sample copy. not for distribution. · 2018. 11. 14. · काव्यात्मक...

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Sample Copy. Not For Distribution.

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  • Sample Copy. Not For Distribution.

  • i

    आवाज़….

    जुनून दिल का…

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  • ii

    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

    Website: www.educreation.in __________________________________________________

    © Copyright, 2018, Pratyush Kumar Singh

    All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.

    ISBN: 978-93-88381-55-0

    Price: ₹ 175.00

    The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.

    Printed in India

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  • iii

    आवाज़

    जुनून दिल का…

    qr

    कदव

    प्रतू्यष कुमार द िंह

    EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)

    www.educreation.in

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  • iv

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  • v

    o

    मर्पण

    स्वर की देवी वीणावाददनी मााँ सरस्वती एवं मााँ द ंदी को प्रणाम

    करते हुए

    इस काव्य को मैं

    पूज्यनीय मााँ

    डॉ. शे्वता स िंह

    तथा

    परमपूज्य दपताजी

    डॉ. अरसिन्द कुमार स िंह

    के चरणो ंमें समदपित करता हाँ।

    “जीिन को तेज़ और प्रकाश े भर सिया तुमने,

    मााँगा जो बािल का एक टुकड़ा, अिंबर सिया तुमने।“

    l

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  • vi

    o

    अपनी बात

    इस अनुपम धरा पर जन्म दिया र इंसान एक किाकार

    ोता ै, किा के कई रूप ोतें ैं, काव्य िेखन भी उसी किा

    का एक रूप ै। काव्य श्रंगार मारे जीवन में शैशव अवस्था से

    ी ोता ै परनु्त में इस बात की समझ न ी ं ोती ै। कुछ

    िोग दिखना प्रारम्भ करते ैं पर दकसी न दकसी कारणवश

    िेखन कायि बीच में ी त्याग देते ै।

    वसु्ततः बचपन से ी कदवताये ाँ मुझे आकदषित करती थी,ं

    उनमे दछपे भाव और भावनाओ ंको म सूस करके कदव की

    मनोस्स्थदत का संजीदगी से अविोकन करना मुझे अच्छा

    िगता था। िेखन कायि का प्रारम्भ मैंने २०११ में दकया, तब मैं

    जवा र नवोदय दवद्यािय, प्रतापगढ़ में नवी ाँ कक्षा का दवद्याथी

    था। प्रारम्भ से मेरी ये सोच थी दक काव्य व ी जो मनो र और

    कणिदप्रय ो इसदिए अपनी मातरभाषा मााँ द ंदी को ी िेखन

    का माध्यम बनाया। िेखन कायि के शुरुआत के बाद दकसी न

    दकसी रूप में ये क्रम जारी र ा, मंच पर जाकर कदवता प्रसु्तत

    करना भी इस क्रम को न टूटने देने में स योगी र ा।

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  • vii

    िेखन प्रारम्भ करने के ३ वषि बाद २०१४ में पुस्तक सम्पाददत

    करने का दवचार मन में आया, समू्पणि संग्र का ग न अध्ययन

    करने के पश्चात एक चौथाई कर दतयो ं को पुस्तक में शादमि

    करना उदचत िगा।

    मैंने अपने इस काव्य संग्र में वतिमान समय में समाज में

    दवद्यमान ज्विंत मुद्ो ंतथा पररस्स्थदतयो ं के र संभव तार को

    छेड़कर अपनी बात पाठक तक पहुाँचाने की कोदशश की ै।

    दवदभन्न प िुओ ं पर तथा दवदभन्न प्रकार के पे्रमभाव पर

    काव्यात्मक प्रकाश डािने का प्रयत्न दकया ै।

    दमत्ो ंका स योग काव्य संग्र के िेखन के दौरान मेशा

    बना र ा, मेरी तु्दटयो ंपर दटप्पणी करके उनमें सुधार करने में

    समू्पणि स योग र ा। मेरे अज़ीज़ दमत् आदशि दत्पाठी का

    इसमें स योग र ा, राघवेंद्र प्रताप दसं ने मेरे वाचन के दौरान

    कुछ कदवताओ ंको दिखा तथा दमत् पंकज यादव एवं आददत्य

    दसं ने िेखन कायि का पुनराविोकन दकया । दमत् षि दसं

