िम ट का अनुराग - kashmiri pandit · ा वाच इस क वता सं...

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िका अनुराग सुभाष काक यह संकरण अलकनदा काशन, देहरादनू , भारत से कािशत हआ। © सुभाष काक, 2007 Page 1 of 48 1 9/11/2007 file://D:\Websites\iKashmir\subhashkak\Mitti.html PDF created with FinePrint pdfFactory Pro trial version www.pdffactory.com

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  • िम ट का अनुराग सुभाष काक

    यह सं करण अलकन दा काशन, देहरादनू, भारत से कािशत हआ।ु © सुभाष काक, 2007

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  • ा वाच

    इस क वता सं ह म पुरानी और नई दोन क वताएं ह ।

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  • सूची 1. अंगार का रा ता 9 2. अनुराग और ेष 11 3. अ ताल 13 4. इितहास पुराण 15 5. एक और यु 17 6. प ेऔर भाव 18 7. ेम का संकेत 20 8. पश ु वदाई 21 9. रंग अँधेरे म 23 10. ेत फूल 25 11.एक सहेली 26 12. हण 27 13. च मा 28 14. जंगल म आग 29 15. नगर 31 16. नयन का कोना 32 17. संवाद 33 18. सीमा पार 34 19. मतृक नायक 36 20. हमालय याण 46 21. धागे 50 22. एक ताल, एक दप ण 53 23. म दर क सी ढयां 66 24. डरा प ी 69 25. िम ट का अनुराग 71 26. व मिृत 73 27. सोता चरागाह 76

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  • अंगार का रा ता आग से आग के वीिथ पर अंगारे बखरे ह । समय थोड़ा है तलव के छाल क पीड़ा से परे हम ांित क ओर बढ़ गए। हम जानते ह आकां ा है जीवन वधान। ानी चुप ह और देवता सो रहे आरािधत होने के संतोष म । दश न और मीमांसा कुछ प नह ं करते केवल भाव ह हमारे पास तो हम य न ओंठ से ओंठ िमलाएँ। म ृयु हर दन होती है तो महा याण का या भय?

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  • अनुराग और ेष म तुमसे अब ेम नह ं करता यह सच है‚ भले ह मुझे तु हार याद आती है। मुझे तुमसे ेष है अब‚ य प यह ेष ेम का िच है। जो म तु ह चाहता नह ं‚ तुम भी मुझे भूल गई। मुझे तुमसे ेम था‚ और कदािचत तु ह भी कभी मुझसे ेम था। पर तुमने मेरा नाम अपन े दय से िमटा दया‚ म भी दर देशू तु हारा अपवाद करता हँ।ू परंत ुय द तु हार वा टका के दर कोने म ू उस पेड़ पर पहँचकरु जो म ने बोया था मिृत को जगाए और तुम मेरा नाम लो म त काल चला आऊँगा।

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  • अ ताल िचदंबरम का तेज गम क भाप से धुँधला गया है। राख म िलपटे चू हे के अंगार म कम जान है। खड़क के बाहर नाले क पुिलया क नींव टूट लगती है।

    और उसका रा ता कस गांव जाता है अब मुझे ात नह ं।

    नह ं मुझे याद है कैसे म आया इस महालय म । वेदना आशा देती है। संदेश है आ न के एक ाचीन म का। अ ताल म शर र िभषज को स पे म दप ण म योित को टक टका देख रहा हँ।ू

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  • इितहास पुराण इितहास पुराण के भीतर िछपा है पुराण इितहास म । पुराण वेदना का नाम प भीतर का संघष - जो कम नह ं हो पाए उन पर ट का है¸ य क देवता आलसी ह । रा स के पास वासना है, ेम नह ं िम ता नह ं मह वाकां ा है, धािम क उ माद है। वह उपिनवेश और सा ा य माँगते ह । देवता म नह ं करते, सं कृित का िनमा ण नह ं करते। अ याय और अ याचार का झंझावात चेतना को झकझोरता है। काली आँिधयाँ चलती ह । सं कृित उस को बाँधने का जाल¸ नीलकंठ क तरह वष पी लेने का याय। इितहास को पुराण के प रवेश म दे खए।

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  • एक और यु य क वह र ा न कर सका यु म पराजय हआु ेिमका के दय म वह अब अपमान पा है। जो पुरानी मिृतयाँ थीं उनक पेड़ के नीचे बात उ ान म टहलना पव त के छोटे पथ पर घोड पर मण अब वह झूठ ह । वह झूठ था। ेमी को िध कार रह है वह। या चाहती है, एक और यु ?

