” धनसय िातारलमनदरम “उप सतलह” यतः “इनदरसय” “रातय” िानालन “भदरा” कलयाणालन

महिशवयणकार ण तयिणः। “यः” इनदरः सवक यो “मनः” “िानाय” अभ षट-

परिानाय “च ियन” परयन “लवधतः” पररचरतः “असय” सत तः “कामम” इचछाो “न र षलत” न लहनखसत।

तलमनदरमपसतह लत समबनधः। “अिलषणरालतम” इलत छनद गाः पठखनत, “अनशणरालतम” इलत

बहवचाः; “य असय” स असय” – इलत च। - सायण भाषय

अलगनपराण ६२ क अनसार शरायनत यम सकत का लवलनय ग िकषम क शया क परलतषठा हत ह। यह धयान िन

य गय ह लक लकस परकार वि ो क शरायनत यम शबद का परय ग पराण ो म शायनत यम क रप म हआ ह।

अिवणवि का शर सकत लशरयो िातमणलय धलह ह -

लशरयो धातर मलय धलह लशरयाम अलधपलतो कण। यशाम? ईशान मघवान इनदर मा यशसान िात॥ - पपपिाि

सोलहता १९.४८.१७

Page 47: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

47

यजवि का शर सकत क न सा ह, इसका उललि अलगन पराण २६३ म लमिता ह। कहा गया ह लक रिषवकषष

वाजलत चार यज शर सकत क ह।

यह चार यज तलिर य बराहमण २.७.७.२, काठक सोलहता ३६.१५, पपपिाि सोलहता २.१८, श नक य अिवणवि

६.३८.३ आलि म उपिबध ह –

लस ह वयाघर उत या पिाक । खिलषरगन बराहमण सय या। इनदरो या िव सभगा जजान। सा न आगनवचण सा

सोलविाना॥

या राजनय िनिभावायतायाम। अशवसय िनदय पर षसय माय । इनदरो या िव सभगा जजान। सा न आगनवचण सा

सोलविाना॥

या हखसतलन दव लपलन या लहरणय। खिलषरशवष पर षष ग ष। इनदरो या िव सभगा जजान। सा न आगनवचण सा

सोलविाना॥

रि अकषष वषभसय वाज। वात पजणनय वर णसय शषम। इनदरो या िव सभगा जजान। सा न आगनवचण सा

सोलविाना॥ - त.बरा. २.७.७.१

तलिर य बराहमण क सायण भाषय म उपर कत यजओो का लवलनय ग उषाकाि म ओिनसव हत आहलत

मनतर ो क लिए लकया गया ह।

कलयाण क लवशषाोक क रप म ग तापरस, ग रिपर दवारा परकालशत अलगन पराण क लहनद अनवाि म

रिष, अकषष इतयालि क

अिग-अिग यज मानकर उनक यजवि म थिान ो का लनिश लकया गया ह। यह तरलि परत त ह त ह।

http://vipin110012.tripod.com/pur_index28/srisuk01.htm

Page 48: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

48

Sri Suktam - Om Hiranyavarnam Harinim Suvarnarajatasrajaam - in sanskrit with

meaning - Mantra on Devi Lakshmi - from Rig Veda

शरीसकतम - ॐ पहरणयवराा हरररी सवरणरजतसरजाम

Sri Suktam - Om Hiranya-Varnam Harinim Suvarna-Rajata-Srajaam

Devi Lakshmi

हररः ॐHarih Om

पहरणयवराा हरररी सवरणरजतसरजाम ।

चनदा पहरणमयी लकषी जातवदो म आवह ॥१॥Hirannya-Varnnaam Harinniim Suvarnna-Rajata-

Srajaam |

Candraam Hirannmayiim Lakssmiim Jaatavedo Ma Aavaha ||1||

Meaning: 1.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Who is of Golden

Colour, Beautiful and Adorned with Gold and Silver Garlands.

(Gold represents Sun or the Fire of Tapas; Silver represents Moon or the Bliss and Beauty of

Pure Sattva.)

1.2: Who is like the Moon with a Golden Aura, Who is Lakshmi, the Embodiment of Sri;

O Jatavedo, please Invoke for Me that Lakshmi.

