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Sample Copy. Not For Distribution.

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  • Sample Copy. Not For Distribution.

  • i

    पे्रम बीज

    The Seed of Love

    Sample Copy. Not For Distribution.

  • ii

    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

    Website: www.educreation.in __________________________________________________

    © Copyright, 2018, Ashwani Kumar Singla

    All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.

    This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales,

    and incidents are either the products of the author's imagination or used in a

    fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual

    events is purely coincidental.

    ISBN: 978-93-88381-59-8

    Price: ₹ 265.00

    The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.

    Printed in India

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  • iii

    पे्रम बीज

    The Seed of Love

    अश्वनी कुमार स िंगला

    EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)

    www.educreation.in

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  • iv

    दो शब्द

    संसार में जजतनी भी कही सुनी जाने वाली पे्रम कहाजनयां हैं उनसे

    कही ंअजिक वह कहाजनयां हैं जो पे्रम देहलीज पर ही घुट घुट कर

    दम तोड़ गईं। उन लोगो ंके पास पे्रम बीज तो था परनु्त उसको

    बोने और सीचंने का साहस नही ं था। वह बस पे्रम बीज को ही

    पालते रहे उसे कभी पे्रम बृक्ष बनने का सौभाग्य ही प्राप्त नही ं

    हुआ और बीज जनरथथक िूल में िीरे िीरे व्यथथ हो गया और पीछे

    छोड़ गया एक टीस।

    प्रसु्तत उपन्यास कुछ ऐसी ही कहानी है जो एक जभकु्ष के सम्राट

    होने तक की यात्रा है जजसमे वह अपने पे्रम वचन का पालन अपने

    प्राण संकट में डाल कर करता है। नाजयका पे्रम बीज को बहुत

    लग्न से पालती है परनु्त वह समाज के भय से और कुछ अपने

    स्वाथथ से उस पे्रम बीज को जीवन नही ंदे पाती।

    जकसी भी पे्रम बृक्ष को जीजवत रखने के जलए जवश्वास और वचन दो

    महत्वपूणथ जनजवष्ट हैं और चतुरता एवं स्वाथथ इसके जलए जवष हैं।

    इस ही मान्यता के साथ मैंने यह उपन्यास जलखा है।

    आशा करता ह ूँ कक मेरी पहली दो पसु्तकों ”किर" और ”दहुाज " की तरह आपको यह कथा भी पसदं आएगी।

    मेरे जपता श्री दुगाथ दास जसंगला,पंजाब जवश्वजवद्याल्य लाहौर से

    अंगे्रजी में स्नातकोत्तर थे। मेरे जपता जी तपा मंडी (पंजाब-भारत)

    में रहते थे और जिक्षा का उस समय (1930-1947), कोई जविेष

    सािन न था। वहां से वह एक जनश्चय कर आगे बढ़े और अपनी

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  • v

    मंडी के सबसे पहले अंगे्रजी में स्नातकोत्तर बने। उनकी

    असािारण लग्न और दृढ़ जनश्चय मेरे जलए सदैव एक ज्ञान का स्त्रोत

    रही है। मेरी माता श्री मजत कौिल्या देवी, जहंदी में रत्न प्रभाकर

    थी। उन्ोनें ने ही मुझे भाषा की गहराई और नाज़ुकता को

    समझाया।

    कृप्या आप मुझे अपने दृजष्टकोण से अवश्य अवगत करवाएं, मुझे

    प्रतीक्षा रहेगी।

    अश्वनी कुमार जसंगला

    [email protected]

    पजटयाला : 10 अकू्तबर 2018

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  • vi

    मर्पण

    मेरी प्रथम गुरु व् पूजनीय माता श्रीमती कौिल्या देवी को

    सादर समजपथत

    मेरी मााँ ने मुझे कलम देते हुए कहा था, “बेटा तुम लकीरें खीचंो,

    जबना सोचे जक वह आड़ी हैं या टेढ़ी। सीिा करना मैं सीखा दूाँगी।“

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  • अश्वनी कुमार जसंगला

    1

    पे्रम बीज

    (The Seed of Love)

    (समय काल = लगभग 150 ईसा पूवथ)