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  • प े और भाव पेड़ के श द प े और मु कान फूल ह । श द स ेअ य पेड़ बँधते ह ‚ प ी और िततिलयाँ सुनती ह इ ह । हमारे भाव प े ह फु लत हो जाते ह कभी। िसकुड़ते और मुझा ते भी ह िचनार के लाल प क तरह। धरती पर िगरकर समेटे जाते‚ सुलगाकर उनके अंगार से गम िमलती है अंजान लोग को ठठुरती सरद म ।

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  • ेम का संकेत मेरा तु हारे िलए अनुराग एक व तु क इ छा नह ं एक छाया को देखने क अिभलाषा है जो शर र और आ मा के बीच है। रह य का उ घाटन है यह य क इसके अंत म न म म हूँ न तुम तुम हो। जहाँ पहँचकर य दु तुम ार खटकाओ म न सुन पाऊँगा।

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  • पशु वदाई पशु क एक कतना कह सकती है? जसके साथी बीच-बीच म लु हो जाते ह वह या सोचता है जगत का वधान या है? बहत ंदन होता हैु बिल के पूव जीवन दान क याचना विधवत है। उस रोने को हम भूल जाते ह । वह भूलना भी विधवत है। पपासे¸ याकुल ाणी‚ उव र समय क ती ा नह ं कर सकते। इस काल संघात से इं याँ जब दब लु होती ह तब पशु से वदाई स हो जाती है।

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  • रंग अँधेरे म या वसंत का न ृय इतना सुंदर है‚ क तुम इसके रंग रात म भी बता सकती हो? या तुम िम ट क गंध वापस बुला सकते हो? जंगल म पेड़ क भास इतनी मादक है मुझे भय है म अगला ास लेना भूल न जाऊँ। वसंत के रंग पहा ड़य के म य घाट म फैल गए। आकाश क तनी हई चादरु क थरथराहट से मेरा शर र काँप उठा। दय जसने ेम कया है भूल नह ं सकता।

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  • ेत फूल बचपन के आँगन के ेत फूल म भूल गया, जब से गाँव छोड़ा वैसे पौधे नह ं देखे। ातः कल अम ेरका क एक नई ब ती म जहाँ म खो गया था गाड़ क खड़क से म ने वैस ेह ेत फूल एक घर के पास पाए एक लड़का उस उ ान म खेल रहा था। जैस े व न म डूबा हो।

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  • एक सहेली एक सहेली एक पहेली श द खेल िच मेल पश वमश बबं एक मिृत ित बंब एक सीख तुम जीती म हारा एक वीथी एक सहारा।

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  • हण हण के छादन म प ी शाखाओं म िछप गए। मानव चाय के याले पीते चहचहाते रहे सं कृित िसखाती है क भयानक क चचा न हो। जस के िलए श द न ह उस क थित नह ं। अबोध बालक ने र सूय को घूरा। ौढ़ काच लेकर उसका ितमान काग़ज़ पर देखन ेलगे। हमने उस म जाद पायाू भय और अंधी आशा। याद आया शु का सूय म ितरोधन और उसके पार गमन।

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  • च मा च मा को केवल दे खए नह ं नीचे ले आइए। इसक आकृित अपन ेसाथ र खए थैली म , गोल पैसे क तरह। इसे का टए बाँ टए। इसे दो बनाकर आँख पे र खए सुख चैन के िलए।

