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WEST BENGAL STATE UNIVERSITY Berunanpukuria, Post - Malikapur Barasat, 24 Parganas (North) Kolkata - 700126 West Bengal SYLLABUS OF M.A. IN HINDI W.E.F. ACADEMIC SESSION 2014 COURSE CODE - 204 Semester Credit Points I 18 II 18 III 18 IV 18 Total Credit Points = 72

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  • WEST BENGAL STATE UNIVERSITY

    Berunanpukuria, Post - Malikapur

    Barasat, 24 Parganas (North)

    Kolkata - 700126

    West Bengal

    SYLLABUS OF M.A. IN HINDI

    W.E.F. ACADEMIC SESSION 2014

    COURSE CODE - 204

    Semester Credit Points

    I 18

    II 18

    III 18

    IV 18

    Total Credit Points = 72

  • ह िंदी विभाग

    एम.् ए. ह िंदी

    सन 2014 से लागू

    प्रोग्राम स्पेशिफिक आउटकम : (Programme Specific Outcome)

    स्नातकोत्तर ह िंदी के चार सत्रों के अध्ययन करने के पश्चात शिक्षार्थी को ह िंदी साह त्य की विशिन्न विधाओिं और विविध पररदृश्य के बारे में स्पष्ट ज्ञान प्राप्त ोगा | साह त्त्यक कृततयों से गजुर कर उसकी साह त्त्यक समझ विकशसत ोगी| सार्थ ी, उसे रचनाकार के समय और समाज में व्याप्त तमाम पररत्स्र्थततयों और मलूितू प्रिवृत्तयों की जानकारी ोगी | मौजूदा समय में साह त्य की प्रासिंगगकता को समझने में िी य पाठ्यक्रम स ायक ोगा | एम.् ए. ह िंदी पाठ्यक्रम के सफलतापिूवक अध्ययन के बाद शिक्षार्थी में सिंिेदना का विकास ोगा एििं एक बे तर मनषु्य बनने के प्रयास को बल शमलेगा |

    कोर्स आउटकम (Course Outcome)

    र्ेमेस्टर : 1

    र्ीओ 1 : ह िंदी साह त्य के आहदकालीन और मध्यकालीन साह त्त्यक इतत ास के बारे में स्पष्ट अिधारणा विकशसत ोगी | उक्त कालखिंड में रची गई रचनाओिं के सन्दिव में इतत ास दृत्ष्ट का िी पररचय प्राप्त ोगा |

    र्ीओ 2 : प्राचीन और मध्यकालीन ह िंदी काव्य के स्िरुप से पररगचत ोने के सार्थ सार्थ तद्यगुीन काव्य का रसास्िादन करने में विद्यार्थी समर्थव ोगा | इन काव्यों में तनह त जनजीिन और लोकजीिन के बारे में िी ज्ञान प्राप्त ोगा |

    र्ीओ 3 : ह िंदी कर्था साह त्य अर्थावत उपन्यास और क ानी के अध्ययन से विद्यार्थी को लगिग सिा सौ िर्षों में शलख ेगए प्रमखु उपन्यासों और क ातनयों के माध्यम से रचनाकारों के सरोकार और उनकी गचिंताओिं से रू-ब-रू ोने का अिसर शमलेगा |

  • रे्मेस्टर : 2

    र्ीओ 4 : ह िंदी साह त्य के आधुतनक काल में रचे गए साह त्य का सम्यक इतत ास से पररचय स्र्थावपत करने के बाद शिक्षार्थी इस कालखिंड की प्रिवृत्तयों, वििरे्षताओिं और प्रमखु रचनाओिं के बारे में एििं ऐतत ाशसक विकास के बारे में अपनी तार्कव क बोधित्क्त को समदृ्ध कर सकता ै |

    र्ीओ 5 : ईसिी सन 1850 से लेकर 1936 के दौर में शलखी गई ह िंदी की प्रमखु काव्य कृततयों का पाठ और विश्लेर्षण करने में य कोसव स ायक ोगा | इसके माध्यम से विद्यार्थी तत्कालीन पररदृश्य के बारे में िी अपने विचार व्यक्त कर सकत े ैं |

    र्ीओ 6 : िारतीय काव्यिास्त्र अत्यिंत प्राचीन ै | िरत के नाट्यिास्त्र से लेकर अठार िीिं सदी तक की काव्यिास्त्रीय परम्परा, विकास के चरण, म त्िपणूव स्र्थापनाएिं, दिवन आहद के सार्थ सार्थ काव्य के प्रततमानों को समझने में य पत्र स ायक ोगा |

    र्ेमेस्टर : 3

    र्ीओ 7 : गद्य की प्रमखु विधाएिं नाटक और तनबिंध के पाठ करने के पश्चात शिक्षार्थी ह िंदी नाटकों और तनबिंधों के प्रारत्म्िक काल से लेकर अद्यतन समय तक की प्रमखु रचनाओिं की अिंतिवस्त ुऔर शिल्प सौन्दयव को उद्घाहटत करने में समर्थव ोगा |

    र्ीओ 8 : सन 1936 से लेकर इक्कीसिीिं सदी के दसूरे दिक तक सतृ्जत ह िंदी कविता के पाठ, समझ, सन्दिव, वििेचन, विश्लेर्षण आहद में समर्थव ोने के सार्थ सार्थ कविता में तनह त समय और समाज की धडकनों को रेखािंर्कत करने में शिक्षार्थी को कौिल प्राप्त ोगा |

    र्ीओ 9 : यनूानी काव्यिास्त्र से लेकर अद्यतन पाश्चात्य काव्यिात्स्त्रयों की काव्य और साह त्य सम्बन्धी अिधारणाओिं, व्याख्याओिं, स्र्थापनाओिं और विचारधाराओिं के क्रशमक विकास का ज्ञान प्राप्त ोगा | समकालीन विमिों के बारे में स्पष्ट अिधारणा प्राप्त करने में य पत्र स ायक ोगा |

  • र्ेमेस्टर : 4

    र्ीओ 10 : ह िंदी िार्षा के उद्िि और विकास को िली-िााँतत जानने और समझने के शलए इस पत्र का वििरे्ष म त्त्ि र ेगा | पनुः इस पत्र के माध्यम से िार्षा-विज्ञान तर्था अनपु्रयोग िार्षा विज्ञान के विशिन्न

