prema by premchand

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Munshi Premchand was an Indian writer famous for his modern Hindustani literature. He is one of the most celebrated writers of the Indian subcontinent,[1] and is regarded as one of the foremost Hindustani writers of the early twentieth century.Born Dhanpat Rai Srivastav, he began writing under the pen name "Nawab Rai", but subsequently switched to "Premchand", while he is also known as "Munshi Premchand", Munshi being an honorary prefix. A novel writer, story writer and dramatist, he has been referred to as the "Upanyas Samrat" ("Emperor among Novelists") by some Hindi writers. His works include more than a dozen novels, around 250 short stories, several essays and translations of a number of foreign literary works into Hindi.

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Page 1: Prema by Premchand

ह िंदीकोश

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पे्रमा पे्रमचिंद

Page 2: Prema by Premchand

Prema

By Premchand

य पुस्तक प्रकाशनाधिकार मुक्त ै क्योंकक इसकी प्रकाशनाधिकार अवधि समाप्त ो चुकी ैं।

This work is in the public domain in India because its term of copyright

has expired.

यूनीकोड सिंस्करण: सिंजय खत्री. 2012

Unicode Edition: Sanjay Khatri, 2012

आवरण धचत्र: समीरा एविं ववककपीडडया (पे्रमचिंद)

Cover image: Samira and Wikipedia.org (Premchand).

ह िंदीकोश

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Page 3: Prema by Premchand

प्रेमा 1. सच्ची उदारता ...................................................................................... 4

2. जलन बुरी बला ै ............................................................................... 12

3. झूठे मददगार ..................................................................................... 21

4. जवानी की मौत .................................................................................. 26

5. अँय ! य गजरा क्या ो गया?........................................................... 36

6. मुये पर सौ दरेु ................................................................................... 47

7. आज से कभी मन्ददर न जाऊँगी .......................................................... 59

8. कुछ और बातचीत .............................................................................. 69

9. तुम सचमुच जादगूर ो ....................................................................... 78

10. वववा ो गया ................................................................................ 88

11. ववरोधियों का ववरोि ........................................................................ 98

12. एक स्त्री के दो पुरूष न ीिं ो सकत े............................................... 116

13. शोकदायक घटना .......................................................................... 120

Page 4: Prema by Premchand

प्रेमचिंद

पे्रमा

1. सच्ची उदारता सिंध्या का समय ै, डूबने वाले सूयय की सुन री ककरणें रिंगीन शीशो की आड़ से, एक अिंगे्रजी ढिंग पर सज े ुए कमरे में झ ॉँक र ी ैं न्जससे सारा कमरा रिंगीन ो र ा ै। अिंगे्रजी ढिंग की मनो र तसवीरें , जो दीवारों से लटक र ीिं ै, इस समय रिंगीन वस्त्र िारण करके और भी सुिंदर मालूम ोती ै। कमरे के बीचोंबीच एक गोल मेज़ ै न्जसके चारों तरफ नमय मखमली गद्दोकी रिंगीन कुर्सयय बबछी ुई ै। इनमें से एक कुसी पर एक युवा पुरूष सर नीचा ककये ुए बैठा कुछ सोच र ा ै। व अतत सुिंदर और रूपवान पुरूष ै न्जस पर अिंगे्रजी काट के कपड़ ेब ुत भले मालमू ोत े ै। उसके सामने मेज पर एक कागज ै न्जसको व बार-बार देखता ै। उसके च ेरे से ऐसा ववहदत ोता ै कक इस समय व ककसी ग रे सोच में डूबा ुआ ै। थोड़ी देर तक व इसी तर प लू बदलता र ा, कफर व एकाएक उठा और कमरे से बा र तनकलकर बरािंड ेमें ट लने लगा, न्जसमे मनो र फूलों और पत्तों के गमले सजाकर िरे ुए थे। व बरािंड ेसे कफर कमरे में आया और कागज का टुकड़ा उठाकर बड़ी बेचैनी के साथ इिर-उिर ट लने लगा। समय ब ुत सु ावना था। माली फूलों की क्याररयों में पानी दे र ा था। एक तरफ साईस घोड़ ेको ट ला र ा था। समय और स्थान दोनो ी ब ुत रमणीक थे। परदतु व अपने ववचार में ऐसा लवलीन ो र ा था कक उसे इन बातों की बबलकुल सुधि न थी। ॉँ, उसकी गदयन आप ी आप ह लाती थी और ाथ भी आप ी आप इशारे करत ेथे—जैसे व ककसी से बातें कर र ा ो। इसी बीच में एक बाइर्सककल फाटक के अिंदर आती ुई हदखायी दी और एक गोरा-धचटठा आदमी कोट पतलून प ने, ऐनक लगाये, र्सगार पीता, जूत ेचरमर करता, उतर पड़ा और बोला, गुड ईवतनिंग, अमतृराय।

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अमतृराय ने चौंककर सर उठाया और बोले—ओ। आप ै र्मस्टर दाननाथ। आइए बैहठए। आप आज जलसे में न हदखायी हदयें। दाननाथ—कैसा जलसा। मुझ ेतो इसकी खबर भी न ीिं। अमतृराय—(आश्चयय से) ऐिं। आपको खबर ी न ीिं। आज आगरा के लाला िनुषिारीलाल ने ब ुत अच्छा व्याख्यान हदया और ववरोधियो के द ॉँत खटटे कर हदये। दाननाथ—ईश्वर जानता ै मुझे जरा भी खबर न थी, न ीिं तो मैं अवश्य आता। मुझ ेतो लाला सा ब के व्याख्यानों के सुनने का ब ुत हदनों से शौंक ै। मेरा अभाग्य था कक ऐसा अच्छा समय ाथ से तनकल गया। ककस बात पर व्याख्यान था? अमतृराय—जातत की उदनतत के र्सवा दसूरी कौन-सी बात ो सकती थी? लाला सा ब ने अपना जीवन इसी काम के ेतु अपयण कर हदया ै। आज ऐसा सच्चा देशभक्त और तनष्कास जातत-सेवक इसदेश में न ीिं ै। य दसूरी बात ै कक कोई उनके र्सदवािंतो को माने या न माने, मगर उनके व्याख्यानों में ऐसा जाद ू ोता ै कक लोग आप ी आप खखिंच े चले आत े ै। मैंने लाला सा ब के व्याख्यानों के सुनने का आनिंद कई बार प्राप्त ककया ै। मगर आज की स्पीच में तो बात ी और थी। ऐसा जान पड़ता ै कक उनकी ज़बान में जाद ूभरा ै। शब्द व ी ोत े ै जो म रोज़ काम में लाया करत े ै। ववचार भी व ी ोत े ै न्जनकी मारे य ॉँ प्रततहदन चचाय र ती ै। मगर उनके बोलने का ढिंग कुछ ऐसा अपूवय ै कक हदलों को लुभा लेता ै। दाननाथ को ऐसी उत्तम स्पीच को न सुनने का अत्यिंत शोक ुआ। बोले—यार, मैं जिंदम का अभागा ँू। क्या अब कफर कोई व्याख्यान न ोगा? अमतृराय—आशा तो न ीिं ैं क्योंकक लाला सा ब लखनऊ जा र े ै, उिर से आगरा को चले जाएिंगे। कफर न ीिं मालूम कब दशयन दें।

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दाननाथ—अपने कमय की ीनता की क्या क ँू। आपने उसस्पीच कीकोई नकल की ो तो जरा दीन्जए। उसी को देखकर जी को ढारस दूँ। इस पर अमतृराय ने व ी कागज का टुकड़ा न्जसको वे बार-बार पढ र े थे दाननाथ के ाथ में रख हदया और बोले—स्पीच के बीच-बीच में जो बात ेमुझको सवार ो जाती ै तो आगा-पीछा कुछ न ीिं सोचते, समझाने लगे—र्मत्र, तुम कैसी लड़कपन की बातें करत े ो। तुमको शायद अभी मालूम न ीिं कक तुम कैसा भारी बोझ अपने सर पर ले र े ो। जो रास्ता अभी तुमको साफ हदखायी दे र ा ै व क ॉँटो से ऐसा भरा ै कक एक-एक पग िरना कहठन ै। अमतृराय—अब तो जो ोना ो सो ो। जो बात हदल में जम गयी व तम गयीिं। मैं खूब जानता ूिं कक मुझको बड़ी-बड़ी कहठनाइयों का सामना करना पड़गेा। मगर आज मेरा ह साब ऐसा बढा ुआ ैं कक मैं बड़ ेसे बड़ा काम कर सकता ूिं और ऊँच ेसे ऊँच ेप ाड़ पर चढ सकता ँू। दाननाथ—ईश्वर आपके उत्सा को सदा बढावे। मैं जानता ँू कक आप न्जस काम के र्लए उदयोग करेगें उसे अवश्य पूरा कर हदखायेगें। मैं आपके इरादों में ववध्न डालना कदावप न ीिं चा ता। मगर मनुष्य का िमय ैं कक न्जस काम में ाथ लगावे प ले उसका ऊँच-नीच खूब ववचार ले। अब प्रच्छन बातों से टकर प्रत्यक्ष बातों की तरफा आइए। आप जानत े ैकक इस श र के लोग, सब के सब, पुरानी लकीर के फकीर ै। मुझ ेभय ै कक सामान्जक सुिार का बीज य ॉँ कदावप फल-फुल न सकेगा। और कफर, आपका स ायक भी कोई नजर न ीिं आता। अकेले आप क्या बना लेंगे। शायद आपके दोस्त भी इस जोखखम के काम में आपका ाथ न बँटा सके। चा े आपको बुरा लगे, मगर मैं य जरूर क ँूगा कक अकेले आप कुछ भी न कर सकें गे। अमतृराय ने अपने परम र्मत्र की बातों को सुनकर सा उठाया और बड़ी गिंभीरता से बोले—दाननाथ। य तुमको क्या ो गया ै। क्या मै तुम् ारे मुँ से ऐसी बोदेपन की बातें सुन र ा ूिं। तुम क त े ो अकेले क्या बना लोगे? अकेले आदर्मयों की कारगुजाररयों से इतत ास भरे पड़ े ैं। गौतम बुदव कौन था? एक जिंगल का बसनेवाला सािु, न्जसका सारे देश में कोई मददगार न था।

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मगर उसके जीवन ी में आिा ह ददोस्तान उसके पैरों पर सर िर चुका था। आपको ककतने प्रमाण दूँ। अकेले आदर्मयों से कौमों के नाम चल र े ै। कौमें मर गयी ै। आज उनका तनशान भी बाकी न ीिं। मगर अकेले आदर्मयों के नाम अभी तक न्जिंदा ै। आप जानत े ैं कक प्लेटों एक अमर नाम ै। मगर आपमें ककतने ऐसे ैं जो य जानत े ों कक व ककस देश का र ने वाला ै। दाननाथ समझदार आदमी थे। समझ गये कक अभी जोश नया ै और समझाना बुझाना सब व्यथय ोगा। मगर कफर भी जी न माना। एक बार और उलझना आवश्यक ‘अच्छी जान पड़ी मैने उनको तुरिंत नकल कर र्लया। ऐसी जल्दी में र्लखा ै कक मेरे र्सवा कोई दसूरा पढ भी न सकेगा। देखखए मारी लापरवा ी को कैसा आड़ े ाथों र्लया ै: सज्जनों। मारी इस ददुयशा का कारण मारी लापरवा ी ैं। मारी दशा उस रोगी की-सी ो र ी ै जो औषधि को ाथ में लेकर देखता ै मगर मुँ तक न ीिं ले जाता। ॉँ भाइयो। म ऑ िंखे रचात े ै मगर अिंिे ै, म कान रखत े ै मगर ब रें ै, म जबान रखत े ै मगर गूँगे ैं। परिंतु अब व हदन न ीिं र े कक मको अपनी जीत की बुराइयाँ न हदखायी देती ो। म उनको देखत े ै और मन मे उनसे घणृा भी करत े ै। मगर जब कोई समय आ जाता ै तो म उसी पुरानी लकीर पर जात े ै और नअय बातों को असिंभव और अन ोनी समझकर छोड़ देत े ै। मारे डोंगे का पार लगाना, जब कक मल्ला ऐसे बाद और कादर ै, कहठन ी न ीिं प्रत्युत दसु्साध्य ै। अमतृराय ने बड़ ेऊँच ेस्वरों में उस कागज को पढा। जब व चुप ुए तो दाननाथ ने क ा—तन:सिंदे ब ुत ठीक क ा ै। मारी दशा के अनुकूल ी ै। अमतृराय—मुझकों र -र कर अपने ऊपर क्रोि आता ै कक मैंने सारी स्पीच क्यों न नकल कर ली। अगर क ीिं अिंगे्रजी स्पीच ोती तो सबेरा ोत े ी सारे समाचारपत्रों में छप जाती। न ीिं तो शायद क ीिं खुलासा ररपोटय छपे तो छपे। (रूककर) तब मैं जलसे से लौटकर आया ँू तब से बराबर व ी शब्द मेरे कान में गूँज र े ै। प्यारे र्मत्र। तुम मेरे ववचारों को प ले से जानत े ो, आज की स्पीच ने उनको और भी मजबूत कर हदया ै। आज से मेरी प्रततज्ञा

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ै कक मै अपने को जातत पर दयौछावर कर दूँगा। तन, मन, िन सब अपनी धगरी ुई जातत की उदनतत के तनर्मत्त अपयण कर दूँगा। अब तक मेरे ववचार मुझ ी तक थे पर अब वे प्रत्यक्ष ोंगे। अब तक मेरा दय दबुयल था, मगर आज इसमें कई हदलों का बल आ गया ै। मैं खूब जानता ँू कक मै कोई उच्च-पदवी न ीिं रखता ूिं। मेरी जायदाद भी कुछ अधिक न ीिं ै। मगर मैं अपनी सारी जमा जथा अपने देश के उदवार के र्लए लगा दूँगा। अब इस प्रततज्ञा से कोई मुझको डडगा न ीिं सकता। (जोश से)ऐ थककर बैठी ुई कौम। ले, तरेी ददुयशा पर ऑ िंसू ब ानेवालों में एक दखुखयारा और बढा। इस बात का दयाय करना कक तुझको इस दखुखयारे से कोई लाभ ागा या न ीिं, समय पर छोड़ता ँू। य क कर अमतृराय जमीन की ओर देखने लगे। दाननाथ, जो उनके बचपन के साथी थे और उनके बचपन के साथी थे और उनके स्वभाव से भलीभ ॉँतत पररधचत थे कक जब उनको कोई िुन मालूम ुआ। बोले—अच्छा मैंने मान र्लया कक अकेले लोगों ने बड़बेड़ ेकाम ककये ैं और आप भी अपनी जातत का कुछ न कुछ भला कर लेंगे मगर य तो सोधचये कक आप उन लोगों को ककतना दखु प ँुचायेंगे न्जनका आपसे कोई नाता ै। पे्रमा से ब ुत जल्द आपका वववा ोनेवाला ै। आप जानत े ै कक उसके म ॉँ-बाप परले र्सरे के कटटर ह दद ू ै। जब उनको आपकी अिंगे्रजी पोशाक और खाने-पीने पर र्शकायत ै तो बतलाइए जब आप सामन्जक सुिार पर कमर बािंिेगे तब उनका क्या ाल ोगा। शायद आपको पे्रमा से ाथ िोना पड़।े दाननाथ का य इशारा कलेजे में चुभ गया। दो-तीन र्मनट तक व सदनाटे में जमीन की तरफ ताकत ेर े। जब सर उठाया तो ऑ िंखे लाल थीिं और उनमें ऑ िंसू डबडबाये थे। बोले—र्मत्र, कौम की भलाई करना सािारण काम न ीिं ै। यदयवप प ले मैने इस ववषय पर ध्यान न हदया था, कफर भी मेरा हदल इस वक्त ऐसा मजबूत ो र ा ै कक जातत के र्लए र एक दखु भोगने को मै कहटबदव ँू। इसमें सिंदे न ीिं कक पे्रमा से मुझको ब ुत ी पे्रम था। मैं उस पर जान देता था और अगर कोई समय ऐसा आता कक मुझको उसका पतत बनने का आनिंद र्मलता तो मैं साबबत करता कक पे्रम इसको क त े ै। मगर अब पे्रमा की मो नी मूरत मुझ पर अपना जाद ून ीिं चला सकती। जो देश और जातत के नाम पर बबक गया उसके हदल मे कोई दसूरी चीज जग न ीिं पा

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सकती। देखखए य व फोटो ै जो अब तक बराबर मेरे सीने से लगा र ता था। आज इससे भी अलग ोता ूिं य क ते-क त े तसवीर जेब से तनकली और उसके पुरजे-पुरजे कर डाले, ‘पे्रमा को जब मालूम ोगा कक अमतृराय अब जातत पर जान देने लगा, उसके हदन में अब ककसी नवयौवना की जग न ी र ी तो व मुझ ेक्षमा कर देगी। दाननाथ ने अपने दोस्त के ाथों से तसवीर छीन लेना चा ी। मगर न पा सके। बोले—अमतृराय बड़ ेशोक की बात ै कक तुमने उस सुददरी की तसवीर की य दशा की न्जसकी तुम खूब जानत े ो कक तुम पर मोह त ै। तुम कैसे तनठुर ो। य व ी सुिंदरी ै न्जससे शादी करने का तुम् ारे वैकुिं ठवासी वपता ने आग्र ककया था और तुमने खुद भी कई बार बात ारी। क्या तुम न ीिं जानत ेकक वववा का समय अब ब ुत तनकट आ गया ै। ऐसे वक्त में तुम् ारा इस तर मुँ मोड़ लेना उस बेचारी के र्लए ब ुत ी शोकदायक ोगा। इन बातों को सुनकर अमतृराय का च ेरा ब ुत मर्लन ो गया। शायद वे इस तर तस्वीर के फाड़ देने का कुछ पछतावा करने लगे। मगर न्जस बात पर अड़ गये थे उस पर अड़ े ी र े। इद ीिं बातों में सूयय अस्त ो गया। अँिेरा छा गया। दाननाथ उठ खड़ े ुए। अपनी बाइर्सककल सँभाली और चलत-ेचलत ेय क ा—र्मस्टर राय। खूब सोच लो। अभी कुछ न ीिं बब िंगड़ा ै। आओ आज तुमको गिंगा की सैर करा लाये। मैंने एक बजरा ककराये पर ले रक्खा ै। उस पर च ॉँदनी रात में बड़ी ब ार र ेगी। अमतृराय—इस समय आप मुझको क्षमा कीन्जए। कफर र्मलूँगा। दाननाथ तो य बातचीत करके अपने मकान को रवाना ुए और अमतृराय उसी अँिेरे में, बड़ी देर तक चुपचाप खड़ ेर े। व न ीिं मालूम क्या सोच र े थे। जब अँिेरा अधिक ुआ तो व जमीन पर बैठ गये। उद ोंने उस तसवीर के पुजे सब एक-एक करके चुन र्लये। उनको बड़ ेप्यार से सीने में लगा र्लया और कुछ सोचत े ुए कमरे में चले गए। बाबू अमतृराय श र के प्रततन्ष्ठत रईसों में समझ ेजात ेथे। वकालत का पेशा कई पुश्तों से चला आता था। खुद भी वकालत पास कर चुके थे। और यदयवप

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वकालत अभी तक चमकी न थी, मगर बाप-दादे ने नाम ऐसा कमाया था कक श र के बड़े-बड़ ेरईस भी उनका दाब मानत े थे। अिंगे्रजी कार्लज मे इनकी र्शक्षा ुई थी और य अिंगे्रजी सभ्यता के पे्रमी थे। जब तक बाप जीत ेथे तब तक कोट-पतलून प नत ेततनक डरत ेथे। मगर उनका दे ािंत ोत े ी खुल पड़।े ठीक नदी के समीप एक सुिंदर स्थान पर कोठी बनवायी। उसको ब ुत कुछ खचय करके अिंगे्रजी रीतत पर सजाया। और अब उसी में र त ेथे। ईश्वर की कृपा से ककसी चीज कीकमी न थी। िन-द्रव्य, गाड़ी-घोड़ ेसभी मौजूद थे। अमतृराय को ककताबों से ब ुत पे्रम था। मुमककन न था कक नयी ककताब प्रकार्शत ो और उनके पास न आवे। उत्तम कलाओिं से भी उनकी तबीयत को ब ुत लगाव था। गान-ववदया पर तो वे जान देत ेथे। गो कक वकालत पास कर चुके थे मगर अभी व वववा न ीिं ुआ था। उद ोने ठान र्लया था कक जब व वकालत खूब न चलने लगेगी तब तक वववा न करँूगा। उस श र के रईस लाला बदरीप्रसाद सा ब उनको कईसाल से अपनी इकलौती लड़की पे्रमा के वास्त,े चुन बैठे थे। पे्रमा अतत सुिंदर लड़की थी और पढने र्लखने , सीने वपरोने में तनपुण थी। अमतृराय के इशारे से उसको थोड़ी स ी अिंगे्रजी भी पढा दी गयी थी न्जसने उसके स्वभाव में थोड़ी-सी स्वतिंत्रता पैदा कर दी थी। मुिंशी जी ने ब ुत क ने-सुनने से दोनो पे्रर्मयों को धचटठी पत्री र्लखने की आज्ञा दे दी थी। और शायद आपस में तसवीरों की भी अदला-बदली ो गये थी। बाबू दाननाथ अमतृराय के बचपन के साधथयों में से थे। कार्लज मे भी दोनों का साथ र ा। वकालत भी साथ पास की और दो र्मत्रों मे जैसी सच्ची प्रीतत ो सकती ै व उनमे थी। कोई बात ऐसी न थी जो एक दसूरे के र्लए उठा रखे। दाननाथ ने एक बार पे्रमा को म ताबी पर खड़ ेदेख र्लया था। उसी वक्त से व हदल में पे्रमा की पूजा ककया करता था। मगर य बात कभी उसकी जबान पर न ीिं आयी। व हदल ी हदल में घुटकर र जाता। सैकड़ों बार उसकी स्वाथय दृन्ष्ट ने उसे उभारा था कक तू कोई चाल चलकर बदरीप्रसाद का मन अमतृराय से फेर दे, परिंतु उसने र बार इस कमीनेपन के ख्याल को दबाया था। व स्वभाव का ब ुत तनमयल और आचरण का ब ुत शुदव था। व मर जाना पसिंद करता मगर ककसी को ातन प ँुचाकर अपना मनोरथ कदावप पूरा न ीिं कर सकता था। य भी न था कक व केवल हदखाने के र्लए

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अमतृराय से मेल रखता ो और हदल में उनसे जलता ो। व उनके साथ सच्च ेर्मत्र भाव का बतायव करता था। आज भी, जब अमतृराय ने उससे अपने इरादे जाह र ककये तब उसने च्च ेहदल से उनको समझाकर ऊँच नीच सुझाया। मगर इसका जो कुछ असर ुआ म प ले हदखा चुके ै। उसने साफ साफ क हदया कक अगर तुम ररफायमरों की मिंडली में र्मलोगे तो पे्रमा से ाथ िोना पडगेा। मगर अमतृराय ने एक न सुनी। र्मत्र का जो िमय ै व दाननाथ ने पूरा कर हदया। मगर जब उसने देखा कक य अपने अनुष्ठान पर अड़ े ी र ेगें तो उसको कोई वज न मालूम ुई कक मैं य सब बातें बदरी प्रसाद से बयान करके क्यों न पे्रमा का पतत बनने का उदयोग करँू। य ािं से व य ी सब बातें सोचत े ववचारते घर पर आये। कोट-पतलून उतार हदया और सीिे सादे कपड़ ेपह न मुिंशी बदरीप्रसाद के मकान को रवाना ुए। इस वक्त उसके हदन की जो ालत ो र ी थी, बयान न ी की जा सकती। कभी य ववचार आता कक मेरा इस तर जाना, लोगों को मुझसे नाराज न कर दे। मुझ े लोग स्वाथी न समझने लगें। कफर सोचता कक क ीिं अमतृराय अपना इरादा पलट दें और आश्चयय न ीिं कक ऐसा ी ो, तो मैं क ीिं मुँ हदखाने योग्य न र ँूगा। मगर य सोचत ेसोचत ेजब पे्रमा की मो नी मूरत ऑ िंख के सामने आ गयी। तब य सब शिंकाए दरू ो गयी। और व बदरीप्रसाद के मकान पर बातें करत ेहदखायी हदये। ***

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2. जलन बुरी बला है

लाला बदरीप्रसाद अमतृराय के बाप के दोस्तों में थे और अगर उनसे अधिक प्रततन्ष्ठत न थे तो ब ुत ेठे भी न थे। दोनो में लड़के-लड़की के ब्या की बातचीत पक्की ो गयी थी। और अगर मुिंशी िनपतराय दो बरस भी और जीत ेतो बेटे का से रा देख लेत।े मगर कालवश ो गये। और य अमायन मन मे र्लये वैकुण्ठ को र्सिारे। ािं, मरत ेमरत ेउनकी बेटे ो य नसी त थी कक मु० बदरीप्रसाद की लड़की से अवश्य वववा करना। अमतृराय ने भी लजात ेलजात ेबात ारी थी। मगर मुिंशी िनपतराय को मरे आज प िंच बरस बीत चुके थे। इस बीच में उद ोने वकालत भी पास कर ली थी और अच्छे खासे अिंगे्रज बन बैठे थे। इस पररवतयन ने पन्ब्लक की ऑ िंखो में उनका आदर घटा हदया था। इसके ववपरीत बदरीप्रसाद पक्के ह दद ूथे। साल भर, बार ों मास, उनके य ािं श्रीमद्भागवत की कथा ुआ करती थी। कोई हदन ऐसा न जाता कक भिंडार में सौ पचास सािुओिं का प्रसाद न बनता ो। इस उदारता ने उनको सारे श र मेंसव्रवप्रय बना हदया था। प्रततहदन भोर ोत े ी, व गिंगा स्नान को पैदल जाया करत ेथे ओर रास्त ेमें न्जतने आदमी उनको देखत ेसब आदर से सर झुकात े थे और आपस में कानाफुसी करत ेकक दखुखयारों का य दाता सदा फलता फूलता र े। यदयवप लाला बदरीप्रसाद अमतृराय की चाल-ढाल को पसिंद न करत ेथे और कई बेर उनको समझा कर ार भी चुके थे, मगर श र में ऐसा ोन ार, ववदयावान, सुिंदर और ितनक कोई दसूरा आदमी न था जो उनकी प्राण से अधिक वप्रय लड़की पे्रमा के पतत बनने के योग्य ो। इस कारण वे बेबस ो र े थे। लड़की अकेली थी, इसर्लए दसूरे श र में ब्या भी न कर सकत ेथे। इस लड़की के गुण और सुिंदरता की इतनी प्रशिंसा थी कक उस श र के सब रईस उसे चा त ेथे। जब ककसी काम काज के मौके पर पे्रमा सोल ों श्रिंगार करके जीती तो न्जतनी और न्स्त्रय ॉँ व ॉँ ोतीिं उसके पैरों तले आिंखे बबछाती। बडी बूढी औरतें क ा करती थी कक ऐसी सुिंदर लड़की क ीिं देखने में न ीिं आई। और जैसी पे्रमा औरतों में थी वैसे ी अमतृराय मदो में थे। ईश्वर ने अपने ाथ से दोनों का जोड़ र्मलाया था।

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ॉँ, श र के पुराने ह दद ूलोग इस वववा के खखलाफ थे। व क त ेकक अमतृराय सब गुण आगर स ी, मगर ै तो ईसाई। उनसे पे्रमा जैसी लड़की का वववा करना ठीक न ीिं ै। मुिंशी जी के नातदेार लोग भी इस शादी के ववरूदव थे। इसी खीिंचातानल में प ॉँच बरस बीत चुके थे। अमतृराय भी कुछ ब ुत उदयम न मालूम ोत ेथे। मगर इस साल मुिंशी बदरीप्रसाद ने भी ह याब ककया, और अमतृराय भी मुस्तैद ुए और वववा की साइत तनश्चय की गयी। अब दोनों तरफ तैयाररयािं ो र ी थी। पे्रमा की मािं अमतृराय के नाम पर बबकी ुई थी और लड़की के र्लए अभी से ग ने पात े बनवाने लगी थी, कक तनदान आज य म ाभयानक खबर प ँुची कक अमतृराय ईसाई ो गया ै और उसका ककसी मेम से वववा ो र ा ै। इस खबर ने मुिंशी जी के हदल पर व ी काम ककया जो बबजली ककसी रे भरे पेड़ पर धगर कर करती ै। वे बूढे तो थे ी, इसिक्के को न स सके और पछाड खाकर जमीन पर धगर पड़।े उनका बेसुि ोना था कक सारा भीतर बा र एक ो गया। तमािंम नौकर चाकर, अपने पराये इकटठे ो गये और ‘क्या ुआ’। ‘क्या ुआ’। का शोर मचने लगा। अब न्जसको देखखये य ी क ता कफरता ै कक अमतृराय ईसाई ो गया ै। कोई क ता ै थाने में रपट करो, कोई क ता ै चलकर मारपीट करो। बा र से दम ी दम में अिंदर खबर प ँुची। व ा भी कु राम मच गया। पे्रमा की मािं बेचारी ब ुत हदनों से बीमार थी। और उद ीिं की न्जद थी कक बेटी की शादी ज ॉँ तक जल्द ो जाय अच्छा ै। यदयवप व पुराने ववचार की बूढी औरत थी और उनको पे्रमा का अमतृराय के पास पे्रम पत्र भेजना एक ऑ िंख न भाता था। तथावप जब से उद ोने उनको एक बार अपने आिंगन में खड़े देख र्लया था तब से उनको य ी िुन सवार थी कक मेरी ऑ िंखों की तारा का वववा ो तो उद ीिं से ो। व इस वक्त बैठी ुई बेटी से बातचीत कर र ी थी कक बा र से य खबर प ँूची। व अमतृराय को अपना दमाद समझने लगी थी—और कुछ तो न ो सका बेटी को गले लगाकर रोने लगी। पे्रमा ने आसू को रोकना चा ा, मगर न रोक सकी। उसकी बरसों की सिंधचत आशारूपी बेल-क्षण मात्र में कुम् ला गयी। ाय। उससे रोया भी न गया। धचत्त व्याकुल ो गया। म ॉँ को रोती छोड़ व अपने कमरे में आयी, चारपाई पर िम से धगर पड़ी। जबान से केवल इतना तनकला कक नारायण, अब कैसे जीऊँगी और उसके भी ोश जात ेर े। तमाम िर की

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लौडड़य ॉँ उस पर जान देती थी। सब की सब एकत्र ो गयीिं। और अमतृराय को ‘ त्यारे’ और ‘पापी’ की पदववय ॉँ दी जाने लगी। अगर घर में कोई ऐसा था कक न्जसको अमतृराय के ईसाई ोने का ववश्वास न आया तो व पे्रमा केभाई बाबू कमला प्रसाद थे। बाब ूस ाब बड़ ेसमझदार आदमी थे। उद ोंने अमतृराय के कई लेख मार्सकपत्रों में देखे थे, न्जनमें ईसाई मत का खिंडन ककया गया था। और ‘ह दद ू िमय की मह मा’ नाम की जो पुस्तक उद ोंने र्लखी थी उसकी तो बड़-ेबड़ ेपिंडडतो ने तारीफ की थी। कफर कैसे मुमककन था कक एकदम उनके खयाल पलट जात ेऔर व ईसाई मत िारण कर लेत।े कमलाप्रसाद य ी सोच र े थे ककदाननाथ आत ेहदखायी हदये। उनके च ेरे से घबरा ट बरस र ी थी। कमलाप्रसाद ने उनको बड़ ेआदर से बैठाया और पूछने लगे—यार, य खबर क िं से उड़ी? मुझ ेतो ववश्वास न ीिं आता। दाननाथ—ववश्वास आने की कोई बात भी तो ो। अमतृराय का ईसाई ोना असिंभव ै। ािं व ररफामय मिंडली में जा र्मले ै, मुझसे भूल ो गयी कक य ी बात तुमसे न क ी। कमलाप्रसाद—तो क्या तुमने लाला जी से य क हदया? दाननाथ ने सिंकोच से सर झुका कर क ा—य ी तो भुल ो गई। मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गये थे। आज शाम को जब अमतृराय से मुलाकात करने गया तो उद ोने बात बात में क ा कक अब मैं शादी न करँूगा। मैंने कुछ न सोचा ववचारा और य बात आकर मुिंशी जी से क दी। अगर मझुको य मालूम ोता कक इस बात का य बतिंगड ो जायगा तो मैं कभी न क ता। आप जानत े ैं कक अमतृराय मेरे परम र्मत्र ै। मैंने जो य सिंदेशा प ँुचाया तो इससे ककसी की बुराई करने का आशय न था। मैंने केवल भलाइ की नीयत से य बात क ी थी। क्या क ँू, मुिंशी जी तो य बात सुनत े ी जोर से धचल्ला उठे—‘व ईसाई ो गया। मैंने ब ुतरेा अपना मतलब समझाया मगर कौन सुनता ै। व य ी क त ेमूछाय खाकर धगर पड़।े

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कमलाप्रसाद य सुनत े ी लपककर अपने वपता के पास प ूिंच।े व अभी तक बेसुि थे। उनको ोश में लाये और दाननाथ का मतलब समझाया और कफर घर में प ूिंच।े उिर सारे मु ल्ले की न्स्त्रयाँ पे्रमा के कमरे में एकत्र ो गयी थीिं और अपने अपने ववचारनुसार उसको सचते करने की तरकीबें कर र ी थी। मगर अब तक ककसी से कुछ न बन पड़ा। तनदान एक सुिंदर नवयौवना दरवाजे से आती हदखायी दी। उसको देखत े ी सब औरतो ने शोर मचाया जो पूणाय आ गयी। अब रानी को चते आ जायेगी। पूणाय एक ब्राह्मणी थी। इसकी उम्र केवल बीस वषय की ोगी। य अतत सुशीला और रूपवती थी। उसके बदन पर सादी साड़ी और सादे ग ने ब ुत ी भले मालूम ोत ेथे। उसका वववा पिंडडत बसिंतकुमार से ुआ था जो एक दफ्तर में तीस रूपये म ीने के नौकर थे। उनका मकान पड़ोस ी में था। पूणाय के घर में दसूरा कोई नथा। इसर्लए जब दस बजे पिंडडत जी दफ्तर को चले जात ेतो व पे्रमा के घर चली आती और दोनो सखखया शाम तक अपने अपने मन की बातें सुना करतीिं। पे्रमा उसको इतना चा ती थी कक यहद व कभी ककसी कारण से न आ सकती तो स्वयिं उसके िर चली जाती। उसे देखे बबना उसको कल न पड़ती थी। पूणाय का भी य ी ाल था। पूणाय ने आत े ी सब न्स्त्रयों को व ॉँ से टा हदया, पे्रमा को इत्र सुघाया केवड े और गुलाब का छीिंटा मुख पर मारा। िीरे िीरे उसके तलवे स लाये, सब खखड़ककय ॉँ खुलवा दीिं। इस तर जब ठिंडक प ँुची तो पे्रमा ने ऑ िंखे खोल दीिं और चौंककर उठ बैठी। बूढी म ॉँ की जान में जान आई। व पूणाय की बलायें लेने लगी। और थोड़ी देर में सब न्स्त्रयाँ पे्रमा को आशीवायद देत े ुए र्सिंिारी। पूणाय र गई। जब एकािंत ुआ तो उसने क ा—प्यारी पे्रमा। ऑ िंखे खोलो। य क्या गत बना रक्खी ै। पे्रमा ने ब ुत िीरे से क ा— ाय। सखी मेरी तो सब आशाऍ िं र्मटटी में र्मल गयीिं। पूणाय—प्यारी ऐसी बातें न करों। जरा हदल को सँभालो और बताओ तुमको य खबर कैसे र्मली?