(Moon represents the Bliss and Beauty of Pure Sattva and the Golden Aura represents the Fire of

Tapas.)

ता म आवह जातवदो लकषीमनिगापमनीम ।

यसया पहरणय पवनदय गामशव िरषानहम ॥२॥ Taam Ma Aavaha Jaatavedo Lakssmiim-

Anapagaaminiim |

Yasyaam Hirannyam Vindeyam Gaam-Ashvam Purussaan-Aham ||2||

Meaning:

Page 49: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

49

2.1: (Harih Om) O Jatavedo, Invoke for Me that Lakshmi, Who does not Go Away,

(Sri is Non-Moving, All-Pervasive and the Underlying Essence of All Beauty. Devi Lakshmi as

the Embodiment of Sri is thus Non-Moving in Her essential nature.)

2.2: By Whose Golden Touch, I will Obtain Cattle, Horses, Progeny and Servants.

(Golden Touch represents the Fire of Tapas which manifests in us as the Energy of Effort by the

Grace of the Devi. Cattle, Horses etc are external manifestations of Sri following the effort.)

अशविवाा रथमधा हसतिनादपरबोपधनीम ।

पशरय दवीमिहवय शरीमाण दवी जषताम ॥३॥Ashva-Puurvaam Ratha-Madhyaam Hastinaada-

Prabodhiniim |

Shriyam Deviim-Upahvaye Shriirmaa Devii Jussataam ||3||

Meaning: 3.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Who is Abiding in the Chariot of Sri (

in the Middle ) which is driven by Horses in Front and Whose Appearance is Heralded by

the Trumpet of Elephants,

(Chariot represents the Abode of Sri and Horses represents the Energy of Effort. The Trumpet of

Elephants represents the Awakening of Wisdom.)

3.2: Invoke the Devi who is the Embodiment of Sri Nearer so that

the Devi of Prosperity becomes Pleased with Me.

(Prosperity is the external manifestation of Sri and is therefore pleased when Sri is Invoked.)

का सोसतिता पहरणयपराकारामारदाा जवलनी तपा तिणयनीम ।

िदम सतथथता िदमवराा तापमहोिहवय पशरयम ॥४॥Kaam So-Smitaam Hirannya-Praakaaraam-

Aardraam Jvalantiim Trptaam Tarpayantiim |

Padme Sthitaam Padma-Varnnaam Taam-Iho[a-u]pahvaye Shriyam ||4||

Meaning: 4.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Who is Having a Beautiful Smile and

Who is Enclosed by a Soft Golden Glow; Who is eternally Satisfied and Satisfies all those to

whom She Reveals Herself,

(Beautiful Smile represents the Trancendental Beauty of Sri Who is Enclosed by the Golden

Glow of the Fire of Tapas.)

4.2: Who Abides in the Lotus and has the Colour of the Lotus; (O Jatavedo) Invoke that Lakshmi

Here, Who is the Embodiment of Sri.

(Lotus represents the Lotus of Kundalini.)

चनदा परभासा यशसा जवलनी पशरय लोक दवजषटामदाराम ।

ता िपदमनीमी शररमह परिदयऽलकषीम नशयता ता वर ॥५॥Candraam Prabhaasaam Yashasaa

Jvalantiim Shriyam Loke Deva-Jussttaam-Udaaraam |

Taam Padminiim-Iim Sharannam-Aham Prapadye-[A]lakssmiir-Me Nashyataam Tvaam Vrnne

||5||

Page 50: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

50

Meaning: 5.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Who is the Embodiment of Sri and

Whose Glory Shines like the Splendour of the Moon in all the Worlds; Who is Noble and Who

is Worshipped by the Devas.

5.2: I take Refuge at Her Feet, Who Abides in the Lotus; By Her Grace, let the Alakshmi (in the

form of Evil, Distress and Poverty) within and without be Destroyed.

(Lotus represents the Lotus of Kundalini.)

