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1 PAGES FROM THE DIARY OF SWARGIYE SATEESH CHANDRA BHATNASGAR NEEMUCH

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PAGES FROM THE DIARY OF

SWARGIYE SATEESH CHANDRA BHATNASGAR

NEEMUCH

CONSENT

From: neeraj Date: Fri, Apr 26, 2019 at 10:28 PMSubject: my consent for publishing the details about neemuch written by my father Lt Satish chandra BhatnagarTo:

Sir ,

Namskar

I am sending my  consent for publishing the details  about neemuch written by my father Lt Satish chandra Bhatnagar and details about my father with  photograph for uploading the website for the interest of public.

regards.

Neeraj Bhatnagar

9425106377

Neemuch

                                                                                                                                           

BHATNAGAR FAMILY

              

Sh bhatnagar wife and 3 son

Lt to Rt

neeraj ,mr bhatnagar, kamla, pankaj, jalaj

Mr. Satish Chandra Bhatnagar

Mr. Satish Chandra was born to   Jagdish Prasad Bhatnagar and Shanta Devi on DT 1 Nov 1938

Ataroli dist Aligarh .UP

He is completed his study in Neemuch in Year 1955 and graduation 1966 from Vikram university Ujjain

And settle down in teaching profession. He did lot of research on Neemuch history and in course of his life published a number of articles in various magazines and news papers and left behind a rich legacy of historical records some of these are published here under the title

“Pages from the diary of Mr. Satish Chandra Bhatnagar”

 

He passed away on 7 Oct 2018 at Neemuch leaving behind wife 3 sons and a daughter.

The people of Neemuch will always remember him with gratitude for his noble contribution to society through his writings. R I P.

PAGES FROM THE DIARY OF

SWARGIYE SATEESH CHANDRA BHATNASGAR

NEEMUCH

एक अंग्रेज लेखक – मेमल्स ने कहा था कि ईश्वर ने अग्रेजो को ईसाई धर्म को सम्पूर्ण भारत में फैलाने का महत्वपूर्ण अवसर दिया है और दूसरे लेखक – थामसर ने 1843 में लिखा है कि भारत की ओर देखो तो – लोगो की परिस्थितियों की तरह भी देखो जो कि अधिक निर्धन बना दिये गये है:-

राजाओं के राजपाट छीन लिये गये हैं।

सामंत या बडे बडे जमीदार अपनानित कर दिये गये है।

भू स्वामी समाप्त कर दिये गये है।

कृषक बरबाद कर दिये गये है। बडे- बडे नगर खेतो वाले गांव बन गए है और गांव बरबाद हो गये है।

भिखारीपन गुण्डो के जत्थो द्वारा लूट खसोट और विद्रोह प्रत्येक दशा में बढ रहे है ।

लोगो के लिय अधिकतम अनाज उत्पन्न करने वाली भूमि बंजर होकर कई स्थानो पर मुर्दे गाडने की जगह बन गई है, जो कि भुख से तडपते हुए मर जाते है।

उसने कहा - मै तुमको 5 लाख लोगो की खोपडियॉ दिखा सकता हू जो कि उत्तर पश्चिम प्रांत में कुछ ही महिनो में भूख से अकाल के दिनो में मर गये ।

इस अत्त्याचारो- अन्यायो के कारण ही भारतीयो का खुन खोला -पर अफसोस, काश यह वक्त बहादुरशाह जफर, तिलमिलाकर रह गया – उसने कहा हिन्दुओं में (भारतीयों में) बू रहेगी- जब तक धर्म की तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग (तलवार) हिन्दोस्तान की ।

1857 की आग की लपटे दूर देर तक फैल रही थी । इस स्वतंत्रता सग्रामें नीमच का भी अपना एक प्रमुख स्थान रहा है, यहा मई 1857 के अंतिम दिनो में मुहम्मद अली बेग नामक एक वार ने नीमच की भारतीय सेना को बहका दिया और यहा भी इस स्वाधीनता संग्राम का श्री गणेश हुआ ।

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3 जुन 1857 की रात्रि आक्टरलोनी हाल (वर्तमान में आफिसर्स मेस ) पर धावा बोल दिया गया ।विद्रोह को दबाने वाली सेना अब सरकारी खजाने को लुटने लगी। विद्रोह को दबाने वाली सेना अब सरकारी खजाने को लुटने लगी । विद्रोह से डरकर अग्रेंज अधिकारियों ने अपनी आत्मरक्षा का कोई उपाय न देख कर नीमच के किले में शरण ली परन्तु विद्रोहियों ने उन्हे वहॉ से भी भगा दिया।

डा. मरे , डा. गेन जैसे फौजी अधिकारियों को अपने बच्चो को लेकर भाग जाना पडा । सजेन्ट सप्लाय सपरिवार कत्ल कर दिया गया ,भागे हुए अंग्रेज अधिकारियों के पास गांव केसुन्दा (अब राजस्थान में ) में जो की नीमच से 7-8 किलोमीटर दूर है वहा जाकर शरण ली।

कुछ समय बाद केप्टन लायड और मेवाड सेनापति अर्जुंनसिंह के नेतृत्व में अग्रेजोने एक वार फिर नीमच के किले पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की ।

पकडे गये वीरो को तोपो से बांध कर उडा दिया गया तथा खाई (खंदक) में खडे करके उनके सिरो को घोडो की टापो (पैरो) से कुचला गया । नीमच की रक्षा के लिए केप्टर लायड और सेनापति अर्जुंनसिंह को नीमच में ही छोड दिया गया।

बागियो ने फिर से लगभग 4000 सिपहसालारो की एक अच्छी खासी सेना तैयार की और नवम्बर 1857 के पहले सप्ताह में ही उन्होने नीमच पर चढाई कर दी।

मोहन की बरी नामक स्थान पर उनका मुकाबला हुआ। केवलरी फोर्स को अन्त में निराश होकर पीछे हटना पडा और उसने किले की शरण ली । बागी सिडीयां लगा कर किले में धुस गये, हालाकि वे खदेड दिये गये। इस किले में मालवा की फील्ड फोर्स में भी विद्रोह फेल जाने से बागियो ने उनका भी सहयोग प्राप्त किया । यहा इस भंयंकर लडाई में सार्जेंन्ट निम्मो व कोनरी तथा लेफ्टीनेन्ट ब्रेंट मारे गये। बागी सफल हुए,बागियो की जीत की खबर सारे भारत में फैल गई।

गर्वनर जनरल ने नीमच विजय के लिए एक बडी सेना भेजी, असंगठित बागी हार गये, इस प्रकार अग्रेजी शासन फिर पैर जमाने सफल हो गया । विद्रोही पकडे गये एवं नीमच सिटी के बडे बरगद के वृक्षो पर टांग दिये गये।

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नीमच सिटी (नीमच नगर ) का मध्यमिक विद्यालय (वर्तमान में पी. जी. कालेज के पास ) उक्त्त समय अज्रेगी जेल थी उसके सामने वटवृक्ष पर कई देश भक्त्तो को उक्त्त समय फॉसी की सजा दी गई थी नाम अज्ञात जलाये गये या दफनाए गए अज्ञात ।

यह वटवृक्ष बरसो से अमर शहीदो की शहादते दे रहे है, ये याद दिला रहे है देशभक्ति की और हमेशा दिलाते रहेगे इस वाक्य को बार बार दोहराते रहेगी जियो तो देश के लिए मरो तो देश के लिए।