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  • जंगल म आग जंगल के बीच लहराते व ृ को देख आभास हआु हम ह वह बहती समीर थे। हम चुप रहे जब घुडसवार वहाँ पहँचेु आग लगाने, एक ब ती बसाने। दय त ध था, य क दय रह यपा है इस क भाषा नह ं। और अर य ाम के सामने हटता है। प ी और पतंग आग के तूफ़ान म व ृ के तांडवीय न ृय म झूल रहे थे, आहित बनकर।ु

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  • नगर नगर एक कारागार है। जो धरती पर राज करे पहले एक माली बने। मुझे अब याद नह ं क म ने यह पौधे बोए। पु तक जेब म एक उ ान है। कृित म येक व तु एक जाल म बँधी है। फूल भी अितिथ से िमलने को आतुर ह ।

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  • नयन का कोना कई थान ह जहाँ म कभी नह ं पहँचाु जनक क पना भी नह ं क पर यह जानता हूँ एक अनजान थान जाना है। ऐसा एक े तु हारे नयन का वह कोना है जहाँ भ व य के िलए संकेत ह । तुम वय ंनह ं जानती इस रह य को - नयन पर जो िलखा है, उसे तुम नह ं पढ़ सकती।

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  • संवाद आकाश और प ृवी का संवाद नैितक के परे है। वग और नरक का मेल पु प के खलने के ण म है आधा रत। वग एक फुलवार जस म येक पु प फु लत है और एक नए फूल के िलए थान।

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  • सीमा पार तब समय क एक अलग धड़कन थी। पगडंड पहाड़ के पार एक घाट म आई। झूमते वशाल व ृ के नीचे जहाँ खुला थान था, और घूमता झरना था। अब यह नगर है। वशाल भवन के म य पय टक के िलए एक छोट धारा है। पर गगनचुंबी महालय हवा म लहराते नह ं। त धता है समय के ताल म अब एक याकुलता। मन ोभ और भय के बीच खंच रहा है।

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  • मतृक नायक १ म वह नह जो द खता हूं म वयं ह भूत हं।ू जब म िनज व हआु मेर आ मा अ वीकृत हईु वग और नरक को लडखडाई वा पस तब मेरे अ थ प जर म । २ हम सु दर ह क हम मर जाते ह जब समय क उडान क एक ण सह वष हआु म धूल था, एक वचार था मेर चाह थी क शर र होऊं य क म ने पश नह कया भरपूर नह ं और जब मेरा जमा हआ शर र पघलाु ाण क सरसराहट से, वह आन द था। ३ श द िनः त धता से िनकला वत ता कारागार हो पर नीरवता नीरवता को नह ं भाती दय के कांपने को नह ं भाती पर सौ दय कौन मांगता है अतः मुझे गीत गाने दो मुझे घ टा बजान ेदो। ४ म हर दन म ृय ुको ातराश के दध क तरह पीता हंू ू

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  • इस भात को जब म जागा ेत धूप के ध बे मेरे कमरे म थे म ने रात के व पलंग के आस-पास बखरा दये चौक पर थाल सु िचपूण संजोए थे कमरे का उप कार ठ क थान पर था वैसे ह जैसे घर जो का हआ है।ु म ातराश खा न पाया। ५ प ी उड गय ेजब म पहंचाु म ने दाना हाथ म बटोरा मेरा पास चाकू न था पर प ी न आये मेरे हाथ थक गये और िगरते दान स ेपौधे िनकल ेऔर ेत फूल कमल भरपूर। ६ मुझे पीने दो मुझे और पीने दो जैस ेम झुका ची कार हआु ने उठे एक रा स देखा अध नर, अध नार अपन ेह व को पुचकारता हआु म ने देखा क नद का पानी रा स क हचकती छाती के साथ उठ बैठ रहा, मेरे हाथ का ताल िभ न है म केवल झाग उठा पाता हं।ू मुझे पीने दो तो या य द मांस पघला है और मेरे हाथ क अ थयां