आपदतयवर तिसोऽपधजातो वनसपपतिव वकषोऽथ पबलवः ।

तसय फलापन तिसानदन मायानरायाशच बाहया अलकषीः ॥६॥Aaditya-Varnne Tapaso[a-A]dhi-

Jaato Vanaspatis-Tava Vrksso[ah-A]tha Bilvah |

Tasya Phalaani Tapasaa-Nudantu Maaya-Antaraayaashca Baahyaa Alakssmiih ||6||

Meaning: 6.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Who is of the Colour of

the Sun and Born of Tapas; the Tapas which is like a Huge Sacred Bilva Tree,

(The Golden Colour of the Sun represents the Fire of Tapas.)

6.2: Let the Fruit of That Tree of Tapas Drive Away the Delusion and Ignorance Within and

the Alakshmi (in the form of Evil, Distress and Poverty) Outside.

उित मा दवसखः कीपतणशच मपरना सह ।

परादभणतोऽसति राषटर ऽसतिन कीपतणमसतध ददात म ॥७॥Upaitu Maam Deva-Sakhah Kiirtish-Ca

Manninaa Saha |

Praadurbhuuto[ah-A]smi Raassttre-[A]smin Kiirtim-Rddhim Dadaatu Me ||7||

Meaning: 7.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) By Whose Presence will Come

Near me the Companions of the Devas along with Glory (Inner Prosperity) and

various Jewels (Outer Prosperity),

7.2: And I will be Reborn in the Realm of Sri (signifying Inner Transformation towards Purity)

which will Grant me Inner Glory and Outer Prosperity.

कषसतििासामला जयषठामलकषी नाशयामयहम ।

अभपतमसमसतध च सवाा पनरणद म गहात ॥८॥Kssut-Pipaasaa-Malaam Jyesstthaam-Alakssmiim

Naashayaamy-Aham |

Abhuutim-Asamrddhim Ca Sarvaam Nirnnuda Me Grhaat ||8||

Meaning: 8.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Whose Presence will Destroy

Hunger, Thirst and Impurity associated with Her Elder Sister Alakshmi,

8.2: And Drive Away the Wretchedness and Ill-Fortune from My House.

गनधदवारा दराधषाा पनतयिषटा करीपषरीम ।

ईशवरीग सवणभताना तापमहोिहवय पशरयम ॥९॥Gandha-Dvaaraam Duraadharssaam Nitya-Pussttaam

Kariissinniim |

Page 51: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

51

Iishvariing Sarva-Bhuutaanaam Taam-Iho[a-u]pahvaye Shriyam ||9||

Meaning: 9.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Who is the Source of All Fragrances,

Who is Difficult to Approach, Who is Always Filled with Abundance and leaves

a Residue of Abundance wherever She Reveals Herself.

9.2: Who is the Ruling Power in All Beings; (O Jatavedo) Please Invoke Her Here, Who is the

Embodiment of Sri.

मनसः काममाकपत वाचः सतयमशीमपह ।

िशना रिमननसय मपय शरीः शरयता यशः ॥१०॥ Manasah Kaamam-Aakuutim Vaacah Satyam-

Ashiimahi |

Pashuunaam Ruupam-Annasya Mayi Shriih Shrayataam Yashah ||10||

Meaning: 10.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) For Whom my Heart Truly

Yearns and to Whom my Speech Truly tries to Reach,

10.2: By Whose Presence will come Cattle, Beauty and Food in my Life as

(External) Prosperity and Who will Reside (i.e. Reveal) in me as (Inner) Glory of Sri.

कदणमन परजाभता मपय समभव कदणम ।

पशरय वासय म कल मातर िदममापलनीम ॥११॥Kardamena Prajaa-Bhuutaa Mayi Sambhava

Kardama |

Shriyam Vaasaya Me Kule Maataram Padma-Maaliniim ||11||

Meaning: 11.1: (Harih Om. O Kardama, Invoke for me your Mother) As Kardama ( referring to Earth

represented by Mud ) acts as the substratum for the Existence of Mankind, Similarly

O Kardama (now referring to sage Kardama, the son of Devi Lakshmi) you Stay with me,

11.2: And be the cause to bring your Mother to Dwell in My Family; Your Mother who is the

Embodiment of Sri and Encircled by Lotuses.