जीरन (नीरच ) की लडाई में शहजादा फिरोज की सेना के विरूद्ध 11 ब्रिटिश अधिकारी गए थे । रीड ओर अक्कर ये दो उनमें से थे । मैदानी लडाई में क्रांतिकारियों ने वीरतापूर्वक ब्रिटिश सेना का सामना किया व इन दोनो अधिकरियों का वे सर काटकर अपने साथ विजय चिन्ह के रुप में मन्दसौर ले गये थे ।वहॉ नगर के प्रमुख द्वार पर से सर टांग दिये गये थे । पराजित सेना इनके धड लेकर लौटी उन्हे नीमच के कब्रस्तान में दफनाया और महिला सिसिलिया मेलोर 5 थी जो नीमच का घेरा उठने के बाद 11 दिसम्बर 1857 में मरी । उस समय धर्म का हिन्दु और मुसलमानो में बहुत अधिक प्रभाव था।

भारतीय सैनिको को धर्म के नाम पर विद्रोह करने के लिए उकसाका गया ।भारत में राष्ट्रवाद की बहुत ही कमी थी । देश द्रोहियो ने देशभक्तो के महान उददेश्य महान कार्य को मिटटी में मिला दिया।

अग्रेज जनता की इच्छाओ का आदर नही करते थे वे भारत की आत्मा को समझ नही सके थे वे अपने को भारतीयो से श्रेष्ठ समझते थे और भारतीयों को नीच समझते थे तथा अपने आप को सत्यवादी तथा भारतीयों को झुठे, कपटी और अयोग्य समझते थे यहा भारत में उनके ईसाई धर्म के प्रचारक खुले आम भारतीय सभ्यता और धर्मो की निन्दा करते थे और ईसाई धर्म तथा पाश्चचात्य सभ्यता की श्रेष्ठता सिद्व करते थे ।वे भारतीयों को ईसाई बनाने की कोशिश कर रहे थे।

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अलग अलग कब्रस्तान

धर्म परिवर्तन से बने ईसाई लोगो के लिए वर्तमान में सी . आर .पी.एफ में अलग ही कब्रस्तान है बताया जाता है कि यह रोमक कैथोलिक्स का है

नीमच के पास बघाना के निकट गांव धनेरियाकला की कब्रे भी अग्रेजो की है परन्तु शिलालेख नही होने से और इनका कोई रिकार्ड नही होने से और इनका कोई रिकार्ड नही होने से कुछ भी पता लगाना सम्भव नही है । पूर्व में इन कब्रो को रेकार्ड बाम्बे डिविजन भेजा जाता था प्रश्न उठता है कि जीरन में मारे गए अग्रेजो की कब्रे जब नीमच में बन सकती है तो ग्राम धनेरियाकलॉ में क्यो बनी , अलग से क्या बनाई गई। कहते है कि ये लोग बिमारीसे मरे थे , क्या किटाणुओ की छुआछुत मानने वाले व मरने से भयभीतअग्रेज कब्रो में भी फर्क रखने लगे । छुआछुत की कारण उन्हे धनेरियाकलॉ में दफनाया गया और जीरन वालो को नीमच में सी. आर.पी.एफ. परिसर में स्थित कब्रस्तान में । एक कब्र गुराडिया देदा में है जो मल्हारगढ में है जिसमें व्यक्ति दफनाए गये है।

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अलग अलग कब्रिस्तान

धर्म परिवर्तन से बने – ईसाई लोगो के लिए – वर्तमान सी. आर. पी.एफ मे एक अलग ही कब्रिस्थान है। बताया गया है यह रोमन- कैथोलिक्सा का है।

नीमच के पास बघाना के निकट, गाँव धनेरिया कलां की कब्रे –भी अंग्रेजो की है । परन्तु शिलालेख नही होने से, और इनका रेकार्ड नही होने से, कुछ भी पता लगाना सम्भव नहीं है।

पूर्व मे इन कब्रौ का रेकार्ड Bombay Dioxin को भेजा जाता था।

प्रश्न उठता है कि जीरन मे मारे गए अंग्रेजो की कब्रै जब नीमच मै बन सकती है, तो ग्राम धनेरिया कलां की क्यों नही बनी। अलग क्यों बनाई गई

कहते है ये लोग बीमारी से मरे थे। क्या कीटाणुओ की छुआछूत मानने वाले मानने वाले व मरने से भयभीत अंग्रेजी कब्रौ मे भी फर्क रखने लगे। छुआछूत के कारण उन्हे धनेरिया कलां मे दफनाया गया और जीरन वालो को नीमच मे, ईसाइयो को सी. आर. पी.एफ मे दफनाया गय।

एक कब्र गुराडिया देदा मे है एक कब्र मल्हरगढ़ मे है

जिसमे दो व्यक्ति दफनाए गए थे।

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ब्रिटिश कब्रिस्तान की स्थिति:-

इस कब्रिस्तान-जिसकी नाप जोख मैंने व मेरे दोनों पुत्रो नीरज एंव जलास भटनागर ने साथ रह कर करचाई लम्बाई लगभग 129.50 मीटर एंव चौडाई 123.50 मीटर निकली / तथा इसका क्षेत्रफल 1599325 वर्ग मीटर हुआ ।

दीवार की ऊचाई 75 से. मीटर तथा मोटई 50 से. मीटर तथा मोटाई 50 से.मीटर है ।

इस कब्रिस्तान से 45 मीटर दूर आर की ओर –एक कुँआ भी अंग्रेजो ने –स्थानीय उपयोग के लिए बनवाया था ।

जिस पर लिखा है P.W.S. नं. पर CMETERY.इसके प्रवेश द्वार पर दो गार्ड रुम भी बनाये गये है। जो तिकोने- दिखने में आकर्षित र्हैं । दोनो में अब कोई गार्ड नही रहता है । दोनो गार्ड रुम का अन्तर .5 मीटर 55 से.मी है जिसमें लोहे का पुराना - जंग़ लगा दरवाजा लगा है। और उसमे –एक छोटा ताला लगा है ।

कब्रिस्तान में अनेक स्थानों पर संगमरमर के पप्थरों को । तराश –तराश कर कलात्मक ढंग से नामों की खुदाई कर कब्रौ पर –यादों एंव समृतियों को बनाये रखने के लिए लगाए है।

नीमच में अंग्रेजों की विरासत के रुप में – यह ब्रिटिश कब्रिस्तान एक महत्वपूर्ण स्थल है ।

नीमच छावनी से- पश्चिम में हुडको कोलोनी के समीप चार दीवारी में – छोटी बडी कच्ची पक्की छतरी नुमा–जहाज नुमा आदि यहॉ अनेक प्रकार की कब्रें विधामन हैं ।

इस कब्रिस्तान का प्रारम्भ कब हुआ तो स्परुर नहीं हों सका है

सर कटी महिया की मर्ति अपने स्थान से सरका दी गई है

डेविडविलियम का सुन्दर व कलात्मक पत्थर भी कब्र पर से हटा दिया गया है।

7 कुछ कब्रो का रिकार्ड निम्न प्रकार मिला है:-

1 2 3 4 5 6 7 8 9

No When Buried Case of reach Christion name Surname Age When buries Ouantity - trader Professions etc Signature by when Buried

1 13-May Fabrics remit tens Robert Powers 26 May 14th Private - H.M.S 89 th regiment C J Wilson atst. Captain

एकअन्य रजिस्टर मे अन्तिम कब्र का विवरण इस प्रकार मिला है

Burials- at Neemuch , church of North India ( Nov, 30 th ,1979-Bio case of Bhopal. cese of Bhopal.