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पे्रमा—कुछ न पूछो सखी, मैं बड़ी अभाधगनी ँू (रोकर) ाय, हदल बैठा जाता ै। मैं कैसे जीऊँगी। पूणाय—प्यारी जरा हदल को ढारस तो दो। मै अभी सब पता लगये देती ँू। बाबू अमतृराय पर जो दोष लोगों ने लगाया ै व सब झूठ ै। पे्रमा—सखी, तुम् ारे मुँ में घी शक्कर। ईश्वर करें तुम् ारी बातें सच ों। थोड़ी देर चुप र ने के बाद व कफर बोली—क ीिं एक दम के र्लए मेरी उस कठकलेन्जये से भेट ो जाती तो मैं उनका क्षेम कुशल पूछती। कफर मुझ ेमरने का रिंज न ोता। पूणाय—य कैसी बात क ती ो सखी, मरे व जो तुमको देख न सके। मुझसे क ो मैं तािंबे के पत्र पर र्लख दूिं कक अमतृराय अगर ब्या करेंगे तो तुम् ीिं से करेंगे। तुम् ारे पास उनके बीर्सयो पत्र पड़ े ै। मालूम ोता ै ककसी ने कलेजा तनकाल के िर हदया ै। एक एक शब्द से सच्चा पे्रम टपकता ै। ऐसा आदमी कभी दगा न ीिं कर सकता। पे्रमा—य ी सब सोच सोच कर तो आज चार बरस से हदल को ढारस दे र ी ूिं। मगर अब उनकी बातों का मुझ ेववश्वास न ीिं र ा। तुम् ीिं बताओ, मैं कैसे जानू कक उनको मुझसे पे्रम ै? आज चार बरस के हदन बीत गयें । मुझ ेतो एक एक हदन काटना दभूर ो र ा ै और व ॉँ कुछ खबर ी न ीिं ोती। मुझ ेकभी कभी उनके इस टालमटोल पर ऐसी झँुझला ट ोती ै कक तुमसे क्या क ूिं। जी चा ता ै उनको भूल जाऊँ। मगर कुछ बस न ीिं चलता। हदल बे या ो गया। य ॉँ अभी य ी बातें ो र ी थी कक बाबू कमलाप्रसाद कमरे में दाखखल ुए। उनको देखत े ी पूणाय ने घूघटँ तनकाल ली और पे्रमा ले भी चट ऑ िंखो से ऑ िंसू पोंछ र्लए और सँभल बैठी। कमलाप्रसाद—पे्रमा, तुम भी कैसी नादान ो। ऐसी बातों पर तुमको ववश्वास क्योंकर आ गया? इतना सुनना था कक पे्रमा का मुखड़ा गुलाब की तर खखल गया। षय के मारे ऑ िंखे चमकने लगी। पूणाय ने आह स्ता से उसकी एक उँगली दबायी। दोनों के हदल िड़कने लगे कक देखें य क्या क त े ै।

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कमलाप्रसाद—बात केवल इतनी ुई कक घिंटा भर ुआ, लाला जी के पास बाबू दाननाथ आये ुए थे। शादी ब्या की चचाय ोने लगी तो बाबू सा ब ने क ा कक मुझ ेतो बाबू अमतृराय के इरादे इस साल भी पक्के न ीिं मालू ोत।े शायद व ररफामय मिंडली में दाखखल ोने वाले ै। बस इतनी सी बात लोगों ने कुछ का कुछ समझ र्लया। लाला जी अिर बे ोश ोकर धगर पड़।े अम्मा उिर बद वास ो गयी। अब जब तक उनको सिंभालू कक सारे घर में कोला ल ोने लगा। ईसाई ोना क्या कोई हदल्लगी ैं। और कफर उनको इसकी जरूरत ी क्या ै। पूजा पाठ तो व करत ेन ीिं तो उद ें क्या कुत्त ेने काटा ै कक अपना मत छोड़ कर नक्कू बनें। ऐसी बे सर-पैर की बातों पर एतबार न ीिं करना चाह ए। लो अब मुँ िो डालो। ँसी-खुशी की बातचीत की। मुझ ेतुम् ारे रोने-िोने से ब ुत रिंज ुआ। य क कर बाबू कमलाप्रसाद बा र चले गये और पूणाय ने िंसकर क ा—सुना कुछ मैं जो क ती थी कक य सब झूठ ैं। ले अब मुिं मीठा करावो। पे्रमा ने प्रफुन्ल्लत ोकर पूणाय को छाती से र्लपटा र्लया और उसके पतले पतले ोठों को चूमकर बोली—मुँ मीठा ुआ या और लोगी? पूणाय—य र्मठाइय ॉँ रख छोडो उनके वास्त ेन्जनकी तनठुराई पर अभी कुढ र ी थी। मेरे र्लए तो आगरा वाले की दकुान की ताजी-ताजी अमतृतय ॉँ चाह ए। पे्रमा—अच्छा अब की उनको धचटठी र्लखगँी तो र्लख दूँगी कक पूणाय आपसे अमतृतय ॉँ म ॉँगती ै। पूणाय—तुम क्या र्लखोगी, ॉँ, मैं आज का सारा वतृािंत र्लखूगँी। ऐसा-ऐसा बनाऊँगी कक तुम भी क्या याद करो। सारी कलई खोल दूँगी। पे्रमा—(लजाकर) अच्छा र ने दीन्जए य सब हदल्लगी। सच मानो पूणाय, अगर आज की कोई बात तुमने र्लखी तो कफर मैं तुमसे कभी न बोलूगी। पूणाय—बोलो या न बोलो, मगर मैं र्लखूगँी जरूर। इसके र्लए तो उनसे जो चा ँूगी ले लूँगी। बस इतना ी र्लख दूँगी कक पे्रमा को अब ब ुत न तरसाइए।

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पे्रमा—(बात काटकर) अच्छा र्लखखएगा तो देखूगँी। पिंडडत जी से क कर व दगुयत कराऊँ कक सारी शरारत भूल जाओ। मालूम ोता ै उद ोंने तुम् ें ब ुत सर चढा रखा ै। अभी दोनों सखखय ॉँ जी भर कर खुश न ोने पायी थीिं कक उनको रिंज प ँुचाने का कफर सामान ो गया। पे्रमा की भावज अपनी ननद से रदम जला करती थी। अपने सास-ससुर से य ॉँ तक कक पतत से भी, क्रद र ती कक पे्रमा में ऐसे कौन से च ॉँद लगे कक सारा घराना उन पर तनछावर ोने को तैयार र ता ै। उनका आदर सब क्यों करत े ै मेरी बात तक कोइ न ीिं पूछता। मैं उनसे ककसी बात मे कम न ीिं ँू। गोरेपन में, सुिंदरता में, श्रृिंगार मे मेरा निंबर उनसे बराबर बढा-चढा र ता ै। ॉँ व पढी-र्लखी ै। मैं बौरी इस गुण को न ीिं जानती। उद ें तो मदो में र्मलना ै, नौकरी-चाकरी करना ै, मुझ बेचारी के भाग में तो घर का काम काज करना ी बदा ै। ऐसी तनरलज लड़की। अभी शादी न ीिं ुई, मगर पे्रम-पत्र आत-ेजात े ै।, तसवीरें भेजी जाती ै। अभी आठ-नौ हदन ोत े ै कक फूलों के ग ने आये ै। ऑ िंखो का पानी मर गया ै। और ऐस कुलविंती पर सारा कुनबा जान देता ै। पे्रमा उनके ताने और उनकी बोली-ठोर्लयो को ँसी में उड़ा हदया करती और अपने भाई के खाततर भावज को खुश रखने की कफक्र में र ती थी। मगर भाभी का मुँ उससे रदम फूला र ता। आज उद ोंने ज्यो ी सुना कक अमतृराय ईसाई ो गये ै तो मारे खुशी के फूली न ीिं समायी। मुसकरात,े मचलते, मटकत,े पे्रमा के कमरे में प ँुची और बनावट की ँसी ँसकर बोली—क्यों रानी आज तो बात खुल गयी। पे्रमा ने य सुनकर लाज से सर झुका र्लया मगर पूणाय बोली—सारा भ ॉँडा फूट गया। ऐसी भी क्या कोई लड़की मदो पर कफसले। पे्रमा ने लजात े ुए जवाब हदया—जाओ। तुम लोगों की बला से । मुझसे मत उलझों। भाभी—न ीिं-न ीिं, हदल्लगी की बात न ीिं। मदय सदा के कठकलेजी ोत े ै। उनके हदल में पे्रम ोता ी न ीिं। उनका जरा-सा सर िमकें तो म खाना-पीना त्याग देती ै, मगर म मर ी क्यों न जाय ँउनको जरा भी परवा न ीिं ोती। सच ै, मदय का कलेजा काठ का। पूणाय—भाभी। तुम ब ुत ठीक क ती ो। मदो का कलेजा सचमुच काठ का ोता ै। अब मेरे ी य ॉँ देखों, म ीने में कम-सेकम दस-बार हदन उस मुये सा ब

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के साथ दोरे पर र त े ै। म ै तो अकेली सुनसान घर में पड़े-पड़ ेकरा ा करती ँू। व ॉँ कुछ खबर ी न ीिं ोती। पूछती ँू तो क त े ै, रोना-गाना औरतों का काम ै। म रोंये-गाये तो सिंसार का काम कैसे चले। भाभी—और क्या, जानो सिंसार अकेले मदो ी के थामे तो थमा ै। मेरा बस चले तो इनकी तरफ ऑ िंख उठाकर भी न देखू। अब आज ी देखो, बाबू अमतृराय का करतब खुला तो रानी ने अपनी कैसी गत बना डाली। (मुस्कराकर) इनके पे्रम का तो य ाल ै और व ॉँ चार वषय से ीला वाला करत ेचले आत े ै। रानी। नाराज न ोना, तुम् ारे खत पर जात े ै। मगर सुनती ँू व ॉँ से ववरले ी ककसी खत का जवाब आता ै। ऐसे तनमोह यों से कोई क्या पे्रम करें। मेरा तो ऐसों से जी जलता ै। क्या ककसी को अपनी लड़की भारी पड़ी ै कक कुऍ िं में डाल दें। बला से कोई बड़ा मालदार ै, बड़ा सुिंदर ै, बड़ी ऊँची पदवी पर ै। मगर जब मसे पे्रम ी न करें तो क्या म उसकी िन-दौलत को लेकर चाटै? सिंसार में एक से एक लाल पड़ े ै। और, पे्रमा जैसी दलुह न के वास्त ेदलु ों का काल। पे्रमा को य बातें ब ुत बुरी मालूम ुई, मगर मारे सिंकोच के कुछ बोल न सकी। ॉँ, पूणाय ने जवाब हदया—न ीिं, भाभी, तुम बाबू अमतृराय पर अदयाय कर र ी ो। उनको पे्रमा से सच्चा पे्रम ै। उनमें और दसूरे मदो मे बड़ा भेद ै। भाभी—पूणय अब मुिं न खुलवाओ। पे्रम न ीिं पत्थर करत े ै? माना कक वे बड़ ेववदयावाले ै और छुटपने में ब्या करना पसिंद न ीिं करत।े मगर अब तो दोनो में कोई भी कमर्सन न ीिं ै। अब क्या बूढे ोकर ब्या करेगे? मै तो बात सच क ूिंगी उनकी ब्या करने की चषे्ठा ी न ीिं ै। टालमटोल से काम तनकालना चा त े ै। य ी ब्या के लक्षण ै कक पे्रमा ने जो तस्वीर भेजी थी व टुकड़े-टुकड़ ेकरके पैरों तले कुचल डाली। मैं तो ऐसे आदमी का मुँ भी न देखू।ँ पे्रमा ने अपनी भावज को मुस्करात े ुए आत ेदेखकर ी समझ र्लया था कक कुशल न ीिं ै। जब य मुस्कराती ै, तो अवश्य कोई न कोई आग लगाती ै। व उनकी बातचीत का ढिंग देखकर स मी जाती थी कक देखे य क्या

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सुनावनी सुनाती ै। भाभी की य बात तीर की तर कलेजे के पार ो गई क्का बक्का ोकर उसकी तरफ ताकने लगी, मगर पूणा को ववश्वास न आया, बोली य क्या अनथय करती ो, भाभी। भइया अभी आये थे उद ोने इसकी कुछ भी चचाय न ी की। मै। तो जानती ूिं कक प ली बात की तर य भी झूठी ै। य असिंभव ै कक व अपनी पे्रमा की तसवीर की ऐसी दगुयत करे। भाभी—तुम् ारे न पततयाने को मै क्या करूिं , मगर य बात तुम् ारे भइया खुद मुझसे क र े थे। और कफर इसमें बात ी कौन-सी ै, आज ी तसवीर मँगा भेजो। देखो क्या जवाब देत े ै। अगर य बात झूठी ोगी तो अवश्य तसवीर भेज देगे। या कम से कम इतना तो क ेगे कक य बात झूठी ै। अब पूणाय को भी कोई जवाब न सूझा। व चुप ो गयी। पे्रमा कुछ न बोली। उसकी ऑ िंखो से ऑ िंसुओ की िारा ब तनकली। भावज का च ेरा ननद की इस दशा पर खखल गया। व अत्यिंत वषयत ोकर अपने कमरे में आई, दपयण में मु ँ देखा और आप ी आप मग्न ोकर बोली—‘य घाव अब कुछ हदनों में भरेगा।‘ ***

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3. झूठे मददगार

बाबू अमतृराय रात भर करवटें बदलत ेर े। ज्यों-ज्यों उद ोने अपने नये इरादों और नई उमिंगो पर ववचार ककया त्यों-त्यों उनका हदल और भी दृढ ोता गया और भोर ोत-े ोत े देशभन्क्त का जोश उनके हदल में ल रें मारने लगा। प ले कुछ देर तक पे्रमा से नाता टूट जाने की धचिंता इस ल र पर ब ॉँि का काम करती र ी। मगर अिंत में ल रे ऐसी उठीिं कक व ब ॉँि टूट गया। सुब ोत े ी मुँ - ाथ िो, कपड़ ेपह न और बाइर्सककल पर सवार ोकर अपने दोस्तों की तरफ चले। प ले पह ल र्मस्टर गुलजारीलालबी.ए. एल.एल.बी. के य ॉँ प ँुच।े य वकील सा ब बड़ ेउपकारी मनुष्य थे और सामान्जक सुिार का बड़ा पक्ष करत े ै। उद ोंने जब अमुतराय के इरादे ओर उनके पूरे ोने की कल्पनाए सुनी तो ब ुत खुश ुए और बोले—आप मेरी ओर से तनन्श्चिंत रह ए और मुझ ेअपना सच्चा ह तैषी समखझए। मुझ ेब ुत षय ुआ कक मारे श र में आप जैसे योग्य पुरूष ने इस भारी बोझ को अपने सार र्लया। आप जो काम चा ें मुझ ेसौप दीन्जए, मै उसको अवश्य पूरा करूगा और उसमें अपनी बड़ाई समझँूगा। अमतृराय वकील सा ब की बातों पर लटू ो गये। उद ोंने सच्च ेहदल से उनको िदयवाद हदया और क ा कक मैं इश श र में एक सामान्जक सुिार की सभा स्थावपत करना चा ता ँू। वकील सा ब इस बात पर उछल पड़ ेऔर क ा कक आप मुझ ेउस सभा का सदस्य और ह तधचदतक समझें। मैं उसकी मदद हदलोजान से करँगा। उमतृराय इस अच्छे शगुन ोत े ुए दाननाथ के घर प ँूच।े म प ले क चुके ैं कक दाननाथ के घर प ँूच।े म प ले क चुके ै कक दाननाथ उनके सच्च ेदोस्तों में थे। वे दनको देखत े ी बड़ ेआदर से उठ खड़े ुए और पूछा-क्यों भाई, क्या इरादे ैं? अमतृराय ने ब ुत गम्भीरत से जवाब हदया—मैं अपने इरादे आप पर प्रकट कर चका ँू और आप जानत े ैं कक मैं जो कुछ क ता ँू व कर हदखाता ँू। बस आप के पास केवल इतना पूछना के र्लए आया ँू कक आप इस शुभ कायय में मेरी कुछ मदद करेंगे या न ीिं? दाननाथ सामन्जक सुिार को पिंसद तो

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करता था मगर उसके र्लए ानी या बदनामी लेना न ीिं चा ता था। कफर इस वक्त तो, व लाला बदरी प्रसाद का कृपापात्र भी बनना चा ता था, इसर्लए उसने जवाब हदया—अमतृराय तुम जानत े ो कक मैं र काम में तुम् ारा साथ देने को तैयार ँू। रपया पैसा समय, सभी से स ायता करग ॉँ, मगर तछपे-तछपे। अभी मैं इस सभा में खुल्लम-खुल्ला सन्म्मर्लत ोकर नुकसान उठाना उधचत न ीिं समझता। ववशेष इस कारण से कक मेरे सन्म्मलत ोने से सभा को कोई बल न ीिं प ँुचगेा। बाबू अमतृराय ने अधिक वादानुवाद करना अनुधचत समझा। इसमें सददे न ीिं कक उनको दाननाथ से ब ुत आशा थी। मगर इस समय व य ॉँ ब ुत न ठ रे और ववदया के र्लए प्रर्सद्ध थे। जब अमतृराय ने उनसे सभा सिंबिंि बातें कीिं तो व ब ुत खुश ुए। उद ोंने अमतृराय को गले लगा र्लया और बोले—र्मस्टर अमरृाय, तुमने मुझ ेसस्त ेछोड़ हदया। मैं खुद कई हदन से इद ीिं बातों के सोच-ववचार में डूबा ुआ ँू। आपने मेरे सर से बोझ उतार र्लया। जैसी याग्ता इस काम के करने की आपमें ै व मुझ ेनाम को भी न ीिं। मैं इस सभा का मेम्बर ँू। बाबू अमतृराय को पिंडडत जी से इतनी आशा न थी। उद ोंने सोचा था कक अगर पिंडडत जी इस काम को पसिंद करेंगे तो खुल्लमखुल्ला शरीक ोत ेखझझकें गे। मगर पिंडडत जी की बातों ने उनका हदल ब ुत बढा हदया। य ॉँ से तनकले तो व अपनी ी ऑ िंखों में दो इिंच ऊँच े मालूम ोत े थे। अपनी अथयर्सवद्ध के नशे में झूमत-ेझामत ेऔर मूँछों पर ताव देत ेएन.बी. अगरवाल सा ब की सेवा में प ँुचें र्मस्टर अगरावाला अिंगे्रजी और सिंस्कृत के पिंडडत थे। व्याख्यान देने में भी तनपुण थे और श र में सब उनका आदर करत ेथे। उद ोंने भी अमतृराय की स ायता करने का वादा ककया और इस सभा का ज्वाइण्ट सेक्रटेरी ोना स्वीकार ककया। खुलासा य कक नौ बजते-बजत े अमतृराय सारे श र के प्रर्सद्ध और नई रोशनीवाले पुरषों से र्मल आये और ऐसा कोई न था न्जसने उनके इरादे की प्रशिंसा न की ो, या स ायता करने का वादा न ककया ो। जलसे का समय चार बजे शाम को तनयत ककया गया। हदन के दो बजे से अमतृराय के बँगले पर लजसे की तैयाररय ॉँ ोने लगीिं। पशय बबछाये गये। छत में झाड़-फानूस, ॉँडडयाँ लटकायी गयीिं। मेज और कुर्सयय ॉँ

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सजाकर िरी गयी और सभासदों के र्लए खाने-पीने का भी प्रबिंि ककया गया। अमतृराय ने सभा के र्लए एक र्लए एक तनयमावली बनायी। एक व्याख्यान र्लखा और इन कामों को पूरा करके मेम्बरों की रा देखने लगे। दो बज गये, तीन बज गये, मगर कोई न आया। आखखर चार भी बजे, मगर ककसी की सवारी न आयी। ॉँ, इिंजीतनयर सा ब के पास से एक नौकर य सिंदेश लेकर आया कक मैं इस समय न ीिं आ सकता। अब तो अमरृाय को धचिंता ोने लगी कक अगर कोई न आया तो मेरी बड़ी बदनामी ोगी और सबसे लन्ज्जत ोना पड़गेा तनदान इसी तर प ॉँच बज गए और ककसी उत्सा ी पुरष की सूरत न हदखाई दी। तब ता अमतृराय को ववश्वास ो गया कक लोगों ने मुझ े िोखा हदया। मुिंशी गुलजरीलाल से उनको ब ुत कुछ आशा थी। अपना आदमी उनके पास दौड़ाया। मगर उसने लौटकर बयान ककया कक व घर पर न ीिं ै, पोलो खेलने चले गये। इस समय तक छ: बजे और जब अभी तक कोई आदमी न पिारा तो अमतृराय का मन ब ुत मर्लन ो गया। ये बेचारें अभी नौजवान आदमी थे और यदयवप बात के िनी और िुन के पूरे थे मगर अभी तक झूठे देशभक्तों और बने ुए उदयोधगयों का उनको अनुभव न ुआ था। उद ें ब ुत द:ुख ुआ। मन मारे ुए चारपाई पर लेट गये और सोचने लगे की अब मैं क ीिं मुँ हदखाने योग्य न ीिं र ा। मैं इन लोगों को ऐसा कहटल और कपटी न ीिं समझता था। अगर न आना था तो मुझसे साफ-साफ क हदया ोता। अब कल तमाम श र में य बात फैल जाएगी कक अमतृराय रईसों के घर दौड़त ेथे, मगर कोई उनके दरवाजे पर बात पूछने को भी न गया। जब ऐसा स ायक र्मलेगे तो मेरे ककये क्या ो सकेगा। इद ीिं खयालों ने थोड़ी देर के र्लए उनके उत्सा को भी ठिंडा कर हदया। मगर इसी समय उनको लाला िनुषिारीलाल की उत्सा वियक बातें याद आयीिं। व ी शब्द उद ोंने लोगो के ौसले बढया थे, उनके कानों में गूँजने लगे—र्मत्रो, अगर जातत की उदनतत चा त े ो तो उस पर सवयस्व अपयण कर दो। इन शब्दों ने उनके बैठत े ुए हदल पर अिंकुश का काम ककया। चौंक कर उठ बैठे, र्सगार जला र्लया और बाग की क्याररयों में ट ले लगे। च ॉँदनी तछटकी ुई थी। वा के झोंके िीरे-िीरे आ र े थे। सुददर फूलों के पौिे मदद-मदद ल रा र े थे। उनकी सुगदि चारों ओर फैली ुई थी। अमतृराय री- री दबू पर बैठ गये

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और सोचने लगे। मगर समय ऐसा सु ावना था और ऐसा अनदददायक सदनाटा छाया ुआ था कक चिंचल धचत्त पे्रमा की ओर जा प ँुचा। जेब से तसवीर के पुजें तनकाल र्लये और च ॉँदनी रात में उसी बड़ी देर तक गौर से देखत े र े। मन क ता था—ओ अभागे अमतृराय तू क्योंकर न्जयेगा। न्जसकी मूरत आठों प र तरेे सामने र ती थी, न्जसके साथ आनदद भोगने के र्लए तू इतने हदनों ववरा ाधगन में जला, उसके बबना तरेी जान कैसी र ेगी? तू तो वैराग्य र्लये ै। क्या उसको भी वैराधगन बनायेगा? त्यारे उसको तुझ े सच्चा पे्रम ैं। क्या तू देखता न ीिं कक उसके पत्र पे्रम में डूबे ुए र त े ै। अमतृराय अब भी भला ै। अभी कुछ न ीिं बबगड़ा। इन बातों को छोड़ो। अपने ऊपर तरस खाओ। अपने अमायनों के र्मट्टी में न र्मलाओ। सिंसार में तुम् ारे जैसे ब ुत-से उत्सा ी पुरष पड़ े ुए ै। तुम् ारा ोना न ोना दोनों बराबर ै। लाला बदरीप्रसाद मुँ खोले बैठे ै। शादी कर लो और पे्रमा के साथ पे्रम करो। (बेचैन ोकर) ा मैं भी कैसा पागल ँू। भला इस तस्वरी ने मेरा क्या बबगाड़ा था जो मैंने इसे फाड़ा डाला। े ईश्वर पे्रमा अभी य बात न जानती ो। अभी इसी उिेड़बुन में पड़ े ुए थे कक ाथों में एक ख़त लाकर हदया। घबराकर पूछा—ककसका ख़त ै? नौकर ने जवाब हदया—लाला बदरीप्रसाद का आदमी लाया ै। अमतृराय ने क ॉँपत े ुए ाथों से पत्री ली और पढने लगे। उसमें र्लखा था— ‘‘बाबू अमतृराय, आशीवायद मने सुना ै कक अब आप सनात िमय को त्याग करके ईसाइसायों की उस मिंडली में जो र्मले ैं न्जसको लोग भूल से सामान्जक सुिार सभा क त े ै। इसर्लए अब म अतत शोक के साथ क त े ैं कक म आपसे कोई नाता न ीिं कर सकत।े आपका शुभधचिंतक बदरीप्रसाद ।’’ ***

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इस धचट्टी को अमतृराय ने कई बार पढा और उनके हदल में अग खीिंचातानी ोने लगी। आत्मस्वाथय क ता था कक इस सुददरी को अवश्य ब्या ों और जीवन के सुख उठाइओ। देशभन्क्त क ती थी जो इरादा ककया ै उस पर अड़ ेर ो। अपना स्वाथय तो सभी चा त े ै। तुम दसूरों का स्वाथय करो। इस अतनत्य जीवन को व्यतीत करने का इससे अच्छा कोई ढिंग न ीिं ै। कोई पदद्र र्मनट तक य लड़ाई ोती र ी। इसका तनणयय केवल दो अक्षर र्लखने पर था। देशभक्त ने आत्मसवाथय को परास्त कर हदया था। आखखर व ॉँ से उठकर कमरे मे गये और कई पत्र कागज ख़बर करने के बाद य पत्र र्लखा— ‘‘म ाशय, प्रणाम कृपा पत्र आया। पढकर ब ुत द:ुख ुआ। आपने मेरी ब ुत हदनों की बँिी ुई आशा तोड़ दी। खैर जैसा आप उधचत समझ ेवैसा करें। मैंने जब से ोश सँभाला तब से मैं बराबर सामान्जक सुिार का पक्ष कर सकता ँू। मुझ ेववश्वास ै कक मारे देश की उदनती का इसके र्सवाय और कोई उपाय न ीिं ै। आप न्जसको सनातन िमय समझ े ुए बैठै ै, व अववदया और असभ्यता का प्रत्यक्ष सवरप ै। आपका कृपाकािंक्षी अमतृराय। ***

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4. जवानी की मौत

समय वा की तर उड़ता चला जाता ै। एक म ीना गुजर गया। जाड़ ेका कँूच ुआ और गमी की लैनडोरी ोली आ प ँुची। इस बीच में अमतृराय ने दो-तीन जलसे ककये और यदयवप सभासद दस से ज्यादा कभी न ुए मगर उद ोंने ह याव न छोड़ा। उद ोंने प्रततज्ञा कर ली थी कक चा े कोई आवे या न आवे, मगर तनयत समय पर जलसा जरर ककया करग ॉँ। इसके उपरादत उद ोंने दे ातों में जा-जाकर सरल-सरल भाषाओिं में व्याख्यान देना शुर ककया और समाचार पत्रों में सामान्जक सुिार पर अच्छे-अच्छे लेख भी र्लखे। इनकों तो इसके र्सवाय कोई काम न था। उिर बेचारी पे्रमा का ाल ब ुत बे ाल ो र ा था। न्जस हदन उसे-उनकी आखखरी धचट्टी प ँुची थी उसी हदन से उसकी रोधगयों की-सी दशा ो र ी थी। र घड़ी रोने से काम था। बेचारी पूणय र्सर ाने बैठे समझाया करती। मगर पे्रमा को जरा भी चैन न आता। व ब ुिा पड़े-पड़ ेअमतृराय की तस्वीर को घण्टों चुपचाप देखा करती। कभी-कभी जब ब ुत व्याकुल ो जाती तो उसके जी मे आता कक मौ भी उनकी तस्वीर की व ी गत करँ जो उद ोंने मेरी तस्वीर की की ै। मगर कफर तुरदत य ख्याल पलट खा जाता। व उस तसवी को ऑ िंखों से लेती, उसको चूमती और उसे छाती से धचपका लेती। रात में अकेले चारपाई पर पड़े-पड़ ेआप ी आप पे्रम और मु ब्ब्त की बातें ककया करती। अमरृाय के कुल पे्रम-पत्रों को उसने रिंगीन कागज पर, मोटे अक्षरों, में नकल कर र्लया था। जब जी ब ुत बेचैन ोता तो पूणय से उद ें पढवाकर सुनती और रोती। भावज के पास तो व प ले भी ब ुत कम बैठती थी, मगर अब म ॉँ से भी कुछ खखिंची र ती। क्योंकक व बेटी की दशा देख-देख कुढती और अमतृराय को इसका करण समझकर कोसती। पे्रमा से य कठोर वचन न सुने जात।े व खुद अमतृराय का न्जक्र ब ुत कम करती। ॉँ, जब पूणाय या कोई और दसूरी स ेली उनकी बात चलाती तो उसको खूब कान लगाकर सुनाती। पे्रमा एक ी मास में गलकर क ॉँटा ो गयी। ाय अब उसको अपने जीवन की कोई आशा न थी। घर के लोग उसकी दवा-दारू में रपया ठीकरी की तर फूक र े थे मगर उसको कुछ फयदा न ोता। कई बार लाला बदरीप्रसाद जी के जी में य बात आई कक इसे अमतृराय ी से ब्या दूँ। मगर कफर भाई-ब न के डर से ह याव न पड़ता। पे्रमा के साथ बेचारी पूणाय भी रोधगणी बनी ुई थी।

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आखखर ोली का हदन आया। श र में चारों ओर अबीर और गुलाल उड़ने लगा, चारों तरफ से कबीर और बबरादरीवालों के य ॉँ से जनानी सवाररय ॉँ आना शुर ुई और उसे उनकी खाततर से बनाव-र्सगार करना, अच्छे-अच्छे कपड़ा प नना, उनका आदर-सम्मान करना और उनके साथ ोली खेलना पड़ा। व ँसने, बोलने और मन को दसूरी बातों में लगाने के र्लए ब ुत कोर्शश करती र ी। मगर कुछ बस न चला। रोज अकेल में बैठकर रोया करती थी, न्जससे कुछ तसकीन ो जाती। मगर आज शमय के मारे रो भी न सकती थी। और हदन पूणय दस बजे से शाम तक बैठी अपनी बातों से उसका हदल ब लाया करती थी मगर थी मगर आज व भी सवेरे ी एक झलक हदखाकर अपने घर पर त्यो ार मना र ी थी। ाय पूणाय को देखत े ी व उससे र्मलने के र्लए ऐसी झपटी जैसे कोई धचडड़या ब ुत हदनों के बाद अपने वपिंजरे से तनकल कर भागो। दोनो सखखय ॉँ गले र्मल गयीिं। पूणाय ने कोई चीज म ॉँगी—शायद कुमकुमे ोंगे। पे्रमा ने सददकू मगाया। मगर इस सददकू को देखत े ी उसकी ऑ िंखों में ऑ िंसू भर आये। क्योंकक य अमतृराय ने पर साल ोली के हदन उसके पास भेजा था। थोड़ी देर में पूणाय अपने घर चली गयी मगर पे्रमा घिंटो तक उस सददकू को देख-देख रोया की। पूणाय का मकान पड़ोसी ी में था। उसके पतत पन्ण्डत बसिंतकुमार ब ुत सीिे मगर शैकीन और पे्रमी आदमी थे। वे र बात स्त्री की इच्छानुसार करत।े उद ोंने उसे थोड़ा-ब ुत पढया भी था। अभी ब्या ुए दो वषय भी न ोने पाये थे, पे्रम की उमिंगे दोनों ी हदलों में उमड़ ुई थी, और ज्यों-ज्यों हदन बीतत ेथे त्यों-त्यों उनकी मु ब्बत और भी ग री ोती जाती थी। पूणाय रदस पतत की सेवा प्रसदन र ती, जब व दस बजे हदन को दफ्तर जाने लगत े तो व उनके साथ-साथ दरवाजे तक आती और जब तक पन्ण्डत जी हदखायी देत ेव दरवाजे पर खड़ी उनको देखा करती। शाम को जब उनके आने का समय ाता तो व कफर दरवाजे पर आकर रा देखने लगती। और ज्यों ी व आ जात ेउनकी छाती से र्लपट जाती। और अपनी भोली-भाली बातों से उनकी हदन भर की थकन िो देती। पिंडडत जी की तरख्वा तीस रपये से अधिक न थी। मगर पूणाय ऐसी ककफ़यात से काम चलाती कक र म ीने में उसके पास कुछ न कुछ बच र ता था। पिंडडत जी बेचारे, केवल इसर्लए कक बीवी को अच्छे से अच्छेग ने और कपड़ ेप नावें, घर पर भी काम ककया करत।े जब कभी व पूणाय

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को कोई नयी चीज बनवाकर देत ेव फूली न समाती। मगर लालची न थी। खुद कभी ककसी चीज के र्लए मुँ न खोलती। सच तो य ै कक सच्च ेपे्रम के आदनद ने उसके हदल में प नने-ओढने की लालसा बाकी न रक्खी थी। आखखर आज ोली का हदन आ गया। आज के हदन का क्या पूछना न्जसने साल भर चाथड़ों पर काटा व भी आज क ीिं न क ीिं से उिार ढँूढकर लाता ै और खुशी मनाता ै। आज लोग लँगोटी में फाग खेलत े ै। आज के हदन रिंज करना पाप ै। पिंडडत जी की शादी के बाद य दसूरी ोली पड़ी थी। प ली ोली में बेचारे खाली ाथ थे। बीवी की कुछ खाततर न कर सके थे। मगर अब की उद ोंने बड़ी-बड़ी तैयाररयाँ की थी। कोई डढ सौ, रपया ऊपर से कमाया था, उसमें बीवी के वास्त ेएक सुददर किं गन बनवा था, कई उत्तम साडड़याँ मोल लाये थे और दोस्तों को नेवता भी दे रक्खा था। इसके र्लए भ ॉँतत-भ ॉँतत के मुरब्बे, आचार, र्मठाइय ॉँ मोल लाये थे। और गाने-बजाने के समान भी इकटे्ट कर रक्खे थे। पूणाय आज बनाव-चुनाव ककये इिर-उिर छबब हदखाती कफरती थी। उसका मुखड़ा कुददा की तर दमक र ा था उसे आज अपने से सुददर सिंसार में कोई दसूरी औरत न हदखायी देती थी। व बार-बार पतत की ओर प्यार की तनगा ों से देखती। पन्ण्डत जी भी उसके श्रृिंगार और फबन पर आज ऐसी रीझ े ुए थे कक बेर-बेर घर में आत ेऔर उसको गले लगात।े कोई दस बजे ोंगे कक पन्ण्डत जी घर में आये और मुस्करा कर पूणाय से बोले—प्यारी, आज तो जी चा ता ै तुमको ऑ िंखों में बैठे लें। पूणाय ने िीरे से एक ठोका देकर और रसीली तनगा ों से देखकर क ा—व देखों मैं तो व ॉँ प ले ी से बैठी ँू। इस छबब ने पन्ण्डत जी को लुभा र्लया। व झट बीवी को गले से लगाकर प्यार करने। इद ीिं बातों में दस बजे तो पूणाय ने क ा—हदन ब ुत आ गया ै, जरा बैठ जाव ता उबटन मल दूँ। देर ो जायगी तो खाने में अबेर-सबेर ोने से सर ददय ोने लेगेगा। पन्ण्डत जी ने क ा—न ीिं-न ीिं दो। मैं उबटन न ीिं मलवाऊँगा। लाओ िोती दो, न ा आऊँ। पूणाय—वा उबटन मलवावैंगे। आज की तो य रीतत ी ै। आके बैठ जाव।

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पन्ण्डत—न ीिं, प्यारी, इसी वक्त जी न ीिं चा ता, गमी ब ुत ै। पूणाय ने लपककर पतत का ाथ पकड़ र्लया और चारपाई पर बैठकर उबटन मलने लगी। पन्ण्डत—मगर ज़रा जल्दी करना, आज मैं गिंगा जी न ी जाना चा ता ँू। पूणाय-अब दोप र को क ॉँ जाओगे। म री पानी लाएगी, य ीिं पर न ा लो। पन्ण्डत—य ी प्यारी, आज गिंगा में बड़ी ब ार र ेगी। पूणाय—अच्छा तो ज़रा जल्दी लौट आना। य न ीिं कक इिर-उिर तैरने लगो। न ात ेवक्त तुम ब ुत तुम ब ुत दरू तक तैर जाया करत े ो। थोड़ी देर मे पन्ण्डत जी उबटन मलवा चुके और एक रेश्मी िोती, साबुन, तौर्लया और एक कमिंडल ाथ मे लेकर न ाने चले। उनका कायदा था कक घाट से जरा अलग न ा करत े य तैराक भी ब ुत अच्छे थे। कई बार श र के अच्छे तैराको से बाजी मार चुके थे। यदयवप आज घर से वादा करके चले थे कक न तैरेगे मगर वा ऐसी िीमी-िीम चल र ी थी और पानी ऐसा तनमयल था कक उसमे मवद्धम-मवद्धम लकोरे ऐसे भले मालूम ोत ेथे और हदल ऐसी उमिंगों पर था कक जी तैरने पर ललचाया। तुरिंत पानी में कूद पड़ ेऔर इिर-उिर कल्लोंले करने लगे। तनदान उनको बीच िारे में कोई लाल चीजे ब ती हदखाया दी। गौर से देखा तो कमल के फूल मालूम ुए। सूयय की ककरणों से चमकत े ूए व ऐसे सुददर मालम ोत ेथे कक बसिंतकुमार का जी उन पर मचल पड़ा। सोचा अगर ये र्मल जायें तो प्यारी पूणाय के कानों के र्लए झुमके बनाऊँ। वे मोटे-ताजे आदमी थे। बीच िारे तक तैर जाना उनके र्लए कोई बड़ी बात न थी। उनको पूरा ववश्वास था कक मैं फूल ला सकता ँू। जवानी दीवानी ोती ै। य न सोचा था कक ज्यों-ज्यों मैं आगे बढँूगा त्यों-त्यों फूल भी बढेंगे। उनकी तरफ चले और कोई पदद्र र्मनट में बीच िारे में प ँूच गये। मगर व ॉँ जाकर देखा तो फूल इतना ी दरू और आगे था। अब कुछ-कुछ थकान मालूम ोने लगी थी। मगर बीच में कोई रेत ऐसा न था न्जस पर बैठकर दम लेत।े आगे बढत े ी गये। कभी ाथों से ज़ोर मारते, कभी

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पैरों से ज़ोर लगात,े फूलों तक प ँूच।े मगर उस वक्त तक ाथ-प ॉँव दोनों बोझल ो गये थे। य ॉँ तक कक फूलों को लेने के र्लए जब ाथ लपकाना चा ा तो उठ न सका। आखखर उनको द ॉँतों मे दबाया और लौटे। मगर जब व ॉँ से उद ोंने ककनारों की तरफ देखा तो ऐसा मालूम ुआ मानों जार कोस की मिंन्जल ै। बदन में जरा भी शन्क्त बाकी न र ी थी और पानी भी ककनारे से िारें की तरफ ब र ा था। उनका ह याव छूट गया। ाथ उठाया तो व न उठे। मानो व अिंग में थे ी न ीिं। ाय उस वक्त बसिंतकुमार के च ेरे पर जो तनराशा और बेबसी छायी ुई थी, उसके खयाल करने ी से छाती फटती ै। उनको मालूम ुआ कक मैं डूबा जा र ा ँू। उस वक्त प्यारी पूणाय की सुधि आयी कक व मेरी बाट देख र ी ोगी। उसकी प्यारी-प्यारी मो नी सूरत ऑ िंखें के सामने खड़ी ो गयी। एक बार और ाथ फें का मगर कुछ बस न चला। ऑ िंखों से ऑ िंसू ब ने लगे और देखते-देखत ेव ल रों में लोप ा गये। गिंगा माता ने सदा के र्लए उनको अपनी गोद मे र्लया। काल ने फूल के भेस मे आकर अपना काम ककया। उिर ाल का सुर्लए। पिंडडत जी के चले आने के बाद पूणाय ने थार्लय ॉँ परसीिं। एक बतयन में गुलाल घोली, उसमें र्मलाया। पिंडडत जी के र्लए सददकू से नये कपड़ े तनकाले। उनकी आसतीनों में चुदनटें डाली। टोपी सादी थी, उसमें र्सतारें ट ॉँके। आज माथे पर केसर का टीका लगाना शुभ समझा जाता ै। उसने अपने कोमल ाथों से केसर और चददन रगड़ा, पान लगाये, मेवे सरौत े से कतर-कतर कटोरा में रक्खे। रात ी को पे्रमा के बगीच ेसे सुददर कर्लय ॉँ लेती आयी थी और उनको तर कपड़ े में लपेट कर रख हदया था। इस समय व खूब खखल गयी थीिं। उनको तागे में गुँथकर सुददर ार बनाया और य सब प्रबदि करके अपने प्यारे पतत की रा देखने लगी। अब पिंडडत जी को न ाकर आ जाना चाह ए था। मगर न ीिं, अभी कुछ देर न ीिं ुई। आत े ी ोगें, य ी सोचकर पूणाय ने दस र्मनट और उनका रास्ता देखा। अब कुछ-कुछ धचिंता ोने लगी। क्या करने लगे? िूप कड़ी ो र ी ै। लौटने पर न ाया-बेन ाया एक ो जाएगा। कदाधचत यार दोस्तों से बातों करने लगे। न ीिं-न ीिं मैं उनकों खूब जानती ँू। नदी न ाने जात े ैं तो तैरने की सुझती ै। आज भी तैर र े ोंगे। य सोचकर उसने आिा घिंटे और रा देखी। मगर जब व अब भी न आये तब तो व बैचैन ोने लगी। म री से क ा—‘बबल्लों जरा लपक तो जावा, देखो क्या करने लगे। बबल्लों ब ुत अच्छे स्वाभव की बुहढया थी। इसी घर

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की चाकरी करत-ेकरत ेउसके बाल पक गये थे। य इन दोनों प्राखणयों को अपने लड़कों के समान समझती थी। व तुरिंत लपकी ुई गिंगा जी की तरफ चली। व ॉँ जाकर क्या देखती ै कक ककनारे पर दो-तीन मल्ला जमा ैं। पिंडडत जी की िोती, तौर्लया, साबुन कमिंडल सब ककनारे पर िरे ुए ैं। य देखत े ी उसके पैर मन-मन भर के ो गए। हदल िड़-िड़ करने लगा और कलेजा मुँ को आने लगा। या नारायण य क्या गजब ो गया। बद वास घबरायी ुई नज़दीक प ँूची तो एक मल्ला ने क ा—का े बबल्लों, तुम् ारे पिंडडत न ाय आवा र ेन। बबल्लो क्या जवाब देती उसका गला रँि गया, ऑ िंखों से ऑ िंसू ब ने लगे, सर पीटने लगी। मल्ला ों ने समझाया कक अब रोये-पीटे का ोत ै। उनकी चीज वस्तु लेव और घर का जाव। बेचारे बड़ ेभले मनई र ेन। बबल्लो ने पिंडडत जी की चीजें ली और रोते-पीटती घर की तरफ चली। ज्यों-ज्यों व मकान के तनकट आती त्यों-त्यों उसके कदम वपछे को टे आत ेथे। ाय नाराण पूणाय को य समाचार कैसे सुनाऊँगी व बबचारी सोल ो र्सिंगार ककये पतत की रा देख र ी ै। य खबर सुनकर उसकी क्या गत ोगी। इस िक्के से उसकी तो छाती फट जायगी। इद ीिं ववचारों में डूबी ुई बबल्लो ने रोत े ुए घर में कदम रक्खा। तमाम चीजें जमीन पर पटक दी और छाती पर दो त्थड़ मार ाय- ाय करने लगी। बेचारी पूणाय इस वक्त आईना देख र ी थी। व इस समय ऐसी मगन थी और उसका हदल उमिंगों और अरमानों से ऐसा भरा ुआ था कक प ले उसको बबल्लो के रोने-पीटने का कारण समझ में न आया। व कबका कर ताकने लगी कक यकायक सब मजारा उसकी समझ में आ गया। हदल पर एक बबजली कौंि गयी। कलेजा सन से ो गया। उसको मालूम ो गया कक मेरा सु ाग उठ गया। न्जसने मेरी ब ॉँ पकड़ी थी उससे सदा के र्लए बबछड़ गयी। उसके मुँ से केवल इतना तनकला—‘ ाय नारायण’ और व पछाड़ खाकर िम से ज़मीन पर धगर पड़ी। बबल्लो ने उसको सँभाला और पिंखा झलने लगी। थोड़ी देर में पास-पड़ोस की सैंकड़ों औरत ेजमा ो गयीिं। बा र भी ब ुत आदमी एकत्र ो गये। राय ुई कक जाल डलवाया जाय। बाबू कमलाप्रसाद भी आये थे। उद ोंने पुर्लस को खबर की। पे्रमा को ज्यों ी इस आपन्त्त की खबर र्मली उसके पैर तले से र्मट्टी तनकल गयी। चटपट आढकर घबरायी ुई कोठे से उतरी और धगरती-पड़ती पूणाय की घर की तरफ चली। म ॉँ ने ब ुत रोका मगर कौन सुनता ै। न्जस वक्त व व ॉँ प ँुची चारों ओर रोना-िोना ो