आिः सजन पिगधापन पचकलीत वस म गह ।

पन च दवी मातर पशरय वासय म कल ॥१२॥Aapah Srjantu Snigdhaani Cikliita Vasa Me Grhe |

Ni Ca Deviim Maataram Shriyam Vaasaya Me Kule ||12||

Meaning: 12.1: (Harih Om. O Chiklita, Invoke for me your Mother) As Chiklita ( referring to Moisture

represented by Water ) Creates Loveliness in all things by its presence, similarly O Chiklita (now

referring to Chiklita, the son of Devi Lakshmi) you Stay with me,

12.2: And by your presence bring your Mother, the Devi who is the Embodiment of Sri (and

essence of all Loveliness) to Dwell in my Family.

Page 52: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

52

आरदाा िषकरररी िपषट पिङगला िदममापलनीम ।

चनदा पहरणमयी लकषी जातवदो म आवह ॥१३॥Aardraam Pusskarinniim Pussttim Pinggalaam

Padma-Maaliniim |

Candraam Hirannmayiim Lakssmiim Jaatavedo Ma Aavaha ||13||

Meaning: 13.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Who is like the Moisture of a Lotus

Pond which Nourishes a Soul (with Her Soothing Loveliness); and Who is Encircled by

Light Yellow Lotuses,

13.2: Who is like a Moon with a Golden Aura; O Jatavedo, please Invoke that Lakshmi for me.

(Devi Lakshmi in the form of a Moon represents the Transcendental Bliss and Beauty of Sri.

This Soothing Loveliness is compared with the Moisture of a Lotus Pond which Nourishes a

Soul. )

आरदाा यः करररी यपषट सवराा हममापलनीम ।

सयाा पहरणमयी लकषी जातवदो म आवह ॥१४॥Aardraam Yah Karinniim Yassttim Suvarnnaam

Hema-Maaliniim |

Suuryaam Hirannmayiim Lakssmiim Jaatavedo Ma Aavaha ||14||

Meaning: 14.1: (Harih Om. O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi) Who is like

the Moisture (figuratively representing Energy) which Supports the Performance of Activities;

and Who is Encircled by Gold (Glow of the Fire of Tapas),

14.2: Who is like a Sun with a Golden Aura; O Jatavedo, please Invoke that Lakshmi for me.

(Devi Lakshmi in the form of a Sun represents the Fire of Tapas. This Fire is compared with the

moisture within activities, the moisture figuratively signifying energy. The Fire of Tapas

manifests as the Energy of Activities.)

ता म आवह जातवदो लकषीमनिगापमनीम ।

यसया पहरणय परभत गावो दासयोऽशवान पवनदय िरषानहम ॥१५॥Taam Ma Aavaha Jaatavedo

Lakssmiim-Anapagaaminiim |

Yasyaam Hirannyam Prabhuutam Gaavo Daasyo-[A]shvaan Vindeyam Puurussaan-Aham ||15||

Meaning: 15.1: (Harih Om). O Jatavedo, Invoke for me that Lakshmi, Who does not Go Away,

(Sri is Non-Moving, All-Pervasive and the Underlying Essence of All Beauty. Devi Lakshmi as

the Embodiment of Sri is thus Non-Moving in Her essential nature.)

15.2 By Whose Golden Touch I will obtain (i.e. Sri will be manifested as) Abundant

Cattle, Servants, Horses and Progeny.

(Golden Touch represents the Fire of Tapas which manifests in us as the Energy of Effort by the

grace of the Devi. Cattle, Horses etc are external manifestations of Sri following the effort.)

Page 53: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

53

यः शपचः परयतो भता जहयादाजयमनवहम ।

सकत िञचदशचा च शरीकामः सतत जित ॥१६॥Yah Shucih Prayato Bhuutvaa Juhu-Yaad-Aajyam-

Anvaham |

Suuktam Pan.cadasharcam Ca Shriikaamah Satatam Japet ||16||

Meaning: 16.1: Those who after Becoming Bodily Clean and Devotionally Disposed perform Sacrificial

Offering with Butter Day after Day,

16.2: By Constantly Reciting the Fifteen Verses of Sri Suktam will have their Longing for

Sri Fulfilled by the Grace of Devi Lakshmi.