    का इस सम्पादन के दिए पे्रररत करने में दवशेष स्थान र ा।

    अदिका जी ने काव्य संग्र को सम्पाददत करवाने में दवशेष

    भूदमका दनभाई। मैं अपने दपताजी के अज़ीज़ दमत् और मेरे

    चाचा श्ी दमदथिेश कुमार शुक्ल (संयुक्त आयुक्त, राज्य कर,

    आगरा) का दवशेष आभारी हाँ, उनके िारा रदचत काव्य संग्र

    (पयािवरण सुधा तथा सुधा-प्रवा ) का अध्ययन करने के पश्चात्

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  • viii

    िेखन दक बारीदकयो ंका ज्ञान हुआ। अंत में इस काव्य संग्र

    को सम्पाददत करने के दिए मैं सम्पादक मंडि के प्रदत

    आभार व्यक्त करता हाँ।

    प्रतू्यष कुमार दसं

    स्थाई पता- ग्राम-चंदौका, पोस्ट- अंतू

    जनपद- प्रतापगढ़, दपन कोड- २३०५०१

    ददनांक: ०१ अकू्टबर २०१८

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  • ix

    o अनुक्रमदणका

    चरण पृष्ठ

    1. मााँ की ममता 1

    2. सपता का आशीष 3

    3. मााँ कल्याणी 5

    4. मैं 7

    5. भ्राता 9

    6. मातृभाषा सहिंिी 11

    7. समत्र 13

    8. निोिय 15

    9. प्रिूषण 17

    10. रासे्त 19

    11. मातृभूसम 21

    12. िेश और हम 23

    13. भ्रष्टाचार 25

    14. आधार 27

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  • x

    15. आत्मशक्ति 29

    16. मानिता के िुश्मन 31

    17. प्रकृसत 33

    18. सििाली 35

    19. ुखी जीिन 37

    20. पसिक 39

    21. पलकें 41

    22. गलसतयािं 43

    23. बीते पल 45

    24. इल्ज़ाम 47

    25. ज़ज़्बात 49

    26. कसि की िुसनया 51

    27. मौजूिगी 53

    28. नजररया 55

    29. िाल 57

    30. िूररयािं 59

    31. बेखबर 61

    32. खोज 63

    33. सिरोध 65

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  • xi

    34. िृत्ािंत 67

    35. िज़ूि 69

    36. हम फ़र 71

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  • xii

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  • प्रतू्यष कुमार द िंह

    1

    o

    1

    मााँ की ममता से ै न कुछ इस ज ां में,

    मातरत्व तुम्हारा शीति चांदनी की रात ै,

    सारे दुखो ंको दबन बताये यूाँ ी तुम जान िेती,

    कुदरत की दी कौन सी ऐसी वो सौगात ै,

    मााँ की ममता.....................................।

    2

    प्राण की दचंता दकये दबन जन्म देने की वो पीड़ा,

    बचपन में पुचकारती तू जब करे कान्हा ये क्रीड़ा,

    ददि सब एक पि में कर देता ै ये गायब,

    आाँचि में तेरे कौन सी ये फर ात ै?

    मााँ की ममता.....................................।

    म ाँ की ममत

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  • आवाज़

    2

    3

    ो धरा सी धीर तुम सागर सी ो गंभीर तुम,

    प्राण को जो ररत करदे ऐसा अमरत नीर तुम,

    छोटी सी दज़द के दिए ो जाती ो दकतनी व्याकुि,

    मााँ तेरे वात्सल्य में कौन सा ज़रात ै?

    मााँ की ममता.....................................।

    4

    बचपन से तािीम देती और जीने का तरीका,

    कुटंुब पर कुबािन करती अपना वो जीवन सरीखा,

    दे सकंू तुझे र पि मैं खुदशयां,

    तेरी खादतर ये यात ै,

    मााँ की ममता.....................................।

    l

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  • प्रतू्यष कुमार द िंह

    3

    o

    1

    दजसके कंधे पर मने ै बचपन दजया,

    नभ की असीम सी ऊंचाई को जा छुआ,

    सौम्य की जीवंत मूरत,

    रघुवीर सा अनीश वो ै,

    र कष्ट को पि में रे जो,

    दपता का आशीष वो ै।

    2

    द चदकयााँ जब बन सयानी,

    करती ैं व्याकुि ये मन,

    आरज़ू दफर कर सकंू जो,

    गुफ़्तगू कुछ मैं यूाँ शरमन,

    क्षण में पूरी आरज़ू कर,

    मादनंद सा रजनीश वो ै।

    दर्ता का आशीष

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