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र ा था। घर में ऐसा न था न्जसकी ऑ िंखों से ऑ िंसू की िारा न ब र ी ो। अभधगनी पूणाय का ववलाप सुन-सुनकर लोगों के कलेजे मुँ को आय जात ेथे। ाय पूणाय पर जो प ाड़ टूट पड़ा व सातवे बैरी पर भी न टूटे। अभी एक घिंटा प ले व अपने को सिंसार की सबसे भाग्यवान औरतों में समसझती थी। मगर देखत े ी देखत ेक्या का क्या ो गया। अब उसका-सा अभागा कौन ोगा। बेचारी समझाने-बूझाने से ज़रा चुप ो जाती, मगर ज्यों ी पतत की ककसी बात की सुधि आती त्यों ी कफर हदल उमड़ आता और नयनों से नीर की झड़ी लग जाती, धचत्त व्याकुल ो जाता और रोम-रोम से पसीना ब ने लगता। ाय क्या एक-दो बात याद करने की थी। उसने दो वषय तक अपने पे्रम का आदनद लूटा था। उसकी एक-एक बात उसका ँसना, उसका प्यार की तनगा ों से देखना उसको याद आता था। आज उसने चलते-चलत ेक ा था—प्यारी पूणाय, जी चा ता ैं, तुझ ेऑ िंखों में बबठा लूँ। अफसोस े अब कौन प्यार करेगा। अब ककसकी पुतर्लयों में बैठँूगी कौन कलेजे में बैठायेगा। उस रेशमी िोती और तोर्लया पर दृन्ष्ट पड़ी तो जोर से चीख उठी और दोनों ाथों से छाती पीटने लगी। तनदान पे्रमा को देखा तो झपट कर उठी और उसके गले से र्लपट कर ऐसी फूट-फूट कर रोयी कक भीतर तो भीतर बा र मुशी बदरीप्रसाद, बाबू कमलाप्रसाद और दसूरे लोग आँखों से रमाल हदये बेअन्ख्तयार रो र े थे। बेचारी पे्रमा के र्लए म ीने से खाना-पीना दलुयभ ो र ा था। ववरा नल में जलते-जलत े व ऐसी दबूयल ो गयी थी कक उसके मुँ से रोने की आवाज तक न तनकलती थी। ह चककय ॉँ बँिी ुई थीिं और ऑ िंखों से मोती के दाने टपक र े थे। प ले व समझती थी कक सारे सिंसार में मैं ी एक अभाधगन ँू। मगर इस समय व अपना द:ुख भूल गयी। और बड़ी मुन्श्कल से हदल को थाम कर बोली—प्यारी सखी य क्या गज़ब ो गया? प्यारी सखी इ़सके जवाब में अपना माथा ठोंका और आसमान की ओर देखा। मगर मुँ से कुछ न बोल सकी। इस दखुखयारी अबला का द:ुख ब ुत ी करणायोग्य था। उसकी न्जददगी का बेड़ा लगानेवाला कोई न था द:ुख ब ुत ी करणयोग्या था उसकी न्जददगी का बेड़ा पार लगानेवाला कोई न था। उसके मैके में र्सफय एक बूढे बाप से नाता था और व बेचारा भी आजकल का मे मान ो र ा था। ससुराल में न्जससे अपनापा था व परलोक र्सिारा, न सास न ससुर न अपने न पराये। काई चुल्लू भर पानी देने वाला हदखाई न देता था। घर में इतनी जथा-जुगती भी न

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थी कक साल-दो साल के गजुारे भर को गुजारे भर ो जाती। बेचारी पिंडडत जी को अभी-नौकरी ी करत ेककतने हदन ुए थे कक रपया जमा कर लेत।े जो कमाया व खाया। पूणाय को व अभी व बातें न ीिं सुझी थी। अभी उसको सोचने का अवकाश ी न मीला था। ॉँ, बा र मरदाने में लोग आपस में इस ववषय पर बातचीत कर र े थे। दो-ढाई घण्टे तक उस मकान में न्स्त्रयों का ठट्टा लगा र ा। मगर शाम ोते- ोत ेसब अपने घरों को र्सिारी। त्यो ार का हदन था। ज्यादा कैसे ठ रती। पे्रमा कुछ देर से मूछाय पर मूछाय आने लगी थी। लोग उसे पालकी पर उठाकर व ाँ से ले गये और हदया में बत्ती पड़ते-पड़त ेउस घर में र्सवाय पणूाय और बबल्ली के और कोई न था। ाय य ी वक्त था कक पिंडडत जी दफ्तर से आया करत।े पूणाय उस वक्त दवारे पर खड़ी उनकी रा देखा करती और ज्यों ी व ड्योढी में कदम रखत ेव लपक कर उनके ाथों से छतरी ले लेती और उनके ाथ-मुँ िोने और जलपान की सामग्री इकट्टी करती। जब तक व र्मष्टादन इत्याहद खात ेव पान के बीड़ ेलगा रखती। व पे्रम रस का भखू, हदन भर का थका-म ॉँदा, स्त्री की दन खाततरदाररयों से गदगद ो जाता। क ाँ व प्रीतत बढानेवाले व्यव ार और क ॉँ आज का सदनटा? सारा घर भ ॉँय-भ ॉँय कर र ा था। दीवारें काटने को दौड़ती थीिं। ऐसा मालमू ोता कक इसके बसनेवालो उजड़ गये। बेचारी पूणाय ऑ िंगन में बैठी ुई। उसके कलेजे में अब रोने का दम न ीिं ै और न ऑ िंखों से ऑ िंसू ब त े ैं। ॉँ, कोई हदल में बैठा खून चूस र ा ै। व शोक से मतवाली ो गयी ै। न ीिं मालूम इस वक्त व क्या सोच र ी ै। शायद अपने र्सिारनेवाले वपया से पे्रम की बातें कर र ी ै या उससे कर जोड़ के बबनती कर र ी ै कक मुझ ेभी अपने पास बुला लो। मको उस शोकातुरा का ाल र्लखत ेग्लातन ोती ै। ाय, व उस समय प चानी न ीिं जाती। उसका च ेरा पीला पड़ गया ै। ोठों पर पपड़ी छायी ुई ैं, ऑ िंखें सूरज आयी ैं, र्सर के बाल खुलकर माथे पर बबखर गये ै, रेशमी साड़ी फटकार तार-तार ो गयी ै, बदन पर ग ने का नाम भी न ीिं ै चूडड़या टूटकर चकनाचूर ो गयी ै, लम्बी-लम्बी स ॉँसें आ र ी ैं। व धचदता उदासी और शोक का प्रत्यक्ष स्वरप मालूम ोती ै। इस वक्त कोई ऐसा न ीिं ै जो उसको तसल्ली दे। य सब कुछ ो गया मगर पूणाय की आस अभी तक कुछ-कुछ बँिी ुई ै। उसके कान दरवाजे की तरफ लगे ुए ुए ै कक क ीिं कोई उनके जीववत

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तनकल आने की खबर लाता ो। सच ै ववयोधगयों की आस टूट जाने पर भी बँिी र ती ै। शाम ोत-े ोत ेइस शोकदायक घटना की ख़बर सारे श र में गूँज उठी। जो सुनता र्सर िुनता। बाबू अमतृराय वा खाकर वापस आ र े थे कक रासत ेमें पुर्लस के आदर्मयों को एक लाश के साथ जात ेदेखा। ब ुत-से आदर्मयों की भीड़ लगी ुई थी। प ले तो व समझ ेकक कोई खून का मुकदमा ोगा। मगर जब दररयाफ्त ककया तो सब ाल मालूम ो गया। पन्ण्डत जी की अचानक मतृ्यु पर उनको ब ुत रोज ुआ। व बसिंतकुमार को भली भ ॉँतत जानत ेथे। उद ीिं की र्सफाररश से पिंडडत जी दफ्तर में व जग र्मली थी। बाबू सा ब लाश के साथ-साथ थाने पर प ँुच।े डाक्टर प ले से ी आया ुआ था। जब उसकी ज ॉँच के तनर्मत्त लाश खोली गयी तो न्जतने लोग खड़ ेथे सबके रोंगेटे खड़ े ो गये और कई आदर्मयों की ऑ िंखों से ऑ िंसू तनकल आये। लाश फूल गयी थी। मगर मुखड़ा ज्यों का त्यों था और कमल के सुददर फूल ोंठों के बीच द ॉँतों तले दबे ुए थे। ाय, य व ी फूल थे न्जद ोंने काल बनकर उसको डसा था। जब लाश की ज ॉँच ो चुकी तब अमतृराय ने डाक्टर सा ब से लाश के जलाने की आज्ञा म ॉँगी जो उनको स ज ी में र्मल गयी। इसके बाद व अपने मकान पर आये। कपड़ े बदले और बाईर्सककल पर सवार ोकर पूणाय के मकान पर प ँुच।े देखा तो चौतरफासदनाटा छाया ुआ ै। र तरफ से र्सयापा बरस र ा ै। य ी समय पिंडडत जी के दफ्तर से आने का था। पूणाय रोज इसी वक्त उनके जूत ेकी आवजे सुनने की आदी ो र ी थी। इस वक्त ज्यों ी उसने पैरों की चाप सुनी व बबजली की तर दरवाजे की तरफ दौड़ी। मगर ज्यों ी दरवाजे पर आयी और अपने पतत की जगी पर बाबू अमतृराय को खड़ ेपाया तो हठठक गयी। शमय से सर झुका र्लया और तनराश ोकर उलटे प ॉँव वापास ुई। मुसीबत के समय पर ककसी द:ुख पूछनेवालो की सूरत ऑ िंखों के र्लए ब ाना ो जाती ै। बाबू अमतृराय एक म ीने में दो-तीन बार अवश्य आया करत ेथे और पिंडडत जी पर ब ुत ववश्वास रखत ेथे। इस वक्त उनके आने से पूणाय के हदल पर एक ताज़ा सदमा प ँुचा। हदल कफर उमड़ आया और ऐसा फूट-फूट कर रोयी कक बाबू अमतृराय, जो मोम की तर नमय हदल रखत ेथे, बड़ी देर तक चुपचाप खड़ ेबबसुरा ककये। जब ज़रा जी हठकाने ुआ तो उद ोंने म ीर को बुलाकर ब ुत कुछ हदलासा हदया और दे लीज़ में खड़ े ोकर पूणाय को भी समझया और उसको र तर ा की मदद देने का वादा करके,

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धचराग जलते-जलत ेअपने घर की तरफ रवाना ुए। उसी वक्त पे्रमा अपनी म ताबी पर वा खाने तनकली थी। सकी ऑ िंखें पूणाय के दरवाजे की तरफ लगी ुई थीिं। तनदान उसने ककसी को बाइर्सककल पर सवार उिार से तनकलत ेदखा। गौर से देखा तो पह चान गई और चौंककर बोली—‘अरे, य तो अमतृराय ै। ***

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5. अँय ! यह गजरा क्या हो गया?

पिंडडत बिंसतकुमार का दतुनया से उठ जाना केवल पूणाय ी के र्लए जानलेवा न था, पे्रमा की ालत भी उसी की-सी थी। प ले व अपने भाग्य पर रोया करती थी। अब वविाता ने उसकी प्यारी सखी पूणाय पर ववपन्त्त डालकर उसे और भी शोकातुर बना हदया था। अब उसका दखु टानेवाला, उसका गम गलत करनेवाला काई न था। व आजकल रात-हदन मुँ लपेटे चारपाई पर पड़ी र ती। न व ककसी से ँसती न बोलती। कई-कई हदन बबना दाना-पानी के बीत जात।े बनाव-र्सगार उसको जरा भी न भाता। सर के बल दो-दो फ्त ेन गूँथे जात।े सुमायदानी अलग पड़ी रोया करती। कँघी अलग ाय- ाय करती। ग ने बबल्कुल उतार फें के थे। सुब से शाम तक अपने कमरे में पड़ी र ती। कभी ज़मीन पर करवटें बदलती, कभी इिर-उिर बौखलायी ुई घूमती, ब ुिा बाबू अमतृराय की तस्वीर को देखा करती। और जब उनके पे्रमपत्र याद आत ेतो रोती। उसे अनुभव ोता था कक अब मैं थोड़ ेहदनों की मे मान ँू। प ले दो म ीने तक तो पूणाय का ब्रह्मणों के खखलाने-वपलाने और पतत के मतृक-सिंस्कार से स ॉँस लेने का अवकाश न र्मला कक पे्रमा के घर जाती। इसके बाद भी दो-तीन म ीने तक व घर से बा र न तनकली। उसका जी ऐसा बुझ गया था कक कोई काम अच्छा न लगता। ाँ, पे्रमा म ॉँ के मना करने पर भी दो-तीन बार उसके घर गयी थी। मगर व ॉँ जाकर आप रोती और पूणाय को भी रलाती। इसर्लए अब उिर जाना छोड़ हदया था। ककदतु एक बात व तनत्य करती। व सदध्या समय म ताबी पर जाकर जरर बैठती। इसर्लए न ीिं कक उसको समय सु ाना मालूम ोता या वा खाने को जी चा ता था, न ीिं प्रत्युत केवल इसर्लए कक व कभी- कभी बाबू अमतृराय को उिर से आत-ेजात ेदेखती। ाय र्लज वक्त व उनको देखत ेउसका कलेजा ब ॉँसों उछालने लगता। जी चा ता कक कूद पडँू और उनके कदमों पर अपनी जान तनछावर कर दूँ। जब तक व हदखायी देत े अकटकी ब ॉँिे उनको देखा करती। जब व ऑ िंखों से आझला ो जात ेतब उसके कलेजे में एक ूक उठती, आपे की कुछ सुधि न र ती। इसी तर कई म ीने बीत गये।

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एक हदन व सदा की भ ॉँतत अपने कमरे में लेटी ुई बदल र ी थी कक पूणाय आयी। इस समय उसको देखकर ऐसा ज्ञात ोता था कक व ककसी प्रबल रोग से उठी ै। च ेरा पीला पड़ गया था, जैसे कोई फूल मुरझा गया ो। उसके कपोल जो कभी गुलाब की तर खखले ुए थे अब कुम् ला गये थे। वे मगृी की-सी ऑ िंखें न्जनमें ककसी समय समय जवानी का मतवालापन और पे्रमी का रस भरा ुआ था अददर घुसी ुई थी, र्सर के बाल किं िों पर इिर-उिर बबखरे ुए थे, ग ने-पात ेका नाम न था। केवल एक नैन सुख की साड़ी बदन पर पड़ी ुई थी। उसको देखत े ी पे्रमा दौड़कर उसके गले से धचपट गयी और लाकर अपनी चारपाई पर बबठा हदया। कई र्मनट तक दोनों सखखय ॉँ एक-दसूरे के मुँ को ताकती र ीिं। दोनो के हदल में ख्यालों का दररया उमड़ा ुआ था। मगर जबान ककसी की न खुलती थी। आखखर पूणाय ने क ा—आजकल जी अच्छा न ीिं ै क्या? गलकर क ॉँटा गयी ो पे्रमा ने मुसकराने की चषे्टा करके क ा—न ीिं सखी, मैं ब ुत अच्छी तर ँू। तुम तो कुशल से र ी? पूणाय की ऑ िंखों में आँसू डबडबा आये। बोली—मेरा कुशल-आनदद क्या पूछती ो, सखी आनदद तो मेरे र्लए सपना ो गया। प ॉँच म ीने से अधिक ो गये मगर अब तक मेरी आँखें न ीिं झपकीिं। जान पड़ता ै कक नीिंद ऑ िंसू ोकर ब गयी। पे्रमा—ईश्वर जानता ै सखी, मेरा भी तो य ी ाल ै। मारी-तुम् ारी एक ी गत ै। अगर तुम ब्या ी वविवा ो तो मैं कँुवारी वविवा ँू। सच क ती ँू सखी, मैने ठान र्लया ै कक अब परमाथय के कामों में ी जीवन व्यतीत करँगा। पूणाय—कैसी बातें करती ो, प्यारी मेरा और तुम् ारा क्या जोड़ा? न्जतना सुख भोगना मेरे भाग में बदा था भोग चुकी। मगर तुम अपने को क्यों घुलाये डालती ो? सच मानो, सखी, बाबू अमतृराय की दशा भी तुम् ारी ी-सी ै। वे आजकल ब ुत मर्लन हदखायी देत े ै। जब कभी इिर की बात चलती ँू तो

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जाने का नाम ी न ीिं लेत।े मैंने एक हदन देखा, व तुम् ारा काढा ुआ रमाला र्लये ुए थे। य बातें सुनकर पे्रमा का च ेरा खखल गया। मारे षय के ऑ िंखें जगमगाने लगी। पूणाय का ाथ अपने ाथों में लेकर और उसकी ऑ िंखों से ऑ िंखें र्मलाकर बोली-सखी, इिर की और क्या-क्या बातें आयी थीिं? पूणाय-(मुस्कराकर) अब क्या सब आज ी सुन लोगी। अभी तो कल ी मैंने पूछा कक आप ब्या कब करेंगे, तो बोले-‘जब तुम चा ो।’ मैं ब ुत लजा गई। पे्रमा—सखी, तुम बड़ी ढीठ ो। क्या तुमको उनके सामने तनकलत-ेपैठत ेलाज न ीिं आती? पूणाय—लाज क्यों आती मगर बबना सामने आये काम तो न ीिं चलता और सखी, उनसे क्या परदा करँू उद ोंने मुझ पर जो-जो अनुग्र ककये ैं उनसे मैं कभी उऋण न ीिं ो सकती। पह ले ी हदन, जब कक मुझ पर व ववपन्त्त पड़ी रात को मेरे य ाँ चोरी ो गयी। जो कुछ असबाबा था पावपयों ने मूस र्लया। उस समय मेरे पास एक कौड़ी भी न थी। मैं बड़ ेफेर में पड़ी ुई थी कक अब क्या करँ। न्जिर ऑ िंख उठाती, अँिेरा हदखायी देता। उसके तीसरे हदन बाबू अमतृराय आये। ईश्वर करे व युग-युग न्जये: उद ोंने बबल्लो की तनख़ा ब ॉँि दी और मेरे साथ भी ब ुत सलूक ककया। अगर व उस वक्त आड़ ेन आत ेतो ग ने-पात ेअब तक कभी के बबक गये ोत।े सोचती ँू कक व इतने बड़ े आदमी ाकर मुझ र्भखाररनी के दरवाजे पर आत े ै तो उनसे क्या परदा करँ। और दतूनया ऐसी ै कक इतना भी न ीिं देख सकती। व जो पड़ोसा में पिंडाइन र ती ै, कई बार आई और बोली कक सर के बाल मुड़ा लो। वविवाओिं का बाल न रखना चाह ए। मगर मैंने अब तक उनका क ना न ीिं माना। इस पर सारे मु ल्ले में मेरे बारे में तर -तर की बातें की जाती ैं। कोई कुछ क ता ैं, कोई कुछ। न्जतने मुँ उतनी बातें। बबल्लो आकर सब वतृ्तादत मुझसे क ती ै।सब सुना लेती ँू और रो-िोकर चुप ो र ती ँू। मेरे भाग्य में दखु भोगना, लोगों की जली-कटी सुनना न र्लखा ोता तो य ववपन्त्त ी का े को पड़ती। मगर चा े कुछ ो मैं इन बालों को मुँड़वाकर मुण्डी न ीिं बनना चा ती। ईश्वर ने सब कुछ तो र र्लया, अब क्या इन बालों से भी ाथ िोऊँ।

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य क कर पूणाय ने किं िो पर बबखरे ुए लम्बे-लम्बे बालों पर ऐसी दृन्ष्ट से देखा मानो व ेकोई िन ैं। पे्रमा ने भी उद ें ाथ से सँभाला कर क ा—न ीिं सखी खबरदार, बालों को मुँड़वाओगी तो मसे-तुमसे न बनगी। पिंडाइन को बकने दो। व पगला गई ै। य देखो नीच ेकी तरफ जो ऐठन पड़ गयी ैं, कैसी सुददर मालूम ोती ै य ी क कर पे्रमा उठी। बक्स में सुगन्दित तले तनकाला और जब तक पूणाय ाय- ाय करे कक उसके सर की चादर खखसका कर तले डाल हदया और उसका सर जाँघ पर रखकर िीरे-िीरे मलने लगी। बेचारी पूणाय इन प्यार की बातों को न स सकी। ऑ िंखों में ऑ िंसू भरकर बोली—प्यारी पे्रमा य क्या गजब करती ो। अभी क्या काम उप ास ो र ा ै? जब बाल सँवारे तनकलूँगी तो क्या गत ोगी। अब तुमसे हदल की बात क्या तछपाऊँ। सखी, ईश्वर जानता ैं, मुझ ेय बाल खुद बोझ मालूम ोत े ैं। जब इस सूरत का देखनेवाला ी सिंसार से उठ गया तो य बाल ककस काम के। मगर मैं इनके पीछे पड़ोर्सयों के ताने स ती ँू तो केवल इसर्लए कक सर मुड़ाकर मुझसे बाबू अमतृराय के सामने न तनकला जाएगा। य क कर पूणाय जमीन की तरफ ताकने लगी। मानो व लजा गयी ै। पे्रमा भी कुछ सोचने लगी। अपनसखी के सर में तले मला, किं घी की बाल गूँथे और तब िीरे से आईना लाकर उसके सामने रख हदया। पूणाय ने इिर प ॉँच म ीने से आईने का मुँ न ीिं देखा था। व सझती थी कक मेरी सूरत बबलकूल उतर गयी ोगी मगर अब जो देखा तो र्सवया इसके कक मुँ पीला पड़ गया था और कोई भेद न मालूम ुआ। मध्यम स्वर में बोली—पे्रमा, ईश्वर के र्लए अब बस करो, भाग से य र्सिंगार बदा न ीिं ैं। पड़ोर्सन देखेंगी तो न जाने क्या अपराि लगा दें। पे्रम उसकी सूरत को टकटकी लगाकर देख र ी थी। यकायक मुस्कराकर बोली—सखी, तुम जानती ो मैंने तुम् ारा र्सिंगार क्यों ककया? पूणाय—मैं क्या जानँू। तुम् ारा जी चा त ोगा। पे्रमा-इसर्लए कक तुम उनके सामने इसी तर जाओ।

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पूणाय—तुम बड़ी खोटी ो। भला मैं उनके सामने इस तर कैसे जाऊँगी। व देखकर हदल में क्या में क्या क ेंगे। देखनेवाले यों ी बेर्सर-पैर की बातें उड़ाया करत े ै, तब तो और भी न मालूम क्या क ेंगे। थोड़ी देर तक ऐसे ी िंसी-हदल्ली की बातो-बातो में पे्रमा ने क ा-सखी, अब तो अकेले न ीिं र ा जाता। क्या जय ै तुम भी य ीिं उठ आओ। म तुम दोनों साथ-साथ र ें। पूणाय—सखी, मेरे र्लए इससे अधिक षय की कौन-सी बात ोगी कक तुम् ारे साथ र ँू। मगर अब तो पैर फूक-फूक कर िरना ोती ै। लोग तुम् ारे घर ी में राजी न ोंगे। और अगर य मान भी गये तो बबना बाबू अमतृराय की मजी के कैसे आ सकती ँू। सिंसार के लोग भी कैसे अिंिे ै। ऐसे दयालू पुरष क त े ैं कक ईसाई ो गया ैं क नेवालों के मुँ से न मालूम कैसे ऐसी झूठी बात तनकालती ै। मुझसे व क त ेथे कक मैं शीघ्र ी एक ऐसा स्थान बनवानेवाला ँू ज ाँ अनाथ ज ॉँ अनाथ वविवाऍ िं आकर र ेंगी। व ॉँ उनके पालन-पोषण और वस्त्र का प्रबदि ककया जाएगा और उनके पढना-र्लखाना और पूजा-पाठ करना र्सखाया जायगा। न्जस आदमी के ववचार ऐसे शुद्ध ों उसको व लोग ईसाई और अिमी बनात े ै, जो भूलकर भी र्भखमिंगे को भीख न ीिं देत।े ऐसा अिंिेर ै। पे्रमा- बह न, सिंसार का य ी ै। ाय अगर व मुझ ेअपनी लौंडी बना लेत े तो भी मेरा जीवन सफल ो जाता। ऐसे उदारधचत्त दाता चरेी बनना भी कोई बड़ाई की बात ै। पूणाय—तुम उनकी चरेी का े को बनेगी। का े को बनेगी। व तो आप तुम् ारे सेवक बनने के र्लए तैयार बैठे ै। तुम् ारे लाला जी ी न ीिं मानत।े ववश्वास मानो यहद तुमसे उनका ब्या न ुआ तो कवारे ी र ेंगे। पे्रमा—य ॉँ य ी ठान ली ै कक चरेी बनँूगी तो उद ीिं की।

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कुछ देरे तक तो य ी बातें ुआ की। जब सूयय अस्त ोने लगा तो पे्रमा ने क ा—चलो सखी, तुमको बगीच ेकी सैर करा लावें। जब से तुम् ारा आना-जाना छूटा तब से मैं उिर भूलकर भी न ीिं गयी। पूणाय—मेरे बाल खोल दो तो चलूँ। तुम् ारी भावज देखेगी तो ताना मारेगी। पे्रमा—उनके ताने का क्या डर, व तो वा, से उलझा करती ैं। दोनों सखखयािं उठी और ाथ हदये कोठे से उतार कर फुलवारी में आयी। य एक छोटी-सी बधगया थी न्जसमें भ ॉँतत-भ िंतत के फूल खखल र े थे। पे्रमा को फूलों से ब ुत प्रम था। उसी ने अपनी हदलबलावा के र्लए बगीचा था। एक माली इसी की देख-भाल के र्लए नौकर था। बाग के बीचो-बीच एक गोल चबूतरा बना ुआ था। दोनों सखखय ॉँ इस चबूतरेे पर बैठ गयी। इनको देखत े ी माली ब ुत-सी कर्लय ॉँ एक साफ तर कपड़ ेमें लपेट कर लाया। पे्रमा ने उनको पूणाय को देना चा ा। मगर उसने ब ुत उदास ोकर क ा—बह न, मुझ ेक्षमा करो,इनकी बू बास तुमको मुबारक ो। सो ाग के साथ मैंने फूल भी त्याग हदये। ाय न्जस हदन व कालरपी नदी में न ाने गये ैं उस हदन ऐसे ी कर्लयों का ार बनाया था। (रोकर) व ार िरा का िरा का गया। तब से मैंने फूलों को ाथ न ीिं लगाया। य क ते-क त ेव यकयक चौंक पड़ी और बोली—सखी अब मैं जाउँगी। आज इतवार का हदन ै। बाबू सा ब आत े ोंगे। पे्रमा ने रोनी ँसकर क ा-‘न ी’ सखी, अभी उनके आने में आि घण्टे की देर ै। मुझ ेइस समय का ऐसा ठीक पररचय र्मल गया ै कक अगर कोठरी में बदद कर दो तो भी शायद गलती न करँ। सखी क त ेलाज आती ै। मैं घण्टों बैठकर झरोखे से उनकी रा देखा करती ँू। चिंचल धचत्त को ब ुत समझती ँू। पर मानता ी न ीिं। पूणाय ने उसको ढारस हदया और अपनी सखी से गले र्मल, शमायती ुई घूिंघट से च ेरे को तछपाये अपने घर की तरफ़ चली और पे्रमी ककसी के दशयन की अर्भलाषा कर म ताबी पर जाकर ट लने लगी। पूणाय के मकान पर प ँुच ेठीक आिी घड़ी ुई थी कक बाबू अमतृराय बाइर्सककल पर फर-फर करत ेआ प ँुच।े आज उद ोंने अिंगे्रजी बाने की जग बिंगाली बाना

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िारण ककया था, जो उन पर खूब सजता था। उनको देखकर कोई य न ीिं क सकता था कक य राजकुमार न ीिं ैं बाजारो में जब तनकलात ेतो सब की ऑ िंखे उद ीिं की तरफ उठती थीिं। रीतत के ववरद्ध आज उनकी दाह नी कलाई पर एक ब ुत ी सुगन्दित मनो र बेल का ार र्लपटा ुआ था, न्जससे सुगदि उड़ र ी थी और इस सुगदि से लेवेण्डर की खुशबू र्मलकर मानों सोने में सो ागा ो गया था। सिंदली रेशमी के बेलदार कुरत ेपर िानी रिंग की रेशमी चादर वा के मदद-मदद झोंकों से ल रा-ल रा कर एक अनोखी छवव हदखाती थी। उनकी आ ट पात े ी बबल्लो घर में से तनकल आई और उनको ले जाकर कमरे में बैठा हदया। अमतृराय—क्यों बबल्लो, सग कुशल ै? बबल्लो— ॉँ, सरकार सब कुशल ै। अमतृराय—कोई तकलीफ़ तो न ीिं ै? बबल्लो—न ीिं, सरकार कोई तकलीफ़ न ीिं ै। इतने में बैठके का भीतरवाला दरवाजा खुला और पूणाय तनकली। अमतृराय ने उसकी तरफ़ देखा तो अचम्भे में आ गये और उनकी तनगा आप ी आप उसके च ेरे पर जम गई। पूणाय मारे लज्जा के गड़ी जाती थी कक आज क्यों य मेरी ओर ऐसे ताक र े ैं। व भूल गयी थी कक आज मैंने बालों में तले डाला ै, किं घी की ै और माथे पर लाल बबददी भी लगायी ै। अमतृराय ने उसको इस बनाव-चुनाव के साथ कभी न ीिं देखा था और न व समझ ेथे कक व ऐसी रपवती ोगी। कुछ देर तक तो पूणाय सर नीचा ककये खड़ी र ी। यकायक उसको अपने गुँथे केश की सुधि आ गयी और उसने झट लजाकर सर और भी तन ुरा र्लया, घूघँट को बढाकर च ेरा तछपा र्लया। और य खयाल करके कक शायद बाबू सा ब इस बनाव र्सिंगार से नाराज ों व ब ुत ी भोलेपन के साथ बोली—मैं क्या कर, मैं तो पे्रमा के घर गयी थी। उद ोंने ठ करके सर में मे तले डालकर

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बाल गूँथ हदये। मैं कल सब बाल कटवा डालूँगी। य क ते-क त ेउसकी ऑ िंखों में ऑ िंसू भर आये। उसके बनाव र्सिंगार ने अमतृराय पर प ले ी जाद ूचलाया था। अब इस भोलेपन ने और लुभा र्लया। जवाब हदया—न ीिं—न ीिं, तुम् ें कसम ै, ऐसा रधगज न करना। मैं ब ुत खुश ँू कक तुम् ारी सखी ने तुम् ारे ऊपर य कृपा की। अगर व य ॉँ इस समय ोती तो इसके तन ोरे में मैं उनको िदयवाद देता। पूणाय पढी-र्लखी औरत थी। इस इशारे को समझ गयी और झपेेर गदयन नीच े कर ली। बाबू अमतृराय हदल में डर र े थे कक क ीिं इस छेड़ पर य देवी रष्ट न ो जाए। न ीिं तो कफर मनाना कहठन ो जाएगा। मगर जब उसे मुसकराकर गदयन नीची करत ेदेखा तो और भी हढठाई करने का सा स ुआ। बोले—मैं तो समझता था पे्रमा मुझ ेभूल ोगी। मगर मालूम ोता ै कक अभी तक मुझ पर कुछ-कुछ स्ने बाकी ै। अब की पूणाय ने गदयन उठायी और अमतृराय के चे रे पर ऑ िंखें जमाकर बोली, जैसे कोई वकील ककसी दखुीयारे के र्लए दयािीश से अपील करता ो-बाबू सा ब, आपका केवल इतना समझना कक पे्रमा आपको भूल गयी ोगी, उन पर बड़ा भारी आपेक्ष ै। पे्रमा का पे्रम आपके तनर्मत्त सच्चा ै। आज उनकी दशा देखकर मैं अपनी ववपन्त्त भूल गयी। व गल कर आिी ो गयी ैं। म ीनों से खाना-पीना नामात्र ै। सारे हदन आनी कोठरी में पड़े-पड़ े रोय करती ैं। घरवाले लाख-लाख समझात े ैं मगर न ीिं मानतीिं। आज तो उद ोंने आपका नाम लेकर क ा-सखी अगर चरेी बनँूगी तो उद ीिं की। य समाचार सुनकर अमतृराय कुछ उदास ो गये। य अन्ग्न जो कलेजे में सुलग र ी थी और न्जसको उद ोंने सामान्जक सुिार के राख तले दबा रक्खा था इस समय क्षण भर के र्लए ििक उठी, जी बेचैन ोने लगा, हदल उकसाने लगा कक मुिंशी बदरीप्रसाद का घर दरू न ीिं ै। दम भर के र्लए चलो। अभी सब काम ुआ जाता ै। मगर कफर देशह त के उत्सा ने हदल को रोका। बोले—पूणाय, तुम जानती ो कक मुझ ेपे्रमा से ककतनी मु ब्बत थी। चार वषय तक मैं हदल में उनकी पूजा करता र ा। मगर मुिंशी बदरप्रसाद ने मेरी

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हदनों की बँिी ुई आस केवल इस बात पर तोड़ दी कक मैं सामान्जक सुिार का पक्षपाती ो गया। आखखर मैंने भी रो-रोकर उस आग को बुझाया और अब तो हदल एक दसूरी ी देवी की उपासना करने लगा ै। अगर य आशा भी यों ी टूट गयी तो सत्य मानो, बबना ब्या ी र ँूगा। पूणाय का अब तक य ख़याल था कक बाबू अमतृराय पे्रमा से ब्या करेंगे। मगर अब तो उसको मालूम ुआ कक उनका ब्या क ीिं और लग र ा ै तब उसको कुछ आश्चयय ुआ। हदल से बातें करने लगी। प्यारी पे्रमा, क्या तरेी प्रीतत का ऐसा दखुदायी पररणाम ोगा। तरेो म ॉँ-बाप, भाई-बिंद तरेी जान के ग्रा ो र े ैं। य बेचारा तो अभी तक तुझ पर जान देता ैं। चा े व अपने मुँ से कुछ भी न क े, मगर मेरा हदल गवा ी देता ै कक तरेी मु ब्बत उसके रोम-रोम में व्याप र ी ै। मगर जब तरेे र्मलने की कोई आशा ी न ो तो बेचारी क्या करे मजबूर ोकर क ीिं और ब्या करेगा। इसमें सका क्या दोष ै। मन में इस तर ववचार कर बोली-बाबू सा ब, आपको अधिकार ै ज ॉँ चा ो सिंबिंि करो। मगर मैं मो य ी क ँूगी कक अगर इस श र में आपके जोड़ की कोई ै तो व ी प्रमा ै। अमतृराय—य क्यों न ीिं क तीिं कक य ॉँ उनके योग्य कोई वर न ीिं, इसीर्लए तो मुिंशी बदरीप्रसाद ने मुझ ेछुटकार ककया। पूणाय—य आप कैसी बात क त े ै। पे्रमा और आपका जोड़ ईश्वर ने अपने ाथ से बनाया ै। अमतृराय—जब उनके योग्य मैं था। अब न ीिं ँू। पूणाय—अच्छा आजकल ककसके य ॉँ बातचीत ो र ी ै? अमतृराय—(मुस्कराकर) नाम अभी न ीिं बताऊँगा। बातचीत तो ो र ी ै। मगर अभी कोई पक्की उम्मेदे न ीिं ैं। पूणाय—वा ऐसा भी क ीिं ो सकता ै? य ॉँ ऐसा कौन रईस ै जो आपसे नाता करने में अपनी बड़ाई न समझता ो।

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अमतृराय—न ीिं कुछ बात ी ऐसी आ पड़ी ै। पूणाय—अगर मुझसे कोई काम ो सके तो मैं करने को तैयार ँू। जो काम मेरे योग्य ो बता दीन्जए। अमतृराय—(मुस्कराकर)तुम् ारी मरजी बबना तो व काम कभी पूरा ो ी न ी सकता। तुम चा ो तो ब ुत जल्द मेरा घर बस सकता ै। पूणाय ब ुत प्रसदन ुई कक मैं भी अब इनके कुछ काम आ सकँूगी। उसकी समझ में इस वाक्य के अथय न ीिं आये कक ‘तुम् ारी मजी बबना तो व काम पूरा ो ी न ीिं सकता। उसने समझा कक शायद मुझसे य ी क ेंगे कक जा के लड़की को देख आवे। छ: म ीने के अददर ी अददर व इसका अर्भप्राय भली भ ॉँतत समझ गयी समझ गयी। बाबू अमतृराय कुछ देर तक य ॉँ और बैठे। उनकी ऑ िंखें आज इिर-उिार से घूम कर आतीिं और पूणाय के च ेरे पर गड़ जाती। व कनन्ख्य से उनकी ओर ताकती तो उद ें अपनी तरफ़ ताकत े पाती। आखखर व उठे और चलत ेसमय बोले—पूणाय, य गजरा आज तुम् ारे वास्त ेलाया ँू। देखो इसमें से कैसे सुगदि उड़ र ी ै। पूणाय भौयचक ो गयी। य आज अनोखी बात कैसी एक र्मनट तक तो व इस सोच ववचार में थी कक लूँ या न लूँ या न लूँ। उन गजरों का ध्यान आया जो उसने अपने पतत के र्लए ोली के हदन बनये थे। कफर की कर्लयों का खयाल आया। उसने इरादा ककया मैं न लूँगी। जबान ने क ा—मैं इसे लेकर क्या करँूगी, मगर ाथ आप ी आप बढ गया। बाब ूसा ब ने खुश ोकर गजरा उसके ाथ में वपद ाया, उसको खूब नजर भरकर देखा। कफर बा र तनकल आये और पैरगाड़ी पर सवार ो रवाना ो गये। पूणाय कई र्मनट तक सदनाटे में खड़ी र ी। व सोचती थी कक मैंने तो गजरा लेने से इनकार ककया था। कफर य मेरे ाथ में कैसे आ गया। जी चा कक फें क दे। मगर कफर य ख्याल पलट गया और उसने गज़रे को ाथ में पह न र्लया। ाय उस