िदमानन िदम ऊर िदमाकषी िदमासमभव ।

त मा भजसव िदमाकषी यन सौखय लभामयहम ॥१७॥Padma-[A]anane Padma Uuru Padma-Akssii

Padmaa-Sambhave |

Tvam Maam Bhajasva Padma-Akssii Yena Saukhyam Labhaamy[i]-Aham ||17||

Meaning: 17.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Whose Face is of Lotus, Who is supported

(indicated by Thigh ) by Lotus, Whose Eyes are of Lotus and Who is Born of Lotus.

(Lotus indicates Kundalini. Face indicates the nature of a person, thighs indicate support and

eyes indicate the spiritual vision. This verse describes the transcendental nature of Mother

Lakshmi. She is born of Yoga, united with Yoga and revealed to a devotee in his spiritual

vision.)

17.2: O Mother, You manifest in Me in the Spiritual Vision (indicated by Lotus Eyes ) born of

intense Devotion by Which I am filled with (i.e. Obtain ) Divine Bliss.

अशवदापय गोदापय धनदापय महाधन ।

धन म जषता दपव सवणकामाशच दपह म ॥१८॥Ashva-Daayi Go-Daayi Dhana-Daayi Mahaa-Dhane |

Dhanam Me Jussataam Devi Sarva-Kaamaamsh-Ca Dehi Me ||18||

Meaning: 18.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Who is

the Giver of Horses, Cows and Wealth to all; and Who is the Source of the Great Abundance in

this World.

18.2: O Devi, Please be Gracious to grant Wealth (both inner and outer) to Me and Fulfil All my

Aspirations.

ितरिौतर धन धानय हसतयशवापदगव रथम ।

परजाना भवपस माता आयषमन करोत माम ॥१९॥Putra-Pautra Dhanam Dhaanyam Hasty-Ashva-

[A]adi-Gave Ratham |

Prajaanaam Bhavasi Maataa Aayussmantam Karotu Maam ||19||

Meaning: 19.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) O Mother, bestow us

with Children and Grandchildren to continue our lineage;

and Wealth, Grains, Elephants, Horses, Cows and Carriages for our daily use.

Page 54: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

54

19.2: We Are Your Children, O Mother; Please make our lives Long and full of Vigour.

धनमपिधणन वायधणन सयो धन वसः ।

धनपमनदो बहसपपतवणरर धनमशनत ॥२०॥Dhanam-Agnir-Dhanam Vaayur-Dhanam Suuryo

Dhanam Vasuh |

Dhanam-Indro Brhaspatir-Varunnam Dhanam-Ashnute ||20||

Meaning: 20.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) O Mother, You (indicated by Dhanam) are the

Power behind Agni (the God of Fire), You are the Power behind Vayu (the God of

Wind), You are the Power behind Surya (the God of Sun), You are the Power behind

the Vasus (celestial beings).

20.2: You are the Power behind Indra, Vrhaspati and Varuna (the God of Water); You are

the All-Pervading Essence behind Everything.

वनतय सोम पिब सोम पिबत वतरहा ।

सोम धनसय सोपमनो महय ददात सोपमनः ॥२१॥Vainateya Somam Piba Somam Pibatu Vrtrahaa |

Somam Dhanasya Somino Mahyam Dadaatu Sominah ||21||

Meaning: 21.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Those who carry Sri Vishnu in their Heart

(like Garuda, the son of Vinata carries Him on his back) always drink Soma (the Divine Bliss

within); Let all Drink that Soma by Destroying their inner Enemies of desires (thus gaining

nearness to Sri Vishnu).

21.2: That Soma originates from Sri Who is the embodiment of Soma (the Divine Bliss); O

Mother, please Give that Soma to Me too, You Who are the possessor of that Soma.

न करोधो न च मातसयण न लोभो नाशभा मपतः ।

भवसतन कतिणयाना भकताना शरीसकत जितसदा ॥२२॥Na Krodho Na Ca Maatsarya Na Lobho Na-

Ashubhaa Matih |

Bhavanti Krtapunnyaanaam Bhaktaanaam Shriisuuktam Japet-Sadaa ||22||

Meaning: 22.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Neither Anger Nor Jealousy, Neither Greed

Nor Evil Intentions ...