Register No3 LAST Post Cause of death

S.No Year Months Date Christian name Surname Age Retired Commandant C.R.P.F Long illness

1 2 3 4 5 6 7 8 9

When Buried Name and designation of person by whom buried

10 11 12 13

Year Month Day

1982 July 6 th IIshwardan MAGARJI Pres. By incharge station church NMH

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ब्रिटश कब्रिस्तान में- पाप्त Burials के monument पर निन्न अभिलेख प्राप्त हुए है।

1. कैप्टन टुकर –जो जीरन के किले में मारे गये थे- उनकी कब्र नीमच के इसी कब्रिस्तान पर है- उसमें लिखा है।

SACRED - to the memory of capt –N.B. Tucker 2ND RT Bombay CB who fell is action whilst- gallantly leading his troop – against the rebels at JEERUV on the 23 RD of oct R 1857 aged 31 years.

Thin monument is erected by his brothels officers

2. दूसरी कब्र भी जीरन विद्रोह की है। वह भी यही नीमच कब्रिस्तान मे है उस पर लिखा है।

This monument is erected by his brother officers is memory of JAMUEL READ Esq. Capt. H.M’ 83 P REGI who was Killed in action at JEERUN on the 23 Oct. R 1857 aged 37 years.

3. तीसरी कब्र 1857 मे मारे गए ब्रेट महोदय की किले मे है जिसमे लिखा है SACRED – to the memory of RICHARD W. BREET. Aged .20 Liuet and NEGM BAY L CAVALRY who died in this fort on the 22 nd Nov. 1857 the day after the Rebels from Monde sore had raised the 14 days seize.

This monument is erected by his brothers’ officers as a mark of esteem and respect,

इस प्रकार – रजिस्टर के मान से 834 अग्रेजो की क्ब्रो का उल्लेख मिलता है।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे नीमच मन्दसौर क्षेत्र मे अनेक अंग्रेज मारे गए परन्तु घटना चक्र की तेजी व भय के वातावरण मे संभवत: सैकडो अग्रेजो को दफनाने का मौका ही नही आया । एक कल गुरू दिया देदा गाँवमे है एक कब्र मल्हारगढ़ (मंदसौर) मे है जिसमे दो व्यक्ति दफनाए गए थे।

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इन कब्रो पर किसी भी प्रकार के serial No’s सही ढंग से नही होने से कब्रो को ढूढना बड़ा ही मुश्किल है। जरा सा भी निगाह चूके, कि फिर ढूंढने का क्रम चालू ।

अच्छे – अच्छे बंगले छावनियाँ स्थापित करने वाले अंग्रेजो ने इस क्षेत्रमे वैसी सुन्दरता बनाने का प्रयास नही किया । अक्रम जहाँ चाहा-वही दफनाया।

यहाँ दो सुन्दर छवियाँ भी बनी हुई है। मैंने एक कब्र 1805 की ढूंढी जो सेफ नामक एक सर्जन की है अन्य अनेक यहाँ कच्ची पक्की कब्रे है। अनेक कब्रो के कीमती पत्थर लापता है( गायब है) यह कब्रिस्तान अपना सब कुछ खोकर आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।

मैंने ब्रिटिश दूतावास नई दिल्ली डायोसिसूनव सिहोर रोड भोपाल एंव रेवरेण्ट मिस्टर एम बी सिंह विशपसा इन्दौर को पत्र भेजकर 1857 मेंमारे गे अंग्रेजो को फाँसी पर लटकाए गए शहीदो की जीवनी जानकारी फोटोज मंगवाने हेतुलिखा था। उत्तर आज तक अप्राप्त है।

1- दशपुर जनपद

संस्कृति by सादिकअलीप प्रकाश मानव सतीश चन्द्र भटनागर निशान्स

पृष्ठ 37 से 40, 78 से 80 185 रा. कृ. नगर

से साभार संकलन नीमच -2 (म.प्र)

458889

मो. 94259-38298

2 - P 66 से 82

आधुनिक भारत

और विश्व इतिहास

की नई तिलक से

साभार - संकलन

अग्रवाल सं0 संलग्न-4

कब्रिस्तान के फोटो पर

1 - मुख्य द्वार दोनों ओर

2- ऊँची घास से ढका कब्रिस्तान

3- मुख्य मुख्य बढी कब्रे

4- ------------------------

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देशप्रेमी – व्हाइट स.

स्वर्गीय पेट .सी व्हाइट स. जो नीमच रेलवे में गाड थे और आजादी के बाद ईग्लैष्ड नही गये थे । वे एक निहायत .ईमानदार, समय एंव काम के पाबंद ब्यक्ति अपने जीवन काल में रहे है । उन्हे इस देश भारत से अत्यधिक लगाव इसलिये वे और उनकी माता मरने तक नीमच में ही रहे। उनके भाई विदेश चले गए।

वे आजीवन अविवाहित ही रहे । माता के दे हावसान के बाद उनके मित्र (मन्दसौर (म.प्र.) के निवासी) कर्नल श्री सज्जन सिंह जी, – उन्है – अकेले- होनेके कारण से –अपने साथ मन्दसौर लै गए

लेकिन उनकी असिम इच्छा थी कि – मेरी अंतिम बिदाई – इसी नीमच में हो और मुझे – नीमच के कब्रिस्तान में दफनाया जाये

उनकी यह इच्छा – उनके आत्मीय जनों के द्वारा पूरी की गई ।

उन्होंने – नीमच में – रहते हुए - अपनी अवस्था में अंग्रेजों के कब्रिस्तान और चर्च की । बडी ही ईमानदारी से देख रेख की है।

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रेकार्ड – रक्षक

कब्रिस्तान संबंधी, सारा क्षतिग्रस्त और चूर चूर हो चुका है ।जो कुछ रेकार्ड जैसा भी है । चौकीदार के पास है (उस समय चौकीदार अब्बास खॉ आजम खॉ पठान के पास था) गैरीसन चर्च, भोपाल डायोसिस वर्तमान मे – इन्दौर डायोसिस, चर्च ऑफ नार्थ इण्डिया- unitu witness surname C.R.P.F नीमचमे उपलब्ध है

कब्रौ संबंधी – रेकार्डसे लगता है कि 1859 मे नया विवरण तैयार किया गया है क्योकि Burial Register No-1 1859 ( may 13 to 1881) March 20 मे मुझे No-1 Burial की कब्र का रिकार्ड निम्न प्रकार मिला है।

अब्बास खॉ जी की दर्द भरी कहानी वे इस ब्रिटिश चर्च और ब्रिटिश कब्रिस्तान की रखवाली 30 वर्ष की उम्र से 30 ) कमासिक पर मिस्टर बेट सा. के कार्य काल मे लगे थे और कर रहे थे।

इन्हे पेन्टर के रूप मे – कपनी नं- 34 मे रख लिया था। फिर कपनी नं. 50 मे रखा गया।

इन्होने बतया कि मेरे सीधेपन का फायदा हर बार अंग्रेज उठाया करते थे ।काम इन्हें गिरजे की चौकीदारी का करना होता था + और वेतन कम्पनी से- मिला करता था । जब बटा लियन जाने लगती थी तो इन्हें Discharge कर दिया जाता था । कभी गिरगे के चौकीदार के रुप में कभी किसी अन्य पद पर । यदि स्थाई रखा होता तो – कई गुना बेतन व पैशन होती । अंग्रेजो ने लडके व दो लडकिया है ये और अन्य सभी रोज मजदूरी कर उदपोषण कर रहे है।

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डकैतो के घाव

दिनाँक 13.09.1998 को मै जीरन गुरूजी श्री भंवरलाल जी कास्ता से मुलाकात के लिए पहुँचा। मकान देखकर ऐसा लगा, जैसे कि यह हवेली कुछ पुरानी यादें अपने मै समेटे हुए है, बातचीत के आधार पर जो बताया वह लिखा है।

