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जीवनरंग (कविता-संग्रह)
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EDUCREATION PUBLISHING
Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001
Website: www.educreation.in __________________________________________________
© Copyright, 2018, Ajay P Wanode
All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.
ISBN: 978-1-5457-1927-5
Price: ` 170.00
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Printed in India
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जीवनरंग (कविता-संग्रह)
अजय पी वानोडे
EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)
www.educreation.in
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बात मेरे मन की...
o वज़न्दगी इस शब्द में सारा जग समाया हुआ ह.ै वज़न्दगी में चल
रह ेगवतविवधयों को कागज़ पे उतारना कविन काम ह ैपर मैंने मरेे
वज़न्दगी में चल रह ेएहसास को कागज पे उतारा ह.ै मैं कोई बड़ा
लेखक नही, मैं कोई बड़ा किी नही हु, पर भािनाये वदल म े
चभुनी लगती ह ैतो उसे कागज पे उतारना आिश्यक ह ैता
वदल को थोड़ा सकुुन वमले, मैंने भी िही वकया. मरेे मन के भाि
को, मरेे वदल से वनकल ेएहसास को मैंने इस वकताब के जररय े
लोगो को तक पहुचाने का प्रयास कर रहा हु. कही पे कोई
गलती हुई हो तो मैं माफी चाह गंा.
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प्रस्तावना…
o यह कविता संग्रह वहदंी और मरािी दोनों भाषाओ ं में वलखा
गया ह.ै बड़ी सरल भाषा म ेमनैे दोस्ती, प्रेम, वशक्षण, सखु दखु,
महेनत और वज़न्दगी को वलखा हु.
वज़न्दगी जीने का जनुनू, प्यार में ढलनेिाला िन, आशा
के वकरण, दोस्ती का महत्ि, ख्िाब परूा करन ेकी चाहत, दखु
की परछाई, मा की ममता और वज़न्दगी का हर एक पैल ुमैंने इस
वकताब में वदखाया ह.ै अतंत: यही कह गंा वक इस वकताब में मैंने
िन का पररचय वदया ह.ै
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आभार…
o मैं आभार प्रकट करता हु उनके प्रवत वजन्होंने यहां तक प्रत्यक्ष
अप्रत्यक्ष रूप से मझुे नय े विचार वदये, स्नेह वदया और मरेा
हौसला बढ़ाया. मरेे वज़न्दगी में चल रह ेमवुश्कल घड़ी में मरेे
साथ खड़े रहकर और वलखने के प्रवत जनुनू दखेकर मरेा हौसला
बढ़ाया ऐसे मरेे दोस्त श्वेता, संवचता, पिन, प्रवशक, गोपाल
बटघरे, नीलेश दादा, वनवतंन मानकर, सोनाली िानोडे, वमनल
वनखारे इनके प्रवत आभार प्रकट करता हु. कहते ह ै वज़न्दगी
आसान नही होती और इसी वज़न्दगी में सखु दखु की पररभाषा
होती ह.ै सखु के िक़्त साथ चलनेिालों की कोई वगनती नही
होती पर दखु की घड़ी में, कमजोर हालात में साथ चलनेिाले
बहुत ही कम लोग होते ह ैऐसे मरेे दोस्त, मरेा सबकुछ आशीष
गांजड़ेु और वदपक चन्ने, वजन्होंने मरेे मवुश्कल घड़ी म ेमरेा साथ
वदया और मझुे ने का हौसला वदया. वजन्होने मझु ेआवथिक
सहयोग वदया, मानवसक सखु वदया, इनके प्रवत वजतना आभार
मानु उतना कम ह.ै अतंता आभार व्यक्त करता हु उन अनवगनत
स्नेहीजनों के प्रवत वजनका यहा उल्लेख नही हो सका.
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viii
अनुक्रमांक
क्र. ववषय पृष्ठ
1. जब आशाओ को सजाकर दखेा 2
2. रर के गहराई को समझना आसान नही 4 3. कोलकाता एक पहलेी सी लगी 6 4. न ब 8 5. नोटबंदी 10 6. ऐ खदुा 12 7. वज़न्दगी यहुी वनकल जायेगी 15 8. तेरे रूप में मझेु नया रर वमला 17 9. यह शाम 19 10. कैसी आहट ह ैइस राज़ में 20 11. ररंकल 21 12. मेरी वज़न्दगी 24 13. दोस्ती 26 14. स्िबल 28 15. जमी स्िगि 29 16. वनकाल 31 17. जंगल 33 18. बथि डे 35 19. तुझा ध्यास 38
20. आई 39 21. ती 44
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ix
22. तूझी प्रीत 46 23. NEERI-APC DEPARTMENT 48
24. एक क्षण 50 25. नविन िषि 53 26. जीिन 54 27. वसविल इजंीवनयर 56 28. चररत्र 58 29. आपलेु ध्येय 60 30. स्िप्नाची धरुिर 62 31. जननी-आई 64 32. आई 66 33. जीिन 68 34. तुझी मैत्री 71 35. तुझ्या मवैत्रच स्िरूप 72 36. संध्याकाळ 74 37. पे्रम 76 38. स्िप्न 78 39. तू हो मन ना 79 40. अमतृ 81
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जीिनरंग
1
वहंदी सगं्रह
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अजय पी िानोडे
2
।। जब आशाओ
को सजाकर देखा ।।
o ख्िाबो के नए पररंदो को,
आज वदल म ेवबिा कर दखेा..।
सकूुन सा एहसास हुआ
जब आशाओ को सजाकर दखेा...।।
झिेु ऐसे वकतने नापाक चेहरे दखे ेह ैमैने,
सबकुछ ह ैवफर भी रोते चेहरे दखे ेह ैमैंने..।
घमडंो की शाला भरी ह ैमरेे आसपास,
उनको वकनारा न वमलनेिाली लहरे भी दखेी है मनैे..।
हाथ पकड़कर मझु े लनेिाली,
परी की चाहत को दखेा..।
सकूुन सा एहसास हुआ,
जब आशाओ को सजाकर दखेा...।।
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जीिनरंग
3
वजसे मैंने अपना माना था,
शायद उनकी वदल्लगी खत्म हुई..।
पर ऐसे हालत में भी,
कुछ नए लोगो की मरेे वज़न्दगी में आने की रस्म हुई.. ।।
मरेे वज़न्दगी की कुछ परुाने,
यादो को हटाकर दखेा..।
सकूुन सा एहसास हुआ
जब आशाओ को सजाकर दखेा...।।
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