22.2: Can Exist in the Devotees who have acquired Merit by Always Reciting with Devotion the

great Sri Suktam.

वषणन त पवभावरर पदवो अभरसय पवदयतः ।

रोहन सवणबीजानयव बरहम पदवषो जपह ॥२३॥Varssantu Te Vibhaavari Divo Abhrasya Vidyutah |

Rohantu Sarva-Biija-Anyava Brahma Dvisso Jahi ||23||

Meaning: 23.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) O Mother, Please Shower Your Light of Grace

like Lightning in a Sky filled with Thunder-Cloud ...

Page 55: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

55

23.2 And Ascend All the Seeds of Differentiation to a higher spiritual plane; O Mother, You are

of the nature of Brahman and Destroyer of all Hatred.

िदमपपरय िपदमपन िदमहि िदमालय िदमदलायतापकष ।

पवशवपपरय पवषण मनोऽनकल तिादिदम मपय सपननधतसव ॥२४॥Padma-Priye Padmini Padma-Haste

Padma-[A]alaye Padma-Dalaayata-Akssi |

Vishva-Priye Vissnnu Mano-[A]nukuule Tvat-Paada-Padmam Mayi Sannidhatsva ||24||

Meaning: 24.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Who is Fond of Lotuses, Who is

the Possessor of Lotuses, Who Holds Lotuses in Her Hands, Who Dwells in

the Abode of Lotuses and Whose Eyes are like Lotus Petals.

(Lotus indicates Kundalini)

24.2: Who is Fond of the Worldly Manifestations which are Directed towards (i.e. Agreeable to)

Sri Vishnu (i.e. follows the path of Dharma); O Mother, bless me so that I Gain Nearness to

Your Lotus Feet Within Me.

या सा िदमासनथथा पविलकपितिी िदमितरायताकषी ।

गमभीरा वतणनापभः िनभर नपमता शभर वसतरोततरीया ॥२५॥Yaa Saa Padma-[A]asana-Sthaa

Vipula-Kattitattii Padma-Patraayata-Akssii |

Gambhiiraa Varta-Naabhih Stanabhara Namitaa Shubhra Vastro[a-u]ttariiyaa ||25||

Meaning: 25.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Who Stands on Lotus with Her Beautiful

Form, with Wide Hip and Eyes like the Lotus Leaf.

25.2: Her Deep Navel (indicating Depth of Character) is Bent Inwards, and with Her Full

Bosom (indicating Abundance and Compassion) She is slightly Bent Down (towards the

Devotees); and She is Dressed in Pure White Garments.

लकषीपदणवयगणजनदमणपरगरखपचतथिापिता हमकमभः ।

पनतय सा िदमहिा मम वसत गह सवणमाङगलययकता ॥२६॥Lakssmiir-Divyair-Gajendrair-Manni-

Ganna-Khacitais-Snaapitaa Hema-Kumbhaih |

Nityam Saa Padma-Hastaa Mama Vasatu Grhe Sarva-Maanggalya-Yuktaa ||26||

Meaning: 26.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Who is Bathed with Water from Golden

Pitcher by the Best of Celestial Elephants who are Studded with Various Gems,

26.2: Who is Eternal with Lotus in Her Hands; Who is United with All the Auspicious

Attributes; O Mother, Please Reside in My House and make it Auspicious by Your Presence.

लकषी कषीरसमरद राजतनया शरीरङगधामशवरीम ।

दासीभतसमि दव वपनता लोकक दीिाकराम ॥२७॥Lakssmiim Kssiira-Samudra Raaja-

Tanayaam Shriirangga-Dhaame[a-Ii]shvariim |

Daasii-Bhuuta-Samasta Deva Vanitaam Loka-i[e]ka Diipa-Amkuraam ||27||

Meaning:

Page 56: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

56

27.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Who is the Daughter of the King of Ocean;

Who is the Great Goddess Residing in Kseera Samudra (literally Milky Ocean), the Abode of Sri

Vishnu.

27.2: Who is Served by the Devas along with their Servants, and Who is the One Light in all

the Worlds which Sprouts behind every Manifestation.