आप मुख्यरूप से उदयपुर के पास के गाँव नाई के दीवाने है,और आपका परिवार प्रतापगढ़ (राज.) एवं ग्राम चीतखेंडा (जीमच) म.प्र. होता हुआ जीरन मे संवत 1850 मे यहाँ आकर बसा। आपके पूर्वज दादा जी के दादा जी जो खांदान जो हीरन आये थे, उन्ही की यह छ्टी पीढ़ी चल रही है,

श्री रकब दास जी के जसंराज जो हुए और अनके पुत्र सुआलाल जी थे। ये 4 भाई बहिन थे सभी लगभग उस समय 16 वर्ष से कम उम्र के थे इनकी बहिन का नाम धापूबाई था। इनके पति भूरी लालजीमेहता उदयपुर दरबार के कामदार थे।

बहिन की शादी मे बारात मे बारात उदयपुरसे आई थी । भूरी तयाल जो हाथीचर चढकर तोरण मारज आये थे। बारात मे 402 बाराती थे और 8 दिन तक इनके यहॉ बारात ठहरी थी । बारात की आतिश बाजी इतनी जोरदार हुई थी कि आसपास की 4 दुकाने उसमे जलकर स्वाहा हो गई थी । उन सभी को इसा परिवार की और से मुआवजा दिया गया । बारात के घोडो और बैलो को टोकरे भर भर कर शुद्ध घी की जलेवियां इनकी और से खिलाई जाती थी।

बा. सा.सुआलगलसी के समय गाँव में कोई स्कूल नही था तथा लोग भी उस समय तनिक भी साक्षर नही थे। ऐसे उस जमाने में वे शुद्ध घी के कलश भर भर कर रखते थे व दिन भर उस बच्चों को जो खेलते हुए उनके यहॉ आते थे, बा.सा. स्वयॉ, अपने हाथ से एक मुटठी घी का डला तथा उसमे गुडिया शक्कर मिलाकर उनको दे देते थे।

दानेदार शक्कर खाने वाले को उस समय जाति के बाहर निकाल दिया जाता था उस समय ऐसा प्रचार था कि –दानेदार शक्कर मरे हुए जानवरों की हडडी के सहयोग से बनती है और गुडिया शक्कर खाने से और उसे घी के साथ खाने से शरीर की शक्ति में वृद्धि होती है।

बा.सा. को, रुपये गिनने नही आते थे। क्योंकि वे भी बहुत कम पढे लिखे थे अत: अनाज की तरह रुपयों का भी पंसेरी से उदार प्राप्त करने वालो को – तरजू में तौल - तौल कर देते थे और वह भी नही तौलते थे प्राप्त कर्ता ही तौल करते थे।

उस समय इनके यहा व्यापार अफीम का था तथा गाँव में उस समय केवल इनकी ही एक मात्र किराने की दुकान थी। उस समय अफीम का व्यापार खुला था । गुड की भेली टाइप अफीम की बटिटयॉ बनाई जाती थी उस समय रतलाम से नीमच तक रेलवे लाइन नही थी, पैदल ही आदमी रतलाम तक सौदा करने जाता था और 3-4 दिनो में वापिस लौट कर आ जाता था और उसके कथन पर ही में व्यापर चलाता था । अफीम की बट्टीयों के लेने देने के लिए कई कमरे इनके यह भरे हुए तैयार रहते थे इनका लेन देन इनके यहॉ उस समय होता था बडिया शादी लगभग रखी जाती थी ।इस परिवार की उस समय इतने हैसियत थी कि श्री हत्गन लाल जी की गोदावत की हुडिया और इनके यहॉ गुलाम की भक्ति को जीरन मे-

13 A

अत: यहॉ उस अफीम का व्यापार होता था । संड जाने से, इन सडी बट्टीयो का बाहर निकालकर फेंक दिया जाता था नष्ट कर दिया जाता था ।

सदर बाजार गणपति चौक की प्रतिमा , इन्ही के मकान की नीवं से निकली थी ऐसा इसके पूर्वजो ने इन्हें बताया था

इनका यह मकान एक प्राचीन धरोकर है और इसके साथ एक एक कहनी जुडी हुई है या यू कहे कि इनका मकान एक बीती हुई गाथा कह रहा है

मकान में प्रवेश के पूर्व हमें चबूतर पर पांव घर कर जाता होता है यह चबूतर पूर्व का ही बना है जिस पर कमरा बना है यह भी पहिले का ही निर्मित है इस पर की पट्टीया हुई हैं मकान की चुनाई सनला से की गई है सजला / सदेला चूने के पानी मिक्स्चर का कहा जाता था ।दरवाजा जब काशी दार है

आज इसकी लागत लगभग 20,000 आंकी गई है। इस दरवाजे को खोलगे की ट्रिक अलग ही है। जानकार ही इसको खोल सकता है, इसमें भीतर सर्कल नही है केवल भागल ही है बिना सर्कल के बन्द कर दिये जाने के बाद यह किसी से, खुल नही सकता है।

यह मकान सदर बाजार मे चौराह पर, गाँव के मध्य मे 50x50 के भूखण्ड पर बना हुआ है ।

यह भवन बाग पारुल कर के रास्ते पर । कलारो की घाटी पर बना है ।बाहर 50 फीट चबूतरा में मुंआरा बना है,। जिसके नीचे ताल घर बना है। यह चबूतरा ही इस हवेली मे आने जाने का मेहमानों का रास्ता है । चबूतरा दरवाजे की चौडई के बराबर चौडा है । यह दरवाजा 6x10 का है और आम रास्ते से 7 फीट उँचा था। चबूतरे पर खुरंजेदार चढाव है। इस मकान की पोजीशन यह है कि उस समय जो घोडे व ऊँट पाले जाते थे वे भीतर तक चले जाते थे वे इनके पाले हुए एक ऊँट ने क्षी सुआलाल जी को काट खाया था तो उन्होने उसे बेच दिया था ।

भुआरा पर मकान न०1600 की प्लेट लगी हुई है यहीं एक गुप्त मार्ग है, जिससे हवेली में आया जा सकता है स्टेट के जमाने से ही यह ऐसा बना है इस प्राचीन धरोहर को, आजतक किसी भी घर वाले ने नष्ट या परिवर्तन नहीं किया है केवल कुछ नवीन युग के मामूली संशोधन है चबुतरा 49x6 का है।

13 B

दरवाजे का स्तम्भ नाग के आकार का है, इस दरवाजे में 104 खाने बने है अर्थात यह दरवाजा खानेदार है । दोनों पलण्ड में यह खाने वर्गाकार है 14x4 के अन्दर के 3x3 के है, ऊपर लोहे के नुकीले कीले जडे है जैसे किलों के दरवाजों में होते है पर कम नुकीले है चौखटके स्तमभ 6x5 के है ।

एक पटटी पर दो हाथी चित्र गज लक्ष्मी के बने है । हाथी लक्ष्मी पर पानी फुहार करते हुए बताए गए है ।दरवाजा लकडी का ही बना है काला डामर सा पुता हुआ है ।चौखट का ऊपरी भाग बडी ही सुन्दर जब काशीदार है नीचे हाथी दोनों और अम्बाबाडी में बने है।