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समय भी भोली-भाली पूणाय के समझ में न आया कक इस जुमले का क्या मतलब ै कक तुम चा ो तो ब ुत जल्द मेरा घर बस सकता ै। उिर पे्रमा म ताबी पर ट ल र ी थी। उसने बाबू सा ब को आत े देखा था।उनकी सज-िज उसकी ऑ िंखों में खुब गयी थी। उसने उद ें कभी इस बनाव के साथ न ीिं देखा था। व सोच र ी थी कक आज इनके ाथ में गजरा क्यों ै । उसकी ऑ िंखें पूणाय के घर की तरफ़ लगी ुई थीिं। उसका जी झँुझलाता था कक व आज इतनी देर क्यों लगा र े ै? एकाएक पैरगाड़ी हदखाई दी। उसने कफर बाबू सा ब को देखा। च ेरा खखला ुआ था। कलाइयों पर नज़र पड़ी गयी, ँय व गजरा क्या ो गया? ***

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6. मुये पर सौ दरेु

पूणाय ने गजरा पह न तो र्लया। मगेर रात भर उसकी ऑ िंखों में नीिंद न ीिं आयी। उसकी समझ में य बात न आती थी। कक अमतृराय ने उसे गज़रा क्यों हदया। उसे ऐसा मालूम ोता था कक पिंडडत बसिंतकुमार उसकी तरफ ब ुत क्रोि से देख र े ै। उसने चा ा कक गजरा उतार कर फें क दूँ मगर न ीिं मालूम क्यों उसके ाथ क िंपने लगे। सारी रात उसने ऑ िंखों में काटी। प्रभात ुआ। अभी सूयय भगवान ने,भी कृपा न की थी कक पिंडाइन और चौबाइन और बाबू कमलाप्रसाद की बदृ्ध म रान्जन और पड़ोस की सेठानी जी कई दसूरी औरतों के साथ पूणाय के मकान में आ उपन्स्थत ुई। उसने बड़ ेआदर से सबको बबठाया, सबके पैर छुएिं उसके बाद य पिंचायत ोने लगी। पिंडाइन (जो बुढापे की बज से सूखकर छो ारे की तर ो गयी थी)-क्यों दलुह न, पिंडडत जी को गिंगालाभ ुए ककतने हदन बीते? पूणाय-(डरते-डरत)े प च म ीने से कुछ अधिक ुआ ोगा। पिंडाइन-और अभी से तुम सबके घर आने-जाने लगीिं। क्या नाम कक कल तुम सरकार के घर चली गयी थीिं। उनक क्वारी कदया के पास हदन भर बैठी र ीिं। भला सोचो ओ तुमने कोई अच्छा काम ककया। क्या नाम कक तुम् ारा और उनका अब क्या साथ। जब व तुम् ारी सखी थीिं, तब थीिं। अब तो तुम वविवा ो गयीिं। तुमको कम से कम साल भर तक घर से बा र प व न तनकालना चाह ए। तुम् ारे र्लए साल भर तक ॅसना-बोलना मना ैं म य न ीिं क त ेकक तुम दशयन को न जाव या स्नान को न जाव। स्नान-पूजा तो तुम् ारा िमय ी ै। , ककसी सो ाधगन या ककसी क्वारी कदया पर तुमको अपनी छाया न ी डालनी चाह ए। पिंडाइन चुप ुई तो म ारान्जन टुइय की तर च कने लगीिं-क्या बतलाऊँ, बड़ी सरकार और दलुाह न दोनों ल ू का िूिंट पीकर र गई। ईश्वर जाने बड़ी सरकार तो बबलख-बबलख रो र ी थीिं कक एक तो बेचारी लड़की के यों र जान के लाले पड़ े ै। दसूरी अब र ॉँड बेवा के साथ उठना-बैठना ै। न ीिं मालूम

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नारायण क्या करनेवाले ै। छोटी सकायर मारे क्रोि के क प र ी थी। ऑखों से ज्वाला तनकल र ी थी। बारे मैनें उनको समझाया कक आज जाने दीन्जए व बेचारी तो अभी बच्चा ै। खोटे-खरे का ममय क्या जाने। सरकार का बेटा न्जये, जब ब ुत समझाया तब जाके मानीिं। न ीिं तो क ती थीिं मैं अभी जाकर खड़े-खड़ ेतनकाल देती ँू। सो बेटा, अब तुम सो ाधगनो के साथ बैठने योग्य न ीिं र ीिं। अरे ईश्वर ने तो तुम पर ववपन्त्त डाल दी। जब अपना प्राणवप्रय ी न र ा तो अब कैसा ँसना-बोलना। अब तो तुम् ारा िमय य ी ै कक चुपचाप अपने घर मे पड़ी र ो। जो कुछ रखा-सूखा र्मले खावो वपयो। और सकायर का बेटा न्जये, जाँ तक ो सके, िमय के काम करो। म ारान्जन के चुप ोत े ी चौबाइन गरजने लगीिं। य एक मोटी भदेर्सल और अिेड़ औरत थी—भला इनसे पूछा कक अभी तुम् ारे दलु े को उठे प ॉँच म ीने भी न बीत,े अभी से तुम किं िी-चोटी करने लगीिं। क्या कक तुम अब वविवा ो गई। तुमको अब र्सिंगार-पेटार से क्या सरोकार ठ रा। क्या नाम कक मैंने जारों औरतों को देखा ै जो पतत के मरने के बाद ग ना-पाता न ीिं प नती। ँसना-बोलना तक छोड़ देती ै। य न कक आज तो सु ाग उठा और कल र्सिंगार-पटार ोने लगा। मैं लल्लो-पत्तों की बात न ीिं जानती। क ँूगी सच। चा े ककसी को तीता लगे या मीठा। बाबू अमतृराय का रोज-रोज आना ठीक न ीिं ै। ै कक न ी, सेठानी जी? सेठानी जी ब ुत मोटी थीिं और भारी-भारी ग नों से लदी थी। मािंस के लोथड े डडडरयों से अलग ोकर नीचे लटक र े थे। इसकी भी एक ब ू र ॉँड़ ो गयी थी न्जसका जीवन इसने व्यथय कर रखा था। इसका स्वभाव था कक बात करत ेसमय ाथों को मटकाया करती थी। म ारान्जन की बात सुनकर—‘जो सच बात ोगी सब कोई क ेगा। इसमें ककसी का क्या डर। भला ककसी ने कभी र ॉँड़ बेवा को भी माथे पर बबिंदी देत ेदेखा ै। जब सो ाग उठ गया तो कफर र्सिंदरू कैसा। मेरी भी तो एक ब ू वविवा ै। मगर आज तक कभी मैंने उसको लाल साड़ी न ीिं पह नने दी। न जाने इन छोकररयों का जी कैसा ै कक वविवा ो जाने पर भी र्सिंगार पर जी ललचाया करता ै। अरे इनको चाह ए कक बाबा अब र ॉँड ो गई। मको तनगोड़ ेर्सिंगार से क्या लेना।

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म ारान्जन—सकायर का बेटा न्जये तुम ब ुत ठीक क ती ो सेठानी जी। कल छोटी सकायर ने जो इनको म ॉँग में सेंदरू लगाये देखा तो खड़ी ठक र गयी। द ॉँतों तले उिं गली दबायी कक अभी तीन हदन की वविवा और य र्सगार। सो बेटा, अब तुमको समझ-बूझकर काम करना चाह ए। तुम अब बच्चा न ीिं ो। सेठानी—और क्या, चा े बच्चा ो या बूढी। जब बेरा चलेगी तो सब ी क ेंगे। चुप क्यों ो पिंडाइन, इनके र्लए अब कोई रा -बाट तनकाल दो। पिंडाइन—जब य अपने मन की ोगयीिं तो कोई क्या रा -बाट तनकाले। इनको चाह ए कक ये अपने लिंबेलिंबे केश कटवा डाले। क्या नाम कक दसूरों के घर आना-जाना छोड़ दे। किं िी-चोटी कभी न करें पान न खाये। रिंगीन साड़ी न प नें और जैसे सिंसार की वविवायें र ती ै वैसे र ें। चौबाइन—और बाबू अमतृराय से क दें कक य ॉँ न आया करें। इस पर एक औरत ने जो ग ने कपड़ ेसे ब ुत मालदार न जान पड़ती थी, क ा—चौबाइन य सब तो तुम क गयी मगर जो क ीिं बाब ूअमतृराय धचढ गये तो क्या तुम इस बेचारी का रोटी-कपड़ा चला दोगी? कोई वविवा ो गयी तो क्या अब अपना मुँ सी लें। म रान्जन—( ाथ चमकाकर) य कौन बोला? ठसों। क्या ममता फड़कने लगी? सेठानी—( ाथ मटकाकर) तुझ ेककसने बुलाया जो आ के बीच में बोल उठी। र ॉँड़ तो ो गयी ो, का े न ीिं जा के बाजर में बैठती ो। चौबाइन—जाने भी दो सेठानी जी, इस बौरी के मुँ क्या लगती ो। सेठानी—(कड़ककर) इस मुई को य ॉँ ककसने बुलाया। य तो चा ती ै जैसी मैं बे यास ँू वैसा ीसिंसार ो जाय। म रान्जन— म तो सीख दे र ी थीिं तो इसे क्यों बुरा लगा? य कौन ोती ै बीच में बोलनेवाली?

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चौबाइन—बह न, उस कुटनी से ना क बोलती ो। उसको तो अब कुटनापा करना ै। इस भािंतत कटून्क्तयों दवारा सीख देकर य सब न्स्त्रयाँ य ा से पिारी। म रान्जन भी मुिंशी बदरीप्रदान के य ॉँ खाना पकाने गयीिं। इनसे और छोटी सकायर से ब ुत बनती थी। व इन पर ब ुत ववश्वास रखती थी। म रान्जन ने जात े ी सारी कथा खूब नमक-र्मचय लगाकर बयान की और छोटी सरकार ने भी इस बात को ग ॉँठ ब ॉँि र्लया और पे्रमा को जलाने और सुलगाने के र्लए उसे उत्तम समझकर उसके कमरे की तरफ चली। यों तो पे्रमा प्रततहदन सारी रात जगा करती थी। मगर कभी-कभी घिंटे आि घिंटे के र्लए नीिंद आ जाती थी। नीिंद क्या आ जाती थी, एक ऊिं घ सी आ जाती थी, मगर जब से उसने बाबू अमतृराय को बिंगार्लयों के भेस में देखा था और पूणा के घर से लौटत े वक्त उसको उनकी कलाई परगजरा न नजर आया था तब से उसके पेट में खलबली पड़ी ुई थी कक कब पूणाय आवे और कब सारा ाल मालूम ो। रात को बेचैनी के मारे उठ-उठ घड़ी पर ऑ िंखे दौड़ाती कक कब भोर ो। इस वक्त जो भावज के पैरािं की चाल सुनी तो य समझकर कक पूणाय आ र ी ै, लपकी ुई दरवाजे तक आयी। मगर ज्यों ी भावज को देखा हठठक गई और बोली—कैसे चलीिं, भाभी? भाभी तो य चा ती ी थीिं कक छेड़-छाड़ के र्लए कोई मौका र्मले। य प्रश्न सुनत े ी ततनक का बोली—क्या बताऊ कैसे चली? अब से जब तुम् ारे पास आया करँूगी तो इस सवाल का जवाब सोचकर आया करँूगी। तुम् ारी तर सबका लो ू थोड़ े ी सफेद ो गया ै कक चा े ककसी की जान तनकल, जाय, घी का घड़ा ढलक जाए, मगर अपने कमरे से प ॉँव बा र न तनकाले। पे्रमा ने व सवाल यों ी पूछ र्लया था। उसके जब य अथय लगाये गये तो उसको ब ुत बुरा मालूम ुआ। बोली—भाभी, तुम् ारे तो नाक पर गुस्सा र ता ै। तुम जरा-सी बात का बतगिंढ बना देती ो। भला मैंने कौन सी बात बुरा मानने की क ी थी?

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भाभी—कुछ न ीिं, तुम तो जो कुछ क ती ो मानो मुँ से फूल झाड़ती ो। तुम् ारे मुँ में र्मसरी घोली ुई न। और सबके तो नाक पर गुससा र ता ै, सबसे लड़ा ी करत े ै। पे्रमा—(झल्लाकर) भावज, इस समय मेरा तो धचत्त बबगड़ा ुआ ै। ईश्वर के र्लए मुझसे मत उलझो। म ैतो यों ी अपनी जान को रो र ी ूिं। उस पर से तुम और भी नमक तछड़कने आयीिं। भाभी—(मटककर) ािं रानी, मेरा तो धचत्त बबड़ा ुआ ै, सर कफरा ुआ ै। जरा सीिी-सादी ँू न। मुझको देखकर भागा करो। मै। कट ी कुततया ूिं, सबको काटती चलती ूिं। मैं भी यारों को चुपके-चुपके धचटठी-पत्री र्लखा करती, तसवीरें बदला करती तो मैं भी सीता क लाती और मुझ पर भी घर भर जान देने लगता। मगर मान न मान मैं तरेा मे मान। तुम लाख जतन करों, लाख धचहटठय ॉँ र्लखो मगर व सोने की धचडड़या ाथ आनेवाली न ीिं। य जली-कटी सुनकर पे्रमा से जब्त न ो सका। बेचारी सीिे स्वभाव की औरत थी। उसका वषो से ववर की बन्ग्न में जलते-जलत ेकलेजा और भी पक गया था। व रोने लगी। भावज ने जब उसको रोत ेदेखा तो मारे षय के ऑ िंखे जगमगा गयीिं। त्तरेे की। कैसा रूला हदया। बोली—बबलखने क्या लगीिं, क्या अम्मा को सुनाकर देशतनकाला करा दोगी? कुछ झूठ थोड़ी ी क ती ँू। व ी अमतृराय न्जनके पास आप चुपके-चुपके पे्रम-पत्र भेजा करती थी अब हदन-द ाड़ ेउस र ॉँड़ पूणाय के घर आता ै और घिंटो व ीिं बैठा र ता ै। सुनती ँू फूल के गजरे ला लाकर प नाता ै। शायद दो एक ग ने भी हदये ै। पे्रमा इससे ज्यादा न सुन सकी। धगड़धगड़ाकर बोली—भाभी, मैं तुम् ारे पैरों पड़ती ूिं मुझ पर दया करो। मुझ ेजो चा ो क लो। (रोकर) बड़ी ो, जी चा े मार लो। मगर ककसी का नाम लेकर और उस पर छठे रखाकर मेरे कदल को मत जलाओ। आखखर ककसी के सर पर झूठ-मूठ अपराि क्यों लगाती ो। पे्रमा ने तो य बात बड़ी दीनता से क ी। मगर छोटी सरकार ‘छुद्दे रखकर’ पर बबगड़ गयीिं। चमक कर बोलीिं— ॉँ, ॉँ रानी, मैं दसूरों पर छुद्दे रखकर तुमको

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जलाने आती ूिंन। मैं तो झूठ का व्यव ार करती ँू। मुझ ेतुम् ारे सामने झूठ बोनले से र्मठाई र्मलती ोगी। आज मु ल्ले भर में घर घर य ी चचाय ो र ी ै। तुम तो पढी र्लखी ो, भला तुम् ीिं सोचो एक तीस वषय के सिंड े मदयवे का पूणाय से क्या काम? माना कक व उसका रोटी-कपड़ा चलाते ै मगर य तो दतुनया ै। जब एक पर आ पड़ती ै तो दसूरा उसके आड़ आता ै। भले मनुष्यों का य ढिंग न ीिं ै कक दसूारें को ब काया करें, और उस छोकरी को क्या को ई ब कायेगा व तो आप मदो पर डोरे डाला करती ै। मैंने तो न्जस हदन उसकी सूरत देखी रथी उसी हदन ताड़ गयी थी कक य एक ी ववष की गािंठ ैं। अभी तीन हदन भी दलू् े को मरे ुए न ीिं बीत ेकक सबको झमकड़ा हदखाने लगी। दलू् ा क्या मरा मानो एक बला दरू ुई। कल जब व य ॉँ आई थी तो मै बाल बुिंिा र ी थी। न ीिं तो डउेढी के भीतर तो पैर िरने ी न ीिं देती। चुड़लै क ीिं की, य ॉँ आकर तुम् ारी स ेली बनती ै। इसी से अमतृराय को अपना यौवन हदखाकर अपना र्लया। कल कैसा लचक-लचक कर ठुमुक-ठुमुक् चलती थी। देख-देख कर ऑ िंखे फूटती थीिं। खबरदार, जो अब कभी, तुमने उस चुडलै को अपने य ॉँ बबठाया। मै उसकी सूरत न ीिं देखना चा ती। जबान व बला ै कक झूठ बात का भी ववश्वास हदला देती ै। छोटी सरकार ने जो कुछ क ा व तो सब सच था। भला उसका असर क्यों न ोता। अगर उसने गजरा र्लये ुए जात ेन देखा ोता तो भावज की बातों को अवश्य बनावट समझती। कफर भी व ऐसी ओछी न ीिं थी कक उसी वक्त अमतृराय और पूणाय को कोसने लगती और य समझ लेती कक उन दोनों में कुछ स ॉँठ-ग ॉँठ ै। ॉँ, व अपनी चारपाइ पर जाकर लेट गयी और मुँ लपेट कर कुछ सोचने लगी। पे्रमा को तो पिंलिंग पर लेटकर भावज की बातों को तौलने दीन्जए और म मदायने में चले। य एक ब ुत सजा ुआ लिंबा चौड़ा दीवानखाना ै। जमीन पर र्मजायपुर खुबसूरत कालीनें बबछी ुई ै। भ ॉँतत-भ ॉँतत की गद्देदार कुर्सयय ॉँ लगी ुई ै। दीवारें उत्तम धचत्रों से भूक्षक्षत ै। पिंखा झला जा र ा ै। मुिंशी बदरीप्रसाद एक आरामकुसी पर बैठे ऐनक लगाये एक अखबार पढ र े ै। उनके दायें-बायें की कुर्सययों पर कोई और म ाशय रईस बैठे ुए ै। व सामने की तरफ मुिंशी गुलजारीलाल ैं और उनके बगल में बाबू दाननाथ ै। दाह नी तरफ बाबू कमलाप्रसाद मुिंशी झिंम्मनलाल से कुछ कानाफूसी कर र े ै। बायीिं और दो तीन और आदमी ै न्जनको म न ीिं प चानत।े कई र्मनट तक मुँशी

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बदरीप्रसाद अखबार पढत ेर े। आखखर सर उठाया और सभा की तरफ देखकर बड़ी गिंभीरता से बोले—बाबू अमुतराय के लेख अब बड़ े ी तनिंदनीय ोत ेजात े ै। गुलजारीलाल—क्या आज कफर कुछ ज र उगला? बदरीप्रसाद—कुछ न पूतछए, आज तो उद ोंने खुली-खुली गार्लय ॉँ दी ै। मसे तो अब य बदायश्त न ीिं ोता। गुलजारी—आखखर कोइ क ॉँ तक बदायश्त करे। मैने तो इस अखबार का पढना तक छोड हदया। झम्मनलाल—गोया अपने अपनी समझ में बड़ा भारी काम ककया। अजी आपकािमय य ै कक उन लेखों को काहटए, उनका उत्तर दीन्जए। मै आजकल एक कववत्त रच र ा ँू, उसमे मैंने इनकों ऐसा बनाया ै कक य भी क्या याद करेंगे। कमलाप्रसाद—बाबू अमतृराय ऐसे अिजीवे आदमी न ीिं ै कक आपके कववत, चौपाई से डर जाऍ िं। व न्जस काम में र्लपटत े ै सारे जी से र्लपटत े ै। झम्मनलाल— म भी सारे जी से उनके पीछे पड़ जाऍ िंगे। कफर देखे व कैसे श र मे मुँ हदखात े ै। क ो तो चुटकी बजात ेउनको सारे श र में बदनाम कर दूँ। कमलाप्रसाद—(जोर देकर) य कौन-सी ब ादरुी ै। अगर आप लोग उनसे ववरोि मोल र्लया चा त े ै। तो सोच-समझ कर लीन्जए। उनके लेखों को पहढए, उनको मन में ववचाररए, उनका जवाब र्लखखए, उनकी तर दे ातो मे जा-जाकर व्याख्यान दीन्जए तब जा के काम चलेगा। कई हदन ुए मै अपने इलाके पर से आ र ा था कक एक ग ॉँव में मैने दस-बार जार आदर्मयों की भीड़ देखी। मैंने समझा पैठ ै। मगर जब एक आदमी से पूछा तो मालमू ुआ। कक बाबू अमतृराय का व्याख्यान था। और य काम अकेले व ी न ीिं करते, कार्लज के कई ोन ार लड़के उनके स ायक ो गये ै और य तो

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आप लोग सभी जानत े ैं कक इिर कई म ीने से उनकी वकालत अिंिािुिंि बढ र ी ै। गुलजारीलाल—आप तो सला इस तर देत े ै गोया आप खुद कुछ न करेंगे। कमलाप्रसाद—न, मैं इस काम में। आपका शरीक न ीिं ो सकता। मुझ ेअमतृराय के सब र्सदवािंतो से मेल ै, र्सवाय वविवा-वववा के। बदरीप्रसाद—(डपटकर) बच्च, कभी तुमको समझ न आयेगी। ऐसी बातें मु ँ से मत तनकाला करों। झम्मनलाल—(कमलाप्रसाद से) क्या आप ववलायत जाने के र्लए तैयार ै? कमलाप्रसाद—मैं इसमे कोई ातन न ीिं समझता। गुलजारीलाल—( िंसकर) य नये बबगडे ैं। इनको अभी अस्पताल की वा खखलाइए। बदरीप्रसाद—(झल्लाकर) बच्चा, तुम मेरे सामने से ट जाओ। मुझ ेरोज ोता ै। कमलाप्रसाद को भी गुस्सा आ गया। व उठकर जाने लगे कक दो-तीन आदर्मयों ने मनाया और कफर कुसर ्पर लाकर बबठा हदया। इसी बीच में र्मस्टर शमाय की सवारी आयी। आप व ी उत्सा ी पुरूष ैं न्जद ोंने अमतृराय को पक्की स ायता का वादा ककया था। इनको देखत े ी लोगो ने बड़े आदर से कुसी पर बबठा हदया। र्मटर शमाय उस श र में म्यूतनर्सपैर्लटी के सेके्रटरी थे। गुलजारीलाल—कह ए पिंडडत जी क्या खबर ै? र्मस्टर शमाय—(मूँछो पर ाथ फेरकर) व ताजा खबर लाया ँू कक आप लोग सुनकर फड़क जायगेँ। बाबू अमतृराय ने दररया के ककनारे वाली री भरी जमीन के र्लए दरखास्त ै। सुनता ँू व ॉँ एक अनाथालय बनवायेगे।

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बदरीप्रसाद—ऐसा कदावप न ीिं ो सकता। कमलाप्रसाद। तुम आज उसी जमीन के र्लए मारी तरफ से कमेटी में दरखास्त पेश कर दो। म व ॉँ ठाकुरदवारा और िमयशाला बनावायेंगे। र्मस्टर शमाय—आज अमतृराय सा ब के बँगले पर गये थे। व ॉँ ब ुत देर तक बातचीत ोती र ी। सा ब ने मेरे सामने मुसकराकर क ा—अमतृराय, मैं देखूगँा कक जमीन तुमको र्मले। गुलजारीलाल ने सर ह लाकर क ा—अमतृराय बड़ ेचाल के आदमी ै। मालूम ोता ै, सा ब को प ले ी से उद ोंने अपने ढिंग पर लगा र्लया ै। र्मस्टर शमाय—जनाब, आपको मालूम न ीिं अिंगे्रजों से उनका ककतना मेलजोल ै। मको अिंगे्रज मेम्बरों से कोई आशा न ीिं रखना चाह ए। व सब के सब अमतृराय का पक्ष करेंगे। बदरीप्रसाद—(जोर देकर) ज ॉँ तक मेरा बस चलेगा मै य जमीन अमतृराय को न लेने दूँगा। क्या डर ै, अगर और ईसाई मेम्बर उनके तरफदार ै। य लोग प ॉँच से अधिक न ीिं। बाकी बाईस मेबर अपने ैं। क्या मको उनकी वोट भी न र्मलेगी? य भी न ोगा तो मै उस जमीन को दाम देकर लेने पर तैयार ँू। झम्मनलाल—जनाब, मुझको पक्का ववश्वास ै कक मको आिे से न्जयादा वोट अवश्य र्मल जायगेँ। एक ब ुत ी उत्तम रीतत से सजा ुआ कमरा ै। उसमें र्मस्टर वालटर सा ब बाबू अमतृराय के साथ बैठे ुए कुछ बातें कर र े ै। वालटर सा ब य ॉँ के कर्मश्नर ै और सािारण अिंगे्रजों के अततररक्त प्रजा के बड़ ेह तैषी और बड़ ेउत्सा ी प्रजापालक ै। आपका स्वभाव ऐसा तनमयल ै कक छोटा-बड़ा कोई

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ो, सबसे ँसकर क्षेम-कुशल पूछत ेऔर बात करत े ै। व प्रजा की अवस्था को उदनत दशा में ले जाने का उदयोग ककया करत े ै और य उनका तनयम ै कक ककसी ह ददसु्तानी से अिंगे्रजी में न ीिं बोलेगे। अभी वपछली साल जब प्लेग का डिंका चारों ओर घेनघोर बज र ा था, वालटर सा ब, गरीब ककसानों के घर जाकर उनका ाल-चाल देखत ेथे और अपने पास से उनको किं बल ब ॉँटत ेकफरत ेथे। और अकाल के हदनों मेंतो व सदा प्रजा की ओर से सरकार के दरबार में वादानुवाद करने के र्लए तत्पर र त े ै। सा ब अमतृराय की सच्ची देशभन्क्त की बड़ी बड़ाई ककया करत े ै और ब ुिा प्रजा की रक्षा करने में दोनों आदमी एक-दसूरे की स ायता ककया करत े ै। वालटर—(मुसकराकर) बाबू सा ब। आप बड़ा चालाक ै आप चा ता ै कक मुिंशी बदरी प्रसाद से थैली-भर, रूपया ले। मगर आपका बात व न ीिं मानने सकता। अमतृराय—मैंने तो आपसे क हदया कक मै अनाथालय अवश्य बनवाउँगा और इस काम में बीस जार से कम न लगेगा। अगर आप मेरी स ायता करेंगे तो आशा ै कक य काम भी सफल ो जाए और मै भी बना र ँू। और अगर आप कतरा गये तो ईश्वर की कृपा से मेरे पास अभी इतनी जायदाद ै कक अकेले दो अनाथालय बनवा सकता ँू। मगर ॉँ, तब मैं और कामों में कुछ भी उत्सा न हदखा सकँूगा। वालटर—( िंसकर) बाबू सा ब। आप तो जरा से बात में नाराज ो गया। म तो बोलता ै कक म तुम् ारा मदद दो जार से कर सकता ै। मगर बदरीप्रसाद से म कुछ न ीिं क ने सकता। उसने अभी अकाल में सरकार को प ॉँच जार हदया ै। अमतृराय—तो य दो जार में लेकर क्या करँूगा? मुझ ेतो आपसे पिंद्र जार की पूरी आशा थी। मुिंशी बदरीप्रसाद के र्लए प ॉँच जार क्या बड़ी बात ै? तब से इसका दगुना तो व एक मिंहदर बनवाने में लगा चुके ै। और केवल इस आशा पर कक उनको सी आई.ई की पदवी र्मल जाएगी, व इसका दस गुना आज दे सकत े ै।

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वालटर—(अमतृराय से ाथ र्मलाकर) वेल, अमतृराय। तुम बड़ा चालाक ै। तुम बड़ा चालाक ै तुम मुिंशी बदरीप्रसाद को लूटना म ॉँगता ै। य क कर सा ब उठ खड़ े ुए। अमतृराय भी उठे। बा र कफटन खड़ी थी दोनों उस पर बैठ गये। साईस ने घोड़ ेको चाबुक लगाया और देखत ेदेखत ेमुिंशी बदरीप्रसाद के मकान पर जा प ूिंच।े ठीक उसी वक्त जब व ॉँ अमतृराय से रार बढाने की बातें सोची जा र ी थीिं। प्यारे पाठकगण। म य वणयन करके कक इन दोनों आदर्मयों के प ँुचत े ी व ॉँ कैसी खलबली पड़ गयी, मुिंशी बदरीप्रसाद ने इनका कैसा आदर ककया, गुलजारीलाल, दाननाथ और र्मस्टर शमाय कैसी ऑ िंखे चुराने लगे, या सा ब ने कैसे काट-छािंट की बात ेकी और मुिंशी जी को सी.आई.ई की पदवी की ककन शब्दों में आशा हदलाइ आपका समय न ीिं गँवाया चा त।े खुलासा य कक अमॄतराय को य ॉँ से सत्तर जार रूपया र्मला। मुिंशी बदरीप्रसाद ने अकेले बार जार हदया जो उनकी उम्मेद से ब ुत ज्यादा था। व जब य ॉँ से चले तो ऐसा मालमू ोता था कक मानों कोई गढी जीत ेचले आ र े ै। व जमीन भी न्जसके र्लए उद ोने कमेटी मे दरखस्त की थी र्मल गयी और आज ी इिंजीतनयर ने उसको नाप कर अनाथालय का नकशा बनाना आरिंभ कर हदया। सा ब और अमतृराय के चले जाने पर य ॉँ यो बात े ोने लगी। झम्मनलाल—यार, मको तो इस लौंड ेने आज पािंच सौ के रूप में डाल हदया। गुलजारी लाल—जनाब, आप प ॉँच सौ को रो र ी ै य ॉँ तो एक जार पर पानी कफर गया। मुिंशी जी तो सी.आई.ई की पदवी पावेगें।य ॉँ तो कोई रायब ादरुी को भी न ीिं पूछता। कमलाप्रसाद—बड ेशोक की बात ै कक आप लोग ऐसे शुभ कायय मे स ायता देकर पछतात े ै। अमतृराय को देखखए कक उद ोंने अपना एक ग ॉँव बेचकर दस जार रूपया भी हदया और उस पर दौड़-िूप अलग कर र े ै।

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मुिंशी बदरीप्रसाद—अमतृराय बड़ा उत्सा ी आदमी ै। मनेै आज इसको जाना। बच्चा कमलाप्रसाद। तुम आज शाम को उनके य ॉँ जाकर मारी ओर से िदयवाद दे देना। झम्मनलाल—(मुिं फेरकर) आप क्यों न प्रसदन ोंगे, आपको तो पदवी र्मलेगी न? कमलाप्रसाद—( िंसकर) अगर आपका व कववत्त तैयार ो तो जरा सुनाइए। दाननाथ जो अब तक चुपचाप बैठे ुए थे बोले—अब आप उनकी तनिंदा करने की जग उनकी प्रिंशसा कीन्जए। र्मस्टर शमाय—अच्छा, जो ुआ सो ुआ, अब सभा ववसजयन कीन्जए, आज य मालूम ो गया कक अमतृराय अकेले म सब पर भारी ै। कमलाप्रसाद—आपने न ीिं सुन, सत्य की सदा जय ोती ै। ***

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7. आज से कभी मन्ददर न जाऊँगी बेचारी पूणाय, पिंडाइन, चौबाइन, र्मसराइन आहद के चले जाने के बाद रोने लगी। व सोचती थी कक ाय। अब मैं ऐसी मन ूस समझी जाती ूिं कक ककसी के साथ बैठ न ीिं सकती। अब लोगों को मेरी सूरत काटने दौड़ती ैं। अभी न ीिं मालूम क्या-क्या भोगना बदा ै। या नारायण। तू ी मुझ दखुखया का बेड़ा पार लगा। मुझ पर न जाने क्या कुमतत सवार थी कक र्सर में एक तले डलवा र्लयौ। य तनगोड़ ेबाल न ोत ेतो का े को आज इतनी फ़जी त ोती। इद ीिं बातों की सुधि करत ेकरत ेजब पिंडाइन की य बात याद आ गयी कक बाबू अमतृराय का रोज रोज आना ठीक न ीिं तब उसने र्सर पर ाथ मारकर क ा—व जब आप ी आप आत े ै तो मै कैसे मना कर दूँ। मै। तो उनका हदया खाती ँू। उनके र्सवाय अब मेरी सुधि लेने वाला कौन ै। उनसे कैसे क दूँ कक तुम मत आओ। और कफर उनके आने में रज ी क्या ै। बेचारे सीिे सादे भले मनुष्य ै। कुछ निंगे न ीिं, शो दे न ीिं। कफर उनके आने में क्या रज ै। जब व और बड़ ेआदर्मयों के घर जात े ै। तब तो लोग उनको ऑ िंखो पर बबठात े ै। मुझ र्भखाररन के दरवाजे पर आवें तो मै कौन मुँ लेकर उनको भगा दूँ। न ीिं न ीिं, मुझसे ऐसा कभी न ोगा। अब तो मुझ पर ववपन्त्त आ ी पड़ी ै। न्जसके जी में जो आवै क ै। इन ववचारों से छुटटी पाकर व अपने तनयमानुसार गिंगा स्नान को चली। जब से पिंडडत जी का दे ािंत ुआ था तब से व प्रततहदन गिंगा न ाने जाया करती थी। मगर मुँ अिंिेरे जाती और सूयय तनकलत ेलौट आती। आज इन बबन बुलाये मे मानों के आने से देर ो गई। थोड़ी दरू चली ोगी कक रास्त ेमें सेठानी की ब ू से भेट ो गई। इसका नाम रामकली था। य बेचारी दो साल से रँडापा भोग र ी थी। आयु १६ अथवा १७ साल से अधिक न ोगी। व अतत सुिंदरी नख-र्शख से दरुूस्त थी। गात ऐसा कोमल था कक देखने वाले देखत े ी र जात ेथे। जवानी की उमर मुखड ेसे झलक र ी थी। अगर पूणाय पके ुए आम के समान पीली ो र ी थी, तो व गुलाब के फूल की भातत खखली ुई थी। न बाल में तले था, न ऑ िंखो में काजल, न माँग में सिंदरू, न दाँतो पर र्मससी। मगर ऑ िंखो मे व चिंचलता थी, चाल मे व लचक और ोठों पर व मनभवानी लाली थी कक न्जससे बनावटी श्रृिंगार की जरूरत न र ी थी। व

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मटकती इिर-उिर ताकती, मुसकराती चली जा र ी थी कक पूणाय को देखत े ी हठठक गयी और बड़ ेमनो र भाव से िंसकर बोली—आओ बह न, आओ। तुम तो जानों बताशे पर पैर िर र ी ो। पूणाय को य छेड़-छाड़ की बात बुरी मालमू ुई। मगर उसने बड़ी नमी से जवाब हदया—क्या करूिं बह न। मुझसे तो और तजे न ीिं चला जाता। रामकली—सुनती ूिं कल मारी डाइन कई चुड़लैो के साथ तुमको जलाने गयी थी। जानों मुझ ेसताने से अभी तक जी न ीिं भरा। तुमसे क्या क ू बह न, य सब ऐसा दखु देती ै कक जी चा ता ै मा ुर खा लूँ। अगर य ी ाल र ा तो एक हदन अवश्य य ी ोना ै। न ीिं मालूम ईश्वर का क्या बबगाड़ा था कक स्वप्न में भी जीवन का सुख न प्राप्त ुआ। भला तुम तो अपने पतत के साथ दो वषय तक र ीिं भी। मैंने तो उसका मुँ भी न ीिं देखा। जब तमाम औरतों को बनाव-र्सिंगार ककये ँसी-खुशी चलते-कफरत ेदेखती ँू तो छाती पर सापँ लोटने लगता ै। वविवा क्या ो गई घर भर की लौंडी बना दी गयी। जो काम कोई न करे व मै करिं । उस पर रोज उठत ेजूत,े बैठत े लात। काजर मत लगाओ। ककस्सी मत लगाओ। बाल मत गुँथाओ। रिंगीन साडड़याँ मत प नों। पान मत खाओ। एक हदन एक गुलाबी साड़ी प न ली तो चुड़लै मारने उठी थी। जी में तो आया कक सर के बाल नोच लूँ मगर ववष का घूटँ पी के र गयी और व तो व , उसकी बेहटयाँ और दसूरी ब ुऍ िं मुझसे कदनी काटती कफरती ै। भोर के समय कोई मेरा मुँ न ीिं देखता। अभी पड़ोस मे एक ब्या पड़ा था। सब की सब ग ने से लद लद गाती बजाती गयी। एक मै ी अभाधगनी घर मे पडी रोती र ी। भला बह न, अब क ाँ तक कोई छाती पर पत्थर रख ले। आखखर म भी तो आदमी ै। मारी भी तो जवानी ै। दसूरों का राग-रिंग, ँसी, चु ल देख अपने मन मे भी भावना ोती ै। जब भूख लगे और खाना न र्मले तो ार कर चोरी करनी पड़ती ै। य क कर रामकली ने पूणाय का ाथ अपने ाथ में ले र्लया और मुस्कराकर िीरे िीरे एक गीत गुनगुनाने लगी। बेचारी पूणाय हदल में कुढ र ी थी कक इसके साथ क्यों लगी। रास्त ेमें जारों आदमी र्मले। कोई इनकी ओर ऑ िंखे फाड़ फाड़ घूरता था, कोई इन पर बोर्लया बोलता था। मगर पूणाय सर को ऊपर न उठाती थी। ाँ, रामकली मुसकरा मसुकरा कर बड़ी चपलता से इिर

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उिर ताकती, ऑ िंखे र्मलाती और छेड़ छाड़ का जवाब देती जाती थी। पूणाय जब रास्त ेमें मदो को खड ेदेखती तो कतरा के तनकल जाती मगर रामकली बरबस उनके बीच में से घुसकर तनकलती थी। इसी तर चलत ेचलत ेदोनो नदी के तट पर प ँुची। आठ बज गया था। जारों मदय न्स्त्रयाँ, बच्च े न ा र े थे। कोई पूजा कर र ा था। कोई सूयय देवता को पानी दे र ा था। माली छोटी-छोटी डार्लयों में गुलाब, बेला, चमेली के फूल र्लये न ानेवालों को दे र े थे। चारों और जै गिंगा। जै गिंगा। का शब्द ो र ा था। नदी बाढ पर थी। उस मटमैले पानी में तैरत े ुए फूल अतत सुिंदर मालमू ोत ेथे। रामकली को देखत े ी एक पिंड ेने क ी—‘इिर सेठानी जी, इिर।‘ पिंडा जी म ाराज पीताम्बर प ने, ततलक मुद्रा लगाये, आसन मारे, चिंदन रगड़ने में जुटे थे। रामकली ने उसके स्थान पर जाकर िोती और कमिंउल रख हदया। पिंडा—(घूरका) य तुम् ारे साथ कौन ै? रामकली—(ऑ िंखे मटकाकर) कोई ोंगी तुमसे मतलब। तुम कौन ोत े ो पूछने वाले? पिंडा—जरा नाम सुन के कान खुश कर लें। रामकली—य मेरी सखी ैं। इनका नाम पूणाय ै। पिंडा—( ँसकर) ओ ो ो। कैसा अच्छा नाम ै। ै भी तो पूणय चिंद्रमा के समान। िदय भाग्य ै कक ऐसे जजमान का दशयन ुआ। इतने में एक दसूरा पिंडा लाल लाल ऑ िंखे तनकाले, किं िे पर लठ रखे, नशे में चूर, झूमता-झामता आ प ँुचा और इन दोनो ललनाओिं की ओर घूर कर बोला, ‘अरे रामभरोसे, आज तरेे चिंदन का रिंग ब ुत चोखा ै। रामभरोसे—तरेी ऑ िंखे का े को फूटे ै। पे्रम की बूटी डाली ै जब जा के ऐसा चोखा रिंग भया।