    क्षेत्रों की सम्यक अिधारणा विकशसत ोगी |

    र्ीओ 11 : ह िंदी आलोचना के स्रोत, उसकी परम्परा और विकास का ज्ञान प्राप्त करने में इस पत्र का म त्ि र ेगा | इसके माध्यम से विशिन्न यगुों में आलोचना के बदलत ेप्रततमानों से पररचय स्र्थावपत करने में शिक्षार्थी लािात्न्ित ोगा |

    र्ीओ 12 : य वििरे्ष पत्र से सम्बिंगधत िकैल्पपक कोर्स (Elective Course) ै | ित्क्त काव्य अर्थिा पे्रमचिंद का ग न अध्ययन इस पत्र का वििरे्ष लक्ष्य ै | शिक्षार्थी अपनी रूगच के अनसुार विकल्प का चयन कर सकत े ैं और उक्त विर्षय पर एक सामगिक तर्था विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करिाने में इस पत्र की िशूमका र ेगी |

    Semester - I

    Course No. Course Title

    204 101. हिन्दी साहित्य का इहििास (आहिकाल से मध्यकाल िक)

    204 102. प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

    204 103. कथा-साहित्य (उपन्यास एवं किानी)

    Semester - II

    204 201. हिन्दी साहित्य का इहििास: आधुहनकाल

    204 202. आधुहनक एवं छायावािी कहविा

    204 203. भारिीय काव्यशास्त्र

    Semester - III

    204 301. हिन्दी नाटक एवं हनबंध

  • 204 302. छायावािोत्तर काव्य

    204 303. पाश्चात्य काव्यशास्त्र एवं समकालीन हवमशश

    Semester - IV

    204 401. भाषा हवज्ञान एवं हिन्दी भाषा का हवकास

    204 402. हिन्दी आलोचना

    204 403. हवशेष पत्र - भक्ति काव्य अथवा पे्रमचंि

    विशेष: प्रते्यक पत्र सौ अंक ंका है। सतत् मूल्ांकन 20 : और सत्रांक परीक्षा हेतु 80 : वनर्ााररत हैं। सतत्

    मूल्ांकन का प्रारूप वनम्नित् ह गा:-

    सेमेस्टर - I : पररयोजना कायश

    सेमेस्टर - II : सेहमनार

    सेमेस्टर - III : सत्र के मध्य हलक्तिि परीक्षा

    सेमेस्टर - IV : मौक्तिकी

  • SEMESTER –I

    204 101. ह िंदी र्ाह त्य का इति ार् ( आहदकाल र् ेमध्यकाल िक)

    इकाई -1

    - साह त्य का इतत ास दिवन, इतत ास लेखन की परिंपरा - काल वििाजन और नामकरण की समस्या

    इकाई-2

    - आहदकाल की पषृ्टिशूम, शसद्ध ,नार्थ एििं जैन साह त्य - रासो साह त्य वििरे्षताएिं एििं प्रितृतयािं

    इकाई-3

    - ित्क्त का उदय –राजनीततक ,सामात्जक ,धाशमवक ि दािवतनक पषृ्ठिशूम - ित्क्त आन्दोलन का अखखल िारतीय स्िरूप - तनगुवण और सगणु ित्क्त : साम्य एििं िरै्षम्य - सिंत कवियों की तनगुवण ित्क्त ि प्रिवृत्तयााँ

    इकाई-4

    - सफूी काव्य का स्िरुप एििं विकास

    - सफूी काव्य की प्रितृतयााँ

    इकाई-5

    - कृष्ण काव्य परिंपरा ,अष्टछाप और उनके प्रमखु कवि

    - कृष्ण काव्य की प्रमखु प्रिवृत्तयााँ

    - सिंप्रदाय मकु्त कृष्णिक्त कवि - मीरा और रसखान

    इकाई-6

    - रामित्क्त काव्यधारा और उनके प्रमखू कवि

  • - तलुसीदास और ‘रामचररत मानस’

    - रामकाव्य की प्रमखु प्रविततयााँ और परिती रामकाव्य

    इकाई-7

    - रीततकालीन काव्य की सामात्जक ,राजतनततक और सािंस्कृततक पषृ्ठिशूम - रीतीकालीन कविता की विविध धाराएाँ - रीततकालीन श्ृिंगारेतर काव्य –सामान्य पररचय

    र् ायक पसु्िकें (1) साह त्येतत ास दिवन - नशलन विलोचन िमाव (2) ह िंदी साह त्य का इतत ास - रामचन्र िकु्ल (3) ह िंदी साह त्य की िशूमका - जारी प्रसाद द्वििेदी (4) ह िंदी साह त्य का आहदकाल – जारी प्रसाद द्वििेदी (5) नार्थ सिंप्रदाय - जारी प्रसाद द्वििेदी (6) ह िंदी साह त्य :उद्िि और विकास - जारी प्रसाद द्वििेदी (7) ह िंदी साह त्य का आलोचनात्मक इतत ास – रामकुमार िमाव (8) ह िंदी साह त्य और सिंिेदना का विकास - रामस्िरूप चतिेुदी (9) इतत ास और आलोचना -मनेैजर पाण्डये (10) ह िंदी साह त्य का इतत ास -(सिं.) नगेन्र (11) ह िंदी साह त्य का इतत ास -रामर्किोर िमाव (12) ह िंदी साह त्य का दसूरा इतत ास -बच्चन शसिं (13) आधतुनक ह िंदी साह त्य का इतत ास -बच्चन शसिं (14) ह िंदी गद्य :विन्यास और विकास -रामस्िरूप चतिेुदी (15) साह त्य और इतत ास दृष्टी - मनेैजर पाण्डये (16) ित्क्त काव्य और लोकजीिन -शिि कुमार शमश् (17) ित्क्त का विकास - मुिंिी राम िमाव (18) उत्तर िारत की सिंत परिंपरा - परिरुाम चतिेुदी

  • 204 102 प्राचीन एििं मध्यकालीन काव्य

    प्राचीन ( आहदकालीन काव्य )

    इकाई -1 रार्ो काव्य और चिंदिरदाई

    - पथृ्िीराज रासो का काव्य –सौष्ठि - पथृ्िीराज रासो का िावर्षक िशैिष्ट्य - व्याख्या एििं आलोचनात्मक प्रश्न ेत ुतनधावररत पाठ

