shri guru hargobind sahib ji an introduction - 058a

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Page 1: Shri Guru Hargobind Sahib Ji An Introduction - 058a
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पंज पिपआले पंज पीर छठम पीर बैठा गुर भारी|| अज�न काइआ पलटि�कै मूरपि� हरिर गोबिबंद सवारी|| (वार १|| ४८ भाई गुरदास जी)

बाबा बुड्डा जी के वचनों के कारण जब मा�ा गंगा जी गभ�व�ी हो गए, �ो घर में बाबा पृथीचंद के पिनत्य पिवरोध के कारण समय को पिवचार करके श्री गुरु अज�न देव जी ने अमृ�सर से पश्चि8म टिदशा वडाली गाँव जाकर पिनवास पिकया| �ब वहाँ श्री हरिरगोबिबंद जी का जन्म 21 आषाढ़ संव� 1652 को रपिववार श्री गुरु अज�न देव जी के घर मा�ा गंगा जी की पपिवत्र कोख से वडाली गाँव में हुआ|

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�ब दाई ने बालक के पिवषय में कहा पिक बधाई हो आप के घर में पुत्र ने जन्म लिलया है| श्री गुरु अज�न देव जी ने बालक के जन्म के समय इस शब्द का उच्चारण पिकया|

सोरटिठ महला ५ ||परमेसरिर टिद�ा बंना || दुख रोग का डेरा भंना || अनद करपिह नर नारी || हरिर हरिर प्रश्चिभ पिकरपा धारी || १ || सं�हु सुखु होआ सभ थाई || पारब्रहमु पूरन परमेसरू रपिव रपिहआ सभनी जाई || रहाउ || धुर की बाणी आई || पि�पिन सगली चिचं� मिम�ाई ||

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दइिइआल पुरख मिमहरवाना || हरिर नानक साचु वखाना || २ || १३ || ७७ || (श्री गुरु ग्रंथ सापिहब, पन्ना ६२८)

श्री गुरु अज�न देव जी ने बधाई की खबर अकालपुरख का धन्यवाद इस शब्द से पिकया-

आसा महला ५|| सपि�गुरु साचै दीआ भेजिज || लिचरु जीवनु उपजिजआ संजोपिग || उदरै मापिह आइिइ कीआ पिनवासु || मा�ा कै मपिन बहु�ु पिबगास ु|| १ ||

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जंमिमआ पू�ु भग�ु गोबिवंद का || प्रगटि�आ सभ मपिह लिलखिखआ धुर का || रहाउ || दसी मासी हुकमी बालक जन्मु लीआ मिमटि�आ सोगु महा अनंदु थीआ || गुरबाणी सखी अनंदु गाव ै|| साचे सापिहब कै मपिन भावै || १ || वधी वेलिल बहु पीड़ी चाली || धरम कला हरिर बंमिध बहाली || मन चिचंटिदआ सपि�गुरु टिदवाइिइआ || भए अचिचं� एक लिलव लाइिइआ || ३ || जिजउ बालकु पिप�ा ऊपरिर करे बहु माणु || बुलाइिइआ बोलै गुर कै भाश्चिण || गुझी छंनी नाही बा� || गुरु नानकु �ुठा कीनी दापि� || ४ || ७ || १०१ || (श्री गुरु गं्रथ सापिहब: पन्ना ३९६)

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सापिहबजादे की जन्म की खुशी में श्री गुरु अज�न देव जी ने वडाली गाँव के पास उत्तर टिदशा में एक बड़ा कुआँ लगवाया, जिजस पर छहर�ा चाल सक�ी थी| गुरु जी ने छहर�े कुए ँको वरदान टिदया पिक जिजस स्त्री के घर सं�ान नहीं हो�ी या जिजसकी सं�ान मर जा�ी हो, वह स्त्री अगर पिनयम से बारह पंचमी इसके पानी से स्नान करे और नीचे लीखे दो शब्दों के 41 पाठ करे �ो उसकी सं�ान लिचरंजीवी होगी|

पहला शब्द-सपि�गुरु साचै दीआ भेजिज||

दूसरा शब्द-पिबलावलु महला ५||सगल अनंदु कीआ परमेसरिर अपणा पिबरदु सम्हारिरआ ||

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साध जना होए पिbपाला पिबगसे सश्चिभ परवारिरआ || १ || कारजु सपि�गुरु आपिप सवारिरआ || वडी आरजा हरिर गोबिबंद की सुख मंगल कलिलयाण बीचारिरआ || १ || रहाउ || वण पित्रण पित्रभवण हरिरआ होए सगले जीअ साधारिरआ || मन इिइछे नानक फल पाए पूरन इछ पुजारिरआ || २ || ५ || २३ || (श्री गुरु गं्रथ सापिहब: पन्ना ८०६-०७)

कुछ समय के बाद एक टिदन श्री हरिर गोबिबंद जी को बुखार हो गया| जिजससे उनको सी�ला पिनकाल आई| सारे शरीर और चेहरे पर छाल ेहो गए| इससे मा�ा और लिसख सेवकों को चिचं�ा हुई| श्री गुरु अज�न देव जी ने सबको कहा पिक बालक का रक्षक गुरु नानक आप हैं| चिचं�ा ना करो बालक स्वस्थ हो जाएगा|

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जब कुछ टिदनों के प8ा� सी�ला का प्रकोप धीमा पड गया और बालक ने आंख ेखोल ली| गुरु जी ने परमात्मा का धन्यवाद इस शब्द के उच्चारण के साथ पिकया-

राग गउड़ी महला ५|| नेत्र प्रगास कीआ गुरदेव || भरम गए पूरन भई सेव || १ || रहाउ || सी�ला ने राखिखआ पिबहारी || पारब्रहम प्रभ पिकरपा धारी || १ || नानक नामु जपै सो जीवै || साध संपिग हरिर अंमृ�ु पीवै || २ || १०३ || १७२ || (श्री गुरु गं्रथ सापिहब: पन्ना २००)

श्री गुरु हरिर गोबिबंद जी के �ीन पिववाह हुए|

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पहला वि ाह –

12 भाद्रव संव� 1661 में (डल्ले गाँव में) नारायण दास क्षत्री की सपुत्री श्री दमोदरी जी से हुआ|

सं�ान –

बीबी वीरो, बाबा गुरु टिदत्ता जी और अणी राय|

दूसरा वि ाह –

8 वैशाख संव� 1670 को बकाला पिनवासी हरीचंद की सुपुत्री नानकी जी से हुआ|

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श्री गुरु �ेग बहादर जी|

तीसरा वि ाह –

11 श्रावण संव� 1672 को मंपिडआला पिनवासी दया राम जी मरवाह की सुपुत्री महादेवी से हुआ|सं�ान –

बाबा सूरज मल जी और अ�ल राय जी|