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गोखडे में नीचे की ओर 3 शतदल कमल है दोनों ओर हाथी बने है स्तम्भो में 3 शतदल कलाम अलग अलग डिजाइन के बने है छज्जे के बाहरी भाग में ताते लगे हैं। दरवाजे पर कामधेनु गायें मानव मुखी चोखट के दोनो और बनी है । पूरे मकान के चारो ओर तला घर बना है। कडाऊ के पलके का है इसमे अन्दर ही अन्दर एक गुप्तमार्ग एक ताक (आले) के भीतर से होकर जाता है यह संकट के समय में निकल भागने के लिए बनाया गया था । एक गोखडें में ऊपर की मंजिल जो तीसरी मंजिल मानी जा सकती है, वे ताक के भीतर ताक बना है संभवत: बहुत कीमती मात्रा के लिये यह बनया गया है और बैंक के लाकर का काड कर संकट के साथ काम आये इसी लिये बनाया गया लगाता है।

अधूरे छोडे गये मकान में भी ताक में ताक और फिर गुप्त ताक बना है। 33 के लगभग सीढियॉ बनी है । 20 इंच की नाल बनी है तीसरी मंजिल तक 1 जाल की लम्बाई 2/2 फुट एवं चौडाई एक फुट तथा मोटाई 3” के लगभग है। एक कमरे मे जाला (जीजा) नही है संकट के समय सीढी लगाकर नीचे उतरकर कमरो मे से होते हुए, बाहर निकला जाता था, यदि हमला होता उस समय, यही मार्ग बचाव का एक मात्र सहारा था।

मकान मे, चौपड टाइप गोखडे दूर दूर तक की निगरानी के लिए और बचाव के लिए बने हुए है तथा महिलाओके बाजार के दृश्य देखने के लिए भी काम आते थे । इसमे से बन्दूको के द्वारा निशाना भी साधा जा सकता था। सबसे ऊपर तीसरी मंजिल पर, नाल के ऊपर आडी पटिटयाँ लगाकर छत के पास मे छिपकर बैठने की व्यंवस्था की गई थी,ऐसी ही व्यवस्था छत की दूसरी और भी है पर खुली है।

उत्तर पूर्व के कमरे से गुप्त मार्ग लगा हुआ है । जिसमें तल मंजिल से होकर के बाहर निकला जा सकता है । दो कमरो में सीधे बाहर की और आने जाने वाली सीढियाँ बनी हैं।

छ्त पर महिला एवं परिवार के लिए बैठनेके लिए लटकता हुआ खुला गोखडा बना है। इसके तीन और नवकाशीदार पटिटयॉ है। एका नाल का छोटा सा कंगूरेदार गोखडा बना है । नीम चौक तक व चौराहे तक मार करने के लिए बन्दूको के मोर्चा बने हुए है।

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पुराने कमरे 8x10 के लगभग है। मिटटी से निर्मित है एक कमरे में एक गोल होल भी तोप की मार के लिये बना है । नाल में भी कीमती सामाज भरने के लिये गुप्त तिजोरी –दो पत्थरों की बनी है

वर्तमान में इस मकान में सेवा निवृत्व प्रधानाध्यापक श्री अंवरलाल जी रहते है । आपकी आयु इस समय 78 वर्ष है, आपने बताया कि हम सब दूसरी-मंजिल से ही आते जाते हैं ।

अपने बताया कि डकैती के घाव हम आजतक नहीं भूले हैं ऐसा हमारे बुजुर्गो ने बताया था ।

बात यूं हुई कि एक साधू जीरन में इनके मकान के पास सदर बाजार में मन्दिर के चेबुतरे के पास झौपडी बनाकर के रह्ने लगा व भजन आदि गा-गा कर जन मानस में अपना विश्वास जगाने लगा । वह गांजा पिया करता था तथा और भी लोगों को पिलाया करता था । गांव में कई लोग उस समय उस साधू के पास गांजा पीने जाया करते थे। सेट जी की हवेली में दो नौकर थे एक मराठा था तथा दूसरा तेली था। मेरु लाला बाद में जैन साधू बन गए थे ।

ये मेंरु लालजी के जानवरों देखाभाल व घरेलु कार्य तरफ

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सफाई /वायदा आदि व पानी भरने का काम इनके घर में किया करते थे और पराल उगाही लेने देन का काम करता था।

इस परिवार के दो बाग आम के ग्राम चीताखेडा मे भी ये उस पर अब दूसरों का कहना है। मराठा गंजेडी था, उसने ही गांजे के नशे में सारे घर का व सारे में सारा मर्द साधू को दे दिया। साधू डाकुओं का भेदिया था वह वार त्यौहार अष्टमी चौदा आदि की इस परिवार में भोजन करने आया करता था। उसने घर के सभी आने जाने के रास्ता मालूम कर लिये थे ।

जब डाका पडा तो माँ सब ने कहा कि हमारे घर के किसी भी ब्यक्ति को कुछ न कहा जाये, न ही इन पर कोई अन्याय हो । आपको जीतना धन चाहिये ले जा सकते हो।

यह डकैती श्री सुआलालजी के जमाने में जीरन में पडी थी –उस समय सुआलालजी की माताजी 70 वर्ष की थी। यह डकैती इनके घर दिन में दो बजे पडी थी। डकैत ऊँटों पर सवार होकर आये थे ।बैण्ड- बाजे के साथ । वे लगभग 200 डकैट थे । पुलिस चौकी से गांव छौडकर भाग गई थी और जनता भी भयभीत होकर भाग खडी हुई थी । डकैतों का सामना इनके ही परिवार को करना पडा।

साधु ही इन डकैतों को लेकर आया था और मराठा नौकर भी उनके ही साथ भाग लिया था ।

जीरन में डाका इसी मकान में पडा और कही नही पडा ।

डकैट सौधिये राजूपूत थे और वे इन्दौर की ओर से आये थे । ऊँट भर भर कर वे चाँदी के कलदार (सिक्के), सोने और चाँदीके आभूषण अन्य रकम आदि ले गये।

डकैत रूपयों की थैली जो 20-20 किलो की उस समय भरकर रखी जाती थी। भर भर कर ले गये थे थैलियाँ आज के सीमेन्टकी थैलियों की तरह इनके मकान में जमी रहती थी। लुटने के बाद भी इतनी समान्तता थी कि उसके रिश्तेदार आदि लोगों ने इसके यहॉ एकत्रित होकर के जाजम विछाकर 70 -70 हजार कलदारो की पक्ति इन सबके लिए की। 300 बीधा जमीन किसानो को बॉट दी गई।

बा. सा. के 5 भाई थे। डकैती के बाद मकान का काम अधूरा रह गया। जो अब भी बाकि है । डकैती के समय आपका जिससे लेना देना था। उनकी गिरवी मुक्त करने के साथ साथ आपने अपनी जमीन भी लगान नही भरने की स्थिति में जो ना रहता था, उसे स्वयं जमीन का टैक्स ना भरने के कारण से व रख- रखाव के कारण से उन्हें बिना लियेदिये जमीन हाक्जं को दी।

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बाद में परिवार के अन्य सदस्य इस घटना से खिन होकर के परिस्थितियॉ बदलने से गाँव छोडकर चले गये। जो 20-25 सालो बाद वापिस जीरन लौटें।

यह समस्त जानकारी गुरूजी श्री अंवर लाल जी कास्ता के कथन पर आधारित होगा- संकलन प्रस्तुत-

9/10/07

नीमच नई विद्या के लिए

प्रथम बार अप्रकाशित लेख

सतीश चन्द्र भटनागर

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जिला नीमच में प्राप्त

दिनाँक 21.04.17 को में और कमलसिहं जीरन के पास स्थित रामनाथ महादेव दर्शन और पूरा कार्य से गए। रामनाथ नीमच से जीरन होते हुवे भी जाया जा सकता है तथा दूसरा मार्ग चीताखेडा होकर जीरन जाने वाले मार्ग के बीच में पडता है । नीमच से जीरन 21 किलो मीटर है तथा 3 किलो मीटर पश्चिम मे यह स्थान गाँव लपुरा हो कर पहुँचा जा सकता है।