शरीमनमनदकिाकषलबध पवभव बरहमनदगङगाधराम ।

ता तरलोकय किसतिनी सरपसजा वनद मकनदपपरयाम ॥२८॥Shriiman[t]-Manda-Kattaakssa-Labdha

Vibhava Brahme(a-I)ndra-Ganggaadharaam |

Tvaam Trai-Lokya Kuttumbiniim Sarasijaam Vande Mukunda-Priyaam ||28||

Meaning: 28.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) By Obtaining Whose Grace through

Her Beautiful Soft Glance, Lord Brahma, Indra and Gangadhara (Shiva) become Great,

28.2: O Mother, You blossom in the Three Worlds like a Lotus as the Mother of the Vast Family;

You are Praised by All and You are the Beloved of Mukunda.

पसधलकषीमोकषलकषीजणयलकषीससरसवती ।

शरीलकषीवणरलकषीशच परसनना मम सवणदा ॥२९॥Siddha-Lakssmiir-Mokssa-Lakssmiir-Jaya-

Lakssmiis-Sarasvatii |

Shrii-Lakssmiir-Vara-Lakssmiishca Prasannaa Mama Sarvadaa ||29||

Meaning: 29.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) O Mother, May Your different Forms - Siddha

Lakshmi, Moksha Lakshmi, Jaya Lakshmi, Saraswati ...

29.2: Sri Lakshmi and Vara Lakshmi ... Always be Gracious to Me.

वराकशौ िाशमभीपतमरदा करवणहनी कमलासनथथाम ।

बालाकण कोपि परपतभा पतररतरा भजहमादया जगदीसवरी ताम ॥३०॥Vara-Angkushau Paasham-

Abhiiti-Mudraam Karair-Vahantiim Kamala-[A]asana-Sthaam |

Baala-[A]arka Kotti Pratibhaam Tri-Netraam Bhaje-[A]ham-Aadyaam Jagad-Iisvariim Tvaam

||30||

Meaning: 30.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) From Your Four Hands - first in Vara Mudra

( Gesture of Boon-Giving ), second Holding Angkusha ( Hook ), third Holding a Pasha ( Noose )

and fourth in Abhiti Mudra ( Gesture of Fearlessness ) - Flows Boons, Assurance of Help during

Obstacles, Assurance of Breaking our Bondages and Fearlessness; As You Stand on

the Lotus (to shower grace on the devotees).

30.2: I Worship You, O Primordial Goddess of the Universe, from Whose Three Eyes Appear

Millions of Newly Risen Suns (i.e. different worlds).

सवणमङगलमाङगलय पशव सवाणथण सापधक ।

शरणय तरयिक दपव नारायपर नमोऽि त ॥

Page 57: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

57

नारायपर नमोऽि त ॥ नारायपर नमोऽि त ॥३१॥Sarva-Manggala-Maanggalye Shive Sarva-

Artha Saadhike |

Sharannye Try-Ambake Devi Naaraayanni Namostu Te ||

Naaraayanni Namostu Te || Naaraayanni Namostu Te ||31||

Meaning: 31.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Who is the Auspiciousness in All

the Auspicious, Auspiciousness Herself, Complete with All the Auspicious Attributes, and

Who fulfills All the Objectives of the Devotees (Purusharthas - Dharma, Artha, Kama and

Moksha),

31.2: I Salute You O Narayani, the Devi Who is the Giver of Refuge and with Three Eyes,

31.3: I Salute You O Narayani; I Salute You O Narayani.

सरपसजपनलय सरोजहि धवलतराशक गनधमालयशोभ ।

भगवपत हररवललभ मनोजञ पतरभवनभपतकरर परसीद महयम ॥३२॥Sarasija-Nilaye Saroja-Haste

Dhavalatara-Amshuka Gandha-Maalya-Shobhe |

Bhagavati Hari-Vallabhe Manojnye Tri-Bhuvana-Bhuuti-Kari Prasiida Mahyam ||32||

Meaning: 32.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) Who Abides in Lotus and Holds Lotus in

Her Hands; Dressed in Dazzling White Garments and Decorated with the most Fragrant

Garlands, She Radiates a Divine Aura,

32.2: O Goddess, You are Dearer than the Dearest of Hari and the most Captivating; You are

the Source of Wellbeing and Prosperity of all the Three Worlds; O Mother, Please

be Gracious to Me.