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पिंडा—तरेे भाग्य को िदय ैं य रक्त चिंदन (रामकली की तरफ देखकर) तो तूने प ले ी रगड़ा रक्खा था। परिंतु इस मलयाधगर (पूणाय की तरफ इशारा करके) के सामने तो उसकी शोभा ी जाती र ी। पूणाय तो य नोक-झोंक समझ-समझ कर झेंपी जाती थी। मगर रामकली कब चूकनेवाली थे। ाथ मटका कर बोली—ऐसे करमठँहढयों को थोड़ े ी मलयाधगर र्मला करता ै। रामभरोसे—(पिंडा से) अरे बौरे, तू इन बातों का ममय क्या जाने। दोनो ी अपने-अपने गुण मे चोखे ै। एक में सुगिंि ै तो दसूरे में रिंग ै। पूणाय मन में ब ुत लन्ज्जत थी कक इसके साथ क ाँ फँस गयी। अब तक वो न ा-िोके घर प ँुची ोती। रामकली से बोली—बह न, न ाना ो तो न ाओ, मुझको देर ोती ै। अगर तुमको देर ो तो मैं अकेले जाऊँ। रामभरोसे—न ीिं, जजमान। अभी तो ब ुत सबेरा ै। आनिंदपूवयक स्नान करो। पूणाय ने चादर उतार कर िर दी और साड़ी लेकर न ाने के र्लए उतरना चा ती थी कक यकायक बाबू अमतृराय एक सादा कुताय प ने, सादी टोपी सर पर रक्खे , ाथ में नापने का फीता र्लये चिंद ठेकेदारों के साथ अतत हदखायी हदये। उनको देखत े ी पूणाय ने एक लिंगी घूघिंट तनकाल ली और चा ा कक सीहढयों पर लिंबाई-चौड़ाइ नापना था क्योकक व एक जनाना घाट बनवा र े थे। व पूणाय के तनकट ी खड़े ो गये। और कागज पेर्सिंल पर कुछ र्लखने लगे। र्लखत-ेर्लखत े जब उद ोंने कदम बढाया तो पैर सीढी के नीच ेजा पड़ा। करीब था कक व औिै मुँ धगरे और चोट-चपेट आ जाय कक पूणाय ने झपट कर उनको सँभाला र्लया। बाब ूसा ब ने चौंककर देखा तो दह ना ाथ एक सुिंदरी के कोमल ाथों में ै। जब तक पूणाय अपना घूघँट बढावे व उसको प चान गये और बोले—प्यारी, आज तुमने मेरी जान बचा ली। पूणाय ने इसका कुछ जवाब न हदया। इस समय न जाने क्यों उसका हदल जोर जोर से िड़क र ा था और आखो में ऑ िंसू भरा आता था। ‘ ाय। नारायण, जोक ीिं व आज धगर पड़त े तो क्या ोता...य ी उसका मन बेर बेर

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क ता। ‘मैं भले सिंयोग से आ गयी थी। व र्सर नीचा ककये गिंगा की ल रों पर टकटकी लगाये य ी बातें गुनती र ी। जब तक बाबू सा ब खड़ ेर े, उसने उनकी ओर एक बेर भी न ताका। जब व चले गए तो रामकली मुसकराती ुई आयी और बोली—बह न, आज तुमने बाबू सा ब को धगरत ेधगरत ेबचा र्लया आज से तो व और भी तुम् ारे पैरों पर र्सर रकखेगे। पूणाय—(कड़ी तनगा ों से देखकर) रामकली ऐसी बातें न करो। आदमी आदमी के काम आता ै। अगर मैंने उनको सँभाल र्लया तो इसमे क्या बात अनोखी ो गयी। रामकली—ए लो। तुम तो जरा सी बात पर तततनक गयीिं। पूणाय—अपनी अपनी रूधच ै। मुझको ऐसी बातें न ीिं भाती। रामकली—अच्छा अपराि क्षमा करो। अब सकय र से हदल्लगी न करँूगी। चलो तुलसीदल ले लो। पूणाय—न ीिं, अब मै य ाँ न ठ रँूगी। सूरज माथें पसर आ गया। रामकली—जब तक इिर उिर जी ब ले अच्छा ै। घर पर तो जलत ेअिंगारों के र्सवाय और कुछ न ीिं। जब दोनो न ाकर तनकली तो कफर पिंडो ने छेड़नाप चा ा, मगर पूणाय एकदम भी न रूकी। आखखर रामकली ने भी उसका साथ छोड़ना उधचत न समझा। दोनो थोड़ी दरू चली ोगी। कक रामकली ने क ा—क्यों बह न, पूजा करने न चलोगी? पूणाय—न ीिं सखी, मुझ ेब ुत देर ो जायगी। रामकली—आज तुमको चलना पड़गेा। ततनक देखो तो कैसे वव ार की जग ै। अगर दो चार हदन भी जाओ तो कफर बबना तनत्य गये जी न माने।

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पूणाय–तुम जाव, मैं न जाऊँगी। जी न ीिं चा ता। रामकली—चलों चलो, ब ुत इतराओ मत। दम की दम में तो लौटे आत े ै। रास्त ेमें एक तिंबोली की दकूान पड़ी। काठ के पटरों पर सफेुद भीगे ुए कपड़ ेबबछे थे। उस पर भाँतत-भाँतत के पान मसालों की खूबसूरत डडबबयाँ, सुगिंि की शीर्शयाँ, दो-तीन रे- रे गुलदस्त ेसजा कर िरे ुए थे। सामने ी दो बड़-ेबड़ ेचौखटेदार आईने लगे ुए थे। पनवाड़ी एक सजीया जवान था। सर पर दोपल्ली टोपी चुनकर टेडी दे रक्खी थी। बदन में तिंजेब का फँसा ुआ कुताय था। गले में सोने की तावीजे। ऑ िंखो में सुमाय, माथे पर रोरी, ओठो पर पान की ग री लीली। इन दोनों न्स्त्रयों को देखत े ी बोला—सेठानी जी, पान खाती जाव। रामकली ने चठ सर से चादर खसका दी और कफर उसको एक अनुपम भाव से ओढकर िंसत े ुए नयनो से बोली—‘अभी प्रसाद न ीिं पाया’। पनवाड़ी—आवो। आवो। य भी तो प्रसाद ी ै। सिंतों के ाथ की चीज प्रसाद से बढकर ोती ै। य आज तुम् ारे साथ कौन शन्क्त ै? रामकली—य मारी सखी ै। तम्बोली—ब ुत अच्छा जोड़ा ै। िदय ्भाग्य जो दशयन ुआ। रामकली दकुान पर ठमक गयी और शीशे में देख देख अपने बाल सँवारने लगी। उिर पनवाड़ी ने चाँदी के वरक लपेटे ुए बीड ेफुरती से बनाये और रामकली की तरफ ाथ बढाया। जब व लेने को झुकी तो उसने अपना ाथ खीिंच र्लया और ँसकर बोला—तुम् ारी सखी लें तो दें। रामकली—मुँ बनवा आओ, मुँ । (पान लेकर) लो, सखी, पान खाव। पूणाय—मैं न खाऊँगी।

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रामकली—तुम् ारी क्या कोई सास बैठी ै जो कोसेगी। मेरी तो सास मना करती ै। मगर मैं उस पर भी प्रततहदन खाती ँू। पूणाय—तुम् ारी आदत ोगी मैं पान न ीिं खाती। रामकली—आज मेरी खाततर से खाव। तुम् ें कसम ै। रामकली ने ब ुत ठ की मगर पूणाय ने धगलौररयाँ न लीिं। पान खाना उसने सदा के र्लए त्याग हदया था। इस समय तक िूप ब ुत तजे़ ो गयी थी। रामकली से बोली—ककिर ै तुम् ारा मिंहदर? व ाँ चलते-चलत ेतो सािंझ ो जायगी। रामकली—अगर ऐसे हदन कटा जाता तो कफर रोना का े का था। पूणाय चुप ो गयी। उसको कफर बाबू अमतृराय के पैर कफसलने का ध्यान आ गया और कफर मन में य प्रश्न ककया कक क ीिं आज व धगर पड़त ेतो क्या ोता। इसी सोच मे थी कक तनदान रामकली ने क ा—लो सखी, आ गया मिंहदर। पूणाय ने चौंककर दाह नी ओर जो देखा तो एक ब ुत ऊँचा मिंहदर हदखायी हदया। दरवाजे पर दो बड़े-बड़ ेपत्थर के शेर बने ुए थे। और सैकड़ो आदमी भीतर जाने के र्लए िक्कम-िक्का कर र े थे। रामकली पूणाय को इस मिंहदर में ले गयी। अिंदर जाकर क्या देखती ै कक पक्का चौड़ा ऑ िंगन ै न्जसके सामने से एक अँिेरी और सँकरी गली देवी जी के िाम को गयी ै। दाह नी ओर एक बारादरी ै जो अतत उत्तम रीतत पर सजी ुई ै। य ाँ एक युवा पुरूष पीला रेशमी कोट प ने, सर पर खूबसूरत गुलाबी रिंग की पगड़ी बाँिे, तककया-मसनद लगाये बैठा ै।पेचवान लगा ुआ ै। उगालदान, पानदान और नाना प्रकार की सुिंदर वस्तुओिं से सारा कमरा भूवषत ो र ा ै। उस युवा पूरूष के सामने एक सुिर कार्मनी र्सिंगार ककये ववराज र ी ै। उसके इिर-उिर सपरदाये बैठे ुए स्वर र्मला र े ै। सैकड़ो आदमी बैठे और सैकड़ो खड़ े ै। पूणाय ने य रिंग देखा तो चौंककर बोली—सखी, य तो नाचघर सा मालूम ोता ै। तुम क ीिं भूल तो न ीिं गयीिं?

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रामकली—(मुस्कराकर) चुप। ऐसा भी कोई क ता ै। य ी तो देवी जी का महदर ै। व बरादरी में म िंत जी बैठे ै। देखती ो कैसा रँगीला जवान ै। आज शुक्रवार ै, र शुक्र को य ाँ रामजनी का नाच ोता ै। इस बीच मे एक ऊँचा आदमी आता हदखायी हदया। कोई छ: फुट का कद था। गोरा-धचटठा, बालों में किं िी क ुई, मुँ पान से भरे, माथे पर ववभूतत रमाये, गले में बड़-ेबड़ ेदानों की रूद्राक्ष की माला प ने किं िे पर एक रेशमी दोपटटा रक्खे, बड़ी-बड़ी और लाल ऑ िंखों से इिर उिर ताकता इन दोनों न्स्त्रयों के समीप आकर खड़ा ो गया। रामकली ने उसकी तरफ कटाक्ष से देखकर क ा—क्यों बाबा इदद्रवत कुछ परशाद वरशाद न ीिं बनाया? इदद्र—तुम् ारी खाततर सब ान्जर ै। प ले चलकर नाच तो देखो। य किं चनी काश्मीर से बलुायी गयी ै। म िंत जी बेढब रीझ े ैं, एक जार रूपया इनाम दे चुके ैं। रामकली ने य सुनत े ी पूणाय का ाथ पकड़ा और बारादरी की ओर चली। बेचारी पूणाय जाना न चा ती थी। मगर व ाँ सबके सामने इनकार करत ेभी बन न पड़ता था। जाकर एक ककनारे खड़ी ो गयी। सैकड़ों औरतें जमा थीिं। एक से एक सुददर ग ने लदी ुई । सैकड़ो मदय थे, एक से एक गबरू ,उत्तम कपड़ ेप ले ुए। सब के सब एक ी में र्मले जुले खड़ ेथे। आपस में बीर्लयाँ बोली जाती थीिं, ऑ िंखे र्मलायी जाती थी, औरतें मदो में। य मेलजोल पूणाय को न भाया। उसका ह याव न ुआ कक भीड़ में घुसे। व एक कोने में बा र ी दबक गयी। मगर रामकली अददर घुसी और व ाँ कोई आि घण्टे तक उसने खूब गुलछरे उड़ाये। जब व तनकली तो पसीने में डूबी ुई थी।तमाम कपड़ े मसल गये थे। पूणाय ने उसे देखत े ी क ा—क्यों बह न, पूजा कर चुकीिं? अब भी घर चलोगी या न ीिं? रामकली—(मुस्कराकर) अरे, तुम बा र खडी र गयीिं क्या? जरा अददर चलके देखो क्या ब ार ै? ईश्वर जाने किं चनी गाती क्या ै हदल मसोस लेती ै।

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पूणाय—दशयन भी ककया या इतनी देर केवल गाना ी सुनती र ीिं? रामकली—दशयन करने आती ै मेरी बला। य ाँ तो हदल ब लाने से काम ै। दस आदमी देखें दस आदर्मयों से ँसी हदल्लगी की, चलों मन आन ो गया। आज इदद्रदत्त ने ऐसा उत्तम प्रसाद बनाया ै कक तुमसे क्या बखान करँू। पूणाय –क्या ै ,चरणामतृ? रामकली—( ॅसकर) ाँ, चरणामतृ में बूटी र्मला दी गयी ै। पूणाय—बूटी कैसी? रामकली—इतना भी न ीिं जानती ो, बूटी भिंग को क त े ैं। पूणाय—ऐ ै तुमने भिंग पी ली। रामकली—य ी तो प्रसाद ै देवी जी का। इसके पीने में क्या जय ै। सभी पीत े ै। क ो तो तुमको भी वपलाऊँ। पूणाय—न ीिं बह न, मुझ ेक्षमा करो। इिर य ी बातें ो र ी थी कक दस-पिंद्र आदमी बारादरी से आकर इनके आसपास खड़ े ो गये। एक—(पूणाय की तरफ घूरकर) अरे यारो, य तो कोई नया स्वरूप ै। दसूरा—जरा बच के चलो, बचकर। इतने में ककसी ने पूणाय के किं िे से िीरे से एक ठोका हदया। अब व बेचारी बड़ ेफेर में पड़ी। न्जिर देखती ै आदमी ी आदमी हदखायी देती ै। कोई इिर से िंसता ै कोइ उिर से आवाजें कसता ै। रामकली ँस र ी ै। कभी चादर को

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खखसकाती ै। कभी दोपटटे को सँभालती ै। एक आदमी ने उससे पूछा—सेठानी जी, य कौन ै? रामकली—य मेरी सखी ै, जरा दशयन कराने को लायी थी। दसूरा—इद ें अवश्य लाया करों। ओ ो। कैसा खुलता ुआ रिंग ै। बारे ककसी तर इन आदर्मयों से छुटकारा ुआ। पूणाय घर की ओर भागी और कान पकड़ े कक आज से कभी मिंहदर न जाउँगी। ***

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8. कुछ और बातचीत

पूणाय ने कान पकड़ ेकक अब मिंहदर कभी न जाऊगी। ऐसे मिंहदरों पर दई का कोप भी न ीिं पड़ता। उस हदन से व सारे घर ी पर बठैी र ती। समय काटना प ाड़ ो जाता। न ककसी के य ाँ आना न जाना। न ककसी से भेट न मुलाकात। न कोई काम न ििंिा। हदन कैसे कटे। पढी-र्लखी तो अवश्य थी, मगर पढे क्या। दो-चार ककस्से-क ानी की पुरानी ककताबें पिंडडत जी की सिंदकू में पड़ी ुई थी, मगर उनकी तरफ देखने को अब जी न ीिं चा ता था। कोई ऐसा न था जो बाजार से लाती मगर व ककताबों का मोल कया जाने। दो-एक बार जी में आया कक कोई पुस्तक पे्रमा के घर में मँगवाये। मगर कफर कुछ समझकर चुप ो र ी। बेल-बूटे बनाना उसको आत े ी न थें। कक उससे जी ब लाये, ाँ सीना आता था। मगर सीये ककसके कपड़।े तनत्य इस तर बेकाम बैठे र ने से व रदम कुछ उदास सी र ा करती। ा,ँ कभी-कभी पिंडाइन और चौबाइन अपने चलेे-चापड़ों के साथ आकर कुछ र्सखावन की बातें सुना जाती थीिं। मगर जब कभी व क तीिं कक बाबू अमतृराय का आना ठीक न ीिं तो पूणाय साफ-साफ क देती कक मैं उनको आने से न ीिं रोक सकती और न कोई ऐसा बतायव कर सकती ँू न्जससे व समझें कक मेरा आना इसको बुरा लगता ै। सच तो य ै कक पूणाय के दय में अब अमतृराय के र्लए पे्रम का अिंकुर जमने लगा था। यदयवप व अभी तक य ी समझती थी कक अमतृराय य ाँ दया की रा से आया करत े ै। मगर न ीिं मालूम क्यों व उनके आने का एक-एक हदन धगना करती। और जब इतवार आता तो सबेरे ी से उनके शुभगमन की तैयाररयाँ ोने लगती। बबल्लो बड़ ेपे्रम से सारा मकान साफ करती। कुर्सययािं और तस्वीरों पर से सात हदन की जमी ुई िूल-र्मटटी दरू करती। पूणाय खुद भी अच्छे और साफ कपड़ ेप नती। अब उसके हदल मे आप ी आप बनाव-र्सिंगार करने की इच्छा ोती थी। मगर हदल को रोकती। जब बाबू अमतृराय आ जात े तो उसका मर्लन मुख कुिं दन की तर दमकने लगता। उसकी प्यारी सूरत और भी अधिक प्यारी मालूम ोने लगती। जब तक बाबू सा ब र त ेउसे अपना घर भरा मालूम ोता। व इसी कोर्शश मे र ती कक ऐसी क्या बात करू न्जसमें व प्रसदन ोकर घर को जावें। बाबू सा ब ऐसे ँसमुख थे कक रोत े को भी एक बार ँसा देत।े य ाँ व खूब बुलबुल की तर च कत।े कोई ऐसी बात न क त े न्जससे पूणाय दखुखत ो।

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जब उनके चलने का समय आता तो व कुछ उदास ो जाती। बाब ूसा ब इसे ताड़ जात ेऔर पूणाय की खाततर से कुछ देर और बैठत।े इसी तर कभी-कभी घिंटों बीत जात।े जब हदया में बत्ती पड़ने की बेला आती तो बाबू सा ब चले जात।े पूणाय कुछ देर तक इिर-उिर बौखलाई ुई िूमती। जो जो बात े ुई ोती, उनको मन में दो राती। य समय उस आनिंददायक स्वप्न-सा जान पड़ता था जो ऑ िंख के खुलत े ी बबलाय जाता ै। इसी तर कई मास और बीत गये और आखखर जो बात अमतृराय के मन में थी व पूरी ो गयी। अथायत पूणाय को अब मालूम ोने लगा कक मेरे हदल में उनकी मु ब्बम समाती जाती ै। और उनका हदल भी मेरी मु ब्बत से खाली न ीिं। अब पूणाय प ले से ज्यादा उदास र ने लगी। ाय। ओ बौरे मन। क्या एक बार प्रीतत लगाने से तरेा जी न ीिं भरा जो तू कफर य रोग पाल र ा ै। तुझ ेकुछ मालूम ै कक इस रोग की औषधि क्या ै? जब तू य जानता ै तो कफर क्यो, ककस आशा पर य स्ने बढा र ा ै और बाबू सा ब। तुमको क्या क ना मिंजूर ै? तुम क्या करने पर आये ो? तुम् ारे जी में क्या ै? क्या तुम न ीिं जानत ेकक य अन्ग्न ििकेगी तो कफर बुझाये न बुझगेी? मुझसे ऐसा कौन-सा गुण ै? क ाँ की बड़ी सुिंदरी ँू जो तुम पे्रमा, प्यारी पे्रमा, तो त्यागे देत े ो? व बेर बेर मुझको बुलाती ै। तुम् ीिं बताओ, कौन मुँ लेकर उसके पास जाऊँ और तुम तो आग लगाकर दरू से तमाशा देखोगे। इसे बुझायेगा कौन?बेचारी पूणाय इद ीिं ववचारों में डूबी र ती। ब ुत चा ती कक अम़तराय का ख्याल न आने पावे, मगर कुछ बस न चलता। अपने हदल का पररचय उसको एक हदन यों र्मला कक बाबू अमतृराय तनयत समय पर न ीिं आये। थोड़ी देर तक तो व उनकी रा देखती र ी मगर जब व अब भी न आये तब तो उसका हदल कुछ मसोसने लगा। बड़ी व्याकुलता से दौड़ी ुई दीवाजे पर आयी और आि घिंटे तक कान लगाये खड़ी र ी, कफर भीतर आयी और मन मारकर बैठ गयी। धचत्त की कुछ व ी अवस्था ोने लगी जो पिंडडत जी के दौरे पर जाने के वक्त ुआ करती। शिंका ुई कक क ीिं बीमार तो न ीिं ो गये। म री से क ा—बबल्लो, जरा देखो तो बाबू सा ब का जी कैसा? न ीिं मालूम क्यों मेरा हदल बैठा जाता ै। बबल्लो लपकी ुई बाबू सा ब के बँगले पर प ँुची तो ज्ञात ुआ कक व आज दो तीन नौकरों को साथ लेकर बाजार गये ुए ै। अभी तक न ीिं आये। पुराना बूढा क ार आिी टाँगों

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तक िोती बाँिे सर ह लाता ुआ आया और क ने लगा—‘बेटा बड़ा खराब जमाना आवा ै। जार का सउदा ोय तो, दइु जार का सउदा ोय तो म ी लै आवत र ेन। आज खुद आप गये ै। भलाइतने बड़ ेआदमी का उस चा त र ा। बाकी कफर सब अिंगे्रजी जमाना आया ै। अँगे्रजी पढ-पढ के जउन न ो जाय तउन अचरज न ीिं। बबल्लो बूढे क र केसर ह लाने पर ँसती ुई घर को लौटी। इिर जब से व आयी थी पूणाय की ववधचत्र दशा ो र ी थी। ववकल ो ोकर कभी भीतर जाती, कभी बा र आती। ककसी तर चैन ी न आता। जान पड़ता कक बबल्लो के आने में देर ो र ी ै। कक इतने में जूत े ी आवाज सुनायी दी। व दौड़ कर दवार पर आयी और बाबू सा ब को ट लत े ुए पाया तो मानो उसको कोई िन र्मल गया। झटपट भीतर से ककवाढ खोल हदया। कुसी रख दी और चौखट पर सर नीचा करके खड़ी ो गयी। अमतृराय—बबल्लो क ीिं गयी ै क्या? पूणाय—(लजात े ुए) ाँ, आप ी के य ाँ तो गयी ै। अमतृराय—मेरे य ाँ कब गयी? क्यो कुछ जरूरत थी? पूणाय—आपके आने में ववलिंब ुआ तो मैने शायद जी न अच्छा ो। उसको देखने के र्लए भेजा। अमतृराय—(प्यार से देखकर) बीमारी चा े कैसी ी ो, व मुझ ेय ाँ आने से न ीिं रोक सकती। जरा बाजार चला गया था। व ाँ देर ो गयी। य क कर उद ोंने एक दफे जोर से पुकारा, ‘सुखई, अिंदर आओ’ और दो आदमी कमरे में दाखखल ुए। एक के ाथ मे ऐक सिंदकू था और दसूरे के ाथ में त ककये ुए कपड़।े सब सामान चौकी पर रख हदया गया। बाबू सा ब बोले—पूणा, मुझ ेपूरी आशा ै कक तुम दो चार मामूली चीजें लेकर मुझ ेकृताथय करोगी।( िंसकर) य देर मे आने का जुमायना ै। पूणाय अचम्भे में आ गई। य क्या। य तो कफर व ी स्ने बढाने वाली बातें ै। और इनको खरीदने के र्लए आप ी बाजार गये थे। अमतृराय। तुम् ारे हदल

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में जो ै व मै जानती ूिं। मेरे हदल में जो ै व तुम भी जानत े ो। मगर इसका नतीजा? इसमें सिंदे न ीिं कक इन चीजों की पूणाय को ब ुत जरूरत थी। पिंडडत जी की मोल ली ुई साररया अब तक लिंगे तिंगे चली थी। मगर अब प नने को कोई कपड़ ेन थे। उसने सोचा था कक अब की जब बाबू सा ब के य ा से मार्सक तनख्वा र्मलेगी तो मामूली साररयाँ मगा लूँगी। उसे य क्या मालूम था कक बीच में बनारसी और रेशमी साररयों का ढेर लग जायगा। पह ले तो व न्स्त्रयों की स्वाभाववक अत्यर्भलाषा से इन चीजों को देखने लगी मगर कफर य चते कर कक मेरा इस तर चीजो पर धगरना उधचत न ीिं ै व अलग ट गयी और बोली—बाबू सा ब। इस अनुग्र के र्लए मै आपको िदयवाद देती ँू, मगर य भारी-भारी जोड़ े मेरे ककस काम के। मेरे र्लए मोटी-झोरी साररयाँ चाह ए। मैं इद े प नूगी तो कोई क्या क ेगा। अमतृराय—तुमने ले र्लया। मेरी मे नत हठकाने लगी, और मै कुछ न ीिं जानता। इतने में बबल्लो प ँुची और कमरे में बाबू सा ब को देखत े ी तन ाल ो गयी। जब चौकी पर दृन्ष्ठ पड़ी और इन चीजों को देखा तो बोली—क्या इनके र्लए आप बाजार गये थे। बूढा क र रो र ा था कक मेरी दस्तूरी मारी गयी। अमतृराय—(दबी जबान से) व सब क ार मेरे नौकर ैं। मेरे र्लए बाजार से चीजें लात े ै। तुम् ारे सकायर का मै चाकर ँू। बबल्लो य सुनकर मुसकराती ुई भीतर चली गई। पूणाय के कान में भी भनक पड़ गयी थी। बोली—उलटी बात न कह ए। मैं तो खुद आपकी चरेरयो कीचरेी ँू। इसके बाद इिर-उिर की कुछ बातें ुई। माघ-पूस के हदन थे, सरदी खूब पड़ र ी थी। बाबू सा ब देर तक न बैठ सके और आठ बजत े बजत ेव अपने घर को र्सिारे। उनके चले जाने के बाद पूणाय ने जो सिंदकू खोला तो दिंग र गयी। न्स्त्रयो के र्सिंगार की सब सामधग्रयाँ मौजूद थीिं और जो चीज थी सुिंदर और उत्तम थी। आइना, किं घी, सुगिंधित तलेों की शीर्शयाँ, भाँतत’भातत के इत्र, ाथों के किं गन, गले का चिंद्र ार, जड़ाऊ, एक रूप ला पानदान, र्लखने पढने के सामान से भरी एक सिंदकूची, ककस्से-क ानी की ककतबों, इनके अततररक्त और भी ब ुत-सी चीजें बड़ी उत्तम रीतत से सजाकर िरी ुइ थी। कपड़ो का बेठन खोला तो अच्छी से अच्छी साररया हदखायी दी। शबयती, िानी,

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गुलाबी, उन पर रेशम के बेल बूट बने ुए। चादरे भारी सुन रे काम की। बबल्लो इन चीजो को देख-देख फूली न समाती थी। बोली—ब ू। य सब चीजें तुम प नोगी तो रानी ो जाओगी—रानी। पूणाय—(धगरी ुई आवाज में) कुछ भिंग खा गयी ो क्या बबल्लों। मै य चीजें प नँूगी तो जीती बचँूगी। चौबाइन और सेठानी ताने दे देकर जान ले लेगी। बबल्लो—ताने क्या देंगी, कोई हदल्ल्गी ै। इसमें उनके बाप का क्या इजारा। कोई उनसे मािंगने जाता ै। पूणाय ने म री को आश्चयय की ऑ िंखो से देखा। य ी बबल्लो ै जो अभी दो घिंटे प ले चौआइन और पडाइन से सम्मतत करती थी और मझु ेबेर-बेर प नने-ओढने से बजाय करती थी। यकायक य क्या कायापलट ो गयी। बोली—कुछ सिंसार के क ने की भी तो लाज ै। बबल्लो—मै य थोड़ा ी क ती ँू कक रदम य चीजें प ना करों। जब बाब ू सा ब आवें थोड़ी देर के र्लए प न र्लया। पूणाय(लजाकर)—य र्सिंगार करके मुझसे उनके सामने क्योंकर तनकला जायगा। तुम् ें याद ै एक बेर पे्रमा ने मेरे बाल गूँि हदये थे। तुमसे क्या क ँू। उस हदन व मेरी तरफ ऐसा ताकत ेथे जैसे कोई ककसी पर जाद ूकरे। न ीिं मालूम क्या बात ै कक उसी हदन से व जब कभी मेरी ओर देखत े ै तो मेरी छाती-िड़ िड करने लगती ै। मुझसे जान-बूझकर कफर ऐसी भूल न ोगी। बबल्लो—ब ू, उनकी मरजी ऐसी ी ै तो क्या करोगी, इद ीिं चीजों के र्लए कल व बाजार गये थे। सैकड़ो नौकर-चाकर ै मगर इद ें आप जाकर जाये। तुम इनको न प नोगी तो व अपने हदल में क्या क ेंगे। पूणाय—(ऑ िंखो में ऑ िंसू भरकर) बबल्लो। बाब ूअमतृराय न ीिं मालूम क्या करने वाले ै। मेरी समझ में न ीिं आता कक क्या करँू। व मुझसे हदन-हदन अधिक पे्रम बढात ेजात े ै और मैं अपने हदल को क्या क ँू, तुमसे क त ेलज्जा आती

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ै। व अब मेरे क ने में न ीिं र ा। मो ल्ले वाले अलग बदनाम कर र े ै। न जाने ईश्वर को क्या करना मिंजूर ै। बबल्लो ने इसका कुछ जवाब न हदया। पूणाय ने भी उस हदन खाना न बनाया। सािंझ ी से जाकर चारपाई पर लेट र ी। दसूरे हदन सुब को उठकर उसने व ककताबें पढना शुरू की, जो बाबू स ाब जाये थे। ज्यों-ज्यों व पढती उसको ऐसा मालूम ोता कक कोई मेरी ी दखु की क ानी क र ा ै। इनके पढने में जो जी लगा तो इतवार का हदन आया। हदन तनकलत े ी बबल्लो ने ँसकर क ा—आज बाबू सा ब के आने का हदन ै। पूणाय—(अनजान बनकर) कफर? बबल्लो—आज तुमको जरूर ग ने प नने पड़गेे। पूणाय—(दबी आवाज से) आज तो मेरे सर में पीड़ा ो र ी ै। बबल्लो—नौज, तुम् ारे बैरी का सर ददय करे। इस ब ाने से पीछा न छूटेगा। पूणाय—और जो ककसी ने मुझ ेताना हदया तो तु जानना। बबल्लो—ताना कौन राँड देगी। सबेरे ी से बबल्लो ने पूणाय का बनाव-र्सिंगार करना शुरू ककया। म ीनों से सर न मला गया था। आज सुगिंधित मसाले से मला गया, तले डाला गया, किं घी की गयी, बाल गूँथे गये और जब तीसरे प र को पूणाय ने गुलाबी कुती प नकर उस रेशमी काम की शबयती सारी प नी, गले मे ार और ाथों में किं गन सजाये तो सुिंदरता की मूततय मालूम ोने लगी। आज तक कभी उसने ऐसे रत्न जडड़त ग ने और ब ुमूल्य कपड़ ेन प ने थे। और न कभी ऐसी सुघर मालूम ुई थी। व अपने मुखारवव िंद को आप देख देख कुछ प्रसदन भी ोती थी, कुछ लजाती भी थी और कुछ शोच भी करती थी। जब साँझ ुई तो पूणाय कुछ उदास ो गयी। न्जस पर भी उसकी ऑ िंखे दरवाज ेपर लगी ुई थीिं और व चौंक कर ताकती थी कक क ीिं अमतृराय तो न ीिं आ गये। पाँच

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बजत ेबजत ेऔर हदनों से सबेरे बाबू अमतृराय आये। कमरे में बैठे, बबल्लो से कुशलानिंद पूछा और ललचायी ुई ऑ िंखो से अिंदर के दरवाजे की तरफ ताकने लगे। मगर व ाँ पूणाय न थीिं, कोई दस र्मनट तक तो उद ोंने चुपचाप उसकी रा देखी, मगर जब अब भी न हदखायी दी तो बबल्लो से पूछा—क्यो म री, आज तुम् ारी सकायर क ाँ ै? बबल्लो—(मुस्कराकर) घर ी में तो ै। अमतृराय—तो आयी क्यों न ीिं। क्या आज कुछ नाराज ै क्या? बबल्लो—( ूिंसकर) उनका मन जाने। अमतृराय—जरा जाकर र्लवा जाओ। अगर नाराज ों तो चलकर मनाऊँ। य सुनकर बबल्लो ँसती ुई अिंदर गई और पूणाय से बोली—ब ू, उठोगी या व आप ी मनाने आत े ै। पूणाय—बबल्लो, तुम् ारे ाथ जोड़ती ँू, जाकर क दो, बीमार ै। बबल्लो—बीमारी का ब ाना करोगी तो व डाक्टर को लेने चले जायगेॅ। पूणाय—अच्छा, क दो, सो र ी ै। बबल्लो—तो क्या व जगाने न आऍ िंगे? पूणाय—अच्छा बबल्लो, तुम ी केई ब ाना कर दो न्जससे मझु ेजाना न पड़।े बबल्लो—मैं जाकर क े देती ँू कक व आपको बुलाती ै। पूणाय को कोई ब ाना न र्मला। व उठी और शमय से सर झुकाये, घूघँट तनकाले, बदन को चुराती, लजाती, बल खाती, एक धगलौरीदान र्लये दरवाजे परआकर खड़ी ो गइ अमतृराय ने देखा तो अचम्भे में आ गये। ऑ िंखे चौधिया गयीिं।

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एक र्मनट तक तो व इस तर ताकत ेर े जैसे कोई लड़के खखलौने को देखे। इसके बाद मुस्कराकर बोले—ईश्वर, तू िदय ै। पूणाय—(लजाती ुई) आप कुशल से थे? अमतृराय—(ततछी तनगा ों से देखकर) अब तक तो कुशल से था, मगर अब खैररयत न ीिं नजर आती। पूणाय समझ गयी, अमतृराय की रिंगीली बातों का आनिंद लेत ेलेत ेव बोलने मे तनपुण ो गयी थी। बोली—अपने ककये का क्या इलाज? अमतृराय—क्या ककसी को अपनी जान से बैर ै। पूणाय ने लजाकर मुँ फेर र्लया। बाब ूसा ब ँसने लगे और पूणाय की तरफ प्यार की तनगा ों से देखा। उसकी रर्सक बातें उनको ब ुत भाइ, कुछ काल तक और ऐसी ी रस भरी बात े ोती र ीिं। पूणाय को इस बात की सधुि भी न थी कक मेरा इस तर बोलना चालना मेरे र्लए उधचत न ीिं ै। उसको इस वक्त न पिंडाइन का डर था, न पडोर्सयों का भय। बातों ी बातों में उसने मुसकराकर अमतृराय से पूछा—आपको आजकल पे्रमा का कुछ समाचार र्मला ै? अमतृराय—न ीिं पूणाय, मुझ ेइिर उनकी कुछ खबर न ीिं र्मली। ाँ, इतना जानता ँू कक बाबू दाननाथ से ब्या की बातचीत ो र ी ै। पूणाय—बाबू दाननाथ तो आपके र्मत्र ै? अमतृराय—र्मत्र भी ै और पे्रमा के योगय भी ै। पूणाय—य तो मै न मानूगी। उनका जोड़ ै तो आप ी से ै। ा, आपका ब्या भीतो क ीिं ठ रा था? अमतृराय— ाँ, कुछ बातचीत ो र ी थी।

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पूणाय—कब तक ोने की आशा ै? अमतृराय—देखे अब कब भाग्य जागता ै। मैं तो ब ुत जल्दी मचा र ा ँू। पूणाय—तो क्या उिर ी से खखिंचाव ै। आश्चयय की बात ै। अमतृ०—न ीिं पूणाय, मै जरा भाग्य ीन ँू। अभी तक र्सवाय बातचीत ोने के और कोई बात तय न ीिं ुई। पूणाय—(मुसकराकर) मुझ ेअवश्य नवता दीन्जएगा। अमतृराय—तुम् ारे ी ाथों में तो सब कु ै। अगर तुम चा ो तो मेरे सर से रा ब ुत जल्द बँि जाए। पूणाय भौचक ोकर अमतृराय की ओर देखने लगी। उनका आशय अब की बार भी व न समझी। बोली—मेरी तरफ से आप तनन्श्चत रह ए। मुझसे ज ाँ तक ो सकेगा उठा न रखूगँी। अमतृराय—इन बातों को याद रखना, पूणाय, ऐसा न ो भूल जाओ तो मेरे सब अरमान र्मटटी में र्मल जाऍ िं। य क कर बाबू अमतृराय उठे और चलत ेसमय पूणाय की ओर देखा। उसकी ऑ िंखे डबडबायी ुई थी, मानो ववनय कर र ी थी कक जरा देर और बैहठए। मगर अमतृराय को कोइ जरूरी काम था िीरे से उठ खड़ े ुए और बोले—जी तो न ी चा ता कक य ाँ से जाऊँ। मगर आज कुछ काम ी ऐसा आ पड़ा। य क ा और चल हदये। पूणाय खड़ी रोती र गई। ***

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9. तुम सचमुच जादगूर हो नौ बजे रात का समय था। पणूाय अँिेरे कमरे में चारपाई पर लेटी ुई करवटें बदल र ी ै और सोच र ी ै आखखर व मुझसे क्या चा ते ै? मै तो उनसे क चुकी कक ज ाँ तक मुझसे ो सकेगा आपका कायय र्सदव करने में कोई बात उठा न रखूगँी। कफर व मुझसे ककतना पे्रम बढात े ै। क्यों मेरे सर पर पाप की गठरी लादत े ै मै उनकी इस मो नी सूरत को देखकर बेबस ुई जाती ँू। मैं कैसे हदल को समझाऊ? व तो पे्रम रस पीकर मतवाला ो र ा ै। ऐसा कौन ोगा जो उनकी जादभूरी बातें सुनकर रीझ न जाय? ाय कैसा कोमल स्वभाव ै। ऑ िंखे कैसी रस से भरी ै। मानो दय में चुभी जाती ै। आज व और हदनों से अधिक प्रसदन थे। कैसा र र कर मेरी और ताकत ेथे। आज उद ोने मुझ ेदो-तीन बार ‘प्यारी पूणाय’ क ा। कुछ समझ में न ीिं आता कक क्या करनेवाले ै? नारायण। व मुझसे क्या चा त े ै। इस मो ब्बत का अिंत क्या ोगा। य ी सोचते-सोचत ेजब उसका ध्यान पररणाम की ओर गया तो मारे शमय के पसीना आ गया। आप ी आप बोल उठी। न......न। मुझसे ऐसा न ोगा। अगर य व्यव ार उनका बढता गया तो मेरे र्लए र्सवाय जान दे देने के और कोई उपाय न ीिं ै। मैं जरूर ज र खा लूँगी। न ी-न ीिं, मै भी कैसी पागल ो गयी ँू। क्या व कोई ऐसे वैसे आदमी ै। ऐसा सज्जन पुरूष तो सिंसार में न ोगा। मगर कफर य पे्रम मुझसे क्यों लगात े ै। क्या मेरी परीक्षा लेना चा ती ै। बाबू सा ब। ईश्चर के र्लए ऐसा न करना। मै तुम् ारी परीक्षा में पूरी न उतरँूगी। पूणाय इसी उिेड़-बुन मे पड़ी थी कक नीिंद आ गयी। सबेरा ुआ। अभी न ाने जाने की तैयारी कर र ी थी कक बाबू अमुतराय के आदमी ने आकर बबल्लो को

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जोर से पुकारा और उसे एक बिंद र्लफाफा और एक छोटी सी सिंदकूची देकर अपनी रा लगा। बबल्लो ने तुरिंत आकर पूणाय को य चीजें हदखायी। पूणाय ने काँपत े ुए ाथों से खत र्लया। खोला तो य र्लखा था— ‘प्राणप्यारी से अधिक प्यारी पूणाय। न्जस हदन से मैंने तुमको प ले प ल देखा था, उसी हदन से तुम् ारे रसीले नैनों के तीर का घायल ो र ा ँू और अब घाव ऐसा दखुदायी ो गया ै कक स ा न ीिं जाता। मैंने इस पे्रम की आग को ब ुत दबाया। मगर अब व जलन अस य ो गयी ै। पूणाय। ववश्वास मानो, मै तुमको सच्च ेहदल से प्यार करता ूिं। तुम मेरे दय कमल के कोष की मार्लक ो। उठत ेबैठत े तुम् ारा मुसकराता ुआ धचत्र आखों के सामने कफरा करता ै। क्या तुम मुझ पर दया न करोगी? मुझ पर तरस न खाओगी? प्यारी पूणाय। मेरी ववनय मान जाओ। मुझको अपना दास, अपना सेवक बना लो। मै तुमसे कोई अनुधचत बात न ीिं चा ता। नारायण। कदावप न ीिं, मै तुमसे शास्त्रीय रीतत पर वववा करना चा ता ँू। ऐसा वववा तुमको अनोखा मालूम ोगा। तुम समझोगी, य िोखे की बात ै। मगर सत्य मानो, अब इस देश में ऐसे वववा क ीिं क ीिं ोने लगे ै। मै तुम् ारे ववर में मर जाना पसिंद करँूगा, मगर तुमको िोखा न दूिंगा। ‘पूणाय। न ी मत करो। मेरी वपछली बातों को याद करो। अभी कल ी जब मैंने क ा कक ‘तुम चा ो तो मेरे सर ब ुत जल्द से रा बँि सकता ै।‘ तब तुमने क ा था कक ‘मै भर शन्क्त कोई बात उठा न रखूगँी। अब अपना वादा पूरा करो। देखो मुकर मत जाना। ‘इस पत्र के साथ मैं एक ज ाऊ किं गन भेजता ू। शाम को मैं तुम् ारे दशयन को आऊँगा। अगर य किं गन तुम् ारी कलाई पर हदखाइ हदया तो समझ जाऊँगा कक मेरी ववनय मान ली गयी। अगर न ीिं तो कफर तुम् ें मुँ न हदखाऊँगा। तुम् ारी सेवा का अर्भलाषी अमतृराय।

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पूणाय ने बड़ ेगौर से इस खत को पढा और शोच के अथा समुद्र में गोत ेखाने लगी। अब य गुल खखला। म ापुरूष ने व ाँ बैठकर य पाखिंड रचा। इस िूमयपन को देखो कक मुझसे बेर बेर क त े थे कक तुम् ारे ी ऊपर मेरा वववा ठीक करने का बोझ ै, मै बौरी क्या जानँू कक इनके मन में क्या बात समायी ै। मुझसे वववा का नाम लेत ेउनको लाज न ीिं ोती। अगर सु ाधगन बनना भाग में बादा ोता तो वविवा का े ोती। मै अब इनको क्या जवाब दूँ। अगर ककसी दसूरे आदमी ने य गाली र्लखी ोती तो उसका कभी मु ँ न देखती। मैं क्या सखी पे्रमा से अच्छी ँू? क्या उनसे सुिंदर ँू?क्या उनसे गुणवती ँू? कफर य क्या समझकर ऐसी बात ेर्लखत े ै? वववा करेगे। मै समझ गयी जैसा वववा ोगा। क्या मुझ ेइतनी भी समझ न ीिं? य सब उनकी िूतयपन ै। व मुझ े अपने घर रक्खा चा त े ैं। मगर ऐसा मुझसे कदावप न ोगा। मै तो इतना ी चा ती ँू कक कभी-कभी उनकी मो नी मूरत का दशयन पाया करँू। कभी-कभी उनकी रसीली बततयाँ सुना करँू और उनका कुशल आनिंद, सुख समाचार पाया करँू। बस। उनकी पत्नी बनने के योग्य मै न ीिं ँू। क्या ुआ अगर दय में उनकी सूरत जम गयी ै। मै इसी घर में उनका ध्यान करत ेकरत ेजान दे दूँगी। पर मो के बस केआकर मुझसे ऐसा भारी पाप न ककया जाएगा। मगर इसमें उन बेचारे का दोष न ीिं ै। व भी अपने हदल से ारे ुए ै। न ीिं मालूम क्यों मुझ अभाधगनी में उनका पे्रम लग गया। इस श र में ऐसा कौन रईस ै जो उनको लड़की देने में अपनी बड़ाई न समझ।े मगर ईश्वर को न जाने क्या मिंजूर था कक उनकी प्रीतत मुझसे लगा दी। ाय। आज की साँझ को व आएगे। मेरी कलाई पर किं गन न देखेगे तो हदल मे क्या क ेंगे? क ीिं आना-जाना त्याग दें तो मै बबन मारे मर जाऊँ। अगर उनका धचत्त जरा भी मेरी ओर से मोटा ुआ, तो अवश्य ज र खा लूगीॉँ। अगर उनके मन में जरा भी माख आया, जरा भी तनगा बदली, तो मेरा जीना कहठन ै। बबल्लो पूणाय के मुखड़ ेका चढाव-उतार बड़ ेगौर से देख र ी थी। जब व खत पढ चुकी तो उसने पूछा—क्या र्लखा ै ब ू? पूणाय—(मर्लन स्वर में) क्या बताऊँ क्या र्लखा ै?