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  • पकड नह ं पातीं जो म देखता हूं अ धेरा है िच क सा योगशाला म मानिच जैसा हूं, पर खोखला तो भरन ेदो। ७ अ तम वेनप ी अ न क ओर उडा जलन ेके िलये राख म ढलने के िलय ेउठने क िलये युवा और िन पाप। अ न के समीप पहंचा ह थाु आंख ब द अ तम छलांग सोचता क कसी ने कठोरता से खींच िलया -- पुनज म नह ं था यह -- एक य ने गला दबोचा था दसरे हाथ म छुर थी उसके।ू झट दो हार से उसने पंख काट दये। अ तम वेनप ी अभी वह ं पडा है अचल, भावशू य िनज व पर मतृ भी नह ं ाण आंख म ह जो धीरे हल रह ह आकाश क पर ा कर रह ह िनकट आग कब क बुझ गई।

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  • ८ म पूर रात सोता हूं पर आराम नह ं पूरे दन मेरा मन उदासीन है और मेरा शर र अप रिचत चाह से अ धेरे का आकां ी है। कल रात म ने ठानी रह य को जानने क घड का घ ट लगाई दो बजे क जब म उठा उस पहर म ने देखे पशाच मंडराते हएु र पी रहे। मेरे हाथ अश थे िसर म अ दर खटखटाहट थी म मू छ त हआ।ु आज म उनींदा हूं अंग पी डत ह चाह से क अ धेरा उतर आए। ९ क डे म जंगले पे खडा अ थय को शर धूप म गरमा रहा मेर पलक पर सूय करण लाख बार क गोल म बखर ं और फर चीं टयां चार ओर र गन ेलगीं। वह बहती आ

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  • म ृयु क ग ध जैसी और कामनाओं को खा ग । जैस ेम काया लय म बैठा ती त वे या समान, याद कर रहा, कतन े मशान घाट म ने देखे ह , क वह आई। उसके आ ह पर अपनी समझ के वपर त म ने उसे बाह म समेटा। जब ह ठ ह ठ से िमले वह पिृथवी पर ढेर हईु -- मेर सांस ने जान ले ली -- म पुनः ेम नह ं क ंगा। (१९७३)

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  • हमालय याण याद ह वह अंगारे आग बुझने से बचती हईु वात उछलती हई जैसे उपे त भूतु त बू के हाथी कान थपथपाते हएु भूले मानिच जल का सरल नाद तुम और म हमार घिन ता? या आवारा बेचारा चले चीड पेड के बीच से हमारे पुराने भाई मूित मान बहत ती ा क इन न ु उनक याद सो रह है जब वह जाग गे हम सो रहे ह गे, याद करो। सुबह जागी है आलसी अंग म सुलगती आग िच डय का आलाप घास ओस से नील हईु पलक फडफडा और मु कान ठंड हवा बीच उडती आई चलो ट न गमा एं और फर बाल संवार । या पव त बात करता है? घुमाऊ पथ पर खुले थान पर पिृथवी क सूजन द खती है टूट िशला के दा त यहां और वहां और िनचली ढाल क घास और चर ले से दरू

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  • पव त का यानम न मुखम डल आंख ब द उदा म तक, सीधी नाक और वषा के बीच सुन पडता है इसके व का धीमा श द। या तुमने शर र दखाया है पव त नद को इसके फेन को चूमा इससे पीठ को रगडा और िम के साथ मु पाया इस वशाल नानशाला म ? कतनी क- क के गम वापस आए और जब यह फैले और हम फर केवल नाम ह , समय लौट आया पव त क प ट को चढने का। मेघ के उतरन ेके बाद वषा का कडक से िगरना ट टू का प रहे उनक उदास वशाल आंख अ दर देख रह ं और एक भूरा चूहा रा ता सूंघ रहा अपन ेजल-भरे बल क ओर या यह ब धु पायेगा या इसे उ ह ढंूढने नद तट जाना होगा? ऋतु म जाद हैः ू जड पकडे खींच रह ं िम ट जुड ग चीडशंकु, अ वलीद और ब छुओं के साथ ढाल पर फसलती ह ।ु य जल जोडता है और िगराता है श देता है आ मह या के पथ पर, य वात सुखाती है और जमाती, सूय गरमाता है और जलाता,