    ‘कयमार् िध’ (आरिंशिक 10 पद ) इकाई -2 र्िंि काव्य और कबीर

    - कबीर की समाज चेतना - िक्त कवि कबीर - कबीर का र स्यिाद - कबीर की िार्षा - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ्य पसु्तक

    ‘कबीर ग्रिंथािली’ (र्िं.- श्यामर्ुिंदर दार्)

    पद सिं. 1,2,3,11,16,17,21,23,24,25

    इकाई – 3 र्िूी काव्य और जायर्ी

    - प्रेमाख्यानक काव्य में कर्थानक रूहियााँ

    - जायसी की प्रेम व्यिंजना

    - ‘पद्माित’ में लोक-जीिन

    - ‘पद्माित’ में प्रकृतत-गचत्रण

    - नागमती वियोग िणवन की वििरे्षता

    - ‘पद्माित’ का शिल्प विधान

    - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ

    ‘नागमिी वियोगखिंड’ (जायर्ी ग्रिंथािली- र्म्पादक - रामचन्द्र िकु्ल )

  • इकाई - 4 कृष्णभक्ति काव्य और सूरदास

    - ‘भ्रमरगीत सार’ – सगणु एििं तनगुवण का स्िरूप - ‘भ्रमरगीत सार’ में श्ृिंगार िणवन - नारी स्िाशिमान एििं ‘भ्रमरगीत सार’ - ‘भ्रमरगीत सार’ में गोवपयों की िात्विदवधता - ‘भ्रमरगीत सार’ में लोकजीिन - सरूदास की ित्क्त िािना - व्याख्या ेतु तनधावररत पाठ ‘भ्रमरगीि र्ार’ र्े 10 पद ( र्िं.-रामचिंर िकु्ल )

    - पद सिंख्या -21,23,24,28,36,39,47,55,58,61 इकाई -5 राम भक्तिकाव्य और तुलसीदास

    - तलुसीदास की काव्य दृत्ष्ट - ‘रामचररतमानस’ में सामात्जक-पाररिाररक आदिव - तलुसीदास की समन्िय िािना - उत्तरकाण्ड में तनह त ज्ञान ,कमव और ित्क्त - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ्य पसु्तक

    उत्तरकाण्ड (‘रामचररिमानर्’ ,गीिा पे्रर् गोरखपरु ) दो ा सिंख्या 101 स े130 तक

    इकाई -6 रीतिकाव्य और बब ारी

    - ित्क्त ,नीतत एििं श्ृिंगार के कवि - बब ारी की ब ुज्ञता - कल्पना की समा ार ित्क्त एििं िार्षा की समासोत्क्त - ‘बब ारी सतसई’ में समाज - काव्यकला - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ्य पसु्तक

    बब ारी प्रकाि (र्िं .- आचायस विश्िनाथप्रर्ाद शमश्र ) आरिंशिक 30 दो े

    इकाई -7 रीतिकाव्य और घनानिंद

  • - प्रेम की पीर के कवि - स्िच्छिंद कवि घनानिंद - घनानिंद की प्रेम सम्बिंगधत अिधारणा - काव्य में लाक्षखणकता एििं व्यिंजनात्मकता - घनानिंद की काव्य कला - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ्य पसु्तक

    घनानिंद कवित्त (र्िं .- आचायस विश्िनाथप्रर्ाद शमश्र )

    र् ायक पसु्िकें

    (1) सिंक्षक्षप्त पथृ्िीराज रासो - (सिं.) जारीप्रसाद द्वििेदी/नामिर शसिं (2) पथृ्िीराज रासो :िार्षा और साह त्य - नामिर शसिं (3) कबीर - जारी प्रसाद द्वििेदी (4) जायसी ििंर्थािली - रामचिंर िकु्ल (5) भ्रमरगीतसार - रामचिंर िकु्ल (6) बत्रिेणी - रामचिंर िकु्ल (7) जायसी – विजयदेिनारायण सा ी (8) तलुसीदास - माताप्रसाद गपु्त (9) कबीर ििंर्थािली (सटीक) - रामर्किोर िमाव (10) जायसी : एक नयी दृत्ष्ट - रघिुिंि (11) कबीर मीमािंसा - रामचिंर ततिारी (12) बब ारी की िात्विितूी - विश्िनार्थ प्रसाद शमश् (13) स्िछिंद काव्यधारा और घनानिंद - मनो रलाल गौड़ (14) रीततकाव्य की िशूमका - नगेन्र (15) बब ारी का नया मलू्यािंकन - बच्चन शसिं (16) रीततकालीन कवियों की प्रेम व्यिंजना - बच्चन शसिं (17) घनानिंद का श्ृिंगार काव्य - रामदेि िकु्ल

  • 204 103 कथा र्ाह त्य (उपन्द्यार् एििं क ानी )

    इकाई -1 ह िंदी उपन्द्यार् : स्िरुप एििं विकार्

    - उपन्यास की अिधारणा और ह िंदी उपन्यास - पे्रमचिंद पिूव ह िंदी उपन्यास - पे्रमचिंदयगुीन ह िंदी उपन्यास - प्रेमचिंदोत्तर ह िंदी उपन्यास - साठोत्तरी उपन्यास एििं उनकी वििरे्षताएिं

    इकाई-2 ह िंदी क ानी :स्िरुप और विकार्

    - पे्रमचिंद पिूव ह िंदी क ानी

    - पे्रमचन्दयगुीन ह िंदी क ानी

    - प्रेमचिंदोत्तर ह िंदी क ानी

    - विविध आन्दोलन

    - समकालीन क ानी :सिंिेदना और शिल्प

    इकाई -3 प्रेमचिंद और गोदान

    - ‘गोदान’ और िारतीय र्कसान

    - ‘गोदान’ में गााँि और ि र

    - ‘गोदान’ में मखु्य चररत्र

    - ‘गोदान’ में यर्थार्थव और आदिव

    - ‘गोदान’ का शिल्प

    इकाई -4 रेंणु और मलैाआचँल

    - आिंचशलक उपन्यास की अिधारणा और ‘मलैा आाँचल’