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बबल्लो—क्यो कुशल तो ै? पूणाय— ाँ, सब कुशल ी ै। बाबू सा ब ने आज नया स्वाँग रचा। बबल्लो—(अचिंभे से) व क्या? पूणाय—र्लखत े ै कक मुझसे...... उससे और कुछ न क ा गया। बबल्लो समझ गयी। मगर व ीिं तक प ुची ज ाँ तक उसकी बुदवव ने मदद की। व अमतृराय की बढती ुई मु ब्बत को देख-देखकर हदल में समझ ेबैठी ुई थी कक व एक न एक हदन पूणाय को अपने घर अवश्य डालेगे। पूणाय उनको प्यार करती ै, उन पर जान देती ै। व प ले ब ुत ह चककचायगी मगर अिंत मे मान ी जायगी। उसने सैकडो रईसों को देखा था कक नाइनों क ाररयो, म रान्जनों को घर डाल र्लया था। अब की भी ऐसा ी ोगा। उसे इसमें कोई बात अनोखी न ीिं मालूम ोती थी कक बाबू सा ब का पे्रम सच्च ै मगर बेचारे र्सवाय इसके और कर ी क्या सकत े ै कक पूणाय को घर डाल लें। देखा चाह ए कक ब ू मानती ै या न ीिं। अगर मान गयीिं तो जब तक न्जयेगे, सुख भोगेगी। म ैभी उनकी सेवा में एक टुकड़ा रोटी पाया करँूगी और जो क ीिं इनकार ककया तो ककसी का तनबा न ोगा। बाबू सा ब ी का स ारा ठ रा। जब व ी मुँ मोड़ लेंगे तो कफर कौन ककसको पूछता ै। इस तर ऊँच-नीच सोचकर उसने पूणाय से पूछा-तुम क्या जवाब दो दोगी? पूणाय-जवाब ऐसी बातों का भी भल क ीिं जवाब ोता ै। भला वविवाओिं का क ीिं ब्या ुआ ै और व ी भी ब्रह्ममण का क्षबत्रय से। इस तर की चदद क ातनयािं मैंने उन ककताबो में पढी जो व मुझ ेदे गये ै। मगर ऐसी बात क ीिं सैतुक न ीिं देखने आयी। बबल्लो समझी थी कक बाबू सा ब उसको घर डरानेवाले ै। जब ब्या का नाम सुना तो चकरा कर बोली-क्या ब्या करने को क त े ै?

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पूणाय- ाँ। बबल्लों—तुमसे? पूणाय-य ी तो आश्चयय ै। बबल्लो—अचराज सा अचरज ैं भला ऐसी क ीिं भया ै। बालक पक गये मगर ऐसा ब्या न ीिं देखा। पूणाय-बबल्लो, य सब ब ाना ै। उनका मतलब मैं समझ गयी। बबल्लो-व तो खुली बात ै। पूणाय—ऐसा मुझसे न ोगा। मैं जान दे दूँगी पर ऐसा न करँगी। बबल्लो—ब ू उनका इसमें कुछ दोष न ीिं ै। व बेचारे भी अपने हदल से ारे ुए ैं। क्या करें। पूणाय— ाँ बबल्लों, उनको न ीिं मालूम क्यों मुझसे कुछ मु ब्बत ो गयी ै और मेरे हदल का ाल तो तुमसे तछपा न ीिं। अगर व मेरी जान माँगत ेतो मैं अभी दे देती। ईश्वर जानता ै, उनके ज़रा से इशारे पर मैं अपने को तनछावर कर सकती ँू। मगर जो बात व चा त े ै मुझसे न ोगी। उसके सोचती ँू तो मेरा कलेजा काँपने लगता ै। बबल्लो— ाँ, बात तो ऐसा ी ै मुदा... पूणाय-मगर क्या, भलेमानुसो में ऐसा कभी ोता ी न ीिं। ाँ, नीच जाततयों में सगाई, डोला सब कुछ आता ै। बबल्लो—ब ू य तो सच ै। मगर तुम इनकार करोगी तो उनका हदल टूट जायेगा।

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पूणाय—य ी डर मारे डालता ै। मगर इनकार न करँ तो क्या करँ। य तो मैं भी जानती ँू कक व झूठ-सच ब्या कर लेंगे। ब्या क्या कर लेंगे। ब्या क्या करेंगे, ब्या का नाम करेंगे। मगर सोचो तो दतूनया क्या क ेगी। लोग अभी से बदनाम कर र े ै, तो न जाने और क्या-क्या आक्षेप लगायेंगे। मैं सखी पे्रमा को मुँ हदखाने योग्स न ीिं र ँूगी। बस य ी एक उपाय ै कक जान दे दूँ, न र बाँस न बजें बाँसुरी। उनको दो-चार हदन तक रिंज र ेगा, आखखर भूल जाऐिंगे। मेरी तो इज्ज़त बच जायगी। बबल्लो—(बात पलट कर) इस सददकूच ेमे’ क्या ै? पूणाय-खोल कर देखो। बबल्लो ने जो उसे खोला तो एक कीमती किं गन री मखमल में लपेटकर िरा था और सदकू में सिंदल की सगुिंि आ र ी थी। बबल्लो ने उसको तनकाल र्लया और चा ा की पूणाय के थ खीिंच र्लया और ऑ िंखों में ऑ िंसू भर कर बोली—मत बबल्लो, इसे मत प नाओ। सददकू में बिंद करके रख दो। बबल्लों—ज़रा प नो तो देखो कैसा अच्छा मालूम ोता ै। पूणाय—कैसे प नँू। य तो इस बात का सूचक ो जाएगा कक उनकी बात मिंजूर ै। बबल्लो-क्या य भी इस चीठी में र्लखा ै? पूणाय— ाँ, र्लखा ै कक मैं आज शाम को आऊँगा और अगर कलाई पर किं गन देखूगँा तो समझ जाऊँगा कक मेरी बात मिंजूर ै। बबल्लो—क्या आज ी शाम को आऍ िंगे? पूणाय— ाँ।

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य क कर पूणाय ने र्सर नीचा कर र्लया। न ाने कौन जाता ै। खाने पीने की ककसको सुि ै। दोप र तक चुपचाप बैठी सोचा की। मगर हदल ने कोई बात तनणयय न की ाँ, -ज्यों-ज्यों साँझ का समय तनकट आया था त्यों-त्यों उसका हदल िड़कता जाता था कक उनके सामने कैसे जाऊँगी। व मेरी कलाई पर किं गन न देखगें तो क्या क ेंगे? क ीिं रठ कर चले न जाय?ँ व क ीिं ररसा गये तो उनको कैसे मनाऊँगी?मगर तबबय ता कायदा ै कक जब कोई बात उसको अतत लौलीन करनेवाली ोती ै तो थोड़ी देर के बाद व उसे भागने लगती ै। पूणाय से अब सोचा भी न जाता था। माथे पर ाथ घरे मौन सािे धचदता की धचत्र बनी दीवार की ओर ताक र ी थी। बबल्लो भी मान मारे बैठी ुई थी। तीन बजे ोंगे कक यकायक बाबू अमतृराय की मानूस आवाज़ दरवाजे पर बबल्लो पुकरात ेसुनायी दी। बबल्लो चट बा र दौड़ी और पूणाय जल्दी से अपनी कोठरी में घुस गयी कक दवाज़ा भेड़ र्लया। उसका हदल भर आया और व ककवाड़ से धचमट कर फूट-फूट रोने लगी। उिर बाबू सा ब ब ुत बेचैन थे। बबल्लो ज्यों ी बा र तनकली कक उद ोंने उसकी तरफ़ आस-भरी ऑ िंखों से देखा। मगर जब उसके च ेरे पर खुशी का कोई धचह्न न हदखायी हदया तो व उदास ो गये और दबी आवाज़ में बोली—म री, तुम् ारी उदासी देखकर मेरा हदल बैठा जाता ै। बबल्लो ने इसका उत्तर कुछ न हदया। अमतृराय का माथा ठनका कक जरर कुछ गड़बड़ ो गयी। शायद बबगड़ गयी। डरते-डरत ेबबल्लो से पूछा—आज मार आदमी आया था? बबल्लो ा आया था। अमतृराय—कुछ दे गया? बबल्लो—दे क्यों न ीिं गया। अमतृराय तो क्या ुआ? उसको प ना?

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बबल्लो— ाँ, प ना अरे ऑ िंख भर के देखा तो ूई न ीिं। तब से बैठी रो र ी ै। न खाने उठी, न गिंगा जी गयी। अमतृराय—कुछ क ा भी। क्या ब ुत खफ़ा ै? बबल्लो—क तीिं क्या? तभी से ऑ िंसू का तार न ीिं टूटा। अमतृराय समझ गये कक मेरी चाल बुरी पड़ी। अभी मुझ ेकुछ हदन और िीरज रखना चाह ए था। व जरर बबगड़ गयीिं। अब क्या करँ? क्या अपना-सा मुँ ले के लौट जाऊँ? या एक दफा कफर मुलाकात कर लूँ तब लौट जाऊँ कैसे लौटँू। लौटा जायगा? ाय अब न लौटा जायगा। पूणाय तू देखने में ब ुत सीिी और भोली ै, परदतु तरेा हृदय ब ुत कठोर ै। तूने मेरी बातों का ववश्वास न ीिं माना तू समझती ै मैं तुझसे कपट कर र ा ँू। ईश्वर के र्लए अपने मन से य शिंका तनकाल डाल। मैं िीरे-िीरे तरेे मो में कैसा जकड़ गया ँू कक अब तरेे बबना जीना कहठन ै। प्यारी जब मैंने तुझसे प ल बातचीत की थी तो मुझ ेइसकी कोई आशा न थी कक तुम् ारी मीठी बातों और तुम् ारी मदद मुस्कान का ज़ाद ूमुझ पर ऐसा चल जायगा मगर व जाद ूचल गया। और अब र्सवाय तुम् ारे उसे और कौन अतार सकता ै। न ीिं, मैं इस दरवाज़े से कदावप न ीिं ह लूँगा। तुम नाराज़ ोगी। झल्लाओगी। मगर कभी न कभी मुझ पर तरस आ ी जायगा। बस अब य ी करना उधचत ै । मगर देखी प्यारी, ऐसा न करना कक मुझसे बात करना छोड़ दो। न ीिं तो मेरा क ीिं हठकाना न ीिं। क्या तुम मसे सचमुच नाराज़ ो। ाय क्या तुम प रों से इसर्लए रो र ी ो कक मेरी बातों ने तुमको दखु हदया। य बातें सोचते-सोचत ेबाबू सा ब की ऑ िंखों में ऑ िंसू भर आये और उद ोंने गदगद स्वर में बबल्लो से क ा—म री, ो सके तो ज़रा उनसे मेरी मुलाकात करा दो। क दो एक दम के र्लए र्मल जायें। मुझ पर इतनी कृपा करो। म री ने जो उनकी ऑ िंखें लाल देखीिं तो दौड़ ुई घर में आयी पूणाय के कमरे में ककवाड़ खटखटाकर बोली---ब ू, क्या गज़ब करती ो, बा र तनकलो, बेचारे खड़ ेरो र े ैं।

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पूणाय ने इरादा कर र्लया था कक मैं उनके सामने कदावप न जाऊँगी। व म री से बातचीत करके आप ी चले जायगेँ। मगर जब सुना कक रो र े ै तो प्रततज्ञा टूट गयी। बोली—तुमन जा के क्या क हदया? म री—मैंन तो कुछ भी न ीिं क ा। पूणाय से अब न र ा गया। चट ककवाड़ खोल हदये। और कापँती ुई आवाज़ से बोली-सच बतलाओ बबल्लो, क्या ब ुत रो र े ै? म री-नारायण जाने, दोनों ऑ िंखें लाल टेसू ो गयी ैं। बेचारे बैठे तक न ीिं। उनको रोत ेदेखकर मेरा भी हदल भर आया। इतने में बाबू अमतृराय ने पुकार कर क ा—बबल्लो, मैं जाता ँू। अपनी सकायर से क दो अपराि क्षमा करें। पूणाय ने आवाज़ सुनी। व एक ऐसे आदमी की आवाज़ थी जो तनराशा के समुद्र में डूबता ो। पूणाय को ऐसा मालूम ुआ जैसे उसके हृदय को ककसी ने छेद हदया। ऑ िंखों से ऑ िंसू की झड़ी लग गयी। बबल्लों ने क ा—ब ू, ाथ जोड़ती ँू, चली चलो न्जसमें उनकी भी खाततरी ो जाए। य क कर उसने आप से उठती ुई पूणाय का ाथ पकड़ कर उठाया और व घूघँट तनकाल कर, ऑ िंसू पोंछती ुई, मदायने कमरे की तरफ चली। बबल्लो ने देखा कक उसके ाथों में किं गन न ीिं ै। चट सददकूची उठा लायी और पूणाय का ाथ पकड़ कर चा ती थी कक किं गन वपद ा दे। मगर पूणाय ने ाथ झटक कर छुड़ा र्लया और दम की दम में बैठक के भीतर दरवाज़े पर आके खड़ी रो र ी थी। उसकी दोनों ऑ िंखें लाल थी और ताजे ऑ िंसुओ की रेखाऍ िं गालों पर बनी ुई थी। पूणाय ने घूघँट उठाकर पे्रम-रस से भरी ुई ऑ िंखों से उनकी ओर ताका। दोनों की ऑ िंखें चार ुई। अमतृराय बेबस ोकर बढे। र्ससकती ुई पूणाय का ाथ पकड़ र्लया और बड़ी दीनता से बोले—पूणाय, ईश्वर के र्लए मुझ पर दया करो।

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उनके मुँ से और कुछ न तनकला। करणा से गला बँि गया और व सर नीचा ककये ुए जवाब के इन्दतजार में खड़ा ो गये। बेचारी पूणाय का िैयय उसके ाथ से छूट गया। उसने रोत-ेरोत े अपना सर अमतृराय के किं िे पर रख हदया। कुछ क ना चा ा मगर मुँ से आवाज़ न तनकली। अमतृराय ताड़ गये कक अब देवी प्रसदन ो गयी। उद ोंने ऑ िंखों के इशारे से बबल्लो से किं गन मँगवाया। पूणाय को िीरेस कुसी पर बबठा हदया। व जरा भी न खझझकी। उसके ाथों में किं गन वपद ाये, पूणाय ने ज़रा भी ाथ न खीिंचा। तब अमतृराय न सा सा करके उसके ाथों को चूम र्लया और उनकी ऑ िंखें पे्रम से मग्न ोकर जगमगाने लगीिं। रोती ुई पूणाय ने मो ब्बत-भरी तनगा ों से उनकी ओर देखा और बोली—प्यार अमतृराय तुम सचमुच जादगूर ो। ***

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10. वववाह हो गया य ऑ िंखों देखी बात ै कक ब ुत करके झुठी और बे-र्सर परै की बातें आप ी आप फैल जाया करती ै। तो भला न्जस बात में सच्चाई नाममात्र भी र्मली ो उसको फैलत ेककतनी देर लगती ै। चारों ओर य ी चचाय थी कक अमतृराय उस वविवा ब्राह्मणी के घर ब ुत आया जाया करता ै। सारे श र के लोग कसम खाने पर उदयत थे कक इन दोनों में कुछ साँठ-गाँठ जरर ै। कुछ हदनों से पिंडाइन औरचौबाइन आहद ने भी पूणाय के बनाव-चुनाव पर नाक-भौं चढाना छोड़ हदया था। क्योंकक उनके ववचार में अब व ऐसे बदिनों की भागी थी। जो लोग ववदवान थे और ह ददसु्तान के दसूरे देशों के ाल जानत ेथे उनको इस बात की बड़ी धचदता थी कक क ीिं य दोनों तनयोग न करे लें। ज़ारों आदमी इस घात मे थे कक अगर कभी रात को अमतृराय पूणाय की ओर जात े पकड़ े जाय ँ तो कफर लौट कर घर न जाने पावें। अगर कोई अभी तक अमतृराय की नीयत की सफाई पर ववश्वास रखता था तो व पे्रमा थी। व बेचारी ववरा न्ग्न में जलते-जलत ेकाँटा ो गई थी, मगर अभी तक उनकी मु ब्बत उसके हदल में वैसी ी बनी ुई थी। उसके हदल में कोई बैठा ुआ क र ा था कक तरेा वववा उनसे अवश्य ोगौ। इसी आशा पर उसके जीवन का आिार था। व उन लोगों में थी जो एक ी बार हदल का सौदा चुकात े ै। आज पूणाय से वचन लेकर बाबू सा ब बँगले पर प ँुचने भी न पाये थे कक य ख़बर एक कान से दसूरे कान फैलने लगी और शाम ोत-े ोत ेसारे श र में य ी बात गूँजने लगी। जो कोई सुनता उसे प ले तो ववश्वास न आता। क्या इतने मान-मयायदा के ईसाई ो गये ैं, बस उसकी शिंका र्मट जाती। व उनको गार्लयाँ देता, कोसता। रात तो ककसी तर कटी। सवेरा ोत े ी मुिंशी बदरीप्रसाद के मकान पर सारे नगर के पिंडडत, ववदवान ध्नाढय और प्रततन्ष्ठत लोग एकत्र ुए और इसका ववचार ोने लगा कक य शादी कैसे रोकी जाय। पिंडडत भगृुदत्त—वविवा वववा वन्जयत ैं कोई मसे शास्त्रथय कर ले। वेदपुराण में क ीिं ऐसा अधिकार कोई हदखा दे तो म आज पिंडडताई करना छोड़ दें।

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इस पर ब ुत से आदमी धचल्लाये, ाँ, ाँ, जरर शास्त्राथय ो। शास्त्रथय का नाम सुनत े ी इिर-उिर से सैकड़ों पिंडडत ववदयाथी बगलों में पोधथयािं दबाये, र्सर घुटाये, अँगोछा कँिे पर रक्खे, मुँ में तमाकू भरे, इकटे्ट ो गये और झक-झक ोने लगी कक ज़रर शास्त्रथय ो। प ले य श्लोक पूछा जाय। उसका य उत्तर दें तो कफर य प्रश्न ककया जावे। अगर उत्तर देने में व लोग साह त्य या व्याकरण में ज़रा भी चूके तो जीत मारे ाथ ो जाय। सैंकड़ों कठमुल्ले गँवार भी इसी मण्डली में र्मलकर कोला ल मचा र े थे। मुँशी बदरीप्रसाद ने जब इनको शास्त्राथय करने पर उतार देखा तो बोले—ककस से करोगे शास्त्राथय? मान लो व शास्त्राथय न करें तब? सेठ िूनीमल—बबना शास्त्राथय ककये वववा कर लेगें (िोती सम् ाल कर) थाने में रपट कर दूँगा। ठिं कुर जोरावर र्सिं —(मोछों पर ताव देकर) कोई ठट्ठा ै ब्या करना, र्सर काट डालूँगा। लो ू की नदी ब जायगी। राव सा ब—बारता की बारात काट डाली जायगी। इतने में सैकड़ों आदमी और आ डटे। और आग में ईिन लगाने लगे। एक—ज़रर से ज़रर र्सर गिंजा कर हदया जाए। दसूरा—घर में आग लगा देंगे। सब बारात जल-भुन जायगी। तीसरा—प ले उस यात्री का गला घोंट देंगे। इिर तो य रबोंग मचा ुआ था, उिर दीवानखाने में ब ुत से वकील और मुखतार रमझल्ला मचा र े थे। इस वववा को दयाय ववरद्ध साबबत करने के र्लए बड़ा उदयोग ककया जा र ा था। बड़ी तजे़ी से मोटी-मोटी पुस्तकों के वरक उलटे जा र े थे। बरसों की पुरानी-िुरानी नज़ीरे पढी जा र ी थी कक क ीिं से कोई दाँव-पकड़ तनकल आवे। मगर कई घण्टे तक सर ख़पाने पर कुछ

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न ो सका। आखखर य सम्मतत ुई कक प ले ठाकुर ज़ोरावर र्सिं अमतृराय का िमकावें। अगर इस पर भी व न मानें तो न्जस हदन बारात तनकले सड़क पर मारपीट की जाय। इस प्रस्ताव के बाद न मानों तो ववसजयन ुई। बाबू अमतृराय बया की तैयाररयों में लगे ुए थे कक ठाकुर ज़ोरावर र्सिं का पत्र प ँुचा। उसमें र्लखा था— ‘बाबू अमतृराय को ठाकुर ज़ोरावर र्सिं का सलाम-बिंदगी ब ुत-ब ुत तर से प ँुच।े आगे मने सुना ै कक आप ककसी वविवा ब्राह्मणी से वववा करने वाले ै। म आपसे क े देत े ैं कक भूल कर भी ऐसा न कीन्जएगा। न ीिं तो आप जाने और आपका काम।’ ज़ोरावर र्सिं एक िनाढय और प्रततन्ष्ठत आदमी ोने के उपरादत उस श र के लठैंतों और बाँके आदर्मयों का सरदार था और कई बेर बड़े-बड़ों को नीचा हदखा चुका था। असकी िमकी ऐसी न थी कक अमतृराय पर उसका कुछ असर न पड़ता। धचट्ठी को देखत े ी उनके च ेरे का रिंग उड़ गया। सोचना लगे कक ऐसी कौन-सी चाल चलूँ कक इसको अपना आदमी बना लूँ कक इतने में दसूरी धचट्ठी प ँुची। य गुमनाम थी और सका आशा भी प ली धचट्ठी से र्मलता था। इसके बाद शाम ोते- ोत ेसैंकड़ो गुमनाम धचहट्टयाँ आयीिं। कोई की क ता था कक अगर कफर ब्या का नाम र्लया तो घर में आग लगा देंगे। कोई सर काटने की िमकी देता था। कोई पेट में छुरी भोंकने के र्लए तैयार था। और कोई मूँछ के बात उखाड़ने के र्लए चुटककयाँ गमय कर र ा था। अमतृराय य तो जानत े कक श रवाले ववरोि अवश्य करेंगे मगर उनको इस तर की राड़ का गुमान भी न था। इन िमककयों ने ज़रा देर के र्लए उद ें भय में डाल हदया। अपने से अधिक खटका उनको पूणाय के बारे में था कक क ीिं य ी सब दषु्ट उसे न कोई ातन प ँुचावें। उसी दम कपड़ ेपह न, पैरगाड़ी पर सवािंर ोकर चटपट मन्जस्रेट की सेवा में उपन्स्थत ुए और उनसे पूरा-पूरा वतृ्तादत क ा। बाबू सा ब का अिंग्रेंजों में ब ुत मान था। इसर्लए न ीिं कक व खुशामदी थे या अफसरों की पूजा ककया करत ेथे ककदतु इसर्लए कक व अपनी मयायदा रखना आप जानत ेथे। सा ब ने उनका बड़ा आदर ककया। उनकी बातें बड़ े ध्यान से सुनी। सामान्जक सिुार की आवश्कता को माना और पुर्लस के सुपररण्टेण्डटे को र्लखा कक आप अमतृराय की रक्षा के वास्त ेएक गारद रवाना कीन्जए और ख़बर लेत ेरह ए कक मारपीट, खूनखराब न ो जाय। साँझ

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ोते— ोत ेतीस र्सपाह यों का एक गारद बाबू सा ब के मकान पर प ँुच गया, न्जनमें से पाँच बलवान आदमी पूणाय के मकान की ह फ़ाजत करने के र्लए भेज गये। श रवालों ने जब देखा कक बाबू सा ब ऐसा प्रबदि कर र े ै तो और भी झल्लाये। मुिंशी बदरीप्रसाद अपने स ायकों को लेकर मन्जस्रेट के पास प ँुच ेऔर द ुाई मचाई कक अगर व वववा रोक न हदया गया तो श र में बड़ा उपद्रव ोगा और बलवा ो जाने का डर ैं। मगर सा ब समझ गये कक य लोग र्मलजुल कर अमतृराय को ातन प ँुचाया चा त े ैं। मुिंशी जी से क ा कक सकायर ककसी आदमी की शादी-वववा में ववघ्न डालना तनयम के ववरद्ध ै। जब तक कक उस काम से ककसी दसूरे मनुष्य को कोई दखु न ो। य टका-सा जवाब पाकर मुिंशी जी ब ुत लन्ज्जत ुए। व ाँ से जल-भुनकर मकान पर आये और अपने स ायकों के साथ बैठकर फैसला ककया कक ज्यों ी बारात तनकले, उसी दम पचास आदमी उस पर टूट पड़ें। पुर्लसवालों की भी खबर लें और अमतृराय की भी ड्डी-पसली तोड़कर िर दें। बाबू अमतृराय के र्लए य समय ब ुत नाजु क था। मगर व देश का ह तैषी तन-मन-िन से इस सुिार के काम में लगा ुआ था। वववा का हदन आज से एक सप्ता पीछे तनयत ककया गया। क्योंकक ज्यादा ववलम्ब करना उधचत न था और य सात हदन बाबू सा ब ने ऐसी ैरानी में काटे कक न्जसक वणयन न ीिं ककया जासकात। प्रततहदन व दो कािंस्टेबबलों के साथ वपस्तौलों की जोड़ी लगयो दो बेर पूणाय के मकान पर आत।े व बेचारी मारे डर के मरी जाती थी। व अपने को बार-बार कोसती कक मैंने क्यों उनको आशा हदलाकर य जोखखम मोल ली। अगर इन दषु्टों ने क ीिं उद ें कोई ातन प ँुचाई तो व मेरी ी नादानी का फल ोगा। यदयवप उसकी रक्षा के र्लए कई र्सपा ी तनयत थे मगर रात-रात भर उसकी ऑ िंखों में नीिंद न आती। पत्ता भी खड़कता तो चौंककर उठ बैठती। जब बाबू सा ब सबेरे आकर उसको ढारस देत ेतो जाकर उसके जान में जान आती। अमतृराय ने धचहट्टयाँ तो इिर-उिर भेज ी दी थीिं। वववा के तीन-चार हदन प ले से मे मान आने लगे। कोई मुम्बई से आता था, कोई मदरास से, कोई पिंजाब से और कोई बिंगाल से। बनारस में सामान्जक सिुार के ववराधियों

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का बड़ा ज़ोर था और सारे भारतवषय के ररफ़मयरों के जी में लगी ुई थी कक चा े जो ो, बनारस में सुिार के चमत्कार फैलाने का ऐसा अपूवय समय ाथ से न जाने देना चाह ए, व इतनी दरू-दरू से इसर्लए आत ेथे कक सब काशी की भूर्म में ररफामय की पताका अवश्य गाड़ दें। व जानत ेथे कक अगर इस श र में य वववा ो तो कफर इस सूबें के दसूरे श रों के ररफामयरों के र्लए रास्ता खुल जायगा। अमतृाराय मे मानों की आवभगत में लगे ुए थे। और उनके उत्सा ी चलेे साफ-सुथरे कपड़ ेप ने स्टेशन पर जा-जाकर मे मानों को आदरपूवयक लात े और उद ें सजे ुए कमरों में ठ रात ेथे। वववा के हदन तक य ाँ कोई डढे सौ मे मान जमा ो गये। अगर कोई मनुष्य सारे आयायवतय की सभ्यता, स्वतिंत्रता, उदारता और देशभन्क्त को एकबत्रत देखना चा ता था तो इस समय बाबू अमतृराय के मकान पर देख सकता था। बनारस के पुरानी लकीर पीटने वाले लोग इन तैयाररयों और ऐसे प्रततन्ष्ठत मे मानों को देख-देख दाँतों उँगली दबात।े मुिंशी बदरीप्रसाद और उनके स ायकों ने कई बेर िूम-िाम से जनसे ककये रबेर य ी बात तय ुई कक चा े जो मारपीट ज़रर की जाय। वववा क प ले शाम को बाबू अमतृराय अपने साधथयों को लेकर पूणाय के मकान पर प ँुच ेऔर व ाँ उनको बराततयों के आदर-सम्मान का प्रबिंि करने के र्लए ठ रा हदया। इसके बाद पूणाय के पास गये। इनको देखत े ी उसकी ऑ िंखें में ऑ िंसू भर आये। अमतृ—(गले से लगाकर) प्यारी पूणाय, डरो मत। ईश्वर चा ेगा तो बैरी मारा बाल भी ब िंका न करा सकें । कल जो बरात य ाँ आयेगी वैसी आज तक इस श र मे ककसी के दरवाज़े पर न आयी ोगी। पूणाय—मगर मैं क्या करँ। मुझ ेमो मालूम ोता ै कक कल जरर मारपीट ोगी। चारों ओर से य खबर सुन-सुन मेरा जी आिा ो र ा ै। इस वक्त भी मुिंशी जी के य ाँ लाग जमा ैं। अमतृ—प्यारी तुम इन बातों को ज़रा भी ध्यान में न लाओिं। मुिंशी जी के य ाँ तो ऐसे जलसे म ीनों से ो र े ैं और सदा ुआ करेंगे। इसका क्या डर। हदल को मजबूत रक्खो। बस, य रात और बीच ै। कल प्यारी पूणाय मेरे घर पर ोगी। आ व मेरे र्लए कैसे आदनद का समय ोगा।

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पूणाय य सुनकर अपना डर भूल गयी। बाबू सा ब को प्यारी की तनगा ों से देखा और जब चलने लगे तो उनके गले से र्लपट कर बोली—तुमको मेरी कसम, इन दषु्टों से बच ेर ाना। अमतृराय ने उसे छाती से लगा र्लया और समझा-बुझाकर अपने मकान को रवाना ुए। प र रात गये, पूणाय के मकान पर, कई पिंडडत रेश्मी बाना सजे, गले में फूलों का ार डाले आये ववधिपूवयक लक्ष्मी की पूजा करने लगे। पूणाय सोल ों र्सिंगार ककये बैठी ुई थी। चारों तरफ गैस की रोशनी से हदन के समान प्रकाश ो र ा था। कािंस्टेबबल दरवाज़े पर ट ल र े थे। दरवाजे का मैदान साफ ककया जा र ा था और शार्मयाना खड़ा ककया जा र ा था। कुर्सययाँ लगायी जा र ी थीिं, फशय बबछाया गया, गमले सजसये गये। सारी रात इद ीिं तैयाररयों में कटी और सबेरा ोत े ी बारात अमतृराय के घर से चली। बारात क्या थी सभ्यता और स्वािीनता की चलती-कफरती तस्वीर थी। न बाजे का िड़-िड़ पड़-पड़, न बबगुलों की िों िों पों पों, न पालककयों का झुमयट, न सजे ुए घोड़ों की धचल्लापों, न मस्त ाधथयों का रेलपेल, न सोंटे बल्लमवालों की कतारा, न फुलवाड़ी, न बगीच,े बन्ल्क भले मानुषों की एक मिंडली थी जो िीरे-िीरे कदम बढाती चली जा र ी थी। दोनों तरफ जिंगी पुर्लस के आदमी वहदययाँ डाँटे सोंटे र्लये खड़े थे। सड़क के इिर-उिर झुिंड के झुिंड आदमी लम्बी-लम्बी लाहठयाँ र्लये एकत्र और थे बारात की ओर देख-देख दाँत पीसत ेथे। मगर पुर्लस का व रोब था कक ककसी को चँू करने का भी सा स न ीिं ोता था। बाराततयों से पचास कदम की दरूी पर ररजवय पुर्लस के सवार धथयारों से लैंस, घोड़ों पर रान पटरी जामये, भाले चमकात ेओर घोड़ों को उछालत ेचले जात ेथे। ततस पर भी सबको य खटका लग ुआ था कक क ीिं पुर्लस के भय का य ततर्लस्म टूट न जाय। यदयवप बाराततयों के च ेरे से घबरा ट लेशमात्र भी न पाई जाती थी तथावप हदल सबके िड़क र े थे। ज़रा भी सटपट ोती तो सबके कान खड़ े ो जात।े एक बेर दषु्टों ने सचमुच िावा कर ी हदया। चारों ओर लचल मचगी। मगर उसी दम पुर्लस ने भी डबल माचय ककया और दम की दम मे कई फ़साहदयों की मुशके कस लीिं।

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कफर ककसी को उपद्रव मचाने का सा स न ुआ। बारे ककसी तर घिंटे भर में बारात पूणाय के मकान पर प ँुची। य ाँ प ले से ी बाराततयों के शुभागमन का सामान ककया गया था। ऑ िंगन में फशय लगा ुआ था। कुर्सययाँ िरी ुई थीिं ओर बीचोंबीच में कई पूज्य ब्राह्मण वनकुण्ड के ककनारे बैठकर आ ुतत दे र े थे। वन की सुगदि चारों ओर उड़ र ी थी। उस पर मिंत्रों के मीठे-मीठे मध्यम और मनो र स्वर जब कान में आत ेतो हदल आप ी उछलने लगता। जब सब बारती बैठ गये तब उनके माथे पर केसर और चददन मला गया। उनके गलों में ार डाले गये और बाबू अमतृराय पर सब आदमीयों ने पुष्पों की वषाय की। इसके पीछे घर मकान के भीतर गया और व ाँ ववधिपूवयक वववा ुआ। न गीत गाये गये, न गाली-गलौज की नौबत आयी, न नेगचार का उिम मचा। भीतर तो शादी ो र ी थी, बा र ज़ारों आदमी लाहठयाँ और सोंटे र्लए गुल मचा र े थे। पुर्लसवाले उनको रोके ुए मकान के चौधगदय खड़ ेथे। इसी बची में पुर्लस का कप्तान भी आ प ँुचा। उसने आत े ी ुक्म हदया कक भीड़ टा दी जाय। और उसी दम पुर्लसवालों ने सोंटों से मारमार कर इस भीड़ को टाना शुर ककया। जिंगी पुर्लस ने डराने के र्लए बददकूों की दो-चार बाढे वा में सर कर दी। अब क्या था, चारो ओर भगदड़ मच गयी। लोग एक पर एक धगरने लगे। मगर ठीक उसी समय ठाकुर जोरावर र्सिं बाँकी पधगया बाँिें, रजपूती बाना सज,े दो री वपस्तौल लगाये हदखायी, हदया। उसकी मूँछें खड़ी थी। ऑ िंखों से अिंगारे उड़ र े थे। उसको देखत े ी व लोब जो तछततर-बबतत ो र े थे कफर इकट्ठा ोने लगो। जैसे सरदार को देखकर भागती ुई सेना दम पकड़ ले। देखत े ी देखत े ज़ार आदमी से अधिक एकत्र ो गये। और तलवार के िनी ठाकुर ने एक बार कड़क कर क ा—‘जै दगुाय जी की व ीिं सारे हदलों में मानों बबजली कौंि गयी, जोश भड़क उठा। तवेररयों पर बल पड़ गये और सब के सब नद की तर उमड़त े ुए आगे को बढे। जिंगी पुर्लसवाले भी सिंगीने चढाये, साफ़ बाँिे, डटे खड़ ेथे। चारों ओर भयानक सदनाटा छाया ुआ था। िड़का लगा ुआ था कक अब कोई दम में लो ू की नदी ब ा चा ती ै। कप्तान ने जब इस बाढ को अपने ऊपर आत े देखा तो अपने र्सपाह यों को ललकारा और बड़ ेजीवट से मैदान में आकर सवारों को उभारने लगा कक यकायक वपस्तौल की आवाज़ आयी और कप्तान की टोपी ज़मीन पर धगर पड़ी मगर घाव ओछा लगा। कप्तान ने देख र्लया था। कक