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  • पिृथवी सहारती है और दबाती, य त वसंकर बढता जाता है? तथा प नय े प आते हए िच ला रहेु इस पं कल र वस त म -- उनके शोकगीत कौन गायेगा उनके घर हम े म खोदेगा जंगल के मैदान म आग बनाएगा? पहाड पर काश ब द तारा नह ंु चरवाहा और प ी बात कर रहे है याद बांटते हएु दोन सौ दन क ग ध ओढे हए ह ु माखन, वेद, मू , अ य रस धरती का आ कढ , ओषधी और धुआं य वह िमटा ल , जो था? और िश वर मदृ ास ले रहाु या तुम अ धेरे का र रयाना सुन रहे हो और बाल का वचा म अंकुरण? जैस ेरा मीठे से अपनी चादर बना रह न ऋ और नाह ं भयावक श द शर र शा त धरती पर लेटा हआु , य मन तब आ ह मांगता है नई या ा उन पथ पर जहां हम पहले चले थे? आग और वात आप और िम ट बहत ह हमालय परु पर त ुमन दौडता है ाचीन छायाओं साथ, व ालय और पता िम और माता गाड और व , और पहचता है पव तीय आ म।ु यह सचमुच यथ है, हम आप ह हम आप है।

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  • (१९७७)

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  • धागे जब अनुभूित तक म ब धे िनभा व क पीडा डुबोती है िनभा व उपहासते ह अवयव जलते ह कोिशकाएं पघलती ह अ ल म । हा या जलना था अपनी ह आग म ? का उ र दसरे म है।ू वह व न आय ेह , दस वष वह ब ब बैठे, वह भय दबाये, िनवा ण कैसे हो? योिगनी छ जे पर बैठ पिथक को कहती सी म अकेली हूं दरबोध से।ू या म ने सह सुना चाय के अवशेष परखूं िच दप ण मे देखूं छाया मापूं लाख का म पाठ रोम पर क ं? हां वह कामुक है पर शी ऊब जायेगी। एक िनःश द चीख झंझोटती है गांव के सूअर का ेत धुंध म घुलता सा द खता है।

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  • दौडता हं कसाई े ू और सूअर वहां है लकड समान पांव बंधे, मुंह दबा उसक चीख आकाश फाडती, चार लंगो टत लोग बहरे ह छुर पैना रहे यह घर के िलय ेमांस चाहते। उस शाम को त है पर सूअर क आ मा के बजाय मेरे वचार भटकते ह और कते ह आन द क पु ी पर मेरे म दर पर षोडशी उपािसका वह पश से फ टकमय है, अतः म उसे रह य बतलाता हूं अ त व और शू यता का। मेर चाह इतनी है क चाह ह इसक पूित है। (१९७७)

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  • एक ताल, एक दप ण १ जैस ेफूल क िगरती पंखड शाखा को लौटे ऐसी थी िततली क उडान। २ शरद क झंझािनल म या और ह रण साथ ठठुरे। ३ म या क गम म जल से भाप उठ , पुराना संगीत कान म गूंजा -- ताल ह दप ण है। ४ झांझा अित पी डत िततली नह ं बनेगा। ५ फुलवार के शृंगार और प य के कोलाहल के म य देखो पीपल का धैय । ६ लगता है तरबज़ू को नह ं मालूम रात तूफान आया। ७ चांद को देखते देखते मेर गद न दखाई।ु ८ वस त का पहला गीत गाते प ी शम ला लगता है। ९ कतन ेतीथ जाकर आकाश गंगा

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  • उतनी ह दर।ू १० या य के साथ प ी भी डेरा डाले। ११ पु ष बैठे करे यान-- कठोर प र म। १२ डाकू साधूवेश म ह क व ने तलवार बा धी है। १३ म हंस से खेलने चला पर उसक उडान से डर गया। १४ िच डयाघर के पंजरे का भालू मुझे भाई लगा। १५ दप ण म ब ब धुंधलाता है। १६ इस रात देर मेरा साथ कौन जगा है? १७ मैना ऐसे गाये जैस े पंजरे म है ह नह ं। १८ वशैले छ क सु दर लगते ह । १९ प ी क कूक सुनकर जल म च मा हला। २० च मा दौड रहा