यहॉ शिव मंदिर है एक नाला है जहॉ ग्रीष्म में भी जलभरा मिलता है। पास में पहाडी स्थल है। विद्यामयीन छात्राओ के साथ 2 बार मुझे यहॉ और जाने का अवसर मिला ।

यहाँ शैलाश्रय बरसात व सरण के कारण सभी टूट चुके है मुझे यहॉ केवल एक स्थान पर ही मंदिर से आगे दक्षिण पश्चिम में एक स्वास्तिक चिन्ह पतली रेखा में मिला है जो 7 cm x 6 cm का है रंग लाल है (फोटो सलगन है)

हर भारतीय इस बात से अवगत है कि स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक का सूर्य से गहरा संबंध माना जाता है स्वास्तिक का आधार सूर्य से है हजारों लाखो और करोडों वषो से यह चिन्ह हिन्हुओ में श्रद्धा से पूजा जाता है। इसके बिना हिन्दुओ में कोई भी शुभ कार्य पूर्ण नही माना जाता है। यही चिन्ह जर्मनी देश के राष्ट्रध्वज मे भी शोभायमान रहा है। इसका अर्थ चतुष्पश चौरहा बताया गया है । अर्थात सुख करने वाला और आनन्द देने वाला माना जाता है ।

ऐसा ही एक स्वास्तिक चिन्ह हमें R.S ग्रुप का (रमेश पंचोली+ सतीश चन्द्र भटनगर) बडे –राम (भानपुरा) 303 में 12.10.77 को चट्टान न. A.3 पर मिला स्वास्तिक का हमारे यहॉ बडा महत्व है। सुख, वैभव, यश, कीर्ति और आनन्द का प्रतीक देवता समझ कर हर हिन्दु हर मांगलिक कार्य में प्रथम और प्रमुख स्थान इसे देते है। बौद्ध जैन सिख पारसी भी इस आदर करते है बुद्ध भगवान के पद चिन्हों एडियों और उगलियों में यह चिन्ह अंकित थे। 92 स्वास्तिक थे। यह चिन्ह पवित्र स्थानों मंदिरों मूर्तियो पवित्र वस्तुओं में तथा शिवालियों में हवजाओ में, अत्यन्त प्राचिन समय से अंकित होता आ रहा है। महाराजा बिक्रमादित्य के राजध्वज के मध्य में लाल रंग से यह अंकित था। म्याँमार चीन कोरिया जापान व अन्य देशों मे भी इसे किसी न किसी रूप स्वीकारा गया है।

2. रामनाथ मंदिर के बाहर बहुत बडे .बडे कई शिलाखण्ड हुवे है । जिनके कारण पहाड़ का क्षरण इस ओर से रुका हुआ है । एक पत्थर पर कुछ लम्ब रुप में खुदा हुआ है यह पत्थर पर ओर से रुका हुआ है ।

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एक पत्थर कुछ लम्ब रुप में खुदा हुआ है यह पत्थर जमीन से चोरो ओर उँचा है अत: कराव या पपडी का उतरना नहीं माना जा सकता । कमल सिंह की जहाँ उँगली है वहाँ गाय का चित्र दिखाई देता है। स्वास्तिक भी अंकित लगता है (4 फोटो संलगन 2 pc +24x6)

3. गडिया महादेव (डीकेन जावद) में मुझे एक चिग ऊपर की गुफा में कई ओर द.प ओर जहॉ लेट कर देखने पर मिला फोटो न. 279/30 संलगन है। हिरन का चित्रहै जो दूर पहाडी पर साँझ ढले ढकान पर कान निहार रहा है एक चित्र साफ है व दूसरा आधा आदि युग मानव कला का जानकार था वह जहाँ जह भी गया जहाँ भी ठहरा रहा चित्र बना ये और उसने अश्माय करण

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मानवीय

उपसंचालक महोदय

पुरातत्व एवं संग्रहालय

`पश्चिमी क्षेत्र, इंदोर (म.प)

महोदय,

आपका पत्र क्रमाक 1347/91 दिनाँक 06/9/91 मिला / धन्यवाद नीमच में मैंनें 18 शिलालेख खोजें है इसी तारतम्य में उन पर भी दृष्टि पास कर लें तो उचित होगा । उनके रख रखाव की व्यवस्था भी हो जाए तो उतम रहेगा 13शिलालेख तहसील में है 2 नदी पर है 1 वायलावा है के मन्दिर में है बाबरियों पर 1 श्याम सुंदर जी भटनागर के खेत में है नीमच का नाम नीमच बताता है केंन्टरोड पर है

इन सबकी प्रतिया और उनकी भाषाओं की जानकारी संलगन है। इन सबकी प्रतिया मैंने जिला पुरातत्व को भी समय समय पर दे दी है। कन्दीनर महोदय इंटैच विधायक

महोदय नीलम के भी देरी है।

आशा है इनकी सुरक्षा विषयक कदम उठाया जाएगा ।

नेवड वावडी और उसकी खुदाई निषमक भी मैंने श्रीमान को पूर्ण मे पत्र प्रस्तुत किया है अन्य उसे भी दृष्टि पाल कर लेगे तो उत्तम रहेगा। संमवत: मंन्दिर की मूर्तियां और भगनावशेष उसमे है।

शेष फिर

संलगन- 1- तेरह पत्थर 6/6/70

2- 8/9/70 के मिले शिलालेख रिपोर्ट

3- 24/7/70 -------उना---------आपका

(सतीश चन्द्र भटनागर)

सदस्य जिला पुरातत्व संध मन्दसीट

पसाधर 185 नगर नीमच-2

(शिअक कालोनी)

मन्दसौर (म.प्र)

428447

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मातृभूमि ही सब कुछ

स्वतंत्रता सबको प्रिय है । चाहे वे पशु –पक्षी हों या फिर इंसान आजदी वहुत बडी कीमत मांगती है और इसका सुख वही जान सकता है जिसने गुलामी का दर्द सहा हो । हम आजाद ही पैदा हुए थे। इसलिये आज हमारी नजरों में आजादी के लिये लडने वालों तथा उनके दिलाई गई आजादी के मह्त्व को हम नही जान पा रहे है । जो सरसर गलत बात है ।

आखिर आज क्या हो रहा है, हम लोग आंखें होते हुए भी अंधे वन रहे है । सब कुछ देख कर भी अनेदेखा कर रहे है ।कोई सही बात करने, सुनने, देखने वाला ही नही है। आज आदमी बेहद स्वार्थी हो गया है। लोगों में सही काम करने की शक्ति ही समाप्त हो रही है। आज देश को चाहिये एक ऐसा वट वृक्ष जिसकी छत्रछाया में देश निश्चिंततापूर्वक विश्राम कर सके ।

अटलजी ने कहा मेरे दिमाग में एक ऐसे भारत की तस्वीर है जहॉ न भूख होगी, न भय होगा,न निरक्षरता होगी, न निर्धनता होगी, मैं ऐसे भारत की कल्पना कल्पना करता हूं जो संपन्न हो सुढृढ़ हो,

संवेदनशील हो तथा विश्व के महान राष्टों के बीच फिर से अपना स्थान प्राप्त करे। ईश्वर करे भारत उस दिन का दर्शन करे ।

स्वतंत्रता से उडान भरने वाले पंछी को पकड कर सोने के पिजरे में कैद कर दिया जाये तो क्या वह उडने के लिये पंख नहीं फडफडाएगा ? अवश्य ही । फिर हम ऐसे कर्म क्यों कर रहे है जिसने हमारी स्वतंत्रता खतरे में फिर पड जाये । आज तो सता सुख की कमना हर किसी को पीडित करने लगी है जब कोई नेता कुर्सी पर होता है तो उसे सब कुछ ठीक नजर आता है और जब वही विपक्ष में आ जाता है तो उसे सब कुछ गडबड नजर आता है सत्ता के वक्त जो संपत्रता, खुशहाली विकास और शांति नजर आती है । वह विपक्ष में आते ही गायब क्यों हो जाता हैं ?