    - ‘मलैा आाँचल’ में लोकसिंस्कृतत

    - ‘मलैा आाँचल’ में चररत्र विधान

  • - ‘मलैा आाँचल’ का िस्त ुविन्यास और शिल्प

    - ‘मलैा आाँचल’ की िार्षा

    इकाई -5 जारी प्रर्ाद द्वििेदी और बाणभट्ट की आत्मकथा

    - बाणिट्ट की आत्मकर्था में इतत ास और और कल्पना

    - बाणिट्ट की आत्मकर्था में आधतुनकता

    - बाणिट्ट की आत्मकर्था में जीिन दृत्ष्ट

    - बाणिट्ट की आत्मकर्था में नारी मतु्क्त की अिधारणा

    - बाणिट्ट की आत्मकर्था की औपन्याशसक िलैी

    - बाणिट्ट की आत्मकर्था का िार्षा सौष्ठि

    इकाई -6 ह िंदी क ानी

    उसने क ा र्था – चिंरधर िमाव ‘गलेुरी’

    आ ुतत - प्रमेचिंद

    मधआु – जयििंकर प्रसाद

    परदा – यिपाल

    अमतृसर आ गया ै - िीष्म सा नी

    तीसरी कसम - फणीश्िरनार्थ रेंण ु

    दोप र का िोजन – अमरकािंत

    िोलाराम का जीि – ररििंकर परसाई

    य ी सच ै – मन्न ूििंडारी

    ततररछ – उदयप्रकाि

    र् ायक पसु्िकें

  • (1) क ानी :नयी क ानी - नामिर शस िं (2) क ानी :शिल्प और सिंिेदना - राजेंर यादि (3) उपन्यास का यर्थार्थव और रचनात्मक िार्षा - परमानन्द श्ीिास्ति (4) गोदान - सिं. सत्य प्रकाि शमश् (5) प्रेमचिंद - सिं . विश्िनार्थ प्रसाद ततिारी (6) पे्रमचिंद और उनका यगु - रामविलाि िमाव (7) आधतुनकता और ह िंदी उपन्यास – इन्रनार्थ मदान (8) प्रेमचिंद के आयाम – ए० अरवि िंदाक्षन (9) उपन्यास की सिंरचना - गोपाल राय (10) ह िंदी क ानी का इतत ास - गोपाल राय (11) ह िंदी उपन्यास का इतत ास - गोपाल राय (12) ह िंदी क ानी का विकास - मधुरेि (13) प्रेमचिंद: विरासत का सिाल - शिि कुमार शमश् (14) एक दतुनया समानािंतर - राजेंर यादि

  • SEMESTER -II 204 201 ह िंदी र्ाह त्य का इति ार्: आधुतनक काल

    इकाई -1

    - आधतुनकता की अिधारणा और उसकी पषृ्टिशूम - मध्यकालीन बोध एििं आधुतनकता - आधतुनक काल के उदय के कारण

    इकाई-2

    - ह िंदी निजागरण, िारतेंद ुऔर िारतेंद ुमिंडल - िारतेंद ुयगुीन कविता स्िरूप, वििरे्षताएाँ एििं उपलत्धधयााँ - िारतेंद ुयगुीन नाटक एििं अन्य गद्यविधाए

    इकाई-3

    - काव्यिार्षा के रूप में खड़ी बोली की प्रततष्ठा - काव्य में विकास में म ािीर प्रसाद , ररऔध और मरै्थलीिरण गपु्त का योगदान

    इकाई-4

    - छायािादी, प्रगततिादी,प्रयोगिादी कविता का स्िरूप

    इकाई- 5

    - छायािादी गद्य साह त्य का विकास - प्रगततिादी गद्य साह त्य का विकास

    इकाई -6

    - समकालीन कविता का विकासात्मक पररचय - समकालीन क ानी,उपन्यास और नाटक की विकास यात्रा

    इकाई-7

    - स स्राधदी के अिंततम दो दिकों की क ातनयािं - स स्राधदी के अिंततम दो दिकों के उपन्यास

  • र् ायक पसु्िकें :

    (1) आधतुनक ह िंदी साह त्य का इतत ास - बच्चन शसिं (2) ह िंदी साह त्य और सिंिेदना का विकास - रामस्िरूप चतिेुदी (3) ह िंदी काव्य-सिंिेदना का विकास - रामस्िरूप चतिेुदी (4) िारतेंद-ुयगु और ह िंदी िार्षा की विकास परिंपरा - रामविलास िमाव (5) म ािीर प्रसाद द्वििेदी और ह िंदी निजागरण - रामविलाि िमाव (6) ‘पल्लि ’ - सशुमत्रानिंदन पिंत (7) आधतुनक साह त्य की प्रिवृत्तयााँ - नामिर शसिं (8) छायािाद -नामिर शसिं (9) छायािाद और प्रगततबाद -नशलनविलोचन िमाव (10) छायािाद का पतन - देिराज (11) रस्साकस्सी -िीरिारत तलिार

    204 202 भारिेंद ुयगुीन एििं छायािादी कवििा

    इकाई-1 ह िंदी निजागरण और भारिेंद ु

    - िारतेंद ुयगुीन कविता में राष्र पे्रम की िािना - िारतेंद ुयगुीन कविता में सामात्जक ददुविा का तनरूपण - िारतेंद ुयगुीन कविता में जातीय चेतना - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ

    भारिेंद ुग्रिंथािली रे् पाँच मकुररयािं (1,5,8,12,14) इकाई-2 ह िंदी निजागरण और म ािीर प्रर्ाद द्वििेदी

    - मरै्थलीिरण गपु्त की काव्य –सिंपदा - मरै्थलीिरण गपु्त का काव्य-ििैि - ‘साकेत’ का विर -िणवन - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ - ‘र्ाकेि’–निम र्गस

    इकाई-3 छायािाद और ‘कामायनी’

    - ‘कामायनी ’में रूपक तत्ि

  • - ‘कामायनी ’की विश्िदृत्ष्ट - ‘कामायनी ’का आधुतनक सन्दिव - ‘कामायनी ’का प्रबिंध विन्यास - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ

    ‘कामायनी’- श्रद्धा र्गस

    इकाई- 5 छायािाद और तनराला का काव्य

    - तनराला की प्रगततिील चेतना - तनराला काव्य में विविध प्रयोग - मकु्तछिंद की अिधारणा एििं तनराला - तनराला की काव्य िार्षा - विरो एििं क्रािंतत के कवि तनराला - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ

    ‘राम की िल्क्िपजूा’ इकाई-6 छायािाद और पिंि का काव्य

    - छायािादी काव्य में प्रकृतत - कल्पना का अशिर्षके एििं छायािाद - पिंत का प्रकृतत गचत्रण - पिंत की काव्य-यात्रा - पिंत की काव्य-िार्षा - व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ

    ‘नौका वि ार’ इकाई – 7 छायािाद और म ादेिी का काव्य

    - म ादेिी के काव्य में िेदना िाि - म ादेिी के काव्य में र स्य िाद - गीतत तत्ि एििं म ादेिी

    व्याख्या ेत ुतनधावररत पाठ मैं नीर भरी दुुःख की बदली े चचर म ान जाग िझुको दरू जाना

    र् ायक पसु्िकें :

  • (1) साकेत: विचार एििं विश्लेर्षण - िचनदेि कुमार (2) साकेत के निम सगव का काव्य ििैि- कन् ैयालाल स गल (3) कामायनी की रचना प्रर्क्रया - गगरीि राय (4) कामायनी:एक पनुविवचार–जानन माधि‘मतु्क्तबोध’ (5) कामायनी का पनुपावठ -सिं. परमानिंद श्ीिास्ति (6) तनराला: कवि- छवि- निंदर्किोर निल (7) प्रसाद का काव्य - प्रेमििंकर (8) छायािाद- नामिर शस िं (9) चार लिंबी कविताएाँ–निंदर्किोर निल (10) तनराला का अलतछत अर्थव गौरि- पािंडये िशििरू्षण ’शितािंि ु(11) म ादेिी िमाव -परमानिंद श्ीिास्ति (12) म ादेिी िमाव: नया मलू्यािंकन –गनपततचिंर गपु्त (13) आधतुनक साह त्य - निंद दलुारे िाजपेयी (14) तनराला से रघिुीर स ाय तक–कृष्णरायन कक्कड़ (15) तनराला : आत्म न्ता आस्र्था -दधू नार्थ शसिं (16) तनराला की साह त्य साधना - रामविलास िमाव (17) म ादेिी िमाव - इिंरनार्थ मदान (18) सशुमत्रानिंदन पिंत - नगेन्र (19) पिंत जीिन और साह त्य- िात्न्त जोिी (20) कामायनी का पनुमूवल्यािंकन- रामस्िरूप चतिेुदी (21) प्रसाद,तनराला, अज्ञेय–रामस्िरूप चतिेुदी

    204 203 भारिीय काव्यिास्र

    इकाई-1

    - िारतीय काव्य का स्िरूप और उसकी परिंपरा - काव्य के लक्षण , ेत ुएििं प्रयोजन - काव्य गणु,काव्य दोर्ष

    इकाई -2

    - रस म स्िरूप और उसके अियि - रस शसद्धािंत - रस तनष्पवत्त

  • - रस के िेद - सहृदय की अिधारणा और साधारणीकरण

    इकाई – 3

    - अलिंकार का स्िरूप और प्रमखू अलिंकारिादी आचायव - रीतत का स्िरूप और उसके िेद

    इकाई -4

    - ध्ितन का स्िरूप और उसके िेद - िक्रोत्क्त का स्िरूप और उसके िेद

    इकाई -5

    - िधद ित्क्तयााँ- अशिधा, लक्षणा एििं व्यिंजना पररिार्षा एििं िेदोपिेद

    इकाई – 6

    - छिंदिास्त्र/वपङ्गल िास्त्र की अिधारणा - ह िंदी छिंदिास्त्र का विकास - छन्दों के विविध आधार- लय, तकु, ताल

    इकाई -7

    - नाट्य शसद्धान्त –लक्षण एििं अिंग - नाट्य रचना के तत्त्ि–िस्त,ु नेता, रस , अशिनय

    र् ायक पसु्िकें

    (1) सिंस्कृत आलोचना - बलदेि उपाध्याय (2) सिंस्कृत काव्यिास्त्र का इतत ास,िाग 1-2(अन.ु) – सिुील कुमार ड े(3) रस मीमािंसा - रामचिंर िकु्ल (4) रस शसद्धािंत - नगेन्र (5) नाट्यिास्त्र की िारतीय परिंपरा और दिरूपक - ज़ारी प्रसाद द्वििेदी (6) िारतीय काव्यिास्त्र - िगीरर्थ शमश् (7) िारतीय काव्यिास्त्र - योगेंर प्रताप शस िं

  • (8) िारतीय काव्यिास्त्र - तनिा अििाल (9) िारतीय एििं पाश्चात्य काव्यिास्त्र की रूप रेखा – रामचिंर ततिारी (10 )िारतीय काव्यिास्त्र – सत्यदेि चौधरी

    SEMESTER -III 204 301ह िंदी नाटक एििं तनबिंध

    इकाई -1

    - नाटक की िारतीय अिधारणा और उसकी परिंपरा - आधतुनक ह िंदी नाटक पर पाश्चात्य प्रिाि - ह िंदी नाटक का उद्िि ि विकास

    इकाई-2 भारिेंद ु ररश्चिंर और अिंधेर नगरी

    - अिंधेर नगरी का यर्थार्थव बोध - अिंधेर नगरी में व्यिंवय - अिंधेर नगरी की अशिनेयता - अिंधेर नगरी का शिल्प - अिंधेर नगरी की िार्षा

    इकाई-3 जयििंकर प्रर्ाद और चिंरगपु्ि

    - चिंरगपु्त में राष्रीय और सािंस्कृततक चेतना - चिंरगपु्त में इतत ास दृत्ष्ट - चिंरगपु्त में चररत्र विधान - चिंरगपु्त की अशिनेयता - चिंरगपु्त का नाट्य शिल्प

    इकाई -4 मो न राकेि और ‘आधे अधूरे’

    - सामात्जक यर्थार्थव के पररपेक्ष्य में ‘आधे अधूरे’ - ‘आधे अधूरे’ में आधुतनकता बोध - ‘आधे अधूरे’ की प्रयोगधशमवता - ‘आधे अधूरे’ की अिीनेयता