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य वपस्तौल जोरावर र्सिं ने सर की ै। उसने भी चट अपनी बददकू सँभाली ओर तनशाने का लगाना था कक िाँय से आवाज़ ुई ओर जोरावर र्सिं चारों खाने धचत्त जमीन पर आ र ा। उसके धगरत े ी सबके ह याव छूट गये। वे भेड़ों की भाँतत भगाने लगे। न्जसकी न्जिर सीिंग समाई चल तनकला। कोई आिा घण्टे में व ाँ धचडड़या का पूत भी न हदखायी हदया। बा र तो य उपद्रव मचा था, भीतर दलु ा-दलुह न मारे डर के सूखे जात ेथे। बाबू अमतृराय जी दम-दम की खबर मँगात ेऔर थर-थर काँपती ुई पूणाय को ढारस देत।े व बेचारी रो र ी थी कक मुझ अभाधगनी के र्लए माथा वपटौवल ो र ी ै कक इतने में बददकू छूटी। या नारायण अब की ककसकी जान गई। अमतृराय घबराकर उठे कक ज़रा बा र जाकर देखें। मगर पणूाय से ाथ न छुड़ा सके। इतने में एक आदमी ने कफर आकर क ा—बाबू सा ब ठाकूर ढेर ो गये। कप्तान ने गोली मार दी। आिा घण्टे में मैदान साफ़ ो गया और अब य ाँ से बरात की बबदाई की ठ री। पूणाय और बबल्लो एक सेजगाड़ी में बबठाई गई और न्जस सज-िज से बरात आयी थी असी तर वापस ुई। अब की ककसी को सर उठाने का सा स न ीिं ुआ। इसमें सददे न ीिं कक इिर-उिर झुिंड आदमी जमा थे और इस मिंडली को क्रोि की तनगा ों से देख र े थे। कभी-कभी मनचला जवान एकाि पत्थर भी चला देता था। कभी तार्लयाँ बजायी जाती थीिं। मुँ धचढाया जाता था। मगर इन शरारतो से ऐसे हदल के पोढे आदर्मयों की गम्भीरता में क्या ववध्न पड़ सकता था। कोई आिा घण्टे में बरात हठकाने पर प ँुची। दनु्ल् न उतारी गयी ओर बराततयािं की जान में जान अयी। अमतृराय की खुशी का क्या पूछना। व दौड़-दौड़ सबसे ाथ र्मलात ेकफरत ेथे। बाँछें खखली जाती थीिं। ज्यों ी दनु्ल् न उस कमरे में प ँुची जो स्वयिं आप ी दनु्ल् न की तर सजा ुआ था तो अमतृराय ने आकर क ा—प्यारी, लो म कुशल से प ँुच गये। ऐिं, तुम तो रो र ी ो...य क त े ुए उद ोंने रमाल से उसके ऑ िंसू पोछे और उसे गलेसे लगाया। पे्रम रस की माती पूणाय ने अमतृराय का ाथ पकड़ र्लया और बोली—आप तो आज ऐसे प्रसदनधचत्त ैं, मानो कोई राज र्मल गया ै। अमतृ—(र्लपटाकर) कोई झूठ ै न्जसे ऐसी रानी र्मले उसे राज की क्या परवा

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आज का हदन आनदद में कटा। दसूरे हदन बराततयों ने बबदा ोने की आज्ञा माँगी। मगर अमतृराय की य सला ुई कक लाला िनुषिारीलाल कम से कम एक बार सबको अपने व्याख्यान से कृतज्ञ करें य सला सबो पसिंद आयी। अमतृराय ने अपने बगीच ेमें एक बड़ा शार्मयान खड़ा करवाया और बड़ ेउत्सव से सभा ुई। व िुऑ िंिर व्याख्यान ुए कक सामान्जक सुिार का गौरव सबके हदलों में बैठे गया। कफर तो दो जलसे और भी ुए और दनेू िूमिाम के साथ। सारा श र टूटा पड़ता था। सैंकड़ों आदर्मयों का जनेऊ टूट गया। इस उत्सव के बाद दो वविवा वववा और ुए। दोनों दलू् े अमतृराय के उत्सा ी स ायकों में थे और दनु्ल् नों में से एक पूणाय के साथ गिंगा न ानेवाली रामकली थी। चौथे हदन सब नेवत री बबदा ुए। पूणाय ब ुत कदनी काटती कफरी, मगर बराततयों के आग्र से मज़बूर ोकर उनसे मुलाकात करनी ी पड़ी। और लाला िनुषिारीलाल ने तो तीन हदन उसे बराबर स्त्री-िमय की र्शक्षा दी। शादी के चौथे हदन बाद पूणाय बैठी ुई थी कक एक औरत ने आकर उसके एक बिंद र्लफ़ाफा हदया। पढा तो पे्रमा का पे्रम-पत्र था। उसने उसे मुबारकबादी दी थी और बाबू अमतृराय की व तसवीर जो बरसों से उसके गले का ार ो र ी थी, पूणाय के र्लए भेज दी थी। उस ख़त की आखखरी सतरें य थीिं--- ‘सखी, तुम बड़ी भाग्यवती ो। ईश्वर सदा तुम् ारा सो ाग कायम रखें। तुम् ारे पतत कीतसवीर तुम् ारे पास भेजती ँू। इसे मेरी यादगार समझाना। तुम जानती ो कक मैं इसको जान से ज्यादा प्यारी समझती र ी। मगर अब मैं इस योग्य न ी कक इसे अपने पास रख सकँू। अब य तुमको मुबारक ो। प्यारी, मुझ ेभूलना मत । अपने प्यारे पतत को मेरी ओर से िदयवाद देना। तुम् ारी अभाधगनी सखी— पे्रमा’ अफसोस आज के पदद्रवे हदन बेचारी पे्रमा बाब ूदाननाथ के गले बाँिी दी गयी। बड़ ेिूमिम से बरात तनकली। ज़ारों रपया लुटा हदया गया। कई हदन तक सारा श र मुिंशी बदरीप्रसाद के दरवाज़े पर नाच देखता र ा। लाखों का वार-

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दयारा ो गया। ब्या के तीसरे ी हदन मुिंशी जी परलोक को र्सिारे। ईश्वर उनको स्वगयवास दे। ***

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11. ववरोधियों का ववरोि

मे मानों के बबदा ो जाने के बाउ य आशा की जाती थी कक ववरोिी लोग अब र्सर न उठायेंगे। ववशेष इसर्लए कक ठाकुर जोरावार र्सिं और मुिंशी बदरीप्रसाद के मर जाने से उनका बल ब ुत कम ो गया था। मगर य आशा पूरी न ुई। एक सप्ता भी न गुज़रने पाया था कक और अभी सुधचत से बैठने भी न पाये थे कक कफर य ी द ॉँतककलककल शुर ो गयी। अमतृराय कमरे में बैठे ुए एक पत्र पढ र े थे कक म राज चुपके से आया और ाथ जोड़कर खड़ा ो गया। अमतृराय ने सर उठाकर उसको देखा तो मुसकराकर बोले—कैसे चले म ाराज? म राज— जूर, जान बकसी ोय तो क ँू। अमतृराय—शौक से क ो। म राज—ऐसा न ो कक आप ररस े ो जाय।ँ अमतृराय—बात तो क ो। म राज— जूर, डर लगती ै। अमतृराय—क्या तनख्वा बढवाना चा त े ो? म राज—ना ीिं सरकार अमतृराय—कफर क्या चा त े ो? म राज— जूर, मारा इस्तीफा ले र्लया जाय। अमतृराय—क्या नौकरी छोड़ोगे?

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म राज— ॉँ सरकार। अब मसे काम न ीिं ोता। अमतृराय—क्यों, अभी तो मजबूत ो। जी चा े तो कुछ हदन आराम कर लो। मगर नौकरी क्यों छोड़ों। म राज—ना ीिं सरकार, अब म घर को जाइब। अमतृराय—अगर तुमको य ॉँ कोई तकलीफ़ ा तो ठीक-ठीक क दो। अगर तनख्वा क ीिं और इसके ज्यादा र्मलने की आशा ो तो वैसा क ो। म राज— जूर, तनख्याव जो आप देत े ैं कोई क्या माई का लाल देगा। अमतृराय—कफर समझ में न ीिं आता कक क्यों नौकरी छोड़ना च ात े ो? म राज—अब सरकार, मैं आपसे क्या क ँू। य ॉँ तो य बातें ो र ी थीिं उिर चम्मन व रम्मन क ार और भगेलू व दकु्खी बारी आपस में बातें कर र े थे। भगेलू—चलो, चलो जल्दी। न ीिं तो कच री की बेला आ जै ै। चम्मन—आगे-आगे तुम चलो। भगेलू— मसे आगूँ न चला जै ै। चम्मन—तब कौन आगूँ चलै? भगेलू— म केका बताई। रम्मन—कोई न चलै आगूँ तो म चर्लत ै। दकु्खी—तैं आगे एक बात कह त ै। न कोई आगूँ चले न कोई पीछँू।

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चम्मन---कफर कैसे चला जाय। भगेलू—सब साथ-साथ चलैं। चम्मन—तुम् ार कपार भगेलू—साथ चले माँ कौन रज ै? मम्मन—तब सरकार से बततयाये कौन? भगेलू—दकु्खी का खूब बबततयाब आवत ै। दकु्खी—अरे राम रे मैं उनके ताई न जै ँू। उनका देख के मोका मुतास ो आवत ै। भगेलू---अच्छा, कोऊ न चलै तो म आगूँ चर्लत ैं। सब के सब चले। जब बरामदे में प ँुच ेतो भगेलू रक गया। मम्मन—ठाढे का े ो गयो? चले चलौ। भगेलू---अब म न जाबै। मारा तो छाती िड़त ै। अमतृराय ने जो बरामदे में इनको स ॉँय-साँय बातें करत ेसुना तो कमरे से बा र तनकल आये और ँस कर पूछा—कैसे चले, भगेलू? भगेलू का ह याव छूट गया। र्सर नीचा करके बोला— जूर, य सब क ार आपसे कुछ क ने आये ै। अमतृराय—क्या क त े ै? य सब तो बोलत े ी न ीिं। भगेलू—(क ारों से) तुमको जौन कुछ क ना ोय सरकार से क ो।

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क ार भगेलू के इस तर तनकल जाने पर हदल में ब ुत झल्लये। चम्मन ने जरा तीखे ोकर क ा—तुम का े ना ीिं क त ौ? तुम् ार मुँ में जीभ न ीिं ै? अमतृराय— म समझ गये। शायद तुम लोग इनाम म ॉँगने आये ो। क ारों से अब र्सवाय ॉँ क ने के और कुछ न बन पड़ा। अमतृराय ने उसी दम प ॉँच रपया भगेलू के ाथ पर रख हदया। जब य सब कफर अपनी काठरी में आये तो यों बातें करने लगे— चम्मन—भगेलुआ बड़ा बोदा ै। रम्मन—अस रीस लागत र ा कक खाय भरे का देई। दकु्खी—व ॉँ जाय के ठकुरासो ाती करै लागा। भगेलू— मासे तो उनके सामने कुछ क ै न गवा। दकु्खी---तब का े को य ॉँसे आगे-आगे गया रह्यो। इतने में सुखई क ार लकडी टेकता ख सता ुआ आ प ँुचा। और इनको जमा देखकर बोला—का भवा? सरकार का क ेन? दकु्खी—सरकार के सामने जाय कै सब गूँगे ो गये। कोई के मुँ से बात न र्लकली। भगेलू—सुखई दादा तुम तनयाव करो, जब सरकार ँसकर इनाम दे लागे तब कैसे क ा जात कक म नौकरी छोड़न आये ैं। सुखई— म तो तुमसे प ले क दीन कक य ॉँ नौकरी छोड़ी के सब जने पछतै ो। अस भलामानुष क ँू न र्मले। भगेलू—दादा, तुम बात लाख रपया की क त ो।

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चम्मन—एम ॉँ कौन झूठ ैं। अस मनई का ॉँ र्मले। रम्मन आज दस बरस र त भये मुदा आिी बात कब ँू ना ीिं क ेन। भगेलू—रीस तो उनके दे में छू न ीिं गै। जब बात करत ै ँसकर। मम्मन—भैया, मसे कोऊ क त कक तुम बीस कलदार लेव और मारे य ॉँ चल के काम करो तो म सराकर का छोड़ के क ँू न जाइत। मुद्रा बबरादरी की बात ठ री। ुक्का-पानी बदद ोईगवा तो कफर के के दवारे जैब। रम्मन—य ी डर तो जान मारे डालत े ै। चम्मन—चौिरी क गये ैं ककआज इनकेर काम न छोड़ दे ों तो टाट बा र कर दीन जै ी। सुखई— म एक बेर क दीन कक पछतौ ो। जस मन मे आवे करो। क ार भगेलू के इस तर तनकल जाने पर हदल में ब ुत झल्लये। चम्मन ने जरा तीखे ोकर क ा—तुम का े ना ीिं क त ौ? तुम् ार मुँ में जीभ न ीिं ै? अमतृराय— म समझ गये। शायद तुम लोग इनाम म ॉँगने आये ो। क ारों से अब र्सवाय ॉँ क ने के और कुछ न बन पड़ा। अमतृराय ने उसी दम प ॉँच रपया भगेलू के ाथ पर रख हदया। जब य सब कफर अपनी काठरी में आये तो यों बातें करने लगे— चम्मन—भगेलुआ बड़ा बोदा ै। रम्मन—अस रीस लागत र ा कक खाय भरे का देई। दकु्खी—व ॉँ जाय के ठकुरासो ाती करै लागा।

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भगेलू— मासे तो उनके सामने कुछ क ै न गवा। दकु्खी---तब का े को य ॉँसे आगे-आगे गया रह्यो। इतने में सुखई क ार लकडी टेकता ख सता ुआ आ प ँुचा। और इनको जमा देखकर बोला—का भवा? सरकार का क ेन? दकु्खी—सरकार के सामने जाय कै सब गूँगे ो गये। कोई के मुँ से बात न र्लकली। भगेलू—सुखई दादा तुम तनयाव करो, जब सरकार ँसकर इनाम दे लागे तब कैसे क ा जात कक म नौकरी छोड़न आये ैं। सुखई— म तो तुमसे प ले क दीन कक य ॉँ नौकरी छोड़ी के सब जने पछतै ो। अस भलामानुष क ँू न र्मले। भगेलू—दादा, तुम बात लाख रपया की क त ो। चम्मन—एम ॉँ कौन झूठ ैं। अस मनई का ॉँ र्मले। रम्मन आज दस बरस र त भये मुदा आिी बात कब ँू ना ीिं क ेन। भगेलू—रीस तो उनके दे में छू न ीिं गै। जब बात करत ै ँसकर। मम्मन—भैया, मसे कोऊ क त कक तुम बीस कलदार लेव और मारे य ॉँ चल के काम करो तो म सराकर का छोड़ के क ँू न जाइत। मुद्रा बबरादरी की बात ठ री। ुक्का-पानी बदद ोई गवा तो कफर के के दवारे जैब। रम्मन—य ी डर तो जान मारे डालत े ै।

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चम्मन—चौिरी क गये ैं ककआज इनकेर काम न छोड़ दे ों तो टाट बा र कर दीन जै ी। सुखई— म एक बेर क दीन कक पछतौ ो। जस मन मे आवे करो। आठ बजे रात को जब बाबू अमतृराय सैर ररके आये तो कोई टमटम थानेवाला न था। चारों ओर घूम-घूम कर पुकारा। मगर ककसी आ ट न पायी। म ाराज, क ार, साईस सभी चल हदये। य ाँ तक कक जो साईस उनके साथ था व भी न जाने क ॉँ लोप ो गया। समझ गये कक दषु्टों ने छल ककया। घोड़ ेको आप ी खोलने लगे कक सुखई क ार आता हदखाई हदया। उससे पूछा—य सब के सब क ॉँ चले गये? सुखई—(ख ॉँसकर) सब छोड़ गये। अब काम न करैगे। अमतृराय—तुम् ें कुछ मालूम ै इन सभों ने क्यों छोड़ हदया? सुखई—मालूम का े ना ीिं, उनके बबरादरीवाले क त े ैं इनके य ॉँ काम मत करो। अमतृराय राय की समझ में परूी बात आ गयी कक ववराधियों ने अपना कोई और बस न चलत ेदेखकर अब य ढिंग रचा ै। अददर गये तो क्या देखत े ैं कक पूणाय बैठी खाना पका र ी ै। और बबल्लो इिर-उिर दौड़ र ी ै। नौकरों पर द ॉँत पीसकर र गये। पूणाय से बोले---आज तुमको बड़ा कष्ट उठाना पड़ा। पूणाय—( ँसकर) इसे आप कष्ट क त े ै। य तो मेरा सौभाग्य ै। पत्नी के अिरों पर मदद मुसकान और ऑ िंखों में पे्रम देखकर बाबू सा ब के चढे ुए तवेर बदल गये। भड़कता ुआ क्रोि ठिंडा पड़ गया और जैसे नाग सूँबी बाजे का शब्द सुनकर धथरकने लगता ै और मतवाला ो जाता उसी भ ॉँतत उस घड़ी अमतृराय का धचत्त भी ककलोलें करने लगा। आव देखा न ताव। कोट पतलून, जूत े प ने ुए रसोई में बेिड़क घुस गये। पूणाय ॉँ, ॉँ करती र ी।

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मगर कौन सुनता ै। और उसे गले से लगाकर बोले—म ैतुमको य न करने दगू ॉँ। पूणाय भी प्रतत के नशे में बसुि ोकर बोली-मैं न मानँूगी। अमतृराय—अगर ाथों में छाले पड़ ेतो मैं जुरमाना ले लूँगा। पूणाय—मैं उन छालों को फूल समझँूगी, जुरामान क्यों देने लगी। अमतृराय—और जो र्सर में िमक-अमक ुई तो तुम जानना। पूणाय-वा ऐसे सस्त ेन छूटोगे। चददन रगड़ना पड़गेा। अमतृ—चददन की रगड़ाई क्या र्मलेगी। पूणाय—वा ( िंसकर) भरपेट भोजन करा दूँगी। अमतृ—कुछ और न र्मलेगा? पूणाय—ठिंडा पानी भी पी लेना। अमतृ—(ररर्सयाकर) कुछ और र्मलना चाह ए। पूणाय—बस,अब कुछ न र्मलेगा। य ॉँ अभी य ी बातें ो र ी थीिं कक बाबू प्राणनाथ और बाबू जीवननाथ आये। य दोनों काश्मीरी थे और कार्लज में र्शक्षा पात ेथे। अमतृराय क पक्षपाततयों में ऐसा उत्सा ी और कोई न था जैसे य दोनों युवक थे। बाबू सा ब का अब तक जो अथय र्सद्ध ुआ था, व इद ीिं परोपकाररयों के पररश्रम का फल था। और वे दोनों केवल ज़बानी बकवास लगानेवाली न ीिं थे। वरन बाबू सा ब की तर व दोनों भी सुिार का कुछ-कुछ कतयव्य कर चुके थे। य ी दोनों वीर थे न्जद ोंने स स्रों रकावटों और आिाओिं को टाकर वविवाओिं से

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ब्या ककया था। पूणाय की सखी रामकली न अपनी मरजी से प्राणनाथ के साथ वववा करना स्वीकार ककया था। और लक्ष्मी के म ॉँ-ब ॉँप जो आगरे के बड़ ेप्रततष्ठत रईस थे, जीवननाथ से उसका वववा करने के र्लए बनारस आये थे। ये दोनों अलग-अलग मकान में र त ेथे। बाबू अमतृराय उनके आने की खबर पात े ी बा र तनकल आये और मुसकराकर पूछा—क्यों, क्या खबर ै? जीवननाथ—य आपके य ॉँ सदनाटा कैसा? अमतृराय—कुछ न पूछो, भाई। जीवननाथ—आखखर वे दरजन-भर नौकरी क ाँ समा गये? अमतृराय—सब ज दनुम चले गये। ज़ार्लमों ने उन पर बबरादरी का दबाव डालकर य ॉँ से तनकलवा हदया। प्राणनाथ ने ठट्ठा लगाकर का ---लीन्जए य ॉँ भी व ढिंग ै। अमतृराय—क्या तुम लोगों के य ॉँ भी य ी ाल ै। प्राणनाथ—जनाब, इससे भी बदतर। क ारी सब छोड़ भागो। न्जस कुएसे पानी आता था व ॉँ कई बदमाश लठ र्लए बैठे ै कक कोई पानी भरने आये तो उसकी गदयन झाड़ें। जीवननाथ—अजी, व तो क ो कुशल ोयी कक प ले से पुर्लस का प्रबदि कर र्लया न ीिं तो इस वक्त शायद अस्पताल में ोत।े अमतृराय—आखखर अब क्या ककया जाए। नौकरों बबना कैसे काम चलेगा? प्राणनाथ—मेरी तो राय ै कक आप ी ठाकुर बतनए और आप ी चाकर।

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ज़ीवनाथ—तुम तो मोटे-ताजे ो। कुएिं से दस-बीस कलसे पानी खीिंच ला सकत े ो। प्राणनाथ—और कौन क े कक आप बतयन-भ ॉँड ेन ीिं म ॉँज सकत।े अमतृराय—अजी अब ऐसे किं गाल भी न ीिं ो गये ैं। दो नौकर अभी ैं, जब तक इनसे थोड़ा-ब ुत काम लेंगे। आज इलाके पर र्लख भेजता ँू व ॉँ दो-चार नौकर आ जायगेँ। जीवननाथ—य तो आपने अपना इन्दतज़ाम ककया। मारा काम कैसे चले। अमतृराय—बस आज ी य ॉँ उठ आओ, चटपट। जीवननाथ—य तो ठीक न ीिं। और कफर य ॉँ इतनी जग क ॉँ ै? अमतृराय—व हदल से राज़ी ैं। कई बेर क चुकी ैं कक अकेले जी घबराता ै। य ख़बर सुनकर फूली न समायेंगी। जीवननाथ—अच्छा अपने य ॉँ तो टो लूँ। प्राणनाथ—आप भी आदमी ैं या घनचक्कर। य ॉँ टो लूँ व ॉँ टो लूँ। भलमानसी चा ो तो बग्घी जोतकर ले चलों। दोनों प्राखणयों को य ॉँ लाकर बैठा दो। न ीिं तो जाव टो र्लया करो। अमतृराय—और क्या, ठीक तो क त े ैं। रात ज्यादा जायगी तो कफर कुछ बनाये न बनेगी। जीवननाथ—अच्छा जैसी आपकी मरज़ी। दोनों युवक अस्तबल में गये। घोड़ा खोला और गाड़ी जोतकर ले गये। इिर अमतृराय ने आकर पूणाय से य समाचार क ा। व सुनते ी प्रसदन ो गई और इन मे मानों के र्लए खाना बनाने लगी। बाब ूसा ब ने सुखई की

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मदद से दो कमरे साफ़ कराये। उनमें मेज, कुर्सययाँ और दसूरी जररत की चीज़ें रखवा दीिं। कोई नौ बजे ोंगे कक सवाररय ॉँ आ प ँुचीिं। पूणाय उनसे बड़ ेप्यार से गले र्मली और थोड़ी ी देर में तीनों सखखय ॉँ बुलबुल की तर च कने लगीिं। रामकली प ले ज़रा झेंपी। मगर पूणाय की दो-चार बातों न उसका ह याव भी खोल हदया। थोड़ी देर में भोजन तैयार ा गया। ओर तीनों आदमी रसोई पर गये। इिर चार-प ॉँच बरस से अमतृराय दाल-भात खाना भूल गये थे। कश्मीरी बावरची तर तर क सालना, अनेक प्रकार के मािंस खखलाया करता था और यदयवप जल्दी में पूणाय र्सवाय सादे खानों के और कुछ न बना सकी थी, मगर सबने इसकी बड़ी प्रशिंसा की। जीवननाथ और प्राणनाथ दोनों काशमीरी ी थे, मगर व भी क त ेथेकक रोटी-दाल ऐसी स्वाहदष्ट मने कभी न ीिं खाई। रात तो इस तर कटी। दसूर हदन पूणाय ने बबल्लो से क ा कक ज़रा बाज़ार से सौदा लाओ तो आज मे ानों को अच्छी-अच्छी चीज़े खखलाऊँ। बबल्लो ने आकर सुखई से ुक्म लगाया। और सुखई एक टोकरा लेकर बाज़ार चले। व आज कोई तीस बरस से एक ी बतनये से सौदा करत े थे। बतनया एक ी चालाक था। बुढऊ को खूब दस्तूरी देता मगर सौदा रपये में बार आने से कभी अधिक न देता। इसी तर इस घूरे सा ु ने सब रईसों को फ ॉँसा रक्खा था। सुखई ने उसकी दकूान पर प ँुचत े ै टाकरा पटक हदया और ततपाई पर बैठकर बोला—लाव घूरे, कुछ सौदा सलुुफ तो दो मगर देरी न लगे। और र बेर तो घूरे ँसकर सुखई को तमाखू वपलाता और तुरदत उसके ुक्म की तामील करने लगता। मगर आज उसने उसको और बड़ी रखाई से देखकर क ा—आगे जाव। मारे य ॉँ सौदा न ीिं ै। सुखई—ज़रा आदमी देख के बात करो। में प चानत ेन ीिं क्या? घूरे—आगे जाव। ब ुत टें-टें न करो। सुखई-कुछ म ॉँग-व ॉँग तो न ीिं खा गये क्या? अरे म सुखई ैं।

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घूरे—अजी तुम लाट ो तो क्या? चलो अपना रास्ता देखो। सुखई—क्या तुम जानत े ो में दसूरी दकुान पर दस्तूरी न र्मलेगी? अभी तुम् रे सामने दो आने रूपया लेकर हदखा देता ँू। घूरे—तूम सीिे से जाओगे कक न ीिं? दकुान से टकर बात करो। बेचारा सुखई सा ु की सइ रखाई पर आश्चयय करता ुआ दसूरी दकुान पर गया। व ॉँ भी य ी जवाब र्मला। तीसरी दकूान पर प ँुचा। य ॉँ भी व ी िुतकार र्मली। कफर तो उसने सारा-बाज़ार छान डाला। मगर क ीिं सौदा न र्मला। ककसी ने उसे दकुान पर खड़ा तक ोने न हदया। आखखर झक मारकर-सा मुँ र्लये लौट आया और सब समाचार क । मगर नमक-मसाले बबना कैसे काम चले। बबल्लो ने व ा, अब ्की मैं जाती ँू। देखू ँकैसे कोई सौदा न ीिं देता। मगर व ात ेज्यों ी बा र तनकली कक एक आदमी उसे इिर-उिर ट लता हदखायी हदया। बबल्लो को देखत े ी व उसके साथ ो र्लया और न्जस न्जस दकुान पर बबल्लो गई व भी परछाई की तर साथ लगा र ा। आखखर बबल्लो भी ब ुत दौड़-िूप कर ाथ झुलात ेलौट आयी। बेचरी पूणाय ने ार कर सादे पकवान बनाकर िर हदये। बाबू अमतृराय ने जब देखा कक द्रो ी लोग इसी तर पीछे पड़ े तो उसी दम लाला िनुषिारीलाल को तार हदया कक आप मारे या ॉँ प ॉँच ोर्शयार खखदमतगार भेज दीन्जए। लाला सा ब प ले ी समझ े ुए थे कक बनारस में दषु्ट लोग न्जतना ऊिम मचायें थोड़ा ैं। तार पात े ी उद ोंने अपने अपने ोटल के प ॉँच नौकरों को बनारस रवाना ककया। न्जनमें एक काश्मीरी म राज भी थी। दसूरे हदन य सब आ प ँुच।े सब के सब पिंजाबी थे, जो न तो बबरादरी के गुलाम थे और न न्जनको टाट बा र ककये जाने का खटका था। ववरोधियों ने उसके भी कान भरने चा े। मगर कुछ द ॉँव चला। सौदा भी लखनऊ से इतना म ॉँगा र्लया जो कई म ीनों को काफ़ी था। जब लोगों ने देखा इन शरारतों से अमतृराय को कुछ ातन प ँुची तो और ी चाल चले। उनके मुवन्क्कलों को ब काना शुर ककया कक व तो ईसाई ो गये ैं। सा बों के सिंग बैठकर खात े ैं। उनको ककसी जानवर के मािंस से ववचार न ीिं ै। एक वविवा ब्रह्माणी से वववा कर र्लया ै। उनका मुँ

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देखना, उनसे बातचीत करना भी शास्त्र के ववरद्ध ै। मुवन्क्कलों को ब काना शुर कक या कक व तो ईसाई ो गये ै। वविवा ब्रह्मणी से वववा कर र्लया ै। उनका मुँ देखना, उनसे बातचीत करना भी शास्त्र के ववरद्ध ै। मुवन्क्कलों में ब ुिा करके दे ातों के राजपूत ठाकुर और भुिंइ ार थे जो य ाता अववदया की कालकोठरी में पड़ े ुए थे या नये ज़माने क चमत्कार ने उद ें चौंधिया हदया था। उद ोंने जब य सब ऊटपटाँग बातें सुनी तब वे ब ुत बबगड़े, ब ुत झल्लाये और उसी दम कसम खाई की अब चा े जो ो इस अिमी को कभी मुकदमा न देंगे। राम राम इसको वेदशास्त्र का ततनक ववचार न ीिं भया कक चट एक र ॉँड़ को घर में बैठाल र्लया। छी छी अपना लोक-परलोक दोनों बबगाड़ हदया। ऐसा ी था तो ह दद ूके घर में का े को जदम र्लया था। ककसी चोर-चिंडाल के घर जनमे ोत।े बाप-दादे का नाम र्मटा हदया। ऐसी ी बातें कोई दो सप्ता तक उने मुवन्क्कलों में फैली। न्जसका पररणाम य ुआ कक बाबू अमतृराय का रिंग फीका पड़ने लगा। ज ॉँ मारे मुकदमों के स ॉँस लेने का अवकाश न र्मलता था। व ॉँ अब हदन-भर ाथ पर ाथ िरे बैठे र ने की नौबत आ गयी। य ॉँ तक कक तीसरा सप्ता कोरा बीत गया और उनको एक भी अच्छा मुकदमा न र्मला। जज सा ब एक बिंगाली बाब ूथे। अमतृराय के पररश्रम और तीव्रता, उत्सा और चपलता ने जज सा ब की ऑ िंखों में उद ोंने बड़ी प्रशिंसा दे रक्खी थी। व अमतृराय की बढती ुई वकालत को देख-देख समझ गये थे कक थोड़ी ी हदनों मे य सब वकीलों का सभापतत ा जाएगा। मगर जब तीन फ्त ेसे उनकी सूरत न हदखायी दी तब उनको आश्चयय ुआ। सररश्तदेार से पूछा कक आजकल बाबू अमतृराय क ॉँ ैं। सररश्तदेार सा ब जातत के मुसलमान और बड़ ेसच्चे, साफ आदमी थे। उद ोंने सारा ब्योरा जो सुना था क सुनाया। जज सा ब सुनत े ी समझ गये कक बेचारे अमतृराय सामान्जक कामों में अग्रण्य बनने का फल भोग र े ैं। दसूरे हदन उद ोंने खुद अमतृराय को इजलास पर बुलवाया और दे ाती ज़मीिंदारी के सामने उनसे ब ुत देर तक इिर-उिर की बातें की। अमतृराय भी ँस- ँस उनकी बातों का जवाब हदया ककये। इस बीच में कई वकीलों और बैररस्टर जज सा ब को हदखाने कक र्लए कागज पत्र - लाये मगर सा ब ने ककसी के ओर ध्यान न ीिं हदया। जब व चले तो सा ब ने कुसी उठकर ाथ र्मलाया और जरा जोर से बोलो – ब ुत अच्छा, बाबू सा ब जैसा आप बोलता ै, इस मुकदमे मे वैसा ी ोगा।

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आज जब कच री बरखास्त ुई तो उन जमीदारों में न्जनके मुकदमे आज पेश थे, यों गलेचौर ोने लगी। ठाकुर सा ब- ( पगडी.ब िंिे, मूछें खडी.ककये, मोटासा लदव ाथ में र्लये) आज जज सा ब अमतृराय से खुब- खुब बततयात र े। र्मश्र जी- (र्सर घुटाये,टीका लगाये, मु में तम्बाकु दाबाये और कदघे पर अगोछा रक्खे) खूब ब बततयावत र ा मानो कोउ अपने र्मत्र से बततयावै। ठाकुर- अमतृराय कस ँस- ँस मुडी ह लावत र ा। र्मश्र जी- बड.े आदर्मयन का सबजग आदर ोत ै। ठाकुर- जब लो दोनो बततयात र े तब तलुक कउ वकील आये बाकी सा ेब कोउ की ओर ततनक ना ीिं ताककन। र्मश्र जी- म क े देइत ै तुमार मुकदमा उन ीिं के राय से चले। सुनत र यो कक ना ीिं जब अमतृराय चले लागे तो जज सा ब क ेन कक इस मुकदमे में वैसा ी ोगा ठाकुर- सुना का े न ीिं, बाकी कफर काव करी। र्मश्र जी- इतना तो म कह त ै कक अस वककल वपरथी भर में ना ीिं ना। ठाकुर- कसब स करत ैं मानो न्ज वा पर सरस्वती बैठी ोय। उनकर बराबरी करैया आज कोई ना ीिं ै। र्मश्र जी- मुदा इसाई ोइ गया। र िंड.से ब्या कक ेर्स। ठाकुर- एतनै तो बीच परा ै। अगर उनका वकील कक े ोईत तो बाजी बद के जीत जाईत।

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इसी तर दोनो में बातें ुई और हदया में बती पडतें- पडतें दोनो अमतृराय के पास गये और उनसे मुकदमें की कुल रयदाद बयान कक। बाबू सा ब ने प ले ी समझ र्लया था कक इस मुकदमें में कुछ जान न ीिं ै। ततस पर उद ोंने मूकदमा ले र्लया और दसुरे हदन एसी योग्यता से ब स की कक दसूरी ओर के वककल- मुखततयार खड.ेमु ताकत ेर गये। आखिर जीत का से रा भी उद ीिं के र्सर र ा। जज सा ब उनकी बकतयृा पर एसे प्रसदन ुए कक उद ोंने ँसकर घदयबाद हदया और ाथ र्मलया। बस अब क्या था । एक तो अमतृराय यों ी प्रर्सदव थे, उस पर जज सा ब का य वताव और भी सोने पर सु ागा ो गया । व बँगले पर प ँुच कर चैन से बैठने भी न पाये थे, कक मुवन्क्कलो के दल के दल आने लगे और दस बजे रात तक य ी ताता लगा र ा। दसूरे हदन से उनकी वकालत प ले से भी अधिक चमक उठी। द्रोह यों जब देखा कक मारी चाल भी उलटी पडी. तो और भी द त पीसने लगे। अब मुिंशी बदरीप्रसाद तो थे ह न ीिं कक उद ें सीिी चालें बतात।े और न ठाकुर थे कक कुछ बा ुबल का चमत्कार हदखात े। बाब ूकमलाप्रसाद अपने वपता के सामने ी से इन बातो से अलग ो गये थे। इसर्लये दोह यों को अपना और कुछ बस न देख कर पिंडडत भगुदत का दवार खटखटाया उनसें कर जोड कर क ा कक म ाराज! कृपा-र्सदिु! अब भारत वषय में म ा उत्पात और घोर पाप ो र ा ै। अब आप ी चा ो तो उसका उदवार ो सकता ै । र्सवाय आप के इस नौका को पार लगाने वाला इस सिंसार में कोई न ीिं ै। म ाराज ! अगर इस समय पूरा बल न लगाया तो कफर इस नगर के वासी क ीिं मु हदखाने के योग्य न ीिं र ेंगे। कृपा के परनाले और िमय के पोखरा ने जब अपने जजमानों को ऐसी दीनता से स्तुतत करत ेदेखा तो द त तनकालकर बोले आप लोग जौन ै तैन घबरायें मत। आप देखा करें कक भगृुदत क्या करत े ै। सेठ िूनीमल- म ाराज! कुछ ऐसा यतन कीन्जये कक इस दषु्ट का सत्यानाश ् ो जाय! कोई नाम लेवा न बच।े कई आदमी- म ाराज! इस घडी तो य ी चाह ये।

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भगृुदत- य ी चाह ये तो य ी लेना। सवयथा नाश न कर द ूतो ब्रा मण न ीिं। आज के सातवें हदन उसका नाश ो जायेगा। सेठ जी- दवव्य जो लगे बेखटके कोठी से मॅगा लेना। भगृुदत- इसके क ने की कोइ आवश्यकता न ीिं। केवल प च सौ ब्रा मण का प्रततहदन भोजन ोगा। बाबू दीनानाथ-तो कह ये तो कोई लवाई लगा हदया जाए। राघो लवाई पेड़ ेऔर लडू ब ुत अच्छे बनाता ै। भगृुदत- जो पूजा मैं कराउगा उसमें पेड़ा खाना वन्जयत ै। अधिक इमरती का सेवन ो उतना ी कायय र्सदव ो जाता ै। इस पर पिंडड़त जी के एक चलेे ने क ा- गरू जी! आज तो आप ने दयाय का पाठ देत े समय क ा था कक पेड़ ेके साथ द ी र्मला हदया जाए तो उसमें कोइ दोष न ीिं र ता। भगृुदत- ( ॅसकर) - अब स्मरण ुआ। मनु जी ने इस शलोक में इस बात का प्रमाण हदया ै। दीनानाथ-(मुसकराकर) म ाराज! चलेा तो बड़ा ततब्र ै। सेठ जी- य अपने गरूजी से बाजी ले जायेगा। भगृुदत- अब कक इसने एक यज्ञ में दो सेर पूररय खायी। उस हदन से मैने इसका नाम अिंततम परीक्षा में र्लख हदया। चलेा- मैं अपने मन से थोड़ा ी उठा । अगर जजमान ाथ जोड़कर उठा न देत ेतो अभी सेर भर और खा के उठता। दीनानाथ-क्यो न ो पटे ! जैसे गुरू वैसे चलेा!