पं. जवाहर लाल नेहरु ने अपनी पुत्री ने अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को नैनी जेल से पत्र भेजकर कहा था कि मेरी प्यारी बच्ची जन्म दिन पर मैं तुम्हे भौतिक उपहार तो भेज नही सकता , यह मेरी भावनाओं का उपहार दे रहा हूं । हम कभी कोई ऐसा कार्य नही करे,जो हमें हमारे लक्ष्य तक पहुचाने में बाधक हो या इसके विरूद्ध और हमारे राष्ट्र के लिये अपमानजनक बने ।

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पूर्ण स्वराज्य के पूर्व जिस प्रकार देशभक्तों ने रावी तट पर प्रतिज्ञा की थी कि जब तक देश के दुश्मनों को हम देश के बाहर खदेड नही देंगें तब तक हम शांति से नहीं बैठेंगे। न ही उन्हे चैन की सांस लेने

देंगें । वैसा ही समय आज भी हम देख रहे हैं हमारे यहां कोई गुनाह करता ही नहीं सब के सब निर्दोष होते है और हर गुनाह के पीछे शब्द मिथ्या था भ्रामक था, षडयंत्रपूर्ण था, दुर्भावनापूर्ण था जैसे सुरक्षा कवचों या बुलेटप्रूफ जैकेटों का इस्तेमाल करके हम सही सलामत बच निकलते है । भरे पटों की छटपटाहट , भूखे पेटों से बहुत ज्यादा होती है । नशीली वस्तुओं पर स्थानीय स्वायतशाली प्रतिबंध होने के बाबजूद भी हम अवयस्कों को बेच रहे है । यह जानते हुए भी कि मात्र बीडी, सिगरेट, तंबाकूं से ही 21 हजार लोगों की मृत्यु रोज हो रही है । गुटखा, शराब, गांजा, भी हम बेच रहे है ।सड़क एक्सीडेंट जो मानवीय लापरवाही के ही कारण होते हैं ,न जाने कितनी मौत और होती होंगी इसका अंदाज लगाना मुश्किल है। एड्स मौत का दूसरा नाम है जिसे अय्याश पिता दहेज में लेकर आता व उत्पन्न होने वाली संतान को देता है । खुद भी मरता है और अपने परिवार को भी मौत की नींद सुलाता है । क्या आजादी इसलिये मिली थी ?

आदमी जमीन पर चलता हुआ ही अच्छा लगता है आकाश में कल्पना लोक में उड़ता हुआ नहीं । हम जब यह मान लेंगे कि जन्मभूमि ही हमारी जन्मदाता है। हमारी न कोई मां हैं , न बाप,न भाई – बंधु, न पत्नी,न पुत्र,न घर ,न द्वार हमारे लिये सिर्फ मातृभूमि ही सब कुछ है । हम सब एक ब्यक्ति की ही संतान है । मौत एक बार आती है दो बार नहीं । देश के लिये बार बार मरना पडे तो बार बार जन्म लेंगे।

सगठन प्रयास सफंल हों

मैंने आपकी पत्रिका चित्रगुप्त बंधु ‘ पढी । जबलपुर में कायस्थ समाज के लोकप्रिय वंधु चि.वेद प्रकाश अघौलिया जी ने यह पत्रिका मुझे पढने को दी थी । उन्होने आपकी काफी प्रशंसा भी की थी । जो पत्रिका पढने पर और अच्छी तरह से मालूम हो गई ।

आपके द्वारा प्रकाशित ‘चित्रगुप्त बंधु’ कायस्थ समाज के लिये एक वरदान है। जिसमें आपकी पूरी मेहनत और अनुभव का समावेश है वह जानकारिया जो कि वास्तव में हमें अधूरी हैं ,उन्हें हम इसमें पाते ।मुझे ‘चित्रगुप्त बंधु पढकर अहसास हुआ कि कायस्थ समाज के लिये और समाज में आप जैसी विभूति भी है

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जो कि हम लोंगों के लिये और समाज के अविवाह बच्चों के लिये तथा उनके वैवाहिक संबंधो के लिये सबसे महत्वपूर्ण है । चि. अधौलिया जी स्वयं जबलपुर में समाज की गतिविधियों में लगे रहते हैं। आज उनके कारण नगर में , पूरे मध्यप्रदेश में उनके लिये कार्यो की प्रशंसा होती हैं । हम सब उनसे काफी प्रभावित हैं ।चि. अधौलियाजी ने अपनी छोटी सी उम्र में 70-80 विवाह संस्कार संपत्र करवाये हैं जो वास्तव में तारीफे काबिल है । आप लोंगों का भी उन्हें आशीर्वाद प्राप्त है ।आपकी प्रशंसा उन्होंनें अपनें प्रत्येक कार्यक्रम में की है। आप लोंगों की सक्रियता समाज में जरूर एकता लायेगी, क्योकि कयस्थ एकत्र होने से हमेशा डरता रहा है आपके समाज संगठन के प्रयास सफल हों, यही कामना है ।

चि.आर.ए.श्रीवास्तव,

उखरी रोड, जबलपुर (म.प्र)

उतम पत्रिका

मुंशी प्रेमचंद जी की 125 वीं जयंती के अवसर पर’ चित्रगुप्त बंधु ‘ में विशेष सामग्री प्रकाशित कर अभिनेदनीय कार्य किए हैं ।उनके बारे में कुछ अनछुई सामग्री प्रकाशित कर चित्रगुप्त बंधु ने अनुकरणीय पहल की हैं। मैं विगत कई वषों से ‘चित्रगुप्त बंधु का पाठक हूं। मेरा यही अनुभव रहा है कि ‘चित्रगुप्त बधुं’ अपने प्रत्येक अंक में कुछ विशेष समाज हित में प्रकाशित करता रहता है ।

उसी परंपरा में मुंशी प्रेमचन्द्र पर प्रस्तुत सामग्री है। संपादकीय उम्दा है। विगत दिनों मुंशीं प्रेमचन्द्र जैसे साहित्यकार के साहित्य के बारे में जो आरोप लगाए गए, वह ठीक नहीं । इससे स्पष्ट होता हैं कि आज के पाठक की सोच कितनी उथली है। रंगभूमि को लेकर जो प्रदर्शन किया गया,वह उनके संस्कारों के अनुरूप हल्की मानसिकता का प्रतीक मात्र है । मुंशीजी की सोच को लोग छू भी नहीं सके । मुंशीजी के जीवन वृत पढने से अनेक बातें मालूम हुई । सुश्री ऊषा श्रीवास्तव का लेख उच्च कोटि का है। कायस्थों का आदि निवास शोधपरक लेख है। नई जानकारी मिली है। कुल मिलाकर पत्रिका उत्तम है प्रकाशन मण्डल धन्यवाद का पात्र है ।

चि.बांके बिहारी माथुर

नागोर (राज.)