    मुख्य पात्र पररचय

    नाम भूजमका कायथ के्षत्र आयु

    चररता नाजयका गृह बाजलका जकिोर

    पुष्यजमत्र नायक जभकु्ष जकिोर

    दारुक चररता के

    जपता

    कृषक 50 वषथ

    मािवी चररता की

    माता

    गृहणी 48 वषथ

    आचायथ

    चन्द्रकृजत

    मुख्य

    आचायथ

    आचायथ 60 वषथ

    आचायथ

    सत्यकी

    िस्त्राचायथ िस्त्राचायथ 55 वषथ

    आचायथ

    देवकृजत

    आचायथ आचायथ 40 वषथ

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  • पे्रम बीज

    2

    देविर जभकु्ष जभकु्ष जकिोर

    करतवीर गृहस्वामी कृषक 60 वषथ

    पूवथजीत चररता के

    भाई

    सैजनक 22 वषथ

    रुपानी चररता की

    भाभी

    गृहणी 20 वषथ

    जवनम्रजीत चररता के

    पजत

    सैजनक 22 वषथ

    पुष्यजमत्र एक जभकु्षक है और आचायथ चन्द्रकृजत के आश्रम का

    जिष्य है। उनके जिष्य ब्रह्मचयथ का पालन करते हुए जिक्षा ग्रहण

    करते हैं और गााँव के हर घर से माह में एक जदन जभक्षा मांगते हैं।

    आचायथ जी ने प्रते्यक जिष्य को अलग अलग गांव आवंजटत कर

    रखें है। पुष्यजमत्र पाली गांव में जभक्षा हेतु जाता था।

    जभक्षाम देजह, जभक्षाम देजह कहते हुए पुष्यजमत्र ने दारुक का द्धार

    खटकटाया।

    चररता कुछ वषथ अपने नजनहाल जबता कर कल ही अपने घर आई

    थी। आज द्धार मािवी के स्थान पर चररता ने खोला।

    गौर वणथ, छरहरा बदन, केि मुख मंडल पर अठखेजलयां करते

    हुए और मुख पर चंद्र समान आभा देख एक बार तो जभकु्षक

    अचंजभत रह गया पर तुरंत ही स्वयं को व्यवस्स्थत करते हुए, कुछ

    झुक कर उसने जभक्षा पात्र आगे बढ़ा जदया।

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  • अश्वनी कुमार जसंगला

    3

    “आप िरीर से समू्पणथ, हृष्ट पुष्ट, ऊाँ चे लमे्ब लगते हैं, कोई अंग भंग

    भी नही ं है, जिर जभक्षा मांगने के स्थान पर आप पररश्रम कर के

    भोजन क्ोाँ नही ं अजजथत करते? हम भी तो खेत खजलहान,

    पिुिाला में पररश्रम करते हैं।”, चररता ने कुछ तुनक कर कहा।

    "देवी, आप सत्य कह रही हैं, मुझे पररश्रम करने में कोई आपजत्त

    नही ं है। आप मुझे कोई कायथ सौजंपये मैं अपनी यथािस्क्त उसे

    पूणथ करने का प्रयास करंगा”, पुष्यजमत्र ने सादर चररता से कहा।

    "ठीक है, आप पिुिाला में गायो ंके नीचे से सिाई कर दें और

    चारा काट कर डाल दें", चररता ने आदेिमय वाणी में कहा।

    पुष्यजमत्र ने अजिक समय न लेते हुए अपना जभक्षा पात्र एक ओर

    रखते हुए चररता से पिुिाला की जदिा जानी और चला गया।

    लगभग 30 कला (10 कला = 16 जमनट) उपरान्त पुष्यजमत्र ने

    आकर कहा, ”देवी, आप कायथ जनरीक्षण कर लीजजये और कोई

    तु्रजट हो तो कृप्या मुझे अवगत करवा दीजजये।”

    चररता ने जा कर पिुिाला का जनरीक्षण जकया तो पुष्यजमत्र के

    कायथ से प्रभाजवत हुए जबना न रह सकी। पुष्यजमत्र ने सारा कायथ

    सुरुजच पूणथ और व्यवस्स्थत ढंग से जकया था।

    आकर पुष्यजमत्र से बोली,”कायथ आपने मेरे मन अनुरप जकया है,

    अपना जभक्षा पात्र ले आएं।”

    "देवी क्षमा करें , अब आप मुझे जभक्षा नही ंअजपतु पाररश्रजमक दे

    रही ं है अतः आप से जनवेदन है जक अब आप यह भोजन मुझे

    जभक्षा पात्र में न देकर जकसी और पात्र में दें। उस पात्र से मैं अन्न

    को अपने पात्र में पलट लूाँगा", पुष्यजमत्र ने जवनम्रता पूवथक कहा।

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