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सेठ जी- म ाराज, अब मको आज्ञा दीन्जए। आज लवाई आ जाएगा। मुनीम जी भी उसके साथ लगे र ेगें। जो सौ दो सौ का काम लगे मुनीम जी से फरमा देना। मगर बात तब ै कक आप भी इस बबषय में जान लड़ा दे। पिंडड़त जी ने र्सर का कद्दू ह लाकर क ा- इसमें आप कोई खटका न समखझये। एक सप्ता में अगर दषु्ट का न नाश ो जाए तो भगृुदत न ीिं। अब आपको पूजन की बबधि भी बता ी द।ू सुतनए तािंबत्रक बबदया में एक मिंत्र एसा भी ै न्जसके जगाने से बैरी की आयु क्षीण ोती ै। अगर दस आदमी प्रततहदवस उसका पाठ करे तो आयु में दोप र की ातन ोगी। अगर सौ आदमी पाठ करे तो दस हदन की ातन ोगी। यहद पाच सौ पाठ तनत्य ों तो र हदन पाच वष आयु घटती ैं। सेठ जी- म ाराज, आप ने इस घड़ी एसी बात क ी कक मारा चोला मस्त ो गया, मस्त ो गया , दीनानाथ- कृपार्सदघु, आप घदय ो ! आप घदय ो ! ब ुत से आदमी- एक बार बोलो- पिंडड़त भगृुदत जय ! ब ुत से आदमी- एक बार बोलो- दषु्ठों की छै ! छै ! ! इस तर कोला ल मचात े ुए लोग अपने- अपने घरो को लौटे। उसी हदन राघो लवाई पिंडड़त जी के मकान पर जा डटा। पूजा-पाठ ोने लगे । पाच सौ भुक्खड़ एकत्र ो गये और दोनों जून माल उडानें लगे। िीरे- िीरे पाच सौ से एक जार नम्बर प ुचा पूजा-पाठ कौन करता ै। सबेरे से भोजन का प्रबदि करत े– करत ेदोप र ो जाता था। और दोप र से भिंग- बूटी छानत े रात ो जाती थी। पिंडडत भगृुदत दास का नाम पुरे श र में उजागर ो र ा था। चारो ओर उनकी बड़ाई गाई जा र ी थ। सात हदन य ी अिािुिंि मचा र ा। य सब कुछ ुआ । मगर बाबू अमतृराय का बाल बाँका न ो सका। क ी चमार के सरापे डागर र्मलत े ै। एसे ऑ िंख ्के अिंिे और गँठ के पुरे न फँसे तो भगृुदत जैसे गुगो को चखौततया कौन करायें। सेठ जी के आदमी ततल- ततल पर अमतृराय के मकान पर दौड़त ेथे कक देखें कुछ जिंत्र –

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मत्र का फल ुआ कक न ीिं। मगर सात हदन के बीतने पर कुछ फल ुआ तो य ी कक अमतृराय की वकालत सदा से बढकर चमकी ुई थी। ***

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12. एक स्त्री के दो पुरूष नहीीं हो सकते

पे्रमा का ब्या ुए दो म ीने से अधिक बीत चुके ैं मगर अभी तक उसकी अवस्था व ी ै जो कँुवारापन में थी। व रदम उदास और मर्लन र ती ैं। उसका मुख पीला पड़ गया। ऑ िंखें बैठे ुई, सर के बाल बबखरे, उसके हदल में अभी तक बाबू अमतृराय की मु ब्बत बनी ुई ैं। उनकी मूततय रदम उसकी ऑ िंखों के सामने नाचा करती ै। व ब ुत चा ती ै कक उनकी सूरत ह्दय से तनकाल दे मगर उसका कुछ बस न ीिं चलता। यदयवप बाबू दाननाथ उससे सच्चा पे्रम रखत े ैं और बड़ े सुददर ँसमुख, र्मलनसार मनुष्य ैं। मगर पे्रमा का हदल उनसे न ीिं र्मलता। व उनसे पे्रम-भाव हदखाने में कोई बात उठा न ीिं रखती। जब व मौजूद ोत े ैं तो व ँसती भी ैं। बातचीत भी करती ै। पे्रम भी जताती ै। मगर जब व चले जात े ैं तब उसके मुख पर कफर उदासी छा जाती ै। उसकी सूरत कफर ववयोधगन की-सी ो जाती ै। अपने मैके में उसे रोने की कोई रोक-टोक न थी। जब चा ती और जब तक चा ती, रोया करती थी। मगर य ॉँ रा भी न ीिं सकती। या रोती भी तो तछपकर। उसकी बूढी सास उसे पान की तर फेरा करती ै। केवल इसर्लए न ीिं कक व उसका पास और दबाव मानती ै बन्ल्क इसर्लए कक व अपने साथ ब ुत-सा द ेज लायी ै। उसने सारी ग ृस्थी पतो ू के ऊपर छोड़ रक्खी ै और रदम ईश्वर से ववनय ककया करती ै कक पोता खेलाने के हदन जल्द आयें। बेचारी पे्रमा की अवस्था ब ुत ी शोचनीय और करणा के योग्य ै। व ँसती ै तो उसकी ँसी में रोना र्मला ोता ै। व बातचीत करती ै तो ऐसा जान पड़ता ै कक अपने दखु की क ानी क र ी ै। बनाव-र्सिंगार से उसकी ततनक भी रधच न ीिं ै। अगर कभी सास के क ने-सुनने से कुछ सजावट करती भी ै तो उस पर न ीिं खुलता। ऐसा मालूम ोता ै कक इसकी कोमल गात में जो मोह न थी व रठ कर क ीिं और चली गयी। व ब ुिा अपने ी कमरे में बैठी र ती ै। ॉँ, कभी-कभी गाकर हदल ब लाती ै। मगर उसका गाना इसर्लए न ीिं ोता कक उससे धचत्त को आनदद प्राप्त ो। बन्ल्क व मिुर स्वरों में ववलाप और ववषाद के राग गाया करती ै।

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बाबू दाननाथ इतना तो शादी करने के प ले ी जानत ेथे कक पे्रमा अमतृराय पर जान देती ै। मगर उद ोंने समझा था कक उसकी प्रीतत सािारण ोगी। जब मैं उसको ब्या कर लाऊँगा, उससे स्न े, बढाऊँगा, उस पर अपने के तनछावर करँगा तो उसके हदल से वपछली बातें र्मट जायगँी और कफर मारी बड़ ेआनदद से कटेगी। इसर्लए उद ोंने एक म ीने के लगभग पे्रमा के उदास और मर्लन र ने की कुछ परवा न की। मगर उनको क्या मालमू था कक स्न े का व पौिा जो पे्रम-रस से सीिंच-सीिंच कर परवान चढाया गया ै म ीने-दो म ीने में कदावप न ीिं मुरझा सकता। उद ोंने दसूरे म ीने भर भी इस बात पर ध्यान न हदया। मगर जब अब भी पे्रमा के मुख से उदासी की घटा फटत ेन हदखायी दी तब उनको दखु ोने लगा। पे्रम और ईष्याय का चोली-दामन का साथ ै। दाननाथ सच्चा पे्रम देखत ेथे। मगर सच्च ेपे्रम के बदले में सच्चा पे्रम चा त ेभी थे। एक हदन व मालूम से सबेर मकान पर आये और पे्रमा के कमरे में गये तो देखा कक व सर झुकाये ुए बैठी ै। इनको देखत े ी उसने सर उठाया और चोट ऑ िंचल से ऑ िंसू पोंछ उठ खड़ी ुई और बोली—मुझ ेआज न मालूम क्यों लाला जी की याद आ गयी थी। मैं बड़ी से रो र ी ँू। दाननाथ ने उसको देखत े ी समझ र्लया था कक अमतृराय के ववयोग में ऑ िंसू बा ये जा र े ैं। इस पर पे्रमा ने जो यों वा बतलायी तो उनके बदन में आग लग गयी। तीखी धचतवनों से देखकर बोले—तुम् ारी ऑ िंखें ैं और तुम् ारे ऑ िंसू, न्जतना रोया जाय रो लो। मगर मेरी ऑ िंखों में िूल मत झोंको। पे्रमा इस कठोर वचन को सुनकर चौंक पड़ी और बबना कुछ उत्तर हदये पतत की ओर डबडबाई ुई ऑ िंखों से ताकने लगी। दाननाथ ने कफर क ा— क्या ताकती ो, पे्रमा? मैं ऐसा मूखय न ीिं ँू, जैसा तुम समझती ो। मैंने भी आदमी देखे ैं और मैं भी आदमी प चानता ँू। मैं तुम् ारी एक-एक बात की गौर से देखता ँू मगर न्जतना ी देखता ँू उतना ी धचत्त को दखु ोता ै। क्योंकक तुम् ारा बतायव मेरे साथ फीका ै। यदयवप तुमको य सुनना अच्छा न मालूम ोगा मगर ार कर क ना पड़ता ै कक तुमको मुझसे लेश-मात्र भी पे्रम न ीिं ै। मैने अब तक इस ववषय में ज़बान खोलने का सा स न ीिं ककया था और ईश्वर जानता ै कक तुमसे ककस कदर मु ब्बत करता ँू। मगर मु ब्बत सब कुछ स सकती ै, रखाई न ीिं स सकती और व भी कैसी

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रखाई जो ककसी दसूरे पुरष के ववयोग में उत्पदन ुई ो। ऐसा कौन बे ाय, तनलयज्ज आदमी ोगा जो य देखे कक उसकी पत्नी ककसी दसूरे के र्लए ववयोधगन बनी ुई ै और उसका ल ू उबलने न लगे और उसके ह्दय में क्रोि कक ज्वाला ििक न उठे। क्या तुम न ीिं जानती ो कक िमयशास्त्र के अनुसार स्त्री अपने पतत के र्सवाय ककसी दसुरे मनुष्य की ओर कुदृन्ष्ट से देखने से भी पाप की भीगी ो जाती ै और उसका पततव्रत भिंग ो जाता ै। पे्रमा तुम एक ब ुत ऊँच ेघराने की बेटी ो और न्जस घराने की तुम ब ू ो व भी इस श र में ककसी से ेठा न ीिं। क्या तुम् ारे र्लए य शमय की बात न ीिं ै कक तुम एक बाज़ारों की घूमनेवाली र ॉँड़ ब्राह्मणीिं के तुल्य भी न समझी जाओ और व कौन ै न्जसने तुम् ारा ऐसा तनरादर ककया? व ी अमतृराय, न्जसके र्लए तुम ओठों प र मोती वपरोया करती ो। अगर उस दषु्ट के ह्दय में तुम् ारा कुछ भी पे्रम ोता तो व तुम् ारे वपता के बार-बार क ने पर भी तुमको इस तर िता न बताता। कैसे खेद की बात ैं। इद ीिं ऑ िंखों ने उसे तुम् ारी तस्वीर को पैरो से रौंदत े ुए देखा ै। क्या तुमको मेरी बातों का ववश्वास न ीिं आता? क्या अमतृराय के कतयव्य से न ीिं ववहदत ोता ै की उनको तुम् ारी रत्ती-भर भी परवा न ीिं ैं क्या उद ोंने डिंके की चोट पर न ीिं साबबत कर हदया कक व तुमको तुच्छा समझत े ै? माना कक कोई हदन ऐसा था कक व वववा करने की अर्भलाषा रखत ेथे। पर अब तो व बात न ीिं र ी। अब व अमतृराय ै न्जसकी बदचलनी की सारे श र में िूम मची ुई। मगर शोक और अतत शोक की बात ै कक तुम उसके र्लए ऑ िंसू ब ा-ब ाकर अपने मेरे खानदान के माथे कार्लख का टीका लगाती ो। दाननाथ मारे क्रोि के काँप र े थे। चे रा तमतमाया ुआ था। ऑ िंखों से धचनगारी तनकल र ी थी। बेचारी पे्रमा र्सर नीचा ककये ुए खड़ी रो र ी थी। पतत की एक-एक बात उसके कलेजे के पार ुई जाती थी। आखखर न र ा गया। दाननाथ के पैरों पर धगर पड़ी और उद ें गमय-गमय ऑ िंसू की बूँदों से र्भगो हदया। दाननाथ ने पैर खसका र्लया। पे्रमा को चारपाई पर बैठा हदया ओर बोले—पे्रमा, रोओ मत। तुम् ारे रोने से मेरे हदल पर चोट लगती ै। मैं तुमको रलाना न ीिं चा ता। परदतु उन बातों को क ें बबना र भी न ीिं सकता। अगर य हदल में र गई तो नतीजा बुरा पैदा करेगी। कान खोलकर सुनो। मैं तुमको प्राण से अधिक प्यार करता ँू। तुमको आराम प ँुचाने के र्लए ान्ज़र ँू।

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मगर तुमको र्सवाय अपने ककसी दसूरे का ख्याल करत ेन ीिं देख सकता। अब तक न जाने कैसे-कैसे मैंने हदल को समझाया। मगर अब व मेरे बस का न ीिं। अब व य जलन न ीिं स सकता। मैं तुमको चतेाये देता ँू कक य रोना-िोना छोड़ा। यहद इस चेताने पर भी तुम मेरी बात न मानो तो कफर मुझ ेदोष मत देना। बस इतना क े देता ँू। कक स्त्री के दो पतत कदावप जीत े न ीिं र सकत।े य क त े ुए बाबू दाननाथ क्रोि में भरे बा र चले आये। बेचारी पे्रमा को ऐसा मालूम ुआ कक मानो ककसी ने कलेजे में छुरी मार दी। उसको आज तक ककसी ने भूलकर भी कड़ी बात न ीिं सुनायी थी। उसकी भावज कभी-कभी ताने हदया करती थी मगर व ऐसा न ोत े थे। व घिंटों रोती र ी। इसके बाद उसने पतत की सारी बातों पर ववचार करना शुर ककया और उसके कानों में य शब्द गूँजने लगे-एक स्त्री के दो पतत कदावप जीत ेन ीिं र सकत।े इनका क्या मतलब ै? ***

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13. शोकदायक घटना पूणाय, रामकली और लक्ष्मी तीनों बड़ ेआनदद से ह त-र्मलकर र ने लगी। उनका समय अब बातचीत, ँसी-हदल्लगी में कट जात। धचदता की परछाई भी न हदखायी देती। पूणाय दो-तीन म ीने में तनखर कर ऐसी कोमलागी ो गयी थी कक पह चान न जाती थी। रामकली भी खूब रिंग-रूप तनकाले थी। उसका तनखार और यौवन पूणाय को भी मात करता था। उसकी ऑ िंखों में अब चिंचलता और मुख पर व चपलता न थी जो प ले हदखायी देती थी। बन्ल्क अब व अतत सुकुमार कार्मनी ो गयी थी। अच्छे सिंग में बैठत-ेबैठत ेउसकी चाल-ढाल में गम्भीरता और िैयय आ गया था। अब व गिंगा स्नान और मन्ददर का नाम भी लेती। अगर कभी-कभी पूणाय उसको छोड़ने के र्लए वपछली बातें याद हदलाती तो व नाक-भौं चढा लेती, रठ जाती। मगर इन तीनों में लक्ष्मी का रप तनराला था। व बड़ ेघर में पैदा ुई थी। उसके म ॉँ-बाप ने उसे बड़ ेलाड़-प्यार से पाला था और उसका बड़ी उत्तम रीतत पर र्शक्षा दी थी। उसका कोमल गत, उसकी मनो र वाणी, उसे अपनी सखखय ॉँ में रानी की पदावी देती थी। व गाने-बजाने में तनपुण थी और अपनी सखखयों को य गुण र्सखाया करती थी। इसी तर पूणाय को अनेक प्रकार के व्यिंजन बनाने का व्यसन था। बेचारी रामकली के ाथों में य सब गुण न थे। ॉँ, व ँसोड़ी थी और अपनी रसीली बातों से सखखयों को ँसाया करती थी। एक हदन शाम को तीनों सखखयाँ बैठी बातधचत कर र ी थी कक पूणाय ने मुसकराकर रामकली से पूछा—क्यों रम्मन, आजकल मन्ददर पूजा करने न ीिं जाती ो। रामकली ने झेंपकर जवाब हदया—अब व ॉँ जाने को जी न ीिं चा ता। लक्ष्मी रामकली का सब वतृ्तादत सुन चुकी थी। व बोली— ॉँ बुआ, अब तो ँसने-बोलने का सामान घर ी पर ी मौजूद ै। रामकली—(ततनककर) तुमसे कौन बोलता ै, जो लगी ज र उगलने। बह न, इनको मना कर दो, य मारी बातों में न बोला करें। न ीिं तो अभी कुछ क बैठँूगी तो रोती कफरेंगी।

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पूणाय—मत लतछमी (लक्ष्मी) सखी को मत छोड़ो। लक्ष्मी—(मुसकराकर) मैंने कुछ झूठ थोड़ े ी क ा था जो इनको ऐसा कडुआ मालूम ुआ। रामकली—जैसी आप ै वैसी सबको समझती ै। पूणाय— लतछमी, तुम मारी सखी को ब ुत हदक ककया करती ो। तुम् री बाल से व मन्ददर में जाती थी। लक्ष्मी—जब मैं क ती ँू तो रोती का े को ै। पूणाय—अब य बात उनको अच्छी न ीिं लगती तो तुम का े को क ती ो। खबरदार, अब कफर मन्ददर का नाम मत लेना। लक्ष्मी—अच्छा रम्मन, में एक बात दो तो, म कफर तुम् ें कभी न छेड़—ेम दत जी ने मिंत्र देत ेसमय तुम् रे कान में क्या क ा? मारा माथा छुए जो झूठ बोले। रामकली—(धचटक कर) सुना लतछमी, मसे शरारत करोगी तो ठीक न ोगा। मैं न्जतना ी तर देती ँू, तुम उतनी ी सर चढी जाती ो। पूणाय—ऐ तो बतला क्यों न ीिं देती, इसमें क्या जय ै? रामकली—कुछ क ा ोगा, तुम कौन ोती ो पूछनेवाली? बड़ी आयीिं व ॉँ से सीता बन के पूणाय—अच्छा भाई, मत बताओ, बबगड़ती का े को ो? लक्ष्मी—बताने की बात ी न ीिं बतला कैसे दें।

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रामकली—कोई बात भी ो कक यों ी बतला दूँ। पूणाय—अच्छा य बात जाने दो। बताओ उस तिंबोली ने तुम् ें पान खखलात ेसमय क्या क ा था। रामकली—कफर छेड़खानी की सझूी। मैं भी पत ेकी बात क दूँगी तो लजा जाओगी। लक्ष्मी—तुम् े मार कसम सखी, जरर क ो। य म लोगों की बातों तो पूछ लेती ै, अपनी बातें एक न ीिं क तीिं। रामकली—क्यों सखी, क ँू? क ती ँू, बबगड़ना मत। पूणाय- क ो, स ॉँच को ऑ िंच क्या। रामकली—उस हदन घाट पर तुमने ककस छाती से र्लपटा र्लया था। पूणाय— तुम् ारा सर लक्ष्मी— समझ गयी। बाबू अमतृराय ोंगे। क्यों ै न? य तीनों सखखय ॉँ इसी तर ँस-बोल र ीिं थीिं कक एक बूढी औरत ने आकर पूणाय को आशीवायद हदया और उसके ाथ में एक खत रख हदया। पूणाय ने अक्षर पह चाने, पे्रमा का पत्र था। उसमें य र्लखा था— ‘‘प्यारी पूणाय तुमसे भेंट करने को ब ुत जी चा ता ै। मगर य ॉँ घर से बा र प ॉँव तनकालने की मजाल न ीिं। इसर्लए य ख़त र्लखती ँू। मुझ ेतुमसे एक अतत आवश्यक बात करनी ै। जो पत्र में न ीिं र्लख सकती ँू। अगर तुम बबल्लो को इस पत्र का जवाब देकर भेजो तो जबानी क दूँगी। देखा देर मत करना। न ीिं तो अनथय ो जाएगा। आठ बजे के प ले बबल्लो य ॉँ अवश्य आ जाए।

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तुम् ारी सखी पे्रमा’’ पत्र पढत े ी पूणाय का धचत्त व्याकुल ो गया। च ेरे का रिंग उड़ गया और अनेक प्रकार की शिंकाएँ लगी। या नारायण अब क्या ोनेवाला ै। र्लखती ै देखो देर मत करना। न ीिं तो अनथय ो जाएगा। क्या बात ै। अभी तक व कच री से न ीिं लौटे। रोज तो अब तक आ जाया करत ेथे। इनकी य ी बात तो म को अच्छी न ीिं लगती। लक्ष्मी और रामकली ने जब उसको ऐसा व्याकुल देखा तो घबराकर बोलीिं—क्या बह न, कुशल तो ै? इस पत्र में क्या र्लखा ै? पूणाय—क्या बताऊँ क्या र्लखा ै। रामकली, तुम जरा कमरे में जा के झ ॉँको तो आये या न ीिं अभी। रामकली ने आकर क ा—अभी न ीिं आये। लक्ष्मी—अभी कैसे आयेंगे? आज तो तीन आदमी व्याख्यान देने गये ै। इसी घबरा ट में आठ बजा। पूणाय ने पे्रमा के पत्र का जवाब र्लखा और बबल्लो को देकर पे्रमा को घर भेज हदया। आिा घिंटा भी न बीता था कक बबल्लो लौट आयी। रिंग उड़ा ुआ। बद वास और घबरायी ुई। पूणाय ने उसे देखत े ी घबराकर पूछा—क ो बबल्लो, कुशल क ो। बबल्लो (माथा ठोंककर) क्या क ँू, ब ू क त ेन ीिं बनता। न जाने अभी क्या ोने वाला ै। पूणाय—क्या क ा? कुछ धचट्ठी-पत्री तो न ीिं हदया? बबल्लो—धचट्ठी क ॉँ से देती? मको अददर बुलात ेडरती थीिं। देखत े ी रोने लगी और क ा—बबल्लो, मैं क्या करँ, मेरा जी य ॉँ बबलकुल न ीिं लगता। मैं

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वपछली बातें याद करके रोया करती ँू। व (दाननाथ) कभी जब मुझ ेरोत ेदेख लेत े ैं तो ब ुत झल्लात े ैं। एक हदन मुझ ेब ुत जली-कटी सुनायी और चलते-समय िमका कर क ा—एक औरत के दो चा नेवाले कदावप जीत ेन ीिं र सकत।े य क कर बबल्लो चुप ो गयी। पूणाय के समझ में पूरी बात न आयी। उसने क ा—चुप क्यों ो गयी? जल्दी क ो, मेरा दम रका ुआ ै। बबल्लो—इतना क कर व रोने लगी। कफर मुझको नजदीक बुला के कान में क ा—बबल्लो, उसी हदन से मैं उनके तवेर बदले ुए देखती ँू। व तीन आदर्मयों के साथ लेकर रोज शाम को न जाने क ॉँ जात े ैं। आज मैंने तछपकर उनकी बातचीत सुन ली। बार बजे रात को जब अमतृराय पर चोट करने की सला ुई ै। जब से मैंने य सुना ै, ाथों के तोत ेउड़ े ुए ैं। मुझ अभाधगनी के कारण न जाने कौन-कौन दखु उठायेगा। बबल्लो की ज़बानी य बातें सनुकर पूणाय के पैर तले से र्मट्टी तनकल गयी। दनानाथ की तसवीर भयानक रप िारण ककये उसकी ऑ िंखों के सामने आकर खड़ी ो गयी। व उसी दम दौड़ती ुई बैठक में प ँुची। बाबु अमतृराय का व ॉँ पता न था। उसने अपना माथा ठोंक बबल्लो से क ॉँ—तुम जाकर आदर्मयों क दो। फाटक पर खड़ े ो जाए। और खुद उसी जग एक कुसी पर बैठकर गुनने लगी कक अब उनको कैसे खबर करँ कक इतने में गाड़ी की खड़खड़ा ट सुनायी दी। पूणाय का हदल बड़ ेजोर से िड़-िड़ करने लगा। व लपक कर दरवाज़े पर आयी और क ॉँपती ुई आवाज़ से पुकार बोली—इतनी देर क ॉँ लगायी? जल्दी आत ेक्यों न ीिं? अमतृराय जल्दी से उतरे और कमरे के अददर कदम रखत े ी पूणाय ऐसे र्लपट गयी मानो उद ें ककसी के वार से बचा र ी ै और बोली—इतनी जल्दी क्यों आये, अभी तो ब ुत सवेरा ै। अमतृराय—प्यारी, क्षमा करो। आज जरा देर ो गयी।

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पूणाय—चर्लए र ने दीन्जए। आप तो जाकर सैर-सपाटे करत े ैं। य ॉँ दसूरों की जान लकान ोती ैं। अमतृराय—क्या बतायें, आज बात ऐसी आ पड़ी कक रकना पड़ा। आज माफ करो। कफर ऐसी देर न ोगी। य क कर व कपड़ ेउतारने लगे। मगर पूणाय व ी खड़ी र ी जैसे कोई चौंकी ुई ररणी। उसकी ऑ िंखें दरवाज़े की तरफ लगी थीिं। अचानक उसको ककसी मनुष्य की परछाई दरवाज़ े के सामने हदखायी पड़ी। और व बबजली की रा चमककर दरवाजा रोककर खड़ी ो गयी। देखा तो क ार था। जूता खोलने आ र ा था। बाबू सा ब न ध्यान से देखा तो पूणाय कुछ घबरायी ुई हदखायी दी। बोले---प्यारी, आज तुम कुछ घबरायी ुई ो। पूणाय—सामनेवाला दरवाजा बदद करा दो। अमतृराय—गरमी ो र ी ैं। वा रक जाएगी। पूणाय—य ॉँ न बैठने दूँगी। ऊपर चलो। अमतृराय—क्यों बात क्या ै? डरने की कोई वज न ीिं। पूणाय—मेरा जी य ॉँ न ीिं लगता। ऊपर चलो। व ॉँ च ॉँदनी में खूब ठिंडी वा आ र ी ोगी। अमतृराय मन में ब ुत सी बातें सोचते-सोचत ेपूणाय के साथ कोठे पर गये। खुली ुई छत थी। कुर्सयय ॉँ िरी ुई थी। नौ बजे रात का समय, चैत्र के हदन, च ॉँदनी खूब तछटकी ुई, मदद-मदद शीतल वायु चल र ी थी। बगीच ेके रे-भरे वकृ्ष िीरे-िीरे झूम-झूम कर अतत शोभायमान ो र े थे। जान पड़ता था कक आकाश ने ओस की पतली लकी चादर सब चीजों पर डाल दी ै। दरू-दरू के िुिँले-िुिँले पेड़ ऐसे मनो र मालूम ोत े ै मानो व देवताओिं के रमण करने के स्थान ैं। या व उस तपोवन के वकृ्ष ैं न्जनकी छाया में शकुदतला

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और उसकी सखखय ॉँ भ्रमण ककया करती थीिं और ज ॉँ उस सुददरी ने अपने जान के अिार राजा दषु्यदत को कमल के पत्त ेपर पे्रम-पाती र्लखी थी। पूणाय और अमतृराय कुर्सयया पर बैठ गये। ऐसे सुखदाय एकािंत में चदद्रमा की ककरणों ने उनके हदलों पर आक्रमण करना शुर ककया। अमतृराय ने पूणाय के रसीले अिर चूमकर क ा—आज कैसी सु ावनी चाँदनी ै। पूणाय—मेरी जी इस घड़ी चा त ै कक मैं धचडड़या ोती। अमतृराय—तो क्या करतीिं। पूणाय—तो उड़कर उन दरूवाले पेड़ों पर जा बैठती। अमतृराय—अ ा ा देखा लक्ष्मी कैसा अलाप र ी ै। पूणाय—लक्ष्मी का-सा गाना मैंने क ीिं न ीिं सुना। कोयला की तर कूकती ै। सुनो कौन गीत ै। सुना मोरी सुधि जतन बबसरै ो, म राज। अमतृराय—जी चा ता ै, उसे य ीिं बुला लूँ। पूणाय- न ीिं। य ॉँ गात ेलजायेगी। सुनो। इतनी ववनय मैं तुमसे करत ौं हदन-हदन स्ने बढैयो म राज। अमतृराय— ाय जी बेचैन ुआ जाता ै। पूणाय---जैसे कोई कलेजे में बैठा चुटककय ॉँ ले र ा ो। कान लगाओ, कुछ सुना, क ती ै।

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मैं मिुमाती अरज करत ँू तनत हदन पन्त्तया पठैयो, म राज अमतृराय—कोई पे्रम—रस की माती अपने सजन से क र ी ै। पूणाय—क ती ै तनत हदन पन्त्तया पठैयो, म राज ाय बेचारी पे्रम में डूबी ुई ै। अमतृराय---चुप ो गयी। अब व सदनटा कैसा मनो र मालूम ोता ै। पूणाय---पे्रमा भी ब ुत अच्छा गाती थी। मगर न ीिं। पे्रमा का नाम जबान पर आत े ी पूणाय यकायक चौंक पड़ी और अमतृराय के गले में ाथ डालकर बोली—क्यों प्यारे तुम उन गड़बड़ी के हदनों में मारे घर जात ेथे तो अपने साथ क्या ले जाया करत ेथे। अमतृराय—(आश्चयय से) क्यों? ककसर्लए पूछती ो? पूणाय—यों ी ध्यान आ गया। अमतृराय—अिंगे्रजी तमिंचा था। उसे वपस्तौल क त े ै। पूणाय—भला ककसी आदमी के वपस्तौल की गोली लगे तो क्या ो। अमतृराय—तुरिंत मर जाए। पूणाय—मैं चलाना सीखू ँतो आ जाए। अमतृराय—तुम वपस्तौल चलाना सीखकर क्या करोगी? (मुसकराकर) क्या नैनों की कटारी कुछ कम ै? इस दम य ी जी चा ता ै कक तुमको कलेजा में रख लूँ।

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पूणाय—( ाथ जोड़कर) मेरी तुमसे य ी ववनय ै— मेरा सुधि जतन बबसरै ो, म ाराज य क ते-क त ेपूणाय की ऑ िंखों में नीर भर आया। अमतृराय। अमतृराय भी गदगद स्वर ो गये और उसको खूब भेंच-भेंच प्यार ककया, इतने में बबल्लो ने आकर क ा—चर्लए रसोई तैयार ै। अमतृराय तो उिर भोजन पाने गये और पूणाय ने इनकी अलमारी खोलकर वपस्तौल तनकाल ली और उसे उलट-पुलट कर गौर से देखने लगी। जब अमतृराय अपने दोनों र्मत्रों के साथ भोजन पाकर लौटे और पूणाय को वपस्तौल र्लये देखा तो जीवननाथ ने मुसकराकर पूछा—क्यों भाभी, आज ककसका र्शकार ोगा? पूणाय-इसे कैसे छोड़त े ै, मेरे तो समझ ी में न ीिं आता। ज़ीवननाथ—लाओ मैं बता दूँ। य क कर ज़ीवननाथ ने वपस्तौल ाथ में लीिं। उसमें गोली भरी और बरामदे में आये और एक पेड़ के तने में तनशान लगा कर दो-तीन फ़ायर ककये। अब पूणाय ने वपस्तैल ाथ में ली। गोली भरी और तनशाना लगाकर दागा, मगर ठीक न पड़ा। दसूरा फ़ायर कफर ककया। अब की तनशाना ठीक बैठा। तीसरा फ़ायर ककया। व भी ठीक। वपस्तौल रख दी और मुसकरात े ुए अददर चली गयी। अमतृराय ने वपस्तौल उठा र्लया और जीवननाथ से बोले—कुछ समझ में न ीिं आता कक आज इनको वपस्तौल की िुन क्यों सवार ै। जीवननाथ—वपस्तौल रक्ख देख के छोड़ने की जी चा ा ोगा। अमतृराय—न ीिं,आज जब से मैं आया ँू,कुछ घबरया ुआ देख र ा ँू। जीवननाथ—आपने कुछ पूछा न ीिं। अमतृराय—पूछा तो ब ूत मगर जब कुछ बतलायें भी, ँू- ॉँ कर के टाल गई।

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जीवननाथ—ककसी ककताब में वपस्तौल की लड़ाई पढी ोगी। और क्या? प्राणनाथ—य ी मैं भी समझता ँू। जीवननाथ—र्सवाय इसके और ों ी क्या सकता ै? कुछ देर तक तीनों आदमी बैठे गप-शप करत ेर े। जब दस बजने को आये तो लोग अपने-अपने कमरों में ववश्राम करने चले गये। बाबू सा ब भी लेटे। हदन-भर के थके थे। अखबार पढते-पढत े सो गये। मगर बेचारी पूणाय की ऑ िंखों में नीिंद क ॉँ? व बार बजे तक एक क ानी पढती र ी। जब तमाम सोता पड़ गया और चारो तरफ सदनाटा छा गया तो उसे अकेले डर मालूम ोने लगा। डरत े ी डरत ेउठी और चारों तरफ के दरवाजे बदद कर र्लये। मगर जवनी की नीिंद, ब ुत रोकने पर भी एक झपकी आ ी गयी। आिी घड़ी भी न बीती थी कक भय में सोने के कारण उसे एक अतत भिंयकर स्वप्न हदखायी हदया। चौंककर उठ बैठी, ाथ-प ॉँव थर-थर क ॉँपने लगे। हदल में िड़कन ोने लगी। पतत का ाथ पकड़कर चा ती थी कक जगा दें। मगर कफर य समझकर कक इनकी प्यारी नीिंद उचट जएगी तो तकलीफ ोगी, उनका ाथ छोड़ हदया। अब इस समय उसकी जो अवस्था ै वणयन न ीिं की जा सकती। च ेरा पीला ो र ा ै, डरी ुई तनगा ों से इिर-उिर ताक र ी ै, पत्ता भी खड़खड़ाता ै ता चौंक पड़ती ैं। कभी अमतृराय के र्सर ाने खड़ी ोती ै, कभी पैताने। लैम्प की िुिंिली रोशनी में व सदनाटा और भी भयानक मालूम ो र ा ै। तसवीरे जो दीवारों से लटक र ी ै, इस समय उसको घूरत े ुए मालूम ोती ै। उसके सब रोंगटे खड़ े ैं। वपस्तौल ाथ में र्लये घबरा-घबरा कर घड़ी की तरफ देख र ी ैं। यकायक उसको ऐसा मालूम ुआ कक कमरे की छत दबी जाती ै। कफर घड़ी की सुइयों को देखा। एक बज गया था इतने ी में उसको कई आदर्मयों के प ॉँव की आ ट मालूम ुई। कलेजा ब िंसों उछालने लगा। उसने वपस्तौल सम् ाली। य समझ गयी कक न्जन लोगों के आने का खटका था व आ गये। तब भी उसको ववश्वास था कक इस बदद कमरे में कोई न आ सकेगा। व कान लगाये पैरों की आ ट ले र ी थी कक अकस्मात दरवाजे पर बड़ ेजोर से िक्का लगा और जब तक व बाबू अमतृराय को जगाये कक मजबूत ककवाड़ आप ी आप खुल गये और कई आदमी िड़िड़ात े

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ुए अददा घुस आये। पूणाय ने वपस्तौल सर की। तड़ाके की आवाज ुई। कोई िम्म से धगर पड़ा, कफर कुछ खट-खट ोने लगा। दो आवाजे वपस्तौल के छुटने की और ुई। कफर िमाका ुआ। इतने में बाबू अमतृराय धचल्लाये। दौड़ो-दौड़ो, चोर, चोर। इस आवाज के सुनत े ी दो आदमी उनकी तरफ लपके। मगर इतने में दरवाजे पर लालटेन की रोशनी नजर आयी और प्राणानाथ और जीवननाथ ाथों में सोटे र्लए आ प ँुच।े चोर भागने लगे, मगर दो के दोनों पकड़ र्लए गये। जब लालटेने लेकर जमीन पर देखा तो दो लाश ेहदखायी दीिं। एक तो पूणाय की लाश थी और दसूरी एक मदय की। यकायक प्राणनाथ ने धचल्ला कर क ा—अरे य तो बाबू दाननाथ ैं। बाबू अमतृराय ने एक ठिंडी साँस भरकर क ा—आज जब मैंने उसके ाथ में वपस्तौल देखा तभी से हदल में एक खटका-सा लगा ुआ था। मगर, ाय क्या जानता था कक ऐसी आपन्त्त आनेवाली ै। प्राणनाथ—दाननाथ तो आपके र्मत्रों में थे। अमतृराय---र्मत्रों में जब थे तब थे। अब तो शत्रु ै। पूणाय को दतुनया से उठे दो वषय बीत गया ैं। स ॉँझ का समय ैं। शीतल-सुगिंधित धचत्त को षय देनेवाली वा चल र ी ैं। सूयय की ववदा ोनेवाली ककरणें खखड़की से बाबू अमतृराय के सजे ुए कमेरे में जाती ैं और पूणाय के पूरे कद की तसवीर के पैरों को चूम-चूम कर चली जाती ैं। उनकी लाली से सारा कमरा सुन रा ो र ा ैं। रामकली और लक्ष्मी के मुखड़ ेइस समय मारे आनदद के गुलाब की तर खखले ुए ै। दोनों ग ने-पात ेसे लौस ैं और जब व खखड़की से भर तनकालती ैं और सुन री ककरणें उनके गुलाब-से मुखड़ों पर पड़ती ै तो जान पड़ता ै कक सूयय आप बलैया ले र ा ै। व र -र कर ऐसी धचतवनों से ताकती ैं से ताकती ैं जैसी ककसी की र ी ैं। यकायक रामकली ने खुश ोकर क ा—सुखी व देखों आ गये। उनके कपड़ ेकैसे सुददर मालूम देत े ै।

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एक अतत सुददर कफटन चम-चम करती ुई फाटक के अिंदर दाखखल ोती ै और बँगले के बरामदे में आकर रकती ै। बाबू अमतृराय उसमें से उतरत े ैं। मगर अकेले न ीिं। उनका एक ाथ पे्रमा के ाथ में ै। यदयवप बाबू सा ब का सुददर च ेरा कुछ पीला ो र ा ै। मगर ोंठों पर लकी-सी मुसकरा ट झलक र ी ै और माथे पर केशर का टीका और गले में खूबसूरत ार और शोभा बढा र े ैं। पे्रमा सुददरता की मूरत और जवानी की तस्वीर ो र ी ै। जब मने उसको वपछली बार देखा था तो धचदता और दबुयलता के धचह्न मुखड़ ेसे पाये जात ेथे। मगर कुछ और ी यौवन ै। मुखड़ा कुददन के समान दमक र ा ै। बदन गदराय ुआ ै। बोटी—बोटी नाच र ी ै। उसकी चिंचलता देखकर आश्चयय ोता ै कक क्या व ी पीली मुँ और उलझ ेबाल वाली रोधगन ै। उसकी ऑ िंखों में इस समय एक घड़ ेका नशा समाया ुआ ै। गुलाबी जमीन की रे ककनारेवाली साड़ी और ऊदे रिंग की कलोइयों पर चुनी ुई जाकेट उस पर खखल र ी ै। उस पर गोरी-गारी कलाइयों में जड़ाऊ कड़ ेबालों में गुँथे ुए गुलाब के फूल, माथे पर लाल रोरी की गोल-बब िंदी और प ॉँव में जरदोज के काम के सुददर में सु ागा ो र े ैं। इस ढग के र्सिंगार से बाबू सा ब को ववशेष करके लगाव ै क्योंकक पूणाय देवी की तसवीर भी ऐसी ी कपड़ ेपह ने हदखायी देती ै और उसे देखकर कोई मुन्श्कल से क सकता ैं कक पे्रमा ी की सुरत आइने में उत्तर कर ऐसा यौवन न ीिं हदखा र ी ैं। अमतृराय ने पे्रमा को एक मखमली कुसी पर बबठा हदया और मुसकरा कर बोले—प्यारी पे्रमा आज मेरी न्जददगी का सबसे मुबारक हदन ै। पे्रमा ने पूणाय की तसवीर की तरफ मर्लन धचतवनों से देखकर क ा— मारी न्ज़दगी का क्यों न ी क ते? पे्रमा ने य क ा था कक उसकी नजर एक लाल चीज पर जा पड़ी जो पूणाय की तसवीर के नीच ेएक खूबसूरत दीवारगीर पर िरी ुई थी। उसने लपककर उसे उठा र्लया। और ऊपर का रेशमी धगलाफ टाकर देखा तो वपस्तौल था। बाबू अमतृराय ने धगरी ुई आवाज में क ा—य प्यारी पूणाय की तनशानी ै, इसी से उसने मेरी जान बचायी थी।

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य क ते—क त ेउनकी आवाज क ॉँपने लगी। पे्रमा ने य सुनकर उस वपस्तौला को चूम र्लया और कफर बड़ी र्ल ाज के साथ उसी जग पर रख हदया। इतने में दसूरी कफ़टन दाखखल ोती ै। और उसमें से तीन युवक ँसत े ुए उतरत े ैं। तीनों का म प चानत े ै। एक तो बाबू जीवननाथ ैं, दसूरे बाबू प्राणनाथ और तीसरे पे्रमा के भाई बाब ू कमलाप्रसाद ैं। कमलाप्रसाद को देखत े ी पे्रमा कुसी से उठ खड़ी ुई, जल्दी से घूघटँ तनकाल कर र्सर झुका र्लया। कमलाप्राद ने बह न को मुसकराकर छाती से लगा र्लया और बोले—मैं तुमको सच्च े हदल से मुबारबाद देता ँू। दोनों युवकों ने गुल मचाकर क ा—जलसा कराइये जलसा, यो पीछा न छूटेगा। ***