  • - ‘आधे अधूरे’ की नाट्य िार्षा

    इकाई-5 एकािंकी और नकु्कड़ नाटक

    - िािंबे के कीड़ े - ििुनेश्िर - औरि - सफदर ािमी

    नया रिंगमिंच नए प्रयोग इकाई-6 तनबिंध

    - व्याख्या एििं आलोचनात्मक प्रश्न ेत ुतनधावररत तनबिंध कवििा क्या ै ? - रामचिंर िकु्ल नाखून क्यों बढ़ि े ैं ? - जारी प्रसाद द्वििेदी

    र् ायक पसु्िकें

    (1) ह िंदी नाटक- - बच्चन शसिं (2) प्रसाद के नाटक स्िरूप और सिंरचना - गोवि िंद चातक (3) मो न राकेि और उनके नाटक - गगरीि रस्तोगी (4) ह िंदी नाटक उद्िि एििं विकास - दिरर्थ ओझा (5) साठोत्तरी ह िंदी नाटक - के०िी० नारायण कुरूप (6) ह िंदी नाटक का आत्म सिंघर्षव - गगरीि रस्तोगी (7) आधतुनक ह िंदी नाटक का अिदतू मो न राकेि - गोवि िंद जातक (8) जयििंकर प्रसाद और चिंरगपु्त - गगरीि रस्तोगी (9) नाटककार जयििंकर प्रसाद - सत्येंर कुमार तनेजा (10) िारतेंद ुऔर अिंधेर नगरी - गगरीि रस्तोगी (11) ह िंदी तनबिंध - विजय ििंकर मल्ल (12) ह िंदी तनबिंध - प्रिाकर माचि े(13) ह िंदी तनबिंध का विकास - ओिंकार नार्थ िमाव

    204 302 छायािादोत्तर काव्य

    इकाई-1 रामधारी शर् िं हदनकर और उिसिी

    - राष्रीय चेतना काव्य धारा

  • - रामधारी शस िं हदनकर

    - उिविी ततृीय सगव व्याख्या ेत ु

    इकाई -2 केदारनाथ अग्रिाल और उनकी कवििा

    - प्रगततिादी काव्य की लोक-चेतना

    - केदारनार्थ अििाल का सौंदयव-बोध

    - केदारनार्थ अििाल का प्रकृतत-गचत्रण

    - व्याख्या ेत ु

    केदारनार्थ अििाल - जब जब मैंने उर्को देखा

    - चिंर ग ना र्े लौटिी बेर

    - आज नदी बबपकुल उदार् थी

    इकाई-3 अज्ञेय और उनकी कवििा

    - तार सप्तक और प्रयोगिाद

    - अज्ञेय की कविता व्यत्क्त से समाज की ओर

    - अज्ञेय की काव्य िार्षा

    - व्याख्या ेत ु

    अज्ञेय –‘अर्ाध्य िीणा’

    इकाई 4 मलु्क्िबोध और उनकी कवििा

    - मतु्क्तबोध की काव्य की रचना प्रर्क्रया

    - यर्थार्थव और फें टेसी

    - मतु्क्तबोध की लिंबी कविताएिं - जहटल यर्थार्थव की समि अशिव्यत्क्त

    मतु्क्तबोध –‘अिंधेरे में’

    इकाई 5 रघिुीर र् ाय और उनकी कवििा

    - रघिुीर स ाय की राजनीततक चेतना

  • - रघिुीर स ाय की काव्य िार्षा

    - रघिुीर स ाय की नारी चेतना

    - व्याख्या ेत ु

    रघिुीर स ाय–‘रामदार्’

    इकाई-6 र्दुामा पाण्डये धूशमल और उनकी कवििा

    - धूशमल की कविताएिं समकालीन जीिन यर्थार्थव का सीधा साक्षात्कार

    - धूशमल की काव्य िार्षा

    - व्याख्या ेत ु

    धशूमल - पटकथा

    र् ायक पसु्िकें

    (1) ह िंदी काव्य सिंिेदना का विकास - रामस्िरूप चतिेुदी

    (2) आत्मनेपद,सजवना और सिंघर्षव - अज्ञेय

    (3) कविता के नए प्रततमान - नामिर शसिं -

    (4) नई कविता के प्रततमान - लक्ष्मीकािंत िमाव

    (5) नई कविता का आत्म सिंघर्षव - मतु्क्तबोध

    (6) नई कविता स्िरूप और समस्याएिं - जगदीि गपु्त

    (7) आधतुनक ह िंदी काव्य रूप और सिंरचना - तनमवला जैन

    (8) रघिुीर स ाय का कवि कमव - सरेुि िमाव

    (9) समकालीन बोध और धूशमल का काव्य - ुकुमचिंद राजपाल

    (10) समकालीन कविता का व्याकरण - परमानिंद श्ीिास्ति

    (11) साह त्य में सजृन के आयाम और विज्ञानिादी दृत्ष्ट - राजेंर कुमार

    (12)आधतुनक ह िंदी कविता का इतत ास - निंदर्किोर निल

    204 303 पाश्चात्य काव्यिास्र एििं र्मकालीन विमिस

  • इकाई -1

    - प्लेटो - अनकुरण शसद्धािंत - अरस्त ू– विरेचन शसद्धािंत - रेत्जडी शसद्धािंत

    इकाई -2

    - लोंजाइनस का उदात्त्त शसद्धािंत - पनुजावगरण एििं नव्िास्त्रिाद

    इकाई-3

    - स्िछिंदतािादी यगु - िर्डवसिर्थव का साह त्य शसद्धािंत - क्रोंचे का अशिव्यिंजनािाद

    इकाई -4

    - आई.ए.ररचर्डवस - मलू्य शसद्धािंत - - सम्प्रेर्षण शसद्धािंत - टी.एस.इशलयट - तनितै्क्तकता का शसद्धािंत

    नयी समीक्षा की वििरे्षताएिं इकाई -5 विशभन्द्न र्ाह ल्त्यक िादों का र्िंक्षिप्ि अध्ययन

    - आदिविाद - यर्थार्थविाद - प्रतीकिाद - बबम्बिाद - मनोविश्लेर्षणिाद - माक्सविाद - कला,कला के शलए - कला जीिन के शलए