पवषणिती कषमा दवी माधवी माधवपपरयाम ।

पवषणोः पपरयसखी दवी नमामयचयतवललभाम ॥३३॥Vissnnu-Patniim Kssamaam Deviim

Maadhaviim Maadhava-Priyaam |

Vissnnoh Priya-Sakhiim Deviim Namaamy-Acyuta-Vallabhaam ||33||

Meaning: 33.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) O Devi, You are the Consort of Sri Vishnu and

the embodiment of Forbearance; You are One with Madhava (in essence) and extremely Dear to

Him.

33.2: I Salute You O Devi Who is the Dear Companion of Sri Vishnu and

extremely Beloved of Acyuta (another name of Sri Vishnu literally meaning Infallible).

महालकषी च पवदमह पवषणिती च धीमपह ।

तननो लकषीः परचोदयात ॥३४॥Mahaalakssmii Ca Vidmahe Vissnnu-Patnii Ca Dhiimahi |

Tan[t]-No Lakssmiih Pracodayaat ||34||

Meaning: 34.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) May we Know the Divine Essence

of Mahalakshmi by Meditating on Her, who is the Consort of Sri Vishnu,

Page 58: Itihāsa of अष्टाश्रि yupa signifies धन यज्ञो वै …hshdb.in/wp-content/uploads/2016/12/Itihasa-Sri-Suktam.pdf · Vajra samghAta Varahamihira's

58

34.2: Let That Divine Essence of Lakshmi Awaken our Spiritual Consciousness.

शरीवचणसयमायषयमारोगयमापवधात िवमान मपहयत ।

धन धानय िश बहितरलाभ शतसवतसर दीरणमायः ॥३५॥Shrii-Varcasyam-Aayussyam-

Aarogyamaa-Vidhaat Pavamaanam Mahiyate |

Dhanam Dhaanyam Pashum Bahu-Putra-Laabham Shatasamvatsaram Diirgham-Aayuh ||35||

Meaning: 35.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) O Mother, Let Your Auspiciousness Flow in

our lives as the Vital Power, making our lives Long and Healthy, and filled with Joy.

35.2: And let Your Auspiciousness manifest around as Wealth, Grains, Cattle and Many

Offsprings who live Happily for Hundred Years; who live Happily throughout their Long Lives.

ऋररोगापददाररदरयिािकषदिमतयवः ।

भयशोकमनिािा नशयन मम सवणदा ॥३६॥Rnna-Roga-[A]adi-Daaridrya-Paapa-Kssud-

Apamrtyavah |

Bhaya-Shoka-Manastaapaa Nashyantu Mama Sarvadaa ||36||

Meaning: 36.1: (Harih Om, Salutations to Mother Lakshmi) O Mother, (please remove

my) Debts, Illness, Poverty, Sins, Hunger and the possibility of Accidental Death ...

36.2: and also remove my Fear, Sorrow and Mental Anguish; O Mother,

Please Remove them Always.

य एव वद ।

ॐ महादवय च पवदमह पवषणिती च धीमपह ।

तननो लकषीः परचोदयात

ॐ शासतनः शासतनः शासतनः ॥३७॥Ya Evam Veda |

Om Mahaa-Devyai Ca Vidmahe Vissnnu-Patnii Ca Dhiimahi |

Tanno Lakssmiih Pracodayaat

Om Shaantih Shaantih Shaantih ||37||

Meaning: 37.1: This (the Essence of Mahalakshmi) Indeed is Veda (the ultimate Knowledge).

37.2: May we Know the Divine Essence of the Great Devi by Meditating on Her, who is

the Consort of Sri Vishnu,

37.3: Let That Divine Essence of Lakshmi Awaken our Spiritual Consciousness.

37.4: Om Peace Peace Peace.

Note: Place the mouse over each Sanskrit word to get the meaning.

Click here to open the mouseover meanings in a new window.

Translated by greenmesg

http://www.greenmesg.org/mantras_slokas/devi_lakshmi-sri_suktam.php