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  • एक मेघ से दसर ओर।ू २१ अ षी ने ओस के ब द कोु अंगुली म पकडना चाहा। २२ सु दर है पतझड क शाम का च जीवन क शाम म । २३ िततिलयां इधर उधर भाग रह ं बीते वस त को ढंूढतीं। २४ पाला और भीषण पडा अब पु प नह ं खल गे। २५ काश िगरती बफ पर िततिलयां मंडरातीं कैसा गातीं वह। २६ चोर ने हार चुराया पर च मा मेर खडक के बाहर से नह ं भागा। २७ मछिलयां िगरत ेफूल के डर से च टान नीचे िछप ग । २८ मशान म बहतेर सु द रय क अ थयां ह ।ु २९ गम क रात पंजरे का कोई प ी नह ं सोया। ३० सु दर है शरद च मा

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  • पर हमार खड कयां ब द ह । ३१ अ षी बहत रोईु पूण च मा के िलये। ३२ तूफान के झ के पर बैठ म दर क घ ट क आवाज़ चली आई। ३३ बन जाने कैसे समझूं थ म लौटाता हं।ू ३४ पतंग पर करण ह जब ताल पर अंधेरा आ चुका। ३५ तूफान म कु े िगरत ेप पर भ क रहे। ३६ काश ब ब ब ब का ित प प प का ित ब ब। ३७ सु दरता या िनहा ं वस त के पग िनर तर दर हो रहे।ू ३८ कौवे शोर मचा रहे क को कला को सुन न पाएं। ३९ मां क गोद म सुर त िभखार ब चे को या मालूम ठंड कतनी है। ४० िच डया घ सला बनाए पेड पर, कैसे बताएं पेड कटने वाला है। ४१

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  • उदास लग े पंजरे का प ी जब िततली देखे। ४२ जुगन ूरोशनी द ब च को जो उ ह पकड । ४३ नाग जल िनम ल है पांव कैसे धोऊं। ४४ अनजान क वस त जा रहा िततली घास पर सोई। ४५ वह पास से िनकला पर सवेरे के कुहरे म उसे पहचान न सका। ४६ ह रण त भत हआु उछलते बाघ क भीषण सु दरता देख। ४७ आितशबाज़ी बाद दश क लौटे अब वीराना है। ४८ मकडे जाल से िततिलय के पंख लटक रहे। ४९ उपवन म येक पेड का अपना नाम है। ५० पत ग धरती िगरा िनर ण स ेजाना आ मा नह ं। ५१ मधुम खी बार बार

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  • देवता क मूित पर वार कर रह । ५२ कतन ेमूख ह जो इशार का दाम करत ेह । ५३ गंगा क लहर पर चांद िच बना रहा। ५४ प ी हंस रहे क हमारे पास समय नह ं। ५५ चांदनी म सब व सु दर लगते ह । ५६ ख डहर म म ने कई फूल उगते पाए। ५७ ई का फेर वाला गम से पी डत। ५८ म ढक प ेबैठ कु या को पार कया। ५९ य द पपीहा पौधा होता लोग गीत काट लेते रेशमी माल और प न बीच सुखाने के िलए। ६० आज भी सूया त हआु फुलवार म बेचारे तारे शरद के चांद से हारे। ६१

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  • तूफान के शोर म भी िच डया क पुकार आई। ६२ सद क फुहार मझे िमलने से पहले फुलवार हो आई। ६३ भुज त भीषण वषा म सोए पडे। ६४ पपीहा कूक करे पर कोई न आया। ६५ शाम हो चली मेर बेट चुपचाप रसोई म खाना खा रह । ६६ कमल सु दर है पर ना वक बहरा। ६७ कारागार के आंगन म भी पु प खले। ६८ म थक गया या नींद म भी पु प खल गे। ६९ पूजा करत ेपु प मुझा ए। ७० कोमल फूल पर वषा मूसल सी िगर रह । ७१ शरद क चांदनी म मेरा बालक गोद नह ं।