    इकाई -6 र्मकालीन विमिो का र्िंक्षिप्ि अध्ययन

    - आधतुनकता - उत्तर आधतुनकता - सिंरचनािाद - उत्तर सिंरचनािाद

  • - विखण्डनिाद - िमूिंडलीकरण

    र् ायक पसु्िकें

    (1) पाश्चात्य साह त्यालोचना के शसद्धािंत (अन.ु) - लीलाधर गपु्त (2) साह त्य शसद्धािंत (अन.ु) - रेनेिलेेक (3) पोयहटक्स - सिं. नगेन्र (4) टी .एस .इशलयट के आलोचना शसद्धािंत - शििमतूत व पाण्डये (5) समीक्षा के नये प्रततमान - तनमवला जैन (6) ह िंदी साह त्य कोि (िाग-1) - धीरेन्र िमाव (7) पाश्चात्य काव्यिास्त्र - तारकनार्थ बाली (8) पािात्य साह त्यालोचन की अिावचीन प्रिवृत्तयााँ - सतीि चन्र देि (9) पाश्चात्य काव्य िास्त्र की परम्परा - (सिं.) सावित्री शसन् ा (10 )पाश्चात्य काव्यिास्त्र - िगीरर्थ शमश् (11 )पाश्चात्य काव्यिास्त्र - देिेन्रनार्थ िमाव (12 )उत्तर आधुतनक साह त्य विमिव - सधुीि पचौरी (13 )ह िंदी आलोचना के बीज िधद - बच्चन शसिं (14 )डीकिं स्रक्सन बनाम विसिंरचनािाद :देररदा एििं अन्य गचन्तक –पाण्डये िशि

    िरू्षण ‘ िीतािंि’ु (15 )ह िंदी आलोचना की पाररिावर्षक िधदािली – अमरनार्थ

  • SEMESTER –IV

    िार्षा विज्ञान एििं ह न्दी िार्षा का विकास 401

    इकाई -1

    स्िन प्रफिया - स्ितनम विश्लेर्षण

    - अक्षर , सुर स्ितनम , अनुतान - स्िन प्रर्क्रया

    - रूप स्ितनशमकी पररितवन की प्रिवृत्तयााँ इकाई -2 रूप एििं पद विज्ञान

    - रुवपम - रुवपम का तनधावरण

    - रुवपम या रूपािंि के िेद - रूप पररितवन की हदिाएाँ , रूप पररितवन के कारण

    - ह न्दी की िधद सम्पदा इकाई -3 िाक्य विज्ञान एििं प्रोल्क्ि विज्ञान

    - पदबिंध , िाक्य रचना के आधार - िाक्य के अिंग

    - चोम्स्की की दृत्ष्ट - िाक्य के िेद

    इकाई -4 अनुप्रयुक्ि भाषा विज्ञान

    - स्िरूप - विविध सिंदिव - िार्षा शिक्षण

  • - समाज िार्षा विज्ञान - मनोिार्षा विज्ञान

    इकाई -5 िैली विज्ञान

    - स्िरूप - िार्षाई क्षमता

    - िार्षाई सिंसाधनों का अध्ययन - िार्षा का अशिव्यिंजना पक्ष

    इकाई -6 ह न्द्दी भाषा का विकार्

    - ह न्दी का उद्िि और विकास - अपभ्रिंि , अि ट्ट और पुरानी ह न्दी

    इकाई -7 - ह न्दी और उसकी प्रमुख बोशलयााँ

    - ह न्दी – उदूव रूपों का सिंबिंध

    र् ायक पसु्िकें :

    1. िार्षा विज्ञान - िोलानार्थ ततिारी 2. िार्षा विज्ञान की िूशमका - देिेन्रनार्थ िमाव 3. िार्षा विज्ञान प्रिेि एििं ह न्दी िार्षा - िोलानार्थ ततिारी 4. िार्षा विज्ञान - राजमाल बोरा 5. िार्षा विज्ञान , ह न्दी िार्षा और शलवप - रामर्किोर िमाव 6. िार्षा विज्ञान के शसद्धािंत और ह न्दी िार्षा - द्िाररकाप्रसाद सक्स ेेना 7. िार्षा विज्ञान एििं िार्षा िास्त्र - कवपलदेि द्वििेदी 8. ह न्दी िार्षा :स्िरूप और विकास - कैलािचिंर िाहटया 9. आधतुनक िार्षा विज्ञान की िूशमका - प्तमोतीलाल गु 10. सामान्य िार्षा विज्ञान - बाबूराम सक्सेना

  • 11. ह न्दी िार्षा का उद्िि और विकास - रदेि बा री 12. ह न्दी जातत - प्रो॰ अमरनार्थ

    204 402 : ह न्द्दी आलोचना इकाई -1 ह न्द्दी आलोचना और उर्की अिधारणा

    - िारतेन्द ुपूिव ह न्दी आलोचना िारतेन्द ुयुगीन ह न्दी आलोचना - इकाई -2

    - म ािीर प्रसाद द्वििेदी एििं ह न्दी आलोचना - आचायव रामचन्र िुक्ल की आलोचना पद्धतत

    इकाई -3 िुक्लोत्तर आलोचना पद्धततयााँ

    - प्रगततिादी आलोचना - मनोविश्लेर्षणिादी आलोचना

    - स्िछन्दतािादी आलोचना इकाई -4

    - पद्धतत आचायव जारीप्रसाद द्वििेदी की आलोचना - आचायव नन्ददलुारे िाजपेयी की आलोचना पद्धतत

    इकाई -5 - प्रमुख माक्सविादी समीक्षक - डॉ॰ रामविलास िमाव की आलोचना पद्धतत - डॉ॰ नामिर शसिं की आलोचना पद्धतत

    - डॉ॰ मैनेजर पाण्डये की आलोचना पद्धतत र् ायक पुस्िकें :

    1. इतत ास और आलोचना - नामिर शसिं 2. समालोचना समुच्चय - म ािीरप्रसाद द्वििेदी

  • 3. ह न्दी साह त्य :बीसिीिं िताधदी - नन्ददलुारे िाजपेयी 4. आधतुनक ह न्दी की बीसिीिं िताधदी - तनमवला जैन 5. ह न्दी आलोचना - विश्िनार्थ बत्रपाठी 6. ह न्दी आलोचना का विकास - मधरेुि 7. ह न्दी आलोचना का विकास - निंदर्किोर निल