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राष्ट्र के सच्चे सपूत

प्रेमचंद्रजी के बारे में पढ़कर , उस पहान सहित्यकार के प्रति , मन में श्रद्धा जागृत होती हैं। कितने महान विचार थे उनके । उन्होंने तत्कालीन समय की घटनाओं को जीवन रुप में प्रस्तुत कर, उन परिस्थितियों का वर्णन सही दृष्टिकोण अपनाकर किया, वह प्रेमचंद्र जी जैसे महान साहित्यकार

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सेवा में,

श्रीमान जिलाधीश महोदय

मन्दसौर(म.प्र.)

महोदय,

डन्टेच नीमच के लिए कार्य करते समय मुझे नीमच सिटी में जहॉ पूर्व में 16 शिलालेख प्राप्तहुये थे, वहॉ दो और प्राप्त हुवे है, शिलालेखों का इतना बडा भण्डार अन्यत वहॉ प्राप्त हुआ है, मेरा निरंतर प्रयास और भी अन्यत ढढने का है।

इसके साथ ही मेरा अनुरोध एंव सुझाव यह है कि भविष्य में दो और संग्रहालय बनाने के इन्तजार तक इन सभी शिलालेखों को किसी शासकीय पुरावियके संरक्षण में निकलवाकर ऐहतियाती से नगर सुधार न्याय के किसी एकान्त कमरे में रखवा दिया जाएगा, तो अति उत्तम होगा, और जब संग्रहालय का निर्माण आरम्भ हों तो इन्हें दीवार में चुनवाकर स्थापित कर दिए जायें।

दिनाँक 8.9.90 को मुझे ये दो शिलालेख मिले है उनकी भाषा निम्नानुसार है:-

एक शिलालेख छायजाबाई के शंकर मन्दिर में रखा है जो जगत भईया के पान की दुकान के पास है जिस पर बायें तरफ सूरज है बीच में गाय तथा दायें तरफ चन्द्राकृति बनी है, उसमे लिखा हैं:-

श्री राम जी :

इलाके नीमच हेडे के गौपीयो ने चीता पेडें डाका डाला उन पर कसूर सबित हुआ कुल गौपीयों इलाके पास व इलाके नीमच हेडे व उदेपुर बगेरा जमा होकर काफी कसूर हो हाकमान जी ने नीमच से हुये इस तरस पर माफ हुआ के कोई हमारा जात का कभी किसी तरह की वारदात बोले नीमच में न करेगा करने वालो को अद मरे की हालत में उसकी मापे गया रहे सकतीधार रोटी बेटी न पाये सरकार गुनेगार गुनेगार को सरकार में हजिर करें के सजा पाये बीच मोतीयों से आलस औलाद हमारी में हो यों इस तालाब की मनता रहें । हम पंच कोम मोतीयों ने कैशीला कर मधर में से चांद सूरज तारा वण को चाबी देकर रोपी तारीक 22 फरवरी तन इस मीति फागन सुदी नीमच – 1925-1867.

नीचे चित्र बना है बायें घोडा दायें हाथी, यह शिलालेख 13 पंक्तियों में समलीत हैं 122 पर्व नीमच

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सतीश चन्द्र भटनागर,

निशान्त

185 राधाकृष्णन नगर

नीमच-2

नीमच तहसील में उपलब्ध तीम्रपत्र क्रमाक -3

महोदय

तृतीय त्राम्रपत्र जो मुझे नीमच तहसील में उपलब्ध हुआ उसकी हूबहू वाचन निम्नानुसार है

चन्द्र श्री मोहर गुवाततियर महाराज सूर्य

ग्राम मेंवा सादू लाखा नबाब का नीमाहेडा जीसमें ठाकुर साहेब अमरतींगजी की बाहार मेलालो कटारो भील ठाकुर बटल्यौ ह नाहर साइन बाब की बार मेलालौ कटारोबटल्योह सब पंच चौरासी जात भेरी होकर जात में नही ली हो हे जात भीलाला टाकुर के सगमे कर दीनो ह अणी का आल ओलद ने मानजो दारी दीजो और जो भील ठाकुर नीमा नेमा तो जात होवेगा जीने माहादेवजी का सो गन है गाम मनोर थाना का दरबार भीलाला ठाकुर मनोरसींगजी दरबार का बैठा रामसींगजी का ऊकारसीगजी दरवार ऊकारमाराज का गोत दरो दीयागाम मेरायाखोडा का पंच ऊकारसीगजी का अमरतीगजी गौत मेंडा गाम कालीकराइका पंच्भरसीगजी बदसीगजी गौत बामण्यागाम पीपल्या पंच सौजी गात कटारा गाम आमासर का पंच देवीसीगजी गोत खौराडो गामगाम कोवडीया पंचगेदा गोत नेवल्य गाम नीलपीया पंच हीरा गोत ख्तेडीया ग्राम ठुटीया पंच सावत गौत मुनर गाम खामाखोडी पंच माधुगोत रेब्बाल ग्राम केलुखोडी पंच कौलसीगजी गौत का गलीया रामसींगजी गोत चुवाण गाम तेलणी पंच देवा गौत डबकी ओर नंदा गोत खाटकी गाम ऊबतली पंच ऊमानती ग गोत चुवाण जगनाथगोतमडो इसको पंच गोत खानेडीया गाम चगेडी पाचभामा गोत दावा गामकोटडा ऊकार पंच गोत सासता के सागौत भुरीया गाम ग्राम गोगडपरका पंच देवा गोत धोइधा गाम समलीका पंच भेरु गोत परमाण खौत पालीया पंच ऊकार गोत गणवररा ग्राम मौडी पंच भरो गोत जादु मोतीसीग गोत सेसोदीया भेरु पंच गोत धायण गाम बरषेड पंच ऊकार गोत बलाकेसो गोत नीनामा पंच कारुगोत कीट गाम नानपुरा पंच भेरो गोत धारा परमाण गाम केलुखेडा पंच रामा गोत बरेडा देवा गोत रकबाल नंदा प्रेत पुरीया भवान गोत दाइमाचेना गोत मारी कारु गोत बरेडामोती पंच गोत बडरा गाम रुपुरापंच देवा गोत पु खीया भमरलाल गोत मकयाण पंच नंदो गोत हरमार भुरो पंच गोत चुवाण संकर गोत पजवाल गाम बारखोडा पंच भेरुबाला गोत साकला कतनागौत मुछार सब पंच भेंला

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होकर ऐक हजार रुपया की जमानत नीह कोई थाना पुलीस तंग नही करना या या भील ठाकुर का भील ठाकुर का नट है

द: माधुसीगका द: ऊकारसीग का

द:माधुतीगका द: देवीसीगका समत का

कोई नट भील ठाकुर सीद यदजामे पिती सावन बुदी मागह

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विश्व का दूसरा पुरातत्व खजाना

भानपुरा सुप्रसिद्द पर्यटक स्थल चंतुरभुजनाथ से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा की और जहॉ श्री रमेशकुमार पंचोली संतीश चन्द्र भटनाकर एवं जावेद हुसैन (ए.आर.एस.ग्रुप) द्धारा विशाल शेलचित्रो तथा गुफाओ का पता लगाया है । उनके पास ही तीन नालो का संगम है जो पर्यटन की द्दष्टि से काफी महत्वपूर्ण है 500 व्यक्ति इन गुफाओं में बैठ सकते है यह झील लगभग 2-3 किलोमीटर लम्बा है तथा 54 प्लेटफाम है जिसमे हजारों चित्र है सैकडों गुफाएं है दिन में भी वही दिएं है । जो भी ब्यक्ति इस रथान को देखेगें खुशी से मारे झूम उठेगा विश्व मे शायद यह स्थान दूर दूर तक प्रसिद्ध हो सकता है प्रसिद्ध स्मणीय