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  • ७२ पडोसी क उंची द वार न वह देख ेनद न दर पहाड ।ू ७३ रात अंधेरे के त बू म िछप गया ताल पर हंस का वर कोमल और ेत है।

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  • म दर क सी ढयां १ मेरे समछाया के आंगन म पपीहे ने पहला गान कया। २ मालूम नह ं कहां से यह गीत धरती पर िगर आया। ३ मचान से देखते बाघ कतना सु दर लगता है। ४ िततली मेरे हाथ म देखते देखते मर गयी। ५ देखो! पव त क बल के नीचे सोया है। ६ पु प खल ेदसरे दनू हमपात हआ।ु ७ म फूल को चुनना नह चाहता पर घर कैसे लौटंू चुने बना। ८ पता नह ं कन फूल क सुरिभ फैल गई आंगन म । ९ बादल कभी कभी चा द को ढक लेते ह ता क हमार िनहारती आंख थक न जाएं। १० देखो इस प ेसे िगरका

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  • जल ब द ुकैसे वभा जत हआ।ु ११ पपीहे क चीख सुनकर मुझे वग वासी दादा क याद आई। १२ चा द क कतनी सम है। १३ नववष के उ सव के िलय ेमेरे पास नव व कहां? १४ ओठ ठठुरते ह इन हवाओं म ।

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  • डरा प ी कांपते, रात के तूफान म बजली क च ध म न ट नीड देख कर वह लौटा घर िनराश।

    व व िसकुड गया था तब कोई दसराू नह ं जो अपन ेजैसा रहा। नह ं ढंूढना अब कोई।

    भूिम बहतु अलग सी थी रेत थी मकान थे ुव ऋतु समान सी न धूप थी न चां दनी।

    खडक म जब देखता ब धु उछल रहे पंख भरते उडान यह य गोच कर। नल क फुहार बनी उस क बरसात अब सुदरू भूले देश म रम झम पानी िगर रहा।

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  • िम ट का अनुराग देश ेम कहां से उभरता है? हमारे कूचे क चड वाले थे और भय था बाजार के गुंडे पीट न ल । चुप रहना सीखा अ ात भीड म पघल जाना।

    यह सच है -- पतझड क हवाएं तीखी और सुहावनी थीं और नद के पास उपवन म भागना पहाड से लुढकना आन दमयी था।

    पुरख क कहािनयां रोमांिचत थीं उनसे जुड ह ु म ने भी कई कथानक बुने।

    पर अ य देश क भी अपनी कहािनयां ह सु दर घा टयां पव तीय न दयां सु द रयां। अ तर शायद है बचपन म म ने देश क िम ट खाई। यह देश मोह नह ं िम ट का अनुराग है।

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  • वस ्मिृत क् य क वस ्मतृ ह हम, नया जन ्म नह ं हो सकता हमारा। बंधे ह हम अतीत म , अन ्ध ेसमान। िच न ाप ्ित जीवन का ल ्य एकमा -- भक् ित, याचना, योग। आतुरता, पूण होकर पीडा क , मधु को चखकर वष पीने क । काल क सूजन द देखी है हमने अभी, अतीत भ व य को गभ समेटे, फु टत हआु नह ं। इसका ज म मायावी होगा इसका शोषण है मिृतधारा ऊजा है

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  • वर क झंकार। पर यह यायावर मन इ जाल क भूलभुलैया म भटक गया व मिृत क ितगूंज सुनकर स मो हत।

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  • सोता चरागाह दोपहर क तपतपाती धूप म , सोते चरागाह म , ज त ुपेड क छाया म फैले हए थेु , मधुम खया ंह त लीन थीं फूल के ऊपर। सामा यता का रेशमी आवरण ढके था इ य को म से। उस तपन म चाह उठ िनश दता क प थर क बन कहानी जो बताय गे धरा म कतनी गम है। उस फटे आकाश म न म ृयु थी न पानी घर से पहंचकरु दरू एक आलोक म थे जहां से वापस िनकलकर आना मना है।

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