    8.ह न्दी आलोचना की परिंपरा और आचायव रामचन्र िुक्ल - शििकुमार शमश्

    8. आलोचक और आलोचना - रामचन्र ततिारी

    204 403 वििषे प्रश्न पर

    भल्क्िकाल

    इकाई -1 - ित्क्त काव्य :स्िरूप और िेद

    - ित्क्तकाल की राजनीततक , सामात्जक , धाशमवक , सािंस्कृततक पषृ्टिूशम - ित्क्त आिंदोलन :सािंस्कृततक एििं परिंपरागत विकास

    - ित्क्त आिंदोलन का अखखल िारतीय स े्िरूप - ित्क्त काव्य :लोकजागरण का काव्य

    इकाई -2 - ित्क्त का विकास - िेद से बुद्ध तक

    - िेद से गुप्त युग तक - आलिर , नायनार

    - कुमाररल िट्ट , ििंकराचायव - शसद्ध , नार्थ , जैन

    - ित्क्तकाव्य और लोकधमव - ित्क्तकाव्य :सामात्जक – सािंस्कृततक प्रदेय

  • इकाई -3 - तनगुवण और सगुण ित्क्त धाराओिं का विकास

    - तनगुवण और सगुण ित्क्त का स्िरूप - कबीर और तुलसी के राम

    इकाई -4 - समाज दिवन कबीर का

    - कबीर का र स्यिाद -कबीर :कवि के रूप में

    -कबीर की िार्षा -कबीर की प्रासिंगगकता

    इकाई -5 -िारतीय प्रेमाख्यानक काव्य और उनकी परिंपरा

    -जायसी की प्रेम िािना -जायसी की सौंदयावनुिूतत

    - ‘पद्माित’ में लोकतत्ि - ‘पद्माित’ में िखणवत प्रकृतत - ‘पद्माित’ में रूपक

    -जायसी की िार्षा इकाई -6

    - िुद्धाद्िैत दिवन एििं पुत्ष्टमागीय ित्क्त - कृष्णकाव्य परिंपरा और अष्टछाप

    - सूरदास की ित्क्त - रदास का िात्सल्य िणवनसू

    - सूरदास का िृिंगार िणवन - सूरदास का प्रकृतत गचत्रण

    - ‘सूरसागर’ में लोकतत्ि - ‘भ्रमरगीत सार’ :तनगुवण पर सगुण की विजय - ‘भ्रमरगीत सार’ में गोवपयों की िात्विदवधता एििं उत्क्त िैगचत्र्य

  • इकाई -7 - रामित्क्त काव्य और उनकी परिंपरा

    - तुलसीदास और उनकी रचनाएाँ - िक्त कवि तुलसीदास

    - तुलसी काव्य में लोकमिंगल - तुलसी की समन्िय िािना

    - तत्कालीन पररिेि के स ेिंदिव में तुलसी काव्य - तुलसीदास की प्रगततिील चतेना

    - तुलसी की िार्षा र् ायक पुस्िकें : 1 . ह न्दी साह त्य का इतत ास - रामचन्र िुक्ल 2 . बत्रिेणी - रामचन्र िुक्ल 3 . ित्क्तकाव्य का समाजिास्त्र - प्रेमििंकर 4 . ित्क्तकाव्य और लोकजीिन - शििकुमार शमश् 5 . ित्क्त आिंदोलन और ित्क्तकाव्य - शििकुमार शमश् 6 . कबीर मीमािंसा - रामचन्र ततिारी 7 . जायसी - विजयदेिनारायण 8 . सूरदास - ब्रजेश्िर िमाव 9 . तुलसीदास - रामचन्र िुक्ल 10 . िारतीय सौंदयवबोध और तुलसीदास - रामविलास िमाव 11 . अकर्थ क ानी प्रेम की :कबीर की कविता - पुरु र्षोत्तम अििाल

    और उनका समय 12 . उत्तरी िारत की सिंत परिंपरा - पुरुर्षोत्तम चतुिेदी

    13 . ित्क्त का विकास - मुिंिीराम िमाव

    14 . ित्क्त आिंदोलन और सूरदास का काव्य - मैनेजर पाण्डये

    204 403 वििषे प्रश्न पर

  • प्रेमचिंद

    इकाई -1 प्रेमचिंद का जीिनितृ्त

    इकाई -2 सेिासदन

    इकाई -3 कमविूशम

    इकाई -4 क ातनयााँ :कफन , ठाकुर का कुआाँ , मिंत्र ,ईदगा , दो बैलों की कर्था

    इकाई -5 तनबिंध :साह त्य का उद्देश्य

    इकाई -6 - नाटक तर्था अन्य विधाएाँ - कबवला

    -प्रेमचिंद :सिंपादक के रूप में इकाई -7 प्रेमचिंद के समीक्षक - रामविलास िमाव

    - कमल र्किोर गोयनका - शििकुमार शमश्

    र् ायक पुस्िकें : 1 . प्रेमचिंद और उनका युग - रामविलास िमाव 2 . प्रेमचिंद के आयाम - ए॰ अरवििंदाक्षन 3 . प्रेमचिंद :विरासत का सिाल - शििकुमार शमश् 4 . र्कसान , राष्रीय आिंदोलन और प्रेमचिंद :1918-1922 - िीरिारत तलिार 5 . प्रेमचिंद :घर में -शििरानी देिी 6 . क ानीकार प्रेमचिंद :एक पुनमूवल्यािंकन - डॉ॰ एम॰ सी॰ जोिी 7 . प्रेमचिंद की क ातनयााँ : और पररदृश्यपररप्रेक्ष्य - सिं॰ डॉ॰ राजेन्र कुमार 8 . क ानीकार प्रेमचिंद :रचना दृत्ष्ट और रचना - डॉ॰ शििकुमार शमश् 9 . प्रेमचिंद की वििरे्ष रचनाएाँ - सिं॰ डॉ॰ प्रदीप जैन 10 . प्रेमचिंद और िारतीय समाज - नामिर शसिं 11 . प्रेमचिंद :एक साह त्त्यक वििेचन - नन्ददलुारे िाजपेयी 12 . प्रेमचिंद - विश्िनार्थ प्रसाद ततिारी

  • 13 . प्रेमचिंद और िारतीय र्कसान - रामबक्ष 14 . प्रेमचिंद :एक कृतत व्यत्क्तत्ि - जैनेन्र 15 . प्रेमचिंद की उपन्यास कला - जनादवन प्रसाद झा द्विज 16 . कलाम का शसपा ी